ऋषि पंचमी

हिन्दू पंचांग के भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही ऋषि पंचमी कहते है। यह त्यौहार हिन्दू धर्म में एक शुभ त्यौहार माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह दिन भारत के ऋषियों का सम्मान करने के लिए होता है। यह दिन मुख्य रुप से सात ऋषियों को समर्पित किया जाता है। सप्त ऋषि-ऋषि कश्यप, ऋषि अत्रि, ऋषि भारद्वाज, ऋषि विश्वामित्र, ऋषि गौतम, ऋषि जमदिक और ऋषि वशिष्ठ थें। पंचमी शब्द का सम्बन्ध पाचवें दिन से होता है और ऋषि का प्रतीक माना जाता है। आमतौर पर यह त्यौहार गणेश चतुर्थी के अगले दिन होता है। यह त्यौहार सप्त ऋषियों से जुड़ा है। जिन्होने ने पृथ्वी से बुराई को खत्म करने के लिए अपने जीवन का त्याग कर दिया था। यह महान ऋषि सिद्धांतवाद और अत्यधिक धार्मिक माने जाते थें। हिन्दू मान्यताओ और शास्त्रों के अनुसार संत अपने भक्तों को अपने ज्ञान और बुद्धि से शिक्षित किया करते थे। जिससे मानव जाति दान, मानवता और ज्ञान के मार्ग का पालन कर सकें। ऋषि पंचमी का व्रत चारो वर्ण की महिलाओं को करना चाहिए। यह व्रत करने से जाने-अनजानें में हुए पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत मे व्यक्ति उन महाऋषियों के महान कार्यों का सम्मान, कृतज्ञता और स्मरण व्यक्त करते है। जिन्होने समाज के कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।

ऋषि पंचमी की कथा

सतयुग मे श्येनाजित नामक राजा का एक राज्य था तथा उसके राज्य मे सुमित्र नामक एक ब्राह्मण रहता था। यह ब्राह्मण वेदों का अच्छा ज्ञाता था। सुमित्र कृषि करके अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। सुमित्र की पत्नी का नाम जयश्री सती था। जो एक पतिव्रता एवं साध्वी महिला थी। यह खेती के कार्यों मे अपने पति का पूरा सहयोग करती थी। लेकिन एक बार ब्राह्मण की पत्नी ने रजस्वला की अवस्था मे अनजाने मे घर का सब काम किया और अपने पति को भी स्पर्श कर लिया। देवयोग से पति-पत्नी का शरीरान्त एक साथ ही हुआ रजस्वला अवस्था मे स्पर्शा का विचार न रखने के कारण स्त्री को कुतिया और पति को बैल की यौनि प्राप्त हुई लेकिन पिछले जन्म मे किये गये कई धार्मिक कार्यो के कारण उनका ज्ञान बना रहा है और संयोग से इस जन्म मे भी वह साथ-साथ अपने ही पुत्र एवं पुत्रवधु के साथ रह रहे थे। पुत्र का नाम सुमति था। सुमति भी अपने पिता सुमित्र की तरह वेदो का ज्ञान रखता था। पितृपक्ष मे अपने माता-पिता का श्राद्ध करने हेतु खीर बनवायी थी तथा खीर को खाने के लिए ब्राह्मणों को निमंत्रण भी दिया था। लेकिन इसी बीच एक साप ने आकर खीर को चखकर उसे जहरीला बना दिया। यह सारी घटना कुतिया ब्राह्मणी देख रही थी। उसने सोचा यदि यह खीर ब्राह्मणों ने खा लिया तो उनकी मृत्यु हो जायेगी और मेरे पुत्र सुमति को इसका पाप लगेगा। ब्राह्मणों को बचाने और अपने पुत्र को पाप से बचाने के लिए कुतिया ब्राह्मणी ने खीर को झूठा कर दिया। खीर को झूठा करते हुए सुमति के पत्नी ने देख लिया और कुतिया ब्राह्मणों की खूब पीटाई की और कुतिया को उस दिन भोजन भी नही दिया। यह सारी घटना कुतिया ब्राह्मणों ने रात मे अपने पति बैल ब्राह्मण को बताया। तब बैल ब्राह्मण ने कहा हमारे पुत्र ने हमारे श्राद्ध के लिए ही सब किया और हमे ही आज भूखा रखा। इससे तो हमारे पुत्र का श्राद्ध करना व्यर्थ हो जायेगा। सुमति दरवाजे पर लेटा हुआ कुतिया और बैल की सारी बाते सुन रहा था और वह जानवरों की बोली भली-भाँति समझता था और उसे यह जानकर बहुत दुख हुआ कि उसके माता-पिता इन निकृष्ट योनियों पड़े है। तब वह दौड़ता हुआ एक ब्राह्मण के पास गया है और अपने माता-पिता को इस योनि से मुक्ति कराने का उपाय पूछा। ब्राह्मण ने सुमति से कहा तुम पति-पत्नी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी का व्रत करना होगा और उसी दिन से बैल की जुताई से प्राप्त कोई भी नही अन्न नही खाना होगा। जिसके फलस्वरुप आपके माता-पिता को इस योनि से मुक्ति मिलेगी। सुमति ने ऐसा ही किया जिसके प्रभाव से उसके माता पिता का पशुयोनि से मुक्ति प्राप्त हो गई।

ऋषि पंचमी व्रत करने का उद्देश्य

हिन्दू धर्म के पौराणिक ग्रंथो के अनुसार कोई भी व्यक्ति विशेषक महिलाये इस दिन पूरे विधि-विधान से सप्त ऋषियों की पूजा अर्चना करती है तो उनको सभी पापों से मुक्ति मिलती है। प्राचीन कहावतों के अनुसार महिलाओं को रजस्वला दोष लगता है। इसलिए ऋषि पंचमी का व्रत करने से महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान भोजन को दूषित किये जाने वाले पाप से मुक्ति मिलती है।

                                                      क्यो मनाई जाती है ऋषि पंचमी

ऋषि पंचमी का त्यौहार (ज्ञात अज्ञात पापों से मुक्ति पाने के लिए) सप्तऋषियों को आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। यह व्रत किया जाता है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य यह व्रत रखकर एक व्यक्ति को पूरी तरह से पवित्र किया जाना है।

                                                         ऋषि पंचमी की व्रत विधि

☸ ऋषि पंचमी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को किसी नदी या जलाशय में स्नान करके उसके द्वारा आंगन मे बेदी बनाई जाती है।
☸ इस दिन अनेंक रंगो से रंगोली बनाकर उस पर मिट्टी या ताँबे का घट (कलश) स्थापित किया जाता है।
☸ कलश को वस्त्र से लपेटकर उसके उपर ताँबे या मिट्टी के बर्तन में जौ भरकर रखा जाता है।
☸ इसके बाद कलश का फूल गंध और अक्षत आदि से पूजा की जाती है।
☸ इस दिन प्रायः लोग द्वारा दही और साठी का चावल खाया जाता है। इस व्रत के दिन नमक का प्रयोग नही किया जाता है। दिन मे केवल एक ही बार भोजन किया जाता है।
☸ऋषि पंचमी के दिन कलश आदि पूजन पूजन सामग्री को ब्राह्मण को दान दिया जाता है।
☸ पूजन के बाद भोजन ब्राह्मण कराकर ही खुद प्रसाद लेना चाहिए।

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