चैत्र नवरात्रि विशेष (Chaitra Navratri) 2023

चैत्र नवरात्रि की हम बात करे तो हिन्दू धर्म में चैत्र नवरात्रि का विशेष त्योहार होली के बाद मनाया जाता है और हिंदू पंचाग के अनुसार आपको बता दें हर साल चैत्र नवरात्रि से ही हिंदू नववर्ष की शुरुआत भी होती है। एक वर्ष में हम देखे तो चार नवरात्रि मनाई जाती है इनमें से दो नवरात्रि तो गुप्त होती है और दो नवरात्रि प्रत्यक्ष होती है इसमें से चैत्र माह और अश्विन माह में आने वाली नवरात्रि पर ही मां दुर्गा के पूरे नौ रूपों की पूजा अर्चना विधिपूर्वक होती है। इसके अलावा वर्ष के आषाढ माह और माघ महीने मे आने वाली गुप्त नवरात्रि को माँ दुर्गा की 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है। हिन्दू धर्म में चैत्र और शारदीय नवरात्रि दोनों का विशेष महत्व होता है। जिसमे साधु-संतो के साथ-साथ सभी लोग माँ दुर्गा की पूजा करने के साथ- साथ उपवास भी रखती हैं। चैत्र नवरात्रि के दिन गुड़ी पड़वा और चेती चंद का त्योहार भी मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि की तरह चैत्र नवरात्रि में भी माँ दुर्गा के सभी भक्त घटस्थापना करते हैं साथ ही पूरे नौ दिन विधिपूर्वक उपवास रखकर माँ दुर्गा को प्रसन्न करते है।

चैत्र नवरात्रि का महत्वः-

ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से यदि हम देखे तो चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व होता है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस नवरात्रि के दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। इस समय शास्त्रों के अनुसार सूर्य पूरे 12 राशियों में भ्रमण करने के बाद फिर से अपना अगला चक्र पूरा करने के लिए सबसे पहली राशि यानि मेष राशि में प्रवेश करते हैं। कहा जाता है सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनो ही आग्ने तत्व वाले होते हैं इसलिए इन दोनों के ही संयोग से गर्मी की शुरुआत होती है। आपको बता दें चैत्र नवरात्रि की शुरुआत से ही नववर्ष के पंचांग की गणना शुरू की जाती है। इसकी शुरुआत से ही वर्ष के शामा, मंत्री, शेजापति, वर्षा तथा कृषि के स्वामी ग्रह का निर्धारण किया जाता है साथ ही वर्ष से अन अन्न, धन, व्यापार और सुख शांति का आंकलन भी किया जाता है। इस समय नवरात्रि के नौ दुर्गा की पूजा करने का विशेष रूप से महत्व यही होता है कि इन ग्रहों की स्थिति पूरे वर्ष अनुकूल बदी थे और सभी लोगो के जीवन में बदली बनी रहे। इसके अलावा यदि हम चैत्र नवरात्रि के धार्मिक दृष्टिकोण की बात करे तो इसका अपना एक आवा ही होता है क्योकि इस समय मां दुर्गा ने इस पूरी सृष्टि को अपनी ही माया जाल से हुका हुआ है और जिनकी वृद्धि से शक्ति मात्र से ही इस पूरी सृष्टि का संचालन हो रहा है वह पृथ्वी पर ही उपस्थित होती हैं इसलिए चैत्र नवरात्रि में माँ दुर्गा की पूजा आराधना करने से जातक को अपने मनोवांछित फलों की प्राप्ति और दिनों की अपेक्षा जल्दी ही हो जाती है। धार्मिक दृष्टि से इसका खास महत्व इसलिए भी होता है यौन क्राति के पहले दिन से ही सा आदिशा इस धरती पर अकट हुई थी और माँ दुर्गा के कहने पर ही प्रदर जी ने इस सृष्टि का निर्माण कार्य शुरू किया था। इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विथि से ही हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होती है इस दिन नवरात्र के तीसरे दिन भगवान विष्णु जी ने मछली के रूप में अपना पहला अवतार लेकर है इस पृथ्वी की स्थापना की थी। इसी तरह से भगवान विष्णु जी के कई अवतार हुए जिसमे से उनका सातवाँ अवतार भगवान राम जी का है इसलिए मÛ चैका रूप हमें चैत्र नवरात्रि में ही देखने को मिलता है। इसलिए पै नवरात्रि का धार्मिक दृष्टिकोण से भी बहुत महता माना जाता है। नवरात्रि के इस त्योहार के धार्मिक, आध्यात्मिक और ज्योतिष महत्व के भजावा भी इसका अपना एक वैज्ञानिक महत्व भी होता है। इस वैज्ञानिक महत्व के अनुसार बदलने के लिए भी समय रोता होता है जिसे हम श्आश् कहते हैं उसका अंत करने के लिए इस समय हवन और पूजन किया जाता है जिसमे की बहुत सी जड़ी बुटियों और वनस्पतियों का प्रयोग किया जाता है। प्राचीन समय के ऋषि मुनियों ने ना सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर जेवरात्र के यो दिन व्रत और पूजा की इस विधि को करते है लिए कहा है, बल्कि इसके वैज्ञानिक आधारों को भी बनाया है। नवराज के दिन जितने भी लोग उपवास और पूजन करते हैं. उस दौरान उपवास और हवन करना हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही बढ़िया होता है, इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि वर्ष में पड़ने वाले चारो नवरात्र आने वाले ऋतुओं के परिवर्तन के समय में ही होते है यानि जिस समय मौसम मे बदलाव होता है, और मौसम के इस बदलाव से जातक के शारीरिक और मानसिक पलों में भी कमी आती है। इसलिए नवरात्रि का यह त्यौहार वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जातक के शरीर और मन को आन्तरिक और वाह्य रूप से स्वस्थ बनाकर आने वाले नये मौसम के लिए तैयार होने के लिए उपवास और पूजा अर्चना किया जाता है।

