कालसर्प योग को तीव्र अशुभ बनने वाले योग

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक मनुष्य की कुण्डली के आधार पर ही उसका भाग्य तय होता है। कुण्डली में बन रहे कई ऐसे योग हैं जिससे व्यक्ति  को आर्थिक समस्या, दाम्पत्य जीवन में अनबन यहां तक अकाल मृत्यु का भय होता है। इस योग के कारण जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ता है। कुण्डली में कालसर्प दोष योग के प्रभाव से व्यक्ति को भावनात्मक व मानसिक कष्ट सहना पड़ता है। इसके साथ ही कई तरह की परेशानियों का सहन करना पड़ता है। यह योग हमेशा कष्टदायक नही होते कभी-कभी इसके शुभ फल भी प्राप्त होते है।

आइये जानते है प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी द्वारा काल सर्प योग को तीव्र अशुभ बनाने वाले योग के विषय मेंः-

कुण्डली में राहु का प्रभाव शनि जैसा और केतू का प्रभाव मंगल के जैसा होता है। राहु और केतु छाया ग्रह है। जब कुण्डली में राहु और केतु के मध्य में सभी ग्रह आ जाते है तब कालसर्प योग का निर्माण होता है। कालसर्प योग दो शब्दों से मिलकर बना है। इसमें पहला शब्द है काल यानि मृत्यु और दूसरा शब्द है सर्प जिसका तात्पर्य सांप से है।

कालसर्प दोष को अधिक अशुभ बनाने के 11 योग है।

चांडाल योग, ग्रहण योग, अंगारक योग, जडत्व योग, विघातक योग, अमोत्वक योग, पिशाच ग्रस्त योग, मतिभ्रम योग, सर्प योनि के जन्म, अशुभ नक्षत्र योग में जन्म, सार्प शीर्ष योग में जन्म

चांडाल योग

कुण्डली में गुरु अथवा राहु की युति हो तो चांडाल योग की निष्पत्ति होती है। इसके फलस्वरुप जातक के जीवन का संघर्ष और अधिक बढ़ जाता है। इस योग के कारण जातक का चरित्र भ्रष्ट रहता है तथा ऐसा जातक अनैतिक तथा अवैध कार्यों में संलग्न हो सकता है। इस दोष के निर्माण में बृहस्पति को गुरु कहा गया है तथा राहु को चांडाल माना गया है। इस योग के कारण जातक का सभी कार्यों मे असफलता प्राप्त होती है तथा उसके परिश्रम व्यर्थ जाते है। जातक की प्रतिष्ठा समाज में कम होने लगती है तथा उसे बदनामी का सामना करना पड़ता है।

ग्रहण योगः-

ग्रहण शब्द संस्कृत भाषा  से लिया गया है। वैदिक ज्योतिष में राहु और केतू को सूर्य और चन्द्रमा पर ग्रहण लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। सूर्य को इच्छा शक्ति का कारक और चन्द्रमा को मन का कारक माना जाता है। जब किसी जातक कुण्डली के 12 भावों मेे किसी भी भाव में सूर्य या चन्द्रमा के साथ राहु या केतु में से कोई भी विराजमान हो तो ग्रहण योग बनता है खास बात है की जिस भाव में यह योग बनता है। उस भाव से सम्बन्धित परिणामों मे अशुभ प्रभाव डालता है। यदि इस योग में जातक को जीवन भर मेहनत करनी पड़ती है तथा मनचाहा परिणाम के लिए इंतजार करना पड़ता है।

अंगारक योगः-

जन्म कुण्डली में मंगल तथा राहु का योग जीवन में अंगारक जैसा कार्य करता है। यह योग अच्छा और बुरा दोनो फल देता है। कुण्डली में जिस भाव में यह योग बनता है उस भाव को पीड़ित कर देता है। इससे व्यक्ति के जीवन में लड़ाई-झगड़े की स्थिति उत्पन्न होती है, अंगारक योग के कारण व्यक्ति का स्वभाव, आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता है अपने भाईयों, मित्रों तथा अन्य रिश्तेदारों के साथ भी संबंध भी खराब हो जाते है। धन सम्बन्धित परेशानियां बनी रहती है। अगर किसी महिला की कुण्डली मे यह योग हो तो उसे संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है। इस योग के शांति के उपाय न करने पर लम्बे समय तक परेशानियां झेलनी पड़ती है।

