कामिका एकादशी कथा
बहुत समय पहले एक गांव में एक परम तेजस्वी क्षत्रीय रहता था जिसका नाम भीमा था। इसी गांव में एक परम विद्वान ब्राह्मण गोपाल दास भी रहता था। भीमा को बात-बात पर क्रोध आ जाया करता था और वह क्रोध पर काबू करने मे असमर्थ था वही गोपाल दास बहुत ही शालिन स्वभाव का था। एक दिन की बात है किसी बात की वजह से दोनों में बहस छिड़ गयी। गोपाल दास भीमा को बहुत ही शालिन तरीके से समझा रहा था कि भीमा ने क्रोध मे आकर जमीन पर पड़ा हुआ पत्थर उठाया और गोपाल दास के सर पर दे मारा। देखते ही गोपाल दास की मौके पर ही मृत्यु हो गयी क्रोध में अपने हाथो से हुई ब्राह्मण की मृत्यु से भीमा बहुत दुखी हो गया और पछतावा करने लगा। अब दुखी मन से भीमा अपने हाथो से मरे हुए ब्राह्मणों का क्रिया कर्म करना चाहता था परन्तु दूसरे ब्राह्मणों ने उसे क्रिया कर्म में शामिल होने से मना कर दिया। क्योंकि उसने ब्रह्म हत्या जैसा महान पाप किया था। ब्रह्म हत्या का दोष होने के कारण अब उसके घर में कोई दूसरा ब्राह्मण अन्न ग्रहण करने भी नही जा सकता था इस बात से भीमा बहुत दुखी रहने लगा। एक दिन एक ऋषि ने भीमा से भिक्षा मांगी। इस पर भीमा ने कहा हे! ऋषि वर मुझ पर ब्रह्म हत्या का दोष है इसलिए मै आपको भिक्षा नही दे पाऊगा। मै इस दोष के कारण बहुत दुखी हूं कृपया मेरा उद्धार कीजिए।
भीमा की यह दशा देख कर ऋषिवर बोले हे वत्स! तुम श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसे कामिका एकादशी भी कहते है। उसका भक्तिभाव से व्रत करो और व्रत का पारण द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन करवा के करो।
ऋषि के बताएं अनुसार भीमा ने व्रत का पालन किया और व्रत कथा का पाठ भी किया रात में भगवान श्री विष्णु जी ने भीमा को दर्शन देकर कहा की तुम्हे ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल गयी है। अब तुम निश्चित होकर अपने जीवन का निर्वाह करो और क्रोध को त्याग दों। अब भीमा सुखी पूर्वक क्रोध को कम करके गांव में रहने लगा तथा भगवान विष्णु का परम भक्त हो गया।
कामिका एकादशी महत्व
जो मनुष्य श्रावण मास में भगवान विष्णु की पूजा करते है। उनसे देवता, गंधर्व, सूर्य यह सब देव पूजित हो जाते है। पापो से डरने वाले भक्त को या अन्य मनुष्य को कामिका एकादशी का व्रत जरुर करना चाहिए। भगवान ने स्वयं कहा है। कामिका एकादशी का व्रत करने से मनुष्य कुयोनीयो को प्राप्त नही होता हैं। इस एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पित किया जाता है तो संसार के सभी कष्ट और पापों से मुक्ति प्रदान होती है। भगवान विष्णु रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इसने प्रसन्न नही होते जितना तुलसी दल से होते है। तुलसी दल पूजन का फल चार भार चांदी और एक भार स्वर्ण के दल के बराबर होता है। तुलसी भगवान विष्णु को अति प्रिय होती है। तुलसी के पौधे को सदैव नमस्कार करना चाहिए। तुलसी के पौधे को सीचने से मनुष्य की सभी याचनाएं नष्ट हो जाती है। इस रात्रि को भगवान के मन्दिर में दीपक जलाया जाता है। इससे बहुत शुभ फल प्राप्त होता है।
कामिका एकादशी का लाभ
☸ एकादशी व्रत करने से सभी तीर्थों के स्नान जैसा पुण्य प्राप्त होता है। इससे सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
☸ ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिलती है।
☸ भगवान विष्णु की कृपा से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
☸ इसमें भगवान को तुलसी मंजरी चढ़ाना बहुत शुभ होता है।
☸ सावन की एकादशी में भगवान विष्णु जी की आराधना के साथ भगवान शिव की पूजा की जाती है।
☸ भगवान विष्णु बहुत ही शान्त, मधुर, नवीन और शीतल है तो उनकी आराधना करने तथा व्रत रखने में मनुष्य का स्वभाव भी शीतल व मधुर हो जाता है।
मंत्रः- एकादशी के दिन
ओम नमो भगवते वासुदेवाय
ओम आं संकर्षणाय नमः
ओम अं प्रद्युम्नाय नमः
ओम अं अनिरुद्वाय नमः
ओम नारायणाय नमः
ओम ही कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।
यस्य स्मरेण यात्रेण ह्ंत नष्ट च लभ्यते।।