चैत्र नवरात्रि व्रत कथाः-

नवरात्रि के दिन की व्रत और कथा की बात करे तो एक समय बृहस्पतिव श्री ब्रहा जी से बोले कि हे ब्रह्मा इस चैम के महीने में तथा आश्विन साह के शुक्ल ’से नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है ? इस व्रत को करने का व्यक्ति पक्ष- फ्री फल क्या सिखता है? इस व्रत की विना जसक से किया जाता है ? और नवरात्रि के इस ट्रेन की सबसे पहले 18 किया? यह सभी बातें विस्तारपूर्वक बताइए। बृहस्पति भगवान का कसा प्रश्न सुनकर ब्रह्माजी ने कहा कि है बृहस्पति देव साष्ट पर उपस्थीत सभी प्राशियों के लिए आपने बहुत ही माछा प्रश्न किया है। जो मनुष्य सभी लोकामनाओं को पूरा करने वाली देवी दुर्गा, शिवजी और 1 बारावान सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य पूरी तरह से धन्य है। नवरात्रि का यह गोधर- व्रत त्योहार सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला होता है इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करने से पुत्र की कामना करने वाले जातको को पुत्र, धन की चाह रखने वाले जातकों को धन, विद्या की कामना करने वाले जातको को विद्या की प्राप्ति, तथा सुख की चाह रखने वाले जातकों को सुख मिलता है। नवरात्रि 1 के इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी रोग दूर हो जाते हैं। मनुष्य की सभी ’ दूर हो जाती हैं और घर में सुख समृद्धि में निरन्तर वृद्धि होती है। विपलियाँ। जातक के समस्त पापों से जातक को छुटकारा भी मिल सकता है। इसके अलावा जो मनुष्य इस नवरात्र के प्रत और त्योहार को पूरा नही करता है वह सभी प्रकार के अनेक दुःखो को भी भोगता है। जो सधवा स्त्री इस नवरात्रि के जन को अभी करती है वह अपने पति के सुख से वंचित हो जाती है जिसके कारण उन्हें बहुत सारे दुःखों को भोगना पड़ता है।

