देवशयनी एकादशी का बड़ा ही महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा मे शयन के लिए चले जाते है। विष्णु भगवान के शयन में चले जाने से चतुर्मास भी लग जाता है। भगवान विष्णु ने जगत की सुरक्षा ,राक्षसों एवं दैत्यों का अंत करने के लिए अनेक रुप धारण किये हैं। दैत्य शंखचूर का नाश करने के बाद भगवान विष्णु निद्रा में चले जाते है तथा चार महीने के बाद भगवान विष्णु का शयन समाप्त होता है। इस चार महीने तक भगवान विष्णु क्षीर सागर में शैय्या पर शयन करते है। इस दौरान कोई भी धार्मिक कार्य जैसे विवाह या अन्य कोई शुभ कार्य नही किये जाते है। इस एकादशी को शयनी एकादशी, महा एकादशी, प्रतिमा एकादशी, पद्मा एकादशी, देवपद एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और एक टोली एकादशी, प्रबोधनी एकादशी भी इत्यादि के नाम से जाना जाता है। आषाढ़ महीने से कार्तिक महीने तक के समय को चर्तुमास कहते है।
देवशयनी एकादशी व्रत कथा
सूर्यवंशी कुल में मान्धाता नाम के एक राजा हुआ करते थे। वह बहुत ही महान प्रवृति, उदार तथा प्रजा का ध्यान रखने वाले राजा थें। उस राजा के राज्य में बहुत सुख और समृद्धि था तथा वहां की प्रजा राजा से बहुत अधिक प्रसन्न एवं खुशहाल थी क्यों की राजा अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे। साथ ही वह धर्म के अनुसार सारे नियम करने वाला राजा था। एक समय की बात है। राजा के राज्य में बहुत लम्बे समय तक वर्षा नही हुई जिसके कारण उनके राज्य मे सुखा और अकाल पड़ गया। जिससे की राजा अत्यन्त दुखी हो गये क्योंकि उसकी प्रजा बहुत दुखी थी। राजा इस संकट से उबरना चाहते थे राजा चिंता में डूब गये और चिंतन करने लगें की उससे आखिर ऐसा कौन सा पाप हुआ है। राजा इस संकट से मुक्ति पाने के लिए कोई उपाय खोजने के लिए जंगल की ओर अपने सैनिको के साथ प्रस्थान करते है। राजा वन में कई दिनों तक भटकते रहे