कालसर्प के प्रकार
हम सभी राहु-केतु ग्रह से भली-भाँति परिचित है। यह ग्रह कुण्डली विश्लेषण में विशेष भूमिका निभाते है तथा यह छाया ग्रह होते है जिसके कारण ये ग्रह किसी भाव के स्वामी नही होते है परन्तु राहु एवं केतु विभिन्न राशियों में परिभ्रमण की स्थिति के अनुसार कई प्रकार के कालसर्प योगों का निर्माण करते है। कालसर्प योग राहु व केतु के मध्य जब सभी ग्रह होते है तब बनता है लेकिन अलग-अलग भावों के अनुसार कालसर्प योग के प्रकार अलग-अलग है।
राशि चक्र के अनुसार 12 भावों की स्थिति मुख्यतः 12 कालसर्प योगों का निर्माण करती है जो इस प्रकार है
इन सभी मुख्य योगों के भी राशि परिवर्तन के अनुसार पर 12 अन्तः भेद पाये जाते है। 12 योगों मे से प्रत्येक के 12 अन्तः भेदों के अनुरुप कुल मिलाकर 12×12=144 प्रकार के कालसर्प योग पाये जाते है। यदि राहु के बजाय केतु कालसर्प योग का निर्माण करता है तो वह भी 144 प्रकार का हो जाता है। इस प्रकार कुल मिलाकर 288 प्रकार के कालसर्प योग होते है।
राहु-केतु सदैव वक्रीय अवस्था में गति करते है अर्थात उल्टी चाल चलते है। ये अपनी वर्तमान राशि से क्रमशः पिछली राशियों में भ्रमण करते रहते है। इस दौरान जब सभी ग्रह उनके मध्य आ जाते है तब पूर्ण उदित गोलार्द्ध कालसर्प योग का निर्माण होता है तथा यह योग अत्यन्त घातक होता है।
अनंत कालसर्प योग
यदि लग्न भाव में राहु एवं सातवें भाव में केतु उपस्थित हो तथा अन्य सभी ग्रह उनके मध्य में विराजमान हो तो अनन्त कालसर्प योग की रचना होती है। इस योग के कारण जातक का स्वास्थ्य कमजोर रहता है तथा मन अशांत बना रहता है। इसके साथ ही मानसिक परेशानी भी बनी रहती है, जातक सही निर्णय लेने में असक्षम होता है एवं अपने जीवन में लगातार संघर्ष करता रहता है।
कुलिक कालसर्प योग
कुलिक कालसर्प योग का पौराणिक नाम धनञ्जय है। जब धन भाव में राहु तथा अष्टम भाव में केतु विराजमान हो तथा कुण्डली के अन्य सभी ग्रह इनके मध्य हो तो कुलिक कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस योग से आर्थिक पक्ष कमजोर होता है। आमदनी कम परन्तु खर्च अधिक होता है। जिसके कारण परिवार का संतुलन बिगड़ जाता है। साथ ही क्लेश की स्थिति बनी रहती है। जातक की वाणी तीव्र एवं स्वभाव उग्र होता है। नेत्र एवं मुख से सम्बन्धित परेशानी बन सकती है तथा इस योग का प्रभाव अलग-अलग राशियों पर अलग-अलग होता है।
वासुकी कालसर्प योग
वासुकी कालसर्प योग का पौराणिक नाम वासुकी ही है यदि कुण्डली में तृतीय भाव में राहु तथा नौवे भाव में केतु हो और अन्य सभी ग्रह उनके मध्य भावों में स्थित हो तो वासुकी कालसर्प योग का निर्माण होता है जिसके कारण जातकों के भाग्य उन्नति में रुकावटें आती है तथा भाई-मित्र, स्वभाव एवं मान, पद-प्रतिष्ठा में भी कमी आती है। नौकरी तथा व्यवसाय में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। घर परिवार को लेकर कष्ट बना रहता है।
शंखपाल कालसर्प योग
शंखपाल कालसर्प योग को कम्बल योग के नाम से जाना जाता है। जब कुण्डली के चौथे भाव राहु एवं दशम भाव में केतु उपस्थित हो तो शंखपाल कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस योग के कारण भौतिक सुख तथा इनके मध्य सभी ग्रह उपस्थित हो सुविधाओं मे बाधाएं उत्पन्न होती है। भूमि, वाहन से सम्बन्धित अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है। माता के साथ सम्बन्ध अच्छे नही होते है तथा माता को कष्ट मिलता है। अत्यधिक भरोसेमंद लोगों से विश्वासघात मिलता है। सम्पत्ति में बंटवारे की स्थिति उत्पन्न होती है। प्रत्येक राशियों मे इसका प्रभाव अलग होता है।
पद्म कालसर्प योग
पद्म कालसर्प योग का पौराणिक नाम श्वेत कालसर्प योग है। यह योग कुण्डली में तब बनता है जब राहु पाचवें भाव में तथा एकादश भाव में केतु उपस्थित हो। इस कालसर्प योग से शिक्षा एवं संतान के क्षेत्र में अनेक रुकावटों का सामना करना पड़ता है। शिक्षा पूरी नही हो पाती है अथवा शिक्षा का परिणाम अच्छा नही होता है। संतान को लेकर चिंता बनी रहती है या संतान गलत संगति में पड़ जाता है पत्नी के साथ भी संबंध अच्छे नही होते है। इसके अलावा गुप्त शत्रु अथवा गुप्त रोगों की समस्या बन सकती है प्रत्येक कार्यों मे असफलताओं का सामना करना पड़ता है परन्तु अलग-अलग राशियों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है।
महापद्म कालसर्प योग
महापद्म कालसर्प योग का पौराणिक नाम भी महापद्म कालसर्प योग है। जब छठे भाव में राहु तथा बारहवें भाव में केतु के मध्य स्थित अन्य सभी ग्रहों के कारण महापद्म कालसर्प योग का निर्माण होता है इस योग से गुप्त रोग होने की संभावना रहती है। शत्रुओं तथा रोग का भी भय बना रहता है लगातार कष्टों के कारण आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है। किसी कार्य में स्थायी सफलता नही मिलती है। साथ ही सभी कार्यों में बाधाएं आता है तथा जीवन कष्टमय बना रहता है।
तक्षक कालसर्प योग
तक्षक कालसर्प योग का पौराणिक नाम तक्षक योग है। जब कुण्डली में राहु सप्तम भाव में तथा केतु लग्न भाव में हो और अन्य सभी ग्रह राहु-केतु के मध्य एक भाग में स्थित हो तो तक्षक कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस योग का अत्यधिक प्रभाव वैवाहिक जीवन पर पड़ता है। जैसे विवाह में बाधा आना, लम्बे समय तक विवाह न होना, विवाह के पश्चात दाम्पत्य जीवन सुखमय न होना इत्यादि। यदि प्रेम सम्बन्धों में असफलता या जीवनसाथी से अलग होने की समस्या भी इस योग के कारण बनते आर्थिक जीवन में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी रहेगी तथा साझेदारो से विश्वासघात मिल सकता है। अलग-अलग कालसर्प योग के प्रकार अलग-अलग परिणाम देते है।
कर्कोटक कालसर्प योग
कर्कोटक कालसर्प योग, कालसर्प योग के प्रकारों मे से एक है। यह योग कुण्डली में तब बनता है जब अष्टम भाव में राहु तथा द्वितीय भाव में केतु विराजमान हो । यह योग जातक के आयु को प्रभावित करता है। इस योग से लम्बे समय की बीमारी, अचानक होने वाले रोग, अकाल मृत्यु, चोट लगना, अल्पायु योग, शस्त्रघात इत्यादि की संभावना बनती है। नौकरी-व्यवसाय में निलम्बन अथवा पदोन्नति की समस्या बनती है। परिश्रम की अपेक्षा कम लाभ की प्राप्ति होती है। धन हानि के योग बनते है। वैवाहिक जीवन भी कष्टपूर्ण होता है।
शंखङचूड़ कालसर्प योग
जब कुण्डली के नवम भाव में राहु तथा तृतीय भाव में केतु उपस्थित हो और दोनो ग्रहों के मध्य अन्य सभी ग्रह विराजमान हो तो शंखङचूड़ कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस योग के प्रभाव से भाग्य उन्नति में अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसके कारण कार्य-व्यवसाय में प्रगति नही हो पाती है। व्यापार में घाटा होता है। पिता के सुख में कमी अनुभव करेंगे। उच्चाधिकारियों से मनमुटाव हो सकता है। इस योग के कारण जातक को सुख प्राप्ति के अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है। शरीर में आलस्यता रहता है तथा भाईयों से भी वैचारिक मतभेद बना रहता है।
घातक कालसर्प योग
इस योग का निर्माण कुण्डली में तब होता है, जब राहु दशम भाव एवं केतु सुख भाव में उपस्थित हो और इन ग्रहों के मध्य किसी एक भाग अन्य सभी ग्रह विराजमान हों। इस योग का प्रभाव जातक के कार्य-व्यवसाय पर पड़ता है जिसके फलस्वरुप व्यापार में लाभ प्राप्ति की संभावना के बावजूद हानि होती है। साझेदारियों से मनमुटाव की स्थिति बनी रहती है अथवा उसे विश्वासघात मिलता है। गृहस्थ जीवन में सुख की प्राप्ति के लिए अत्यधिक परिश्रम करना पड़ता है। माता-पिता का कम सुख मिलता है तथा सम्पूर्ण जीवन में चिंता बनी रहती है जिसके कारण जातक का वास्तविक विकास नही हो पाता है। दशम भाव में स्थित राहु अलग-अलग राशियों पर अलग-अलग प्रभाव डालता है तथा कालसर्प योग के प्रकार मे से यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण योग है।
विषाक्त कालसर्प योग
विषाक्त कालसर्प योग का पौराणिक नाम अश्वतर कालसर्प योग है। जब कभी कुण्डली में केतु पंचम भाव और राहु एकादश भाव में उपस्थित हो तथा दोनों ग्रहों के मध्य अन्य सभी ग्रह विराजमान हो तो विषाक्त कालसर्प योग की रचना होती है। इस योग के प्रभाव से संतान एवं शिक्षा में परेशानी आती है तथा उच्च शिक्षा के योग नही बनते है। जातक की स्मरण शक्ति अच्छी नही होती है। संतान प्राप्ति में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आर्थिक स्थिति को लेकर परिवार में अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। नेत्र रोग, हृदय रोग, अनिद्रा तथा उन्माद जैसी बीमारियों का सामना करना पड़ेगा। जीवन में सुख-समृद्धि का अभाव बना रहता है।
शेषनाग कालसर्प योग
कालसर्प कुण्डली के प्रकारों मे से एक प्रकार शेषनाग कालसर्प योग है जिसका पौराणिक नाम शेष योग है। यह योग तब बनता है जब राहु द्वादश भाव में और केतु षष्ठम भाव में विराजमान हो और अन्य सभी ग्रह इनके मध्य हो इस योग के प्रभाव से जातक को परिश्रम की अपेक्षा कम लाभ की प्राप्ति होती है। किसी भी कार्य में विलम्ब से सफलता मिलती है साथ ही जन्मभूमि से दूर भाग्योदय होता है। धन को लेकर परिवार में वाद-विवाद की स्थिति बनी रहती है। ऋण रोग की समस्या भी उत्पन्न होती रहती है। यह योग अलग-अलग राशियों में अलग-अलग प्रभाव देता है।
चमत्कारी सर्प सूक्त जो बदल देगी आपकी किस्मत
सर्प सूक्त सर्पशाप दोष से मुक्ति पाने के लिए अत्यन्त लाभकारी माना जाता है। इस सूक्त का पढ़ते हुए कलश सहित एक जोड़ा स्वर्ण साप किसी वेदपाठी विद्वान को दान करने से सर्पशाप दोष से मुक्ति मिल जाती है। यदि इस दोष के कारण संतान को लेकर परेशानी आ रही है तो इस सर्पसूक्त को 108 बार पढ़ें तथा हवन करें। उसके बाद गौ दान या उसके समान दक्षिणा देकर किसी ब्राह्मण से आशीर्वाद प्राप्त करें। इस उपाय को करने के फलस्वरुप श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होगी।
सर्पमूक्त
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पाः शेषनाग पुरोगमाः।
नमास्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदाः।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पाः वासुकि प्रमुखादयः।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा।।
कद्रवेयाश्च ये सर्पाः मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पाः तक्षका प्रमुखादयः।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा।।
सत्यलोकेषु ये सर्पाः वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा।।
मलये चैव ये सर्पाः कर्कोटक प्रमुखादयः।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा।।
पृथिव्यांश्चैव ये सर्पा ये साकेत वासिना।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पाः वंसुतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा।।
ग्रामे वा यदि वा रण्ये ये सर्पाः प्रचरन्ति च।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा।।
समुद्रतीरे ये सर्पाः सर्वाजलवासिनः।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा।।
रसातलेषु ये सर्पाः अनन्तादि महाबलाः।
नमोस्तुतेभ्यः सर्पेभ्यः सुप्रीताः मम सर्वदा।।