एकदन्त संकष्टी

हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को एकदन्त संकष्टी के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन गणेश जी की पूजा और व्रत रखने वाले भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा उन्हें अपार खुशियाँ प्राप्त होती है। इस दिन सूर्योदय से चन्द्रोदय तक व्रत रखने की भी परम्परा होती है।

ekdant sankashti (एकदन्त संकष्टी) by Astrologer K.M. Sinha – एकदन्त संकष्टी का महत्व

एकदन्त संकष्टी की बात करें तो इस संकष्टी का हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्व होता है। इस दिन की गई गणपति जी की पूजा से जातक की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं तथा उनकी सारी मनोकामनाएं भी पूर्ण हो जाती है। संतान सुख की प्राप्ति के लिए संकष्टी का व्रत रखना महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है। विधि-विधान से की गई पूजा से महिलाओं को संतान सुख की प्राप्ति भी अवश्य होती है।

आइए जानें ज्योतिषाचार्य के.एम.सिन्हा द्वारा एकदन्त संकष्टी की पौराणिक कथा

एकदन्त संकष्टी की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु जी का विवाह माता लक्ष्मी जी के साथ निश्चित हो गया। विवाह की तैयारी के लिए सबको निमंत्रण भेजा गया सिवाय गणेश जी के भगवान विष्णु जी के बारात जाने का समय हो गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ बारात में जाने लगे परन्तु गणेश जी को न देखकर गणेश जी के बारात में न आने का कारण विष्णु जी से पूछा, विष्णु जी से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेश जी के पिता भोलेनाथ जी को न्योता भेजा है वे अपने पिता के साथ आना चाहते हैं तो आ सकते हैं उन्हें अलग से निमंत्रण भेजने की कोई आवश्यकता नही है। यदि वे आ भी गये तो उन्हें द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे। नारद जी ने गणेश जी को द्वार पर बैठे देखा तो उन्होंने इसका कारण पूछा, तब गणेश जी ने कहा कि विष्णु भगवान जी के द्वारा मेरा बहुत अपमान किया गया है। नारद जी ने गणेश जी से कहा कि आप अपने मूषक की सेना बारात के आगे भेज दें ताकि वह रास्ता खोद दें और विष्णु जी के बारात का वाहन धरती में ही धंस जायें उसके बाद आपको सम्मानपूर्वक बुलाना ही पड़ेगा। मूषकों के द्वारा धरती खोदने से विष्णु जी का वाहन धरती में धंसकर टूटने लगा। तभी नारद जी ने कहा कि आप लोगों ने गणेश जी का अपमान करके अच्छा नही किया है उन्हें मनाकर लाया जायें तो आपके सारे कार्य सिद्ध हो जायेंगे तथा संकट भी टल जायेगा। तब सभी लोगों ने भगवान गणेश जी को सम्मानपूर्वक बुलाया जिससे सारे संकट धीरे-धीरे टल गये और विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी जी का विवाह भी सम्पन्न हो गया।

एकदन्त संकष्टी पूजा विधि

☸ एकदन्त संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पहले जगकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

☸ पूजा स्थल को स्वच्छे करके चैकी पर भगवान श्री गणेश जी की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें।

☸ पूजा की शुरूआत करने से पहले अपना मुँह उत्तर दिशा में करके बैठें।

☸ लाल स्वच्छ वस्त्र धारण करके गणेश जी को सिंदूर, दूर्वा, गंध, अक्षत, अबीर, गुलाल, सुगन्धित पुष्प, पान, मौसमी, फल, फूल, जनेऊ तथा सुपारी से विधिपूर्वक पूजा करें।

☸ उसके बाद गणेश जी को लड््डू या तिल से बने लड््डूओं का भोग लगायें।

☸ उसके बाद गणेश जी के समक्ष धूप और दीपक जलाकर गणेश जी के मंत्रों को उच्चारित कर पूजा सम्पन्न करें।

‘ओम गणेशाय नमः’  ‘ओम गं गणपतये नमः’

☸ शाम के समय में व्रती महिलाएं एकदन्त संकष्टी की व्रत कथा पढ़कर चन्द्र दर्शन के समय चांद को अघ्र्य देकर ही अपना व्रत खोलें।

☸ अंत में आरती करके अपना व्रत पूर्ण करें।

☸ व्रत पूरा हो जाने के बाद दान-दक्षिणा करना बिल्कुल भी न भूलें।

☸ इस संकष्टी तिथि में गायत्री मंत्रों का जाप करना अत्यधिक फलदायी माना जाता है।

एकदन्त संकष्टी शुभ मुहूर्त

एकदन्त संकष्टी 26 मई 2024 रविवार के दिन मनाई जायेगी।
चतुर्थी तिथि प्रारम्भः- 26 मई 2024, शाम 06ः06 मिनट से,
चतुर्थी तिथि समाप्तः- 27 मई 2024, शाम 04ः53 मिनट तक।
एकदन्त संकष्टी चन्द्रोदय समयः- रात्रि 10ः12 मिनट 26 मई तक।

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