ब्रम्हा जी बोलें हे बृहस्पति देव जिसने पहले इस महाव्रत को किया है वह कथा मैं तुम्हें सुनाता हूँ तुम सावधान होकर यह व्रत और कथा सुनो। प्रच्हा जी की यह बात सुनकर बृहसपति जी बोले- हे ब्राहण सभी मनुष का कल्याण करने वाले इस व्रत के इतिहास के बारे में मुझे बताओ मैं ध्यान – पूर्वक तुम्हारी यह बात सुन रहा हूँ।

ब्रह्मा जी बोलें- प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीवन नाम का एक अनाथ ब्राह्मता रहता था, वह माँ दुर्गा का बहुत बड़ा मन था, उसकी एक सम्पूर्ण सद्गुणों से युक्त सुमति जाम की एक अव्यन्त ही सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई। वह कन्या अपने पिता के घर वाल्यअवस्था में अपनी सहेलियों के साथ खेलती हुई इस प्रकार से बढ़ने लगी, जैसे शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कला बत है। उस पुत्री के पिता जब भी माँ दुर्गा जी की पूजा करतें हैं हवन किया करते- थे वह उस समय वह नियम से वहाँ उपस्थित रहती थी। एक दिन सुमति – अपने साखियों के साथ खेलने लग गई और भगवान जी के पूजा से उपा नही हो पाई, उसके पिता को अपने पुत्री की यह लापरवाही देखकर अत्याधिक क्रोध आया उसके बाद वह अपनी पुत्री से बोला कि अरे दुष्ट पुत्री तुजे आप भगवान जी का पूजन नहीं किया, इसी कारण से मैं तेरा विवाह किसी पुष्ट रोगी या दरिद्र मनुष्य के साथ करवा दूंगा। अपने पिता की यह बात सुनकर सुमति को इस बात का बहुत दुःख हुआ और उसने अपने पिता से कहा कि फि जी मैं आपकी कन्या हूँ तथा सब तरह से आपके अधीन हूँ आपकी जैसी इ हो आप वैसे ही करो आप किसी से भी मेरा विवाह करवा दो पर एक बात तो सत्य है कि होगा वही जो मेरे भाग्य मे लिखा हुआ है, जो जैसा कर्म का है उसके अनुसार उसे ठीक वैसे ही फलों की प्राप्ति होती है। अपनी कर के इस निर्भयता भरे शब्दों को सुनवर पिता अत्यन्त क्रोधित हो उठा और उसने अपनी पुत्री का विवाह कुष्टी व्यक्ति के साथ कर दिया, और अपनी पुत्री से यह कहने लगा कि हे पुत्री। तुम अपने कर्म का फल भोगो मैं देखता हूँ कि भाग्य के भरोसे रहकर तुम क्या करती हो। अपने पिता के कहे हुए शा कड़वे वचन को सुनकर सुमति अपने मन में यह सोचने लगी कि ये मेरा दुर्भाग्य है कि मुझे ऐसा पति मिला यह कहकर वह अपने पति के साथ वन में चली गई, उस डरावने वन में उन दोनों खजे ही बड़े कष्ट के साथ द्य व्यतीत की। उस कन्या की यह दशा देखकर माँ दुर्गा ने पुण्य के प्रभाव से प्रकट होकर सुमति से कहा कि हे दीन कच्या मैं तुझसे बहुत प्रसन्न हूँ तुम जो चाहो वो वरदान माँगी माँ दुर्गा का यह वचन सुनकर कन्या ने कहा आप कौन हो तब साँ दुर्गा ने कहा मैं आदि शक्ति हूँ और मैं ही ब्रह्मविद्या सरस्वती देवी हूँ, प्रसन्न होने पर में उन सभी प्राणिक के दुखों को हमेशा के लिए दूर करके उनको खसुख प्रदान करती हूँ है कन्या । मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म में किए गये पुण्य से तुझपर प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हारे पूर्व जन्म में किये कर्मों की कहानी सुनाती हूँ सुनो- हे कन्या तू अपने पूर्व जन्म मे भील की पत्नी थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की थी जिसके कारण तुम दोनों को ले – जाकर जेलखाने में कैद कर दिया गया था। उन लोगो ने तुझे और तेरे पति को श्वाने के लिए कुछ भी नही दिया था उस समय नवरात्रि थी, इसी प्रकार से उन दिनों से तुमने न तो कुछ खाया था नाहि कुछ पीया था, इस तरह से तुमने जवरात्रि के व्रत को पूरा किया, तुम्हारे किये गये इस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर हूँ माँगो तुम्हे क्या पर माँगना है मैं तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करूँगी। यह सुनकर कन्या बोली। हे दुर्गे यदि आप मुझपर प्रसन्न है तो से आपको प्रणाम करती हूँ मेरी यह मनोकामना है कि आप मेरे इस पति के कोड को दूर करो। माता ने कहा- हे कन्या तुमने उन दिनो जो व्रत किया द्य था उस व्रत का एकादन का पुण्य पति का फ कोढ़ दूर करने के लिए अर्पण करो! उस किये गये पुण्य से तुम्हारा पति जो कोढ़ी है वह कोढ़ से हो जायेगा देवी की यह बात सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुई और उसने ज्यों ही ठीक है 1 कहा उसके पति का शरीर माँ दुर्गा की कृपा दृष्टि से निरोगी हो गया। अपने 1 पति के निरोगी शरीर को देखकर कच्या बहुत प्रसन्न हुई और माँ दुर्गा की स्तुति करने लगी, उसने कहा हे साँ आप लोगों के समस्त दुःखों को दूर करने वाली है, मनवांछित फलों को देने वाली तथा लोगों के समस्त दुखों को दूर करखने वाली हैं। मेरे इन सभी दुःखों को दूर करने वाली में भगवती आपको प्रणाम करती हूँ मेरी रक्षा करो। कन्या की यह बात सुनकर माँ दुर्ग ने कहा और कुछ तेरी इच्छा है तो उसे भी माँग ले, कन्या ने कहा आते यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा करके मुझे नवरात्रि के व्रत की विधि और उसके मिलने वाले फलो को विस्तार से बताएँ ।