जड़त्व योगः-

बुध और राहुके युति से जड़त्व योग बनता है। यह योग जातक को हर क्षेत्र में हानि करवाता है, जातक के हृदय को कमजोर करता है उसके धन सम्पत्ति में कमी लाता है। इस योग में जातक अनेक बिमारियों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे जातक भाई-बहनों के सुख से वंचित रहते है तथा साथ ही अपने लक्ष्य की प्राप्ति नही कर पाता। ऐसे जातक को मामा पक्ष से कष्ट मिलते है तथा वह आत्मघात करता है।

विघातक योगः-

विघातक योग बनाती है ऐसे व्यक्ति की परिस्थितियां सदैव प्रतिकूल रहती है, जीवन में बार-बार दुर्घटना या क्षति के अवसर आते है उतार-चढ़ाव के कारण मानसिक अस्थिरता होती है तथा अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है।

अमोत्वक योगः-

शुक्र के साथ राहु की युति के परिणाम से कुण्डली में अमोत्वक योग का निर्माण होता है। इस योग के कारण व्यक्ति नास्तिक, पाखण्डी तथा अनेक कष्टों को पाने वाला होता है। ऐसे जातकों को ईश्वर में आस्था नही होती तथा यह अनेक बुरे कार्यों का समर्थन करने वाले होते है। इनके जीवन में कष्ट इन्हीं कारणो से ज्यादा उत्पन्न होता है।

पिशाचग्रस्त योगः-

कुण्डली के प्रथम भाव में चन्द्रमा और राहु की युति होने के कारण पिशाचग्रस्त योग का निर्माण होता है। इस योग के कारण जातक को भूत प्रेत व पैशाचिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जीवन में अनेक परेशानियां आती है तथा रोगो से मुक्ति का उपाय ढूढ़ना मुश्किल होता है। ऐसा व्यक्ति निराशावादी तथा आत्मघाती स्वभाव का होता हे। ऐसे जातक को मानसिक पीड़ा की अधिकता झेलनी पड़ती है। मित्र रिश्तेदारों से सम्बन्ध खराब होते है।

मतिभ्रम योगः-

गुरु ग्रह के साथ केतु की युति होने पर मतिभ्रम नामक योग बनता है जातक धर्म में कम विश्वास करने वाला होता है। ऐसा जातक धर्म के प्रति हमेशा भ्रमित रहता है। तर्क-वितर्क अथवा बहस करना ऐसे व्यक्ति की आदत होती है। ऐसा व्यक्ति कभी भी किसी पर विश्वास नही करता है।
सर्पयोनि में जन्मः- सर्प योनि में जन्म होने पर कुण्डली में कालसर्प योग न होने पर भी कालसर्प योग जैसा ही अशुभ प्रभाव देखने को मिलता है। यदि कालसर्प योग के साथ सर्प योनि भी हो तो इससे कालसर्प योग की अशुभता और अधिक बढ़ जाती है।

अशुभ नक्षत्र, योग व करण में जन्मः-

यदि जातक का जन्म अशुभ नक्षत्रों तथा अशुभ योगों मे व अशुभ करण में हुआ है तो कालसर्प योग का प्रभाव और भी अशुभ हो जाता है। अशुभ नक्षत्र योग तथा करण इस प्रकार है। यदि मूल या गण्डात्त नक्षत्रों में जन्म हो यदि जन्म के समय शूल, परिघ, व्याघाट, व्यतीपात्, वैधृति अथवा गण्ड योग हो। भद्रा (विष्टि) करण में जन्म हो।

