श्री विष्णु जो इस जगत के पालनहार है। चार मास के बाद वह योग निद्रा से जागते है और सृष्टि का कार्यभार संभालते है। इस दिन भगवान शालीग्राम तथा माता तुलसी की पूजा होती है तथा इनका विवाह कराया जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन से ही चतुर्मास समाप्त हो जाता है तथा शुभ और मांगलिक कार्य प्रारम्भ हो जाते है। हमारे धर्म मे एकादशी का बड़ा महत्व है। कई लोग इस दिन निर्जला व्रत भी रखते है तथा श्री विष्णु जी और माता लक्ष्मी की एक साथ पूजा आराधना करते है। इस दिन व्रत रखने वालो के लिए कथा सुनना तथा कथा को पढ़ना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। आषाढ के शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को आषाढी एकादशी हरिशयनी और पद्यमाना एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
देवउठनी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक राजा था जिसके राज्य में सम्पूर्ण जनता एकादशी का व्रत रखती थी ऐसे में इस दिन हर किसी को भी अन्न देने की मनाही होती थी एक बार एकादशी के दिन दूसरे राज्य का कोई व्यक्ति उसके दरबार में आया तथा नौकरी मांगने कहा राजा ने व्यक्ति से कहा की तुम्हे इस राज्य में नौकरी तो मिलेगी लेकिन एक शर्त है ये की एकादशी के दिन यहां अन्न नही मिलेगा। राजा की बात सुनकर व्यक्ति को पहले तो आश्चर्य हुआ लेकिन नौकरी की लालच में उसने राजा की बात मान ली जिसके बाद एकादशी आने पर उसने भी व्रत रखते हुए केवल फलाहार किया लेकिन उसे भूखे नही रहा जा रहा था उसने राजा से कहा की उसे खाने के लिए अन्न दिया जाए क्योंकि फल से उसका पेट नही भरा है अन्यथा वह भूख के मारे मर जाएगा व्यक्ति की बात सुनकर राजा ने उसे अपनी शर्त याद दिलाए लेकिन भूख से व्याकुल वो व्यक्ति फिर भी नही माना तब राजा ने उसे अन्न खाने का आदेश दिया और इसके लिए उसे चावल, आटा, दाल आदि दिये गये जिसे लेकर वह रोज की तरह नदी में स्नान करने के बाद भोजन बनाने लगा उस व्यक्ति ने एक थाली में भोजन निकालते हुए भगवान को निमंत्रण दिया व्यक्ति प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु पिताम्बर में वहां आए और व्यक्ति द्वारा दिये गये भोजन को ग्रहण कर वहां से चले गये इसके बाद वह व्यक्ति ने भी भोजन कर रोज की तरह अपने काम पर चला गया अगली एकादशी पर उस व्यक्ति ने राजा से विनती की उसे खाने के लिए दोगुना अनाज दिया जाए इस पर जब राजा के कारण पूछा तो व्यक्ति ने बताया की पिछली बार भगवान आये और सारा भोजन उन्होंने ग्रहण किया जिसके कारण मैं भूखा ही रह गया क्योंकि जितना अन्न उसे दिया गया था उससे दो लोगो का पेट नही भरा जा सकता। व्यक्ति की बात सुनकर राजा को आश्चर्य हुआ उस व्यक्ति ने राजा को विश्वास दिलाने के लिए अपने साथ चलने के लिए कहा राजा उसके साथ चल दिये और इस बार भी भगवान नही आए ऐसे देखते-देखते शाम हो गयी राजा वही पेड़ के पास छिपकर सारा दृश्य देख रहा था। अंत में भगवान से कहा की यदि ओ नही आए तो वह नदी में कूदकर अपने प्राण त्याग देगा। भगवान को न आता देख वह व्यक्ति नदी के आरे जाने लगा तभी भगवान उसके सामने प्रकट हुए और उसे ऐसा करने से रोकने लगे इसके बाद भगवान ने व्यक्ति के तथ्यों से न केवल भोजन ग्रहण किया बल्कि उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपने आप लेकर चले गए। इसके बाद राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ की आडम्बर और दिखावे से भगवान को खुश नही किया जा सकता इसके लिए केवल सच्चे मन से ईश्वर को याद करना होता है। तभी ईश्वर दर्शन देते है और आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते है। इसके बाद से ही राजा भी सच्चे मन से एकादशी का व्रत करने लगा अंत में उसे भी व्यक्ति की तरह स्वर्ग की प्राप्ति हुई।
देवउठनी एकादशी महत्व
देवउठनी एकादशी के दिन व्रत करने वाले मनुष्य को हजार अश्वमेघ और सौ राजसूय यज्ञों को करने के बराबर फल मिलता है। इस संसार में जो भी वस्तुओं को अत्यन्त दुर्लभ मानी जाती है। उसे भी मांगने पर देवउठनी एकादशी प्रदान करती है। मनुष्य के द्वारा किये गये मेरु पर्वत के समान बड़े-बड़े पापों को भी ये एकादशी एक ही उपवास से समाप्त हो जाती है। इस दिन श्री विष्णु निद्रा को त्यागते है। जिसके परिणाम स्वरुप जड़ता में भी चेतना आ जाती है। देवताओं में भी सृष्टि को अच्छे क्रम में चलाने की असीम शक्तियां आ जाती है। जो व्यक्ति कार्तिक मास की इस तिथि से अंतिम पांच दिनों (पांच रात्रि) ओम नमो नारायणाय इस मंत्र का जाप करते हुए श्री हरि भगवान का पूजन-अर्चन करता है। वह समस्त नरक के दुःखों से छुटकारा पाकर मोक्ष को प्राप्त करता है।
देवउठनी एकादशी पूजा विधि
☸ इस व्रत को प्रारम्भ करने से पहले स्नान करना चाहिए।
☸ भगवान श्री गणेश जी को नमस्कार करके! ओम पुण्डरीकाक्षाय नमः मंत्र पढ़कर अपने ऊपर जल छिड़कना चाहिए।
☸ उसके बाद हरि का ध्यान आह्मन, आसन, पाद, प्रच्छालन स्नान, कराकर वस्त्र यज्ञोपवीत, चंदन, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य लौंग, इलायची, पान, सुपारी, ऋतुफल, गन्ना, केला, अनार, आंवला, सिंघाडा एवं जौ भी उपलब्ध सामग्री हो उसे अर्पण करें।
☸ ओम नमो नारायणाय मंत्र का जाप करें या ओम नमो भगवतेे वासुदेवाय यह भी मंत्र पर्याप्त है।
☸ माता लक्ष्मी तथा भगवान विष्णु की पूजा भक्ति भाव से करें। सभी मनोकामनाएं पूर्ण होगी।
इस मंत्र से अर्घ दे श्री विष्णु को
श्री विष्णु का यह मंत्र ‘‘ ओम कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्यने।
प्रणतः क्लेशनाशाय गोविदाय नमो नमः।।
यह मंत्र पढ़ते हुए अर्घ देना चाहिए सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान करके और हर प्रकार का दान देने से जो फल मिलता है। उससे करोड़ो गुणा फल इसदिन मात्र अर्घ देने से मिलता है।
देवउठनी एकादशी शुभ मुहूर्तः-
देवउठनी एकादशी तिथि प्रारम्भः- 23 नवम्बर रात 11 बजकर 03 मिनट से
देवउठनी एकादशी तिथि समापनः- 24 नवम्बर प्रातः 09ः01 मिनट तक