इस तरह से कन्या की यह बात सुनकर माँ दुर्गा ने कहाँ – हे कन्या। इस समस्त पापों को दूर करने वाले नवरात्र की व्रत कथा मैं तुम्हें बताती हूँ तुम ध्यान पूर्वक इस कथा को व्रत की विधि को सुनो, इस व्रत की विधि को सुनने मात्र से ही जातक को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है- चैत्र नवरात्रि का यह त्योहार आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर पूरे नौ दिनों तक विधि के अनुसार व्रत करें यदि आप पूरे दिन भर का व्रत न कर पाये तो केवल एक समय ही भोजन करें साथ ही किसी योग्य पंडित या ब्राह्मण से पूछकर अपने घर में विधिपूर्वक घट स्थापना करें और वहीं जौ बोकर उसको प्रतिदिन जल दें। पूजा स्थान पर महाकाली, महालक्ष्मी और माता सरस्वती की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित कर के प्रति दिन विधिपूर्वक पूजा करें और पुष्प से अर्श दे, केले से अघ्र्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती है, बिजौरा के फल से अघ्र्य देने से कीर्ति रूप की तथा आंवले से अघ्र्य देने से सुख की प्राप्ति होती है इसी प्रकार से फूलो अब फलों से विधिपूर्वक अघ्र्य देकर व्रत समाप्त होने के नौवे दिन हवन करें। गेहूं से हवन करेंगे तो लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, कमल से हवन करने से राज सम्मान की प्राप्ति होती है, आँवले से कर्मी कार्ति और केने से पुत्र की प्राप्ति होती है, नारियल, शहद, जौ, तिल, नारियल, खोड, और फलों से जातक के मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार से बताई गई इस विधि से जो व्यक्ति व्रत करता है उसे सभी सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके अलावा इस पूरे नौ दिनों में जो कुछ भी दान किया जाता है उसके करोड़ो गुना फल की प्राप्ति होती है साथ ही यह व्रत करने से जातक को अश्वमेघ यज्ञ की प्राप्ति भी होती है फल भी मिलता है। इस प्रकार माता ने उस कन्या को व्रत कि विधि बतायी और वहाँ से अन्र्तध्यान हो गई। जो मनुष्य या स्त्री नवरात्रि के इस व्रत को करता है उसे इसे लोक में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि में अन्तरः-

