कुण्डली में कब नही बनता राजयोग

क्या होता है राजयोगः- बात करें अगर राजयोग की तो राजयोग योगसूत्र का एक मुख्य ग्रंथ है। प्राचीन काल के समय में महर्षि पतंजलि द्वारा इस विषय पर योगसूत्र के नाम से एक ग्रंथ की रचना की गई थी। राजयोग को सभी योगों का राजा कहा जाता है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इसमें प्रत्येक योग की कुछ न कुछ सामग्री अवश्य मिल जाती है। राजा स्वाधीन होकर, आत्मा, विश्वास और आश्वासन के साथ कार्य करता है। राजयोग को अष्टांग योग भी कहते हैं क्योंकि इसे आठ अंगों में संगठित किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में कुछ योगों को राजयोग कहा जाता है। यह एक विशेष प्रकार का शुभ योग होता है और जिनकी कुण्डली में यह योग पाया जाता है उनका जीवन बिल्कुल राजा के समान होता है।

यदि कुण्डली में राजयोग की स्थिति नही बन रही है तो इसके न बनने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं इसे हम योग्य ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी के द्वारा उदाहरण से समझते हैं।

सबसे पहले हम इन पाँच राजयोग के बारे में जान लेते हैं जो हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

शश राजयोग

सबसे पहला राजयोग जो है वह है शश राजयोग जो कि शनि द्वारा बनाया जाता है। जब शनि अपने उच्चराशि में या अपने स्वराशि में रहते हैं तो शश नाम का पंच महापुरुष राजयोग का निर्माण हो जाता है।

मालव्य राजयोग

इसी तरह से मालव्य राजयोग होता है जो कि शुक्र द्वारा बनाया जाता हैै। यदि शुक्र कुण्डली में अपनी स्वराशि में हो या अपनी उच्च राशि में हो तो ऐसी स्थिति में जातक की कुण्डली में मालव्य योग का निर्माण होता है।

भ्रद योग

भद्र योग की हम बात करें तो यह बुध ग्रह द्वारा बनाया गया योग होता है। यदि किसी जातक की कुण्डली में बुध अपनी स्वराशि में हो या फिर अपने उच्चस्थ राशि में हो तो ऐसी स्थिति में कुण्डली में भद्रयोग का निर्माण होता है।

रुचक पंच महापुरुष योग

इसके अलावा रुचक नाम के पंच महापुरुष योग की बात करें तो यदि किसी जातक की कुण्डली में मंगल ग्रह अपनी स्वराशि में या अपनी उच्च राशि में हो तो ऐसी स्थिति में कुण्डली में रुचक नाम के पंच महापुरुष योग का निर्माण होता है।

हंसयोग

हंसयोग की बात करें तो यह योग देवगुरु बृहस्पति के द्वारा बनाया जाता है। यदि किसी जातक की कुण्डली में बृहस्पति ग्रह या तो अपनी उच्चराशि में हो या फिर स्वगृही हो जाए तो ऐसी स्थिति में इस योग का निर्माण होता है।

अतः इन सभी पाँच राजयोगों को मिलाकर ही पंच महापुरुष योग के बारे में बात की जाती है। आपको यह बात पता है की ग्रह पूरे 9 तरह के होते हैं। जिसमें की क्रूर ग्रह और शुभ ग्रह दोनों ही होते हैं। इसके साथ-साथ पाप ग्रह भी शामित होते हैं।

लेकिन पाँच ग्रह ही इन 9 ग्रहों में से राजयोग का निर्माण करते हैं। इनमें से 4 ऐसे ग्रह जो राजयोग का निर्माण नही करते वह राहु, केतु, सूर्य और चन्द्रमा होते हैं। इनमें से राहु, केतु तो किसी भी तरह का राजयोग नही बनाते हैं उल्टा यह राजयोग को भंग कर देते हैं। इसके अलावा सूर्य देव और चंद्र देव अकेले किसी प्रकार के राजयोग का निर्माण नही करते हैं जबकि यह राजयोग बनाने में बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

उदाहरण के लिए जब बृहस्पति के साथ चन्द्रमा केन्द्र में हो या बृहस्पति के साथ चन्द्रमा साथ में बैठे हों तो ऐसी स्थिति में यह गजकेसरी योग का निर्माण कर देते हैं। यहाँ पर चन्द्रमा अकेले राजयोग नही बनाते हैं परन्तु बृहस्पति के साथ आने के कारण यह एक अच्छा योग बना देते हैं।

इसके अलावा सूर्य भी अकेले कोई भी राजयोग नही बनाते हैं परन्तु सूर्य के साथ जब बुध की युति हो रही होती है तो ऐसी स्थिति में कुण्डली में बुधादित्य योग का निर्माण होता है। यहाँ पर भी सूर्य अकेला कोई राजयोग नही बना रहा है परन्तु बुध के साथ आने के कारण यह एक अच्छा योग बना देतें हैं।
बहुत से ऐसे उदाहरण के द्वारा हम यह समझ सकते हैं कि किसी जातक की कुण्डली में राजयोग का निर्माण होगा परन्तु राजयोग फलित होगा या नही होगा इसे समझना बहुत ज्यादा जरुरी है।

राजयोग बनने के लिए ज्योतिष में कुछ सूत्र लिखे हुए हैं उसमें से फलित होने के जो सूत्र हैं। उसके अनुसार राजयोग बनाने के लिए जो ग्रह जिम्मेदार होते हैं वह बहुत ही मजबूत होने चाहिए। वह ग्रह नाहि बाल्यावस्था में होना चाहिए, नाहि कुमार अवस्था में, नाहि मृत और नाहि वृद्धावस्था में होना चाहिए बल्कि यह ग्रह युवावस्था में होना चाहिए। जितना ज्यादा यह युवावस्था में होंगे उतना ही अच्छा परिणाम देंगे।

उदाहरण के लिए यदि बृहस्पति ग्रह चन्द्रमा से केन्द्र में हैं इसमें से बृहस्पति मात्र 10 के हैं और चन्द्रमा 120 के हैं तो यहां पर जो राजयोग बनेगा वह बहुत अच्छा नही बनेगा लेकिन जैसे-जैसे बृहस्पति का अंश ग्रहों की अवस्था के अनुसार बढ़ेगा जैसे 2 से लेकर 6 अंश तक की अवस्था को या तो बाल्यावस्था या मृत अवस्था कहते हैं यह स्थिति पूरा-पूरा सम और विषम राशि पर निर्भर करता है। लेकिन युवावस्था की स्थिति जानने के लिए 120 से 180 तक के अंश से हम भली-भाँति जान लेते हंै तो इसमें चन्द्रमा के अंश के अनुसार स्थिति मजबूत होगी लेकिन चन्द्रमा अपनी नीच राशि में ना हों, इसके अलावा बृहस्पति भी 12 से 18 डिग्री के बीच में हो तो इससे बनने वाला राजयोग बहुत ही अच्छा राजयोग बनता है।

तो राजयोग के फलित होने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि राजयोग अंशो में ज्यादा यानि उसका अंशात्मक बल ज्यादा मजबूत हो साथ ही वह अपनी नीच राशि में बिल्कुल भी उपस्थित न हो। क्योंकि जब हम चन्द्रमा की बात करते हैं तो चन्द्रमा वृश्चिक में नीच राशि का होता है और यदि सूर्य की बात की जाए तो वह तुला राशि में नीच का होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि चन्द्रमा और सूर्य खुद का राजयोग नही बनाते हैं, इसलिए बहुत ज्यादा संभावना यह होती है कि जब यह राजयोग बनता है तो यह अवश्य देखना चाहिए की इन दोनों में से ही कोई नीच अवस्था में न हो।

इसी के साथ-साथ जब राजयोग फलित होता है तो अपनी दशा और अन्तर्दशा में जो इसका फल होता है वह जातक को बहुत तेजी से मिलता है और सामान्यतः यदि किसी जातक की कुण्डली में राजयोग अच्छे तरीके से बना हुआ है साथ ही कुण्डली के केन्द्र में जाकर बना हुआ है तो इसका फल बहुत अच्छा मिलेगा परन्तु यही योग यदि आपकी कुण्डली में केन्द्र मे न बनकर बारहवें भाव, छठे भाव या आठवें भाव में जाकर बन रहा है तो यह स्थिति बहुत कमजोर हो जायेगी।

यदि कुण्डली में राजयोग बन रहा है और उस पर किसी बुरे ग्रह अशुभ ग्रह या क्रूर ग्रहों की दृष्टि पड़ रही है तो भी कुण्डली में बनने वाला राजयोग कमजोर हो जाता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जो ग्रह नीच का होता है वह हमेशा जातक की कुण्डली में नीच का ही फल देता है। यदि उसका नीच भंग हो जाता है तो वह जातक को अच्छा परिणाम देगा अन्यथा वह हमेशा जातक को खराब परिणाम ही देंगे।

नीच के ग्रह या कमजोर ग्रहों के रत्न को कभी भी धारण नही करना चाहिए रत्न धारण हमेशा ऐसे ग्रहों का करना चाहिए जो आपके योगकारक हैं साथ में वह आपकी कुण्डली में अच्छे जगह पर बैठे हैं।
यदि वक्री ग्रह हैं, लग्न में बैठा है और उसका रत्न पहन लिया है तो ऐसी स्थिति में वह द्वादश भाव का परिणाम देने में सामथ्र्य हो जाता है। इसलिए कुण्डली में इसकी स्थिति भी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होती है कि यह वास्तव में किस स्थान पर बैठा है। इसी तरह से हमारे योग्य ज्योतिषाचार्य द्वारा राजयोग के बारे में जानकारी भली-भाँति प्राप्त हो गई होगी। इसके आगे की जानकारी भी हमारे द्वारा जल्द ही बताइ जायेगी।

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