जीवित्पुत्रिका व्रत जिसे जिऊतिया व्रत भी कहते है इस व्रत को करने के लिए स्त्रियां एक दिन पहले से ही तैयारी शुरु कर देती है व्रत और पूजा के लिए सभी वस्तुओं को एकत्र किया जाता है। व्रत के एक दिन शाम को घर पर व्रती महिलाएं चौकी सजाकर पूजन करती है और जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनती है। कथा के बाद गले में जिउतियां बांधन के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। यह व्रत संतान की लम्बी आयु के लिए किया जाता है इस व्रत के अगले दिन सूर्योदय तक कुछ खाते और पीते नही है। सूर्योदय के पश्चात दूध से व्रत का पारण करते है। पुराणों के अनुसार इस व्रत में जीमूतवाहन देवता की पूजा की जाती है।
जीवित्पुत्रिका व्रत कथाः-
पौराणिक कथाओं के अनुसार गन्धर्वराज जीमूत वाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे इसलिए उन्होंने अपना राज्य आदि छोड़ दिया और वो अपने पिता की सेवा करने के लिए वन में चले गये थें। वन में एक बार उन्हें घूमते हुए नागमाता मिली नागमाता विलाप कर रही थी जब जीमूत वाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया की नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है। अपने वंश की रक्षा करने के लिए नागवंश ने गरुण से समझौता किया समझौते के अनुसार वेह बोले की वह प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और बदले में वो हमारा सामूहिक शिकार नही करेगा। उन्होंने आगे बताया की इस प्रक्रिया में आज उनके पुत्र को आगे गरुड़ के सामने जाना है। नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूत वाहन ने उन्हें वचन दिया कि वह उनके पुत्र को कुछ भी नही होने देंगे। उसकी जगह कपड़े मे लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ऐसा ही किया। गरुड़ ने जीमूत वाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ गया जब गरुड़ ने देखा की हमेशा की तरह नाग चिल्ला नही रहा है और उसकी कोई आवाज नही आ रही है। गरुड़ ने कपड़ा हटाया ऐसे में उसके जीमूत वाहन को सामने पाया। जीमूत वाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूत वाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का वचन दिया।
जीवित्पुत्रिका का महत्वः-
हिन्दू पंचांग के अनुसार हर वर्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत को जिउतिया व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत निर्जला रहा जाता है यह व्रत महिलाएं संतान की लम्बी आयु के लिए रहती है इस व्रत के फलस्वरुप संतान के लिए किसी भी बुरी परिस्थिति में उसकी रक्षा करता है साथ ही उसके जीवन में हमेशा खुशियां बनी है। यह कठिन व्रत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्यों में अधिक प्रचलित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को रखने से संतान प्राप्ति के साथ समस्त दुखों और परेशानियों से उसकी रक्षा होती है।
निर्जला व्रत रखती है महिलाएंः- जिउतिया व्रत संतान की दीर्घायु और मंगल कामना के लिए रखा जाता है। इस दिन मातायें संतान की लम्बी उम्र के लिए निर्जला उपवास रखती है। इस उपवास में मातायें जल की एक बूंद भी ग्रहण नही करती है।
जीवित्पुत्रिका की पूजा विधिः-
इस व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ वस्त्र धारण करना चाहिए इसके बाद व्रत रखने वाली महिलाओं का प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को भी साफ करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत में एक छोटा सा तालाब बनाकर पूजा की जाती हे। भगवान सूर्य नारायण की प्रतिमा को स्नान करायें धूप, दीप आदि से आरती करें एवं भोग लगावें। इस दिन बाजरा से मिश्रित पदार्थ भोग में लगाये जाते है।
जीवित्पुत्रिका पारणः- जीवित्पुत्रिका व्रत के तीसरे दिन प्रातः काल उठकर पूजा-पाठ के बाद इसका पारण किया जाता है।
जीवित्पुत्रिका शुभ मुहूर्तः-
जीवित्पुत्रिका व्रत शुक्रवार 06 अक्टूबर 2023 को
अष्टमी तिथि प्रारम्भः- 06 अक्टूबर 2023 को 06ः34 से
अष्टमी तिथि समाप्तः- 07 अक्टूबर 2023 को 08ः06 तक