ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि और राहु की युति से धूर्त योग या मांदी योग बनता है। यह योग व्यक्ति के जीवन में कई विशेष प्रभाव डालता है। जिन लोगों की कुंडली में यह योग होता है वे अपने गुप्त मामलों को छिपाने में माहिर होते हैं। ऐसे लोग अक्सर अपनी वास्तविक योजनाओं और गतिविधियों को छुपाते हैं और बाहरी दुनिया से अपने इरादों को छिपा कर रखते हैं।
यहां स्थित राहु आपके जीवन के अरिष्टों को कम करने में सहायक होता है। इस स्थिति में, आप शारीरिक रूप से सशक्त और दीर्घकालिक जीवन जीने वाले होंगे। आप परिश्रमी, विलासी और काव्य-प्रिय हो सकते हैं। आपके पास धन की प्रचुरता होगी और आप विभिन्न भोगों का आनंद ले सकेंगे। यदि आप चाहें तो अपनी इन्द्रियों को नियंत्रण में रख सकते हैं। आप आकर्षक, मितभाषी और शास्त्रों के ज्ञाता भी होंगे। आप विद्वान, स्वभाव से हंसमुख और चंचल होंगे। आप जिस समाज में रहेंगे उस समाज में अग्रणी स्थान प्राप्त करेंगे। आप एक यशस्वी व्यक्ति बनेंगे और आपके मित्र चतुर व्यक्तियों के साथ होंगे। आपकी आर्थिक स्थिति प्रबल होगी और आप अपने जीवन में विभिन्न प्रकार के लाभ प्राप्त करेंगे। आपको धन और समृद्धि प्राप्त होगी।
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि कुंडली के ग्यारहवें भाव में शनि ग्रह स्थित होता है, तो ऐसे जातक की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी होती है और वे बहुत धनी होते हैं। इसके साथ ही वे कल्पनाशील और जीवन में सभी सुखों को प्राप्त करने में सक्षम होते हैं।
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उपरोक्त दर्शायी गई कुंडली के अनुसार कुंभ राशि में शनि और राहु की युति विशेष रूप से चिंताजनक हो जाती है। इस स्थिति में शनि और राहु की युति लग्न से एकादश भाव को लग्न मानकर शनि से राहु 6 या 8 भावों का स्वामी होता है। इस संयोजन के कारण यह युति शुभ परिणाम नही देती है।
राहु जो सामान्यतः छली, कपटी और मायावी होता है इस स्थिति में 6 या 8 भाव के स्वामी के रूप में अधिक नुकसानदायक हो जाता है। इस कारण से मारक तत्व भी सक्रिय हो जाते हैं और जातक के जीवन में कष्ट बढ़ जाते हैं। ऐसे जातक शुरुआत में नीच प्रवृत्ति के होते हैं लेकिन समय के साथ उनकी तरक्की भी होती है।
इस संयोजन के कारण जातक अपने मित्रों को भी हानि पहुंचा सकते हैं और अन्य ग्रहों के प्रभाव को भी बिगाड़ सकते हैं। चूंकि यह भाव आय से संबंधित है, इसलिए ऐसे जातक अनुचित तरीकों से पैसा कमा सकते हैं, जैसे रिश्वत, काले धन या लूटपाट, इसकेअलावा शनि बड़े भाई का कारक भी है, जिससे बड़े भाई की तरक्की भी प्रभावित हो सकती है। दैहिक, दैविक और भौतिक परिणाम आपके व्यक्तिगत अनुभवों पर निर्भर करते हैं।