सार्पशीर्ष योग में जन्मः-

यदि अमावस्या के दिन अनुराधा नक्षत्र के तृतीया या चैथे चरण में जन्म हुआ हो तो कालसर्प योग का प्रभाव अत्यधिक बढ़ जाता है। इस प्रकार उपरोक्त योगों मे जन्म होने पर कालसर्प योग का प्रभाव अत्यधिक बढ़ जाता है। इस प्रकार उपरोक्त योगो में जन्म होने पर कालसर्प योगों का प्रभाव योगो के बलाबल के अनुसार तीव्र से तीव्रतर अशुभ होता जाता है। इस प्रकार स्थिति आने पर कम से कम तीन बार शान्ति विधान करना चाहिए तब जाकर कालसर्प दोष योग का अशुभ प्रभाव कम होगा।

कालसर्प दोष को कम करने वाले योगः-
बुधादित्य योगः-

यदि जन्म कुण्डली में सूर्य के साथ बुध का योग हो तो बुधादित्य योग बनता है इस योग के कारण कालसर्प योग के अशुभ प्रभावों में कमी आ जाती है यदि बुधादित्य योग केन्द्र स्थान में बनता हो अथवा योग में सूर्य या बुध स्वगृही या उच्च हो तो कालसर्प योग भंग हो जाता है।

लक्ष्मी योगः-

केन्द्र में स्वगृही या उच्च के चन्द्रमा के साथ मंगल का योग हो तो लक्ष्मी योग का निर्माण होता है। इस कारण से जातक के जीवन में धन का अभाव नही रहता तथा अनेक मांगलिक कार्यों को करने का अवसर प्राप्त होता है। इस योग का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में आर्थिक स्थिति को अच्छा बनाएं रखने मे सहायक होता है। जीवन में समृद्धि विलासिता के साथ-साथ यश एवं प्रतिष्ठा भी प्राप्त होती है। समाज में व्यक्ति उत्तम स्थान को प्राप्त करता है। जीवन के कठिन मार्गों मे अपनो का पूर्ण सहयोग प्राप्त होता है।

केन्द्राधिपति योगः-

जन्म कुण्डली के किसी भी केन्द्र स्थान मे राहु केतु के अतिरिक्त कोई चार ग्रह एकत्र हो तो उनमें से कोई भी एक ग्रह स्वगृही या उच्च का हो तो कालसर्प योग का प्रभाव कम हो जाता है। ऐसी स्थिति में शुभ ग्रह स्वगृही या उच्च हो तो पूर्ण रुप से कालसर्प योग भंग होता है।

पंच महापुरुष योग

यदि जन्म कुण्डली में पंच महापुरुष योगो मे से किसी एक योग का निर्माण होता हो तो कालसर्प योग भंग हो जाता है। कुण्डली मे पंच महापुरुष मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि हेाते है। इन पांच ग्रहों मे से कोई एक भी मूल त्रिकोण या केन्द्र मे बैठे है तो श्रेष्ठ है। केन्द्र में अर्थात पहले, चैथे, सातवें और दसवें भाव में बैठे है तो मूल त्रिकोण में पहला, पांचवा और नौवा भाव आता है। केन्द्र को विष्णु का स्थान कहा गया है।

लग्न बल

यदि लग्न बली और शुभ हो तो या लग्नेश जन्म कुण्डली में स्वगृही उच्च इत्यादि रुप से बली हो तो ऐसा योग लग्न बली योग की स्थिति होने पर भी उसका प्रभाव कम हो जाता है तथा व्यक्ति के जीवन में शुभ फल की प्राप्ति अधिक होती है एवं अशुभ फलों में कमी आ जाती है।

 

🌟 Special Offer: Buy 1 Get 10 Astrological Reports! 🌟

Unlock the secrets of the stars with our limited-time offer!

Purchase one comprehensive astrological report and receive TEN additional reports absolutely free! Discover insights into your future, love life, career, and more.

Hurry, this offer won’t last long!

🔮 Buy Now and Embrace the Stars! 🔮