चैत्र नवरात्रि के त्योहार की बात करे तो यह त्योहार माँ दुर्गा के व्रत की कठिन साधना और कठिन व्रत के महत्व के लिए जाना जाता है, जबकि शारदीय न द्य नवरात्रि की हम बात करें तो इस व्रत के दौरान भक्तो की सात्विक साधना, नृत्य, उत्सव आदि इन सभी का आयोजन किया जाता है साथ ही शारदीय नवरात्रि का यह दिन शक्ति स्वरुपा माँ दुर्गा की आराधना के लिए जाना जाता है।

चैत्र नवरात्रि के त्योहार का महत्व हम देखें तो यह महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, तेलांगना और पश्चिम बंगाल में बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।, और शारदीय नवरात्रि का महत्व बंगाल की अध्याधिक और गुजरात और पश्चिम बंगाल में अत्यधिक माना जाता है इस नवरात्रि के दौरान बंगाल में माँ आदिशक्ति की अराधना के लिए दुर्गा पूजा मनाया जाता है वही गुजरात में शारदीय नवरात्रि के दौरान गरबा का आयोजन बहुत धूमधाम से किया जाता है।

चैत्र नवरात्रि के समाप्त होने पर अंत में राम नवमी मनाया जाता है, यह माना जाता है कि प्रभु श्री राम जी का जन्म रामनवमी के दिन ही हुआ था। वही हम शारदीय नवरात्रि की बात करे तो इस व्रत के समाप्त होने के अंतिम दिन यह त्योहार महानवमी के रूप में मनाया जाता है ठीक इसके अगले दिन विजया दशमी का पर्व मनाया जाता है इस दिन माँ दुगी ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसलिए शारदीय नवरात्रि को शक्ति की आराधना का दिन माना गया है।

मान्यताओं के अनुसार चैत्र नवरात्रि के व्रत की साधना आपको मानसिक रूप से मजबूती प्रदान करती है आप ही आध्यात्मिक इच्छाओं को पूरा करने वाली झी होती है, वहीं शारदीय नवरात्रि व्याति की सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने वाला माना जाता है।

