आग्नेयमुखी भवन के शुभाशुभ निर्णय

आग्नेय कोण पूर्व और दक्षिण दिशा के मध्य स्थान को कहते है। इस दिशा के स्वामी अग्नि देव है इस दिशा का अधिपत्य शुक्र ग्रह के पास है और इस दिशा मे सूर्य की किरणे सर्वाधिक पड़ती है जिससे यह दिशा अन्य दिशाओं से गर्म रहती है। वास्तु शास्त्र में घर या कार्य स्थल पर किस दिशा में कौन सी वस्तु कहा रखें या कहां किसका निर्माण कराया जाए इस बारे में बताया जाता है यदि इन बातों का ध्यान न रखा जाए तो भवन में वास्तु की मान्यता के अनुसार चार दिशाएं पूर्व पश्चिम उत्तम और दक्षिण के अलावा चार विदेशो मे होती है। ईशान कोण नैऋत्य कोण, आग्नेय कोण और वायव्य कोण है।  वास्तु शास्त्र के अनुसार यह दिशा अग्नि से सम्बन्धित कार्यों के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। इस दिशा में रसोई घर, बिजली के उपकरण, इनवर्टर, गर्म पानी करने की भट्टी एवं वायलर या फिर अग्नि से सम्बन्धित उपकरण रखना उत्तम माना जाता है।

आग्नेय दिशा में शुक्र का प्रतिनिधित्व होने के कारण यह दिशा महिलाओं के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। इस दिशा में वास्तु दोष होने के कारण घर की महिलाएं बीमार रहती है। रजस ऊर्जा से युक्त आग्नेय दिशा में रसोई घर के निर्माण के लिए उत्तम स्थानों मे से एक है। यहां स्थिति रसोई घर व्यक्ति के आर्थिक स्थिति को मजबूत करता है और रुके हुए धन को प्राप्त करने में भी मददगार होता है इस दिशा में ड्रेंसिग रुम और सौन्दर्य प्रसाधन कक्ष बनाना शुभ रहता है।

अशुभ परिणामः- आग्नेय दिशा के भवन में मुख द्वार नैऋत्य में भी कतई न बनाएं इससे चोरी व धन हानि का सदैव भय बना रहता है। इस दिशा को बंद न करें, बल्कि छोटा सा दरवाजा अथवा खिड़की अवश्य ही रखे इस दिशा को बंद करने से विकास की गति रुक जाती है और आकस्मिक दुर्घटनाओं की संभावना भी रहती है। इस तरह के भवन मे चारदीवारी का निर्माण उत्तर ईशान एवं पूर्व से ऊंचा लेकिन दक्षिण और नैऋत्य से नीचा होना चाहिए एवं उत्तर ईशान एवं पूर्व में रिक्त स्थान ज्यादा से ज्यादा छोड़ना चाहिए लेकिन दक्षिण और नैऋत्य में रिक्त स्थान नही होना चाहिए इसके परिणाम अशुभ होते है। इस दिशा में भवन में यदि आग्नेय कोण दक्षिण की तरफ ज्यादा बटा हो तो शत्रुता एवं घर की स्त्रियों को रोग की संभावना होती है इसके विपरीत भवन का पूर्व ईशान की तरफ ज्यादा बड़ा होना शुभ होता है। इस तरह के भवन के सामने की ओर अर्थात आग्नेय कोण की फर्श यदि नीची हुई या इस दिशा में सेफ्टिक टैंक या गड्डा होने पर घर के मालिक या उसकी संतान को दुर्घटना हो सकती है। आग्नेय दिशा के भवन अर्थात पूर्वी दक्षिण दिशा के मध्य भवन में दक्षिण में बाथरुम, स्नान गृह होना बहुत ही अशुभ होता है।

शुभ परिणामः- आग्नेय दिशा ईशान उत्तर एवं पूर्व और वायव्य पश्चिम उत्तर से ऊंची होनी चाहिए लेकिन यह नैऋत्य पश्चिम दक्षिण से अवश्य ही नीची होनी चाहिए इससे यश की प्राप्ति होती है इस तरह के भवन में बिजली के मीटर, जनरेटर बिजली का खम्भा आदि की स्थापना आग्नेय कोण में ही करनी चाहिए इससे यश की प्राप्ति होती है। इस तरह के भवन में बिजली के मीटर, जनरेटर, बिजली का खम्भा आदि की स्थापना आग्नेय कोण मे ही करनी चाहिए इस दिशा में ईशान में उत्तर की ओर सेफ्टिक टैंक एवं ईशान दिशा में पूर्व की ओर कुआ बनाना शुभ माना जाता है। दक्षिण में प्रवेश द्वार हो पश्चिम में खाली स्थल न हो और उत्तर तथा पूर्वी दिशाओं मे खाली स्थल हो ईशान में कुआं हो और पश्चिम मे खाली स्थल हो ईशान में कुआ हो और पश्चिम की अपेक्षा पूर्वी दिशा का स्थल नीचा हो दक्षिण की अपेक्षा उत्तरी दिशा की जगह नीची हो तो ऐसे गृह के स्वामी सुख-वैभव पूर्ण जीवन बिताएंगे आग्नेय दिशा में निर्मित रसोई घर समस्त प्रकार के सुख प्रदान करेगा।

🌟 Special Offer: Buy 1 Get 10 Astrological Reports! 🌟

Unlock the secrets of the stars with our limited-time offer!

Purchase one comprehensive astrological report and receive TEN additional reports absolutely free! Discover insights into your future, love life, career, and more.

Hurry, this offer won’t last long!

🔮 Buy Now and Embrace the Stars! 🔮