शनि-देव को न्याय के लिए जाना जाता है। ये एक न्यायप्रिय ग्रह हैं और उन्हीें के जयंती के रुप में ज्येष्ठा अमावस्या मनाया जाता है। जिसके कुण्डली में शनि से सम्बन्धित दोष होता है, वो ज्येष्ठा अमावस्या के दिन शनि दोष निवारण का उपाय भी करवा सकते है। हिन्दू धर्म में इस दिन महिलाएं पति के लम्बी आयु हेतु उपवास भी रखती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति की आयु लम्बी होती है तथा व्रती को सौभाग्य एवं पुण्य की प्राप्ति होती है।
शनि की जन्म कथाः-
पौराणिक कथाओं तथा धर्म शास्त्र के अनुसार शनि भगवान सूर्य तथा देवी छाया के पुत्र है, ऐसा माना जाता है कि सूर्यदेव का विवाह संज्ञा के साथ हुआ था और उनसे उन्हें तीन संतान मनु, यम और यमुना थें लेकिन विवाह के कुछ दिन पश्चात संज्ञा सूर्य देव के प्रकाश को सहन न कर सकी। इसलिए उन्हें अपने छाया को सूर्य देव की सेवा में छोड़ना पड़ा, सूर्य और छाया के मिलन से ‘शनि देव’ का जन्म हुआ परन्तु जब सूर्य देव को पता चला कि छाया असल ममें संज्ञा नही है तो वो क्रोधित हो गए तथा शनि देव को अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया तभी से शनि और सूर्य में पिता पुत्र होने के बावजूद भी एक दूसरे के प्रति बैर और अहंकार का भाव उत्पन्न हो गया।
वट सावित्री कथाः-
प्राचीनकाल में एक राजा थें। जिनका नाम अश्वपति था वह भद्र देश में राज्य करते थे। उनकी कोई संतान नही थी। संतान प्राप्ति के लिए राजा अश्वपति जी ने वर्षों तक मंत्रो के उच्चारण के साथ एक लाख आहुतियाँ दी उनसे प्रसन्न होकर सावित्री देवी प्रकट हुई तथा उन्हें एक तेजस्वी कन्या प्राप्ति के लिए वरदान दिया। राजा के वहाँ एक कन्या का जन्म हुआ सावित्री देवी की कृपा से जन्म होेने के कारण उस कन्या का नाम सावित्री रखा गया। सावित्री रुपवती थी, योग्य वर ना मिलने के कारण सावित्री के पिता दुःखी होकर कन्या को स्वयं वर तलाशने के लिए भेज दिये, भटकते-भटकते सावित्री वन में पहुंच गई वहाँ उसने सत्यवान को देखा जो साल्व देश के राजा धूमत्सेन के पुत्र थे उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। इसलिए वो जंगल में निवास कर रहे थे। सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति रुप में उनका वरण कर लिया था। इस बात की पता जब नारद मुनि का चला तो वह शीघ्र अश्वपति के पास पहुंच गए और उन्हें बताया कि सत्यवान गुणवान, धर्मवान, बलवान तो है परन्तु उसकी आयु बहुत कम है, एक वर्ष पश्चात उसकी मृत्यु हो जाएगी। नारदमुनि की बात सुनने के बाद राजा अश्वपति ने अपनी पुत्री सावित्री से कहा कि तुमने जिसे अपने वर के रुप मे चुना है। वह अल्पायु है इसलिए तुम्हें अपने जीवनसाथी के रुप में किसी और को वरण करना चाहिए, राजा की बात सुनने के बाद सावित्री ने कहा कि आर्य कन्या अपना वरण एक बार करती है। राजा आज्ञा भी एक ही बार देता है तथा पण्डित जी प्रतिज्ञा भी एक ही बार करते है और उसका कन्यादान भी एक ही बार होता है। इसलिए मै केवल सत्यवान से ही विवाह करुंगी, सावित्री के हठ को देखकर राजा अश्वपति ने उनका विवाह सत्यवान के साथ कर दिया। विवाह के पश्चात सावित्री अपने ससुराल में गई वहाँ पर उन्होंने अपने सास-ससुर का खूब सेवा किया। नारद मुनि सत्यवान के मृत्यु के बारे में सावित्री को पहले से ही बता दिया। जैसे-जैसे दिन नजदीक आने लगा सावित्री को चिंता सताने लगी। उन्होंने तीन दिन पूर्व ही उपवान रखना आरम्भ कर दिया। नारद मुनि द्वारा बताए अनुसार पितरों का पूजन भी किया प्रतिदिन की भाँति सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जंगल गए उनके साथ सावित्री भी गई जैसे ही सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जंगल गए उनके साथ सावित्री भी गई, जैसे ही सत्यवान लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़े उनके साथ सावित्री भी गई जैसे ही सत्यवान लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़े उनके सिर मे दर्द उत्पन्न हो गया और वो नीचे उतर गए, नारद मुनि द्वारा बताया गया कथन सावित्री को स्मरण हो गया। वह सत्यवान का सिर अपने गोद में रखकर सहलाने लगी तभी वहाँ मृत्यु के देवता यमराज पधारे और वह सत्यवान को अपने साथ यमलोकर ले जाने लगे। देवी सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी, यमराज ने सावित्री को बहुत समझाया परन्तु वों अपने हठ पर अड़ी रही, सावित्री की निष्ठा और पति के प्रति प्रेम को देखकर यमराज ने कहा कि हे देवी आप धन्य हो पति के प्राण को छोड़कर आप मुझसे कोई दूसरा वरदान मांग लीजिए, यमराज की बात सुनने के पश्चात सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे है। आप उन्हें दिव्य-ज्योति प्रदान करें यमराज ने उनसे कहा ऐसा ही होगा अब आप लौट जाइए लेकिन सावित्री फिर भी अपने पति सत्यवान के पीेछे-पीछे चलती रही। सावित्री को पीछे आता देखकर यमराज ने उनसे कहा कि यही सबकी रीति है। इसलिए आप वापस लौट जाइए, सावित्री ने यमराज से कहा कि पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है और इसमें मुझे कोई समस्या नही हैं, ये बाते सुनने के बाद यमराज ने उनसे फिर एक वरदान मांगने के लिए कहा दूसरे वरदान में सावित्री ने यमराज से कहा कि मेरे ससुर का राज्य उनसे छीन गया। उसे उन्हें फिर से वापिस दिला दें। यमराज ने सावित्री को यह भी वरदान दिया और उनसे लौट जाने को कहा परन्तु सावित्री फिर भी पीछे-पीछे चलती रही, ये देखकर यमराज ने सावित्री से तीसरा वरदान मांगने को कहा तब सावित्री ने संतान और सौभाग्य का वरदान मांग लिया। यमराज ने सावित्री को यह भी वरदान दे दिया। वरदान देने के बाद यमराज आगे बढ़ने लगे लेकिन उन्हें आभास हुआ कि सावित्री अभी भी वापस नही लौटी है तो उन्होंने पीछे मुड़कर सावित्री से कहा कि मैने तुम्हें सभी वरदान दें दिये लेकिन फिर भी तुम मेरे पीछे-पीछे आ रही हो। यमराज की बात सुनकर सावित्री ने कहा कि आप मुझे संतान और सौभाग्य प्राप्ति की वरदान तो दे चुके है परन्तु मेरे पति को अपने साथ लिए जा रहे है। ये कैसे सम्भव है, यह सुनकर यमराज देव को सत्यवान के प्राण छोड़ने पर उसके बाद सावित्री उस पेड़ के पास पहुँची जहाँ उनके पति सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था। सत्यवान जीवित हो गए, उनके माता-पिता को दृष्टि की प्राप्ति हो गई तथा उन्हें अपना छीना हुआ राज्य भी वापिस मिल गया। इसी प्रकार ज्येष्ठा अमावस्या का व्रत करने से भक्तों के सभी मनोरथें पूर्ण होती है।
ज्येष्ठा अमावस्या का महत्वः–
धर्म ग्रंथो में ज्येष्ठा अमावस्या का अत्यधिक महत्व है, ज्येष्ठा अमावस्या के दिन ही शनि जयंती और वट सावित्री व्रत का पर्व मनाया जाता है, मान्यताओं के अनुसार अमावस्या के दिन नदी या जलाशय में स्नान दान, व्रत और पूजा-पाठ से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है, पितरों की तृप्ति के लिए अमावस्या के दिन पिण्डदान और श्राद्धकर्म करने का भी रिवाज है।
ज्येष्ठा अमावस्या पूजा-विधिः-
☸ ज्येष्ठा अमावस्या के दिन प्रातः काल उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर पवित्र तीर्थ-स्थलों, नदियों तथा जलाशयों मे स्नान करें।
☸ स्नान के बाद सूर्य-देव को जल दें तथा बहते जल में तिल प्रवाहित करें।
☸ तत्पश्चात पीपल के वृक्ष को जल दें और शनि-देव की आराधना उनके मंत्रो तथा चालीसा के द्वारा करें।
☸ स्त्रियां इस दिन वट सावित्री का व्रत रखें तथा यम देवता की पूजा भी करें।
☸पूजा के पश्चात ब्राह्मणों या जरुरतमंदों को अपने सामर्थ्यनुसार दान-दक्षिणा दें।
ज्येष्ठा अमावस्या 2023 शुभ तिथि एवं मुहूर्तः-
साल 2023 में ज्येष्ठा अमावस्या 19 मई 2023 दिन शुक्रवार को पड़ रहा है, अमावस्या तिथि का आरम्भ 18 मई 2023 को रात्रि 21ः44 से होगा तथा इसकी समाप्ति 19 मई 2023 को रात्रि 21ः24 पर होेगी।