चैत्र नवरात्रि घटस्थापना तथा पूजन विधिः-

चैत्र नवरात्रि के पहले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने घर के सभी कामो से निवृल होकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहन लें, इसके बाद घर के मंदिर की अच्छे से साफ-सफाई कर ले फिर वहाँ पर एक साफ सुथरी चैकी बिहाए उसके बाद उस पर गंगाजल छिड़ककर उसे अच्छी तरह से शुद्ध कर लें। एक साफ बर्तन में पवित्र मिट्टी लेकर उसमें जौ या फिर सात तरह के अनाज मिला में लें। अब एक साफ सुधरा कलश लेकर सोने, चाँदी, ताँबे या मिट्टी का लेकर कलश लेकर उसपे स्वास्तिक का चिकू बनाये और उसके सुंट में 5 बार घुमाते हुए ओली बाँध दे आके बाद कलश में पानी डालकर उसमें गंगाजल मिला ले और उसे मिट्टी के ऊपर स्थापित कर दें, उसके ऊपर आम का पाँच पत्ता रखकर मिट्टी का ढक्कन रख दे और उसमें गेहूँ या चावल कुछ भी भर दें। इसके बाद साफ-सुथरे लाल रंग के कपड़े में नारियल को लपेटकर कलावा से बाँध दे और उसे कलश के ऊपर रखकर भगवान आडोश जी और माँ दुर्गा के साथ और भी अन्य देवी देकाओं का अवक नीचे रखी हुई मिट्टी को फैलाकर उसमें ज्वार बोदें। उसके बाद उस चैकी के पास सौ दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें माँ दुर्गा की तिलक लगाएं नारियल पर भी तिलक लगायें, उसके बाद माँ दुर्गा को फूलों की साला चढ़ाएँ. माँ दुर्गा को फूल, माला, अक्षत, रोली, पान में सुपारी टैगला चढ़ाकर रख से रखकर चढ़ा दें, इसके बाद माँ दुर्गा को भोग लगाये. भोग लगाने के बाद धूप, दीपक और कपूर जलाकर माँ दुर्गा और कलश की आरती करें साथ ही एक घी का दीपक जलाएं और उसे 21 दिन तक जलते है।। 21दनरू बाद भी दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की पूजा विधिपूर्वक क 15 से पूरे नौ दिनो तक कलश की पूजा भी अवश्य करें।

चैत्र नवरात्रि नौ दिनों की तिथिः-

चैत्र नवरात्रि के इस प्रमुख त्योहार की तिथि यहांँ पर बतायी गई है।

(22 मार्च 2023 माँ शैलपुत्री) प्रतिपदा तिथि (घटस्थापना)
(23 मार्च 2023 माँ ब्रह्मचारिणी) द्वितीया तिथि
(24 मार्च 2023 माँ चन्द्रघण्टा) तृतीया तिथि
(25 मार्च 2023 माँ कुष्माण्डा) चतुर्थी तिथि
(26 मार्च 2023 माँ स्कन्दमाता) पंचमी तिथि
(27 मार्च 2023 माँ कात्यायनी) षष्ठी तिथि
(28 मार्च 2023 माँ कालरात्रि) सप्तमी तिथि
(29 मार्च 2023 माँ महागौरी) अष्टमी तिथि (महा अष्टमी)
(30 मार्च 2023 माँ सिद्धिदात्री) नवमी तिथि (महा नवमी, राम नवमी)

चैत्र नवरात्रि प्रार्थनाः-

हे परमेश्वरी। मेरे द्वारा रातो दिन सहस्त्रो अपराध होते हैं यह मेरा दास है समझकर मेरे अपराधों को क्षमा करो हे परमेश्वरी। मैं – आह्वान, विसर्जन और पूजन करना नहीं जानता, मुझे क्षमा करो। हे सुरेश्वरी मैंने जो मंत्रहीन, क्रियाहीन और भक्तीहीन पूजन किया है वह स्वीकार करो हे परमेश्वरी आज्ञान से भूल से अथवा बृद्धि भ्रान्ति से जो जो न्यूनता अथवा अधिकता हो गई हो उसे क्षमा करिये तथा प्रसन्न होइये।

चैत्र नवरात्रि जाप मंत्रः-

ओम ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चै नमः मनोकामना
अपनी मनोकामनाओं की सिद्धि के लिए इन मंत्रो को 108 बार जाप करें।

चैत्र नवरात्रि शुभ मुहूर्तः-

प्रतिपदा तिथि आरम्भः- 21 मार्च 2023 रात्रि 10ः 52 मिनट से,
प्रतिपदा तिवि समाप्तः- मार्च 2023 रात्रि 08ः 20 मिनट पर ।

घटस्थापना शुभ मुहूर्तः-

सुबह 06ः29 मिनट से सुबह 07ः39 मिनट (22 मार्च 2023)
अवधिः- 01 घण्टा 10 मिनट

 

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