अहोई अष्टमी व्रत

अहोई अष्टमी का व्रत  करवा चौथ के व्रत की तरह ही पूरे भारत वर्ष में बहुत ही धूम-धाम एवं उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह दिन अहोई माता को समर्पित है। इस पर्व को अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि यह व्रत अष्टमी तिथि को होता है तो माह का आठवा दिन होता है। इसे मुख्य रुप से उत्तर भारत मे कार्तिक माह के अंधेरे पखवाड़े अर्थात कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह त्यौहार करवा चौथ के चार दिन बाद तथा दीपावली के आठ दिन पहले मनाया जाता है। इसके अलावा गुजरात एवं महाराष्ट्र में अमानता पंचांग के अनुसार यह पर्व अश्विन माह में मनाया जाता है।

                                                       अहोई अष्टमी का महत्व

अहोई अष्टमी का व्रत माताएं अपने पुत्र के कल्याण के लिए रखती है। पारम्परिक रुप से यह व्रत पुत्रों के लिए रखा जाता है। इस दिन माताएं बहुत उत्साह से अहोई माता की पूजा करती है और अपने संतान के स्वास्थ्य एवं लम्बी आयु के लिए कामना करती है। यह व्रत संतानहीन दाम्पत्यों के लिए अधिक महत्वपूर्ण होता है। इसके अलावा जो महिलाएं गर्भधारण मे असमर्थ होती अथवा जिन महिलाओं का गर्भपात हो गया हो उन्हें संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत अवश्य रखना चाहिए। इसी कारण से इस दिन को कृष्णा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। मथुरा के राजा कुंड मे इस दिन बड़ी संख्या में दाम्पत्य तथा श्रद्धालु पावन स्नान करने भी आते है। अहोई अष्टमी के व्रत का हमारे हिन्दू धर्म मे बहुत अधिक महत्व है। इस दिन माताएं प्रातः काल से लेकर संध्या काल तक व्रत रखती है। शाम को चन्द्र दर्शन एवं पूजन करके व्रत का समापन करते है। अहोई माता की महिमा अपरम्पार होती है। यह अपने भक्तों पर हमेशा ही माता कृपा बनी रहती है।

READ ALSO   SHARAVAN PUTRADA EKADASHI

                                            अहोई अष्टमी कब मनाई जाती है

माता अहोई अष्टमी का व्रत और आराधना प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है।

                                              अहोई अष्टमी व्रत की कथा

गर्ग संहिता के अनुसार श्री कृष्ण और बलराम की हत्या के लिए कंस ने अरिष्ठासुर नामक राक्षस को भेजा था, गायों के समूह में बैल बनकर वह घुस गया उसके बाद गोचारण पर राधाकुंड के जंगल में गए श्रीकृष्ण को अपने पास बुलाने एवं उन पर आक्रमण करने के लिए उसने गायों एवं बछड़ो को जल मारना शुरु किया तो श्रीकृष्ण ने उसका वध कर उसे मोक्ष प्रदान किया। जब अरिष्टासुर का अंत हो गया। तब राधारानी ने श्री कृष्ण से कहा था कि उन्होंने गोवंश की हत्या की है। अतः जब वे सात तीर्थों मे स्नान कर आएंगे तभी वे उन्हें स्पर्श करेगी। श्रीकृष्ण ने पास के स्थान में अपनी बांसुरी से कुंड खोदकर उसमें सभी तीर्थों के पानी आह्वान किया था। इसके बाद राधा रानी ने अपने कंगन से कुंड खोद कर जल का आह्वान किया तब कान्हा ने अपने कुण्ड को राधा रानी के कुण्ड से मिला दिया। जिससे श्री कृष्ण द्वारा खोदे गए श्यामकुण्ड और राधारानी द्वारा खोदे गए राधाकुण्ड के जल मिल कर पवित्र हो गए इसके पश्चात राधा रानी ने इस कुण्ड मे स्नान किया था और कृष्ण जी से यह वरदान मांगा की जो विवाहित निःसंतान जोड़ा अहोई अष्टमी को राधा कुंड मे रात 12 बजे स्नान करें उन्हें संतान या पुत्र रत्न की प्राप्ति हो व्रत करने वाली महिलाओं को मनोकामना पूरी करने के लिए किसी फल या सब्जी का सेवन करना छोड़ना होता है।

READ ALSO   SANKASHTHI CHATURTHI

                                             अहोई अष्टमी व्रत की कथा

इस पर्व को मनाने की एक अन्य कथा भी है। ऐसा कहा जाता है कि एक महिला के सात पुत्र थें। एक दिन वह मिट्टी लाने के लिए जंगल में गई और मिट्टी खोदते समय अनजाने मे सेही के बालक की मृत्यु हो गई जिसके कारण सेही ने महिला को श्राप दिया गया। फलस्वरुप कुछ सालों के अन्दर ही उसके सभी सातों पुत्रों की मृत्यु हो गई तब उसे यह एहसास हुआ कि यह सेही द्वारा दिये गये श्राप का ही फल है। तब उसने अपने पुत्रों को वापस पाने के लिए अहोई माता की पूजा करके छह दिनों तक उपवास रखा माता उसके श्रद्धा से प्रसन्न हुई और उसके सातों पुत्रों को पुनः जीवित कर दिया गया।

                                             अहोई अष्टमी की पूजा विधि

☸इस दिन सर्वप्रथम दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाया जाता है। अहोई माता के चित्र में अष्टमी तिथि होने के कारण आठ कोने अर्थात अष्ट कोष्टक होने चाहिए। इसके साथ ही सेही और उसके बच्चे का चित्र भी अंकित किया जाना चाहिए।
☸उसके बाद लकड़ी की चौंकी पर माता अहोई के चित्र के बाई तरफ पानी से भरा एक कलश रखें। साथ ही कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर मोली बाँधी जाती है।
☸इसके पश्चात अहोई माता को पूरी, हलवा तथा पुआ युक्त भोजन अर्पित करें। अनाज जैसे ज्वार, कच्चा भोजन भी मां को अर्पित करें।
☸परिवार की सबसे बड़ी महिला परिवार की सभी महिलाओं को अहोई अष्टमी व्रत कथा का वाचन करना चाहिए। कथा सुनते समय सभी महिलाओं को अनाज के सात दाने अपने हाथ में रखना चाहिए।
☸पूजा के अंत में अहोई अष्टमी की आरती अवश्य करें।
☸पूजा सम्पन्न होने के पश्चात महिलाओं अपने परिवार की परम्परा के अनुसार पवित्र कलश में से चन्द्रमा अथवा तारो को अर्ग देती है। तारों के दर्शन से अथवा चंद्रोदय के पश्चात अहोई माता का व्रत सम्पन्न होता है।

READ ALSO    CELEBRATIONS OF SANKASHTI CHATURTHI

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *