देवी बंगला मुखी माता मां दुर्गा का ही स्वरुप है। माता बंगलामुखी अपने भक्तों की उनके शत्रुओं तथा बुरी नजर एवं नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करती है। इस रुप में माता रानी एक मृत शरीर पर बैठी हुई अपने हाथ में राक्षस की जिव्हा पकड़े हुए है।
वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को देवी बंगला मुखी का अवतरण हुआ था इसलिए इस दिन माता का अवतरण दिवस मनाया जाता है दस महाविद्याओं मे से माता बंगलामुखी आठवीं महा विद्या के रुप में जानी जाती है।
बंगलामुखी माता की कहानीः-
एक बार माता सती के पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया था चूंकि राजा दक्ष भगवान शिव से द्वेश भावना रखते थे और अपनी पुत्री सती के द्वारा उनसे विवाह किये जाने के कारण शुब्ध थे, इसलिए उन्होंने उन दोनो को इस यज्ञ में नही बुलाया। भगवान शिव इस बारे मे जानते थे लेकिन माता सती इस बात से अनभिज्ञ थी। यज्ञ से पहले जब माता सती ने आकाश मार्ग से सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को उस ओर जाते देखा तो अपने पति से इसका कारण पूछा भगवान शिव ने माता सति का सत्य बता दिया और निमंत्रण न होने की बात कही तब माता सती ने शिव से कहा की एक पुत्री को अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नही होती है। माता सती अकेले ही यज्ञ में जाना चाहती थी। इसके लिलए उन्होंने अपने पति शिव से अनुमति मांगी किन्तु उन्होंने मना कर दिया माता सति के द्वारा बार-बार आग्रह करने पर भी शिव नही माने तो माता सति को क्रोध आ गया और उन्होंने शिव को अपनी महत्ता दिखाने का निर्णय लिया। तब माता सती ने भगवान शिव को अपने 10 रुपों के दर्शन दिए जिसमें से आठवीं मां बंगलामुखी थी माता रानी के ये दस महाविद्या कहलाएं। अन्य नौ रुपों में क्रमशः काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमरुवा, धूमावती, मातंगी व कमला आती है।
बंगलामुखी माता का अर्थः-
बंगलामुखी शब्द दो शब्दों के मेल से बना है। बंगला व मुखी इसमे बंगला शब्द संस्कृत के वल्गा का अपभ्रंष है। जिसका अर्थ होता है लगाम लगाना। मुखी का अर्थ मुंह या चेहरा है इस प्रकार बंगला मुखी का अर्थ है किसी चीज पर लगाम लगाने वाले मुंह से है माता रानी के इस रुप को शत्रुओं या दृष्टों पर लगाम लगाने के लिए पूजा जाता है।
बंगलामुखी माता का स्वरुपः-
माता रानी का रुप विकराल होने के साथ-साथ अपने भक्तों की रक्षा करने वाला होता है। अपने इस रुप में माता रानी स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान है इस सिंहासन पर राक्षस का मृत शरीर पड़ा हुआ है जिसके उपर माता रानी बैठी हुई है। माता के सिर पर मुकुट है और उनकी केश खुली हुई है उनके तीन नेत्र और दो हाथ है। शरीर का रंग सुनहरा है जबकि उन्होंने पीले रंग के वस्त्र व आभूषण धारण किये हुए है उन्होंने अपने एक हाथ में शत्रु को दण्ड देने के लिए एक बेलन के समान अस्त्र पकड़ी हुई है और दूसरे हाथ में राक्षस की जीभ पकड़ी हुई है।
बंगलामुखी माता का रहस्यः-
सम्पूर्ण संसार में भयंकर तूफान ने बहुत तबाही मचायी थी तभी सभी देवताओं ने माता रानी से सहायता प्राप्ति की विनती की यह देखकर माता रानी का एक स्वरुप हरिद्र सरोवर में प्रकट हुआ और इस तूफान को शांत किया उसके बाद से ही माता रानी का बंगलामुखी रुप प्रचलन में आया।
बंगलामुखी माता का मंत्रः-
ओम हृंली बंगलामुखी देव्यै हृंली ओम नमः
शत्रु विनाशक मंत्रः- ओम बंगलामुखी देव्यै हृंलीं हीं क्ली शत्रु नाशं कुरु
बंगलामुखी माता ध्यान मंत्रः-
ओम हृीं बंगलामुखी सर्व दुष्टाना वांच
मुखं पद स्तम्भय जिहवा कीलयं बुद्धि विनाशाय हृी ओम स्वाहा।
बंगलामुखी माता पूजन लाभः-
देवी की आराधना करने से हमें कई लाभ प्राप्त होते है। शत्रुओं को नाश करने में सहायता मिलती है। मां बंगलामुखी का एक नाम स्तम्भन देवी भी है क्योंकि यह शत्रुओं व दुष्टों को अपंग बनाने के लिए सहायत होता है। इसलिए अपने शत्रुओं से मुक्ति पाने विपत्ति को समाप्त करने व आगे का मार्ग प्रशस्त करने के उद्देश्य से भक्तों के द्वारा मां बंगलामुखी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है तथा उन्हें प्रसन्न किया जाता है। माता बंगलामुखी महा विद्या की पूजा मुख्य रुप से उप नवरात्रो में की जाती है। गुप्त नवरात्रों मे माता रानी की 10 महाविद्याओं की जाती है। जिससे आठवे दिन महाविद्या बंगलामुखी की पूजा करने का विधान है।
बंगलामुखी माता पूजा विधिः-
☸ प्रातः काल उठकर स्नान के बाद पीला वस्त्र धारण कर पूजा स्थल पर बैठें।
☸ पूजा चैकी पर पीले वस्त्र बिछाकर मां बंगलामुखी की मूर्ति स्थापित करें।
☸ मां बंगलामुखी को अक्षत, चंदन, रोली, बेलपत्र, पान, मौसमी, फल, सिन्दुर, पीले पुष्प, धूप, गंध, नैवेद्य अर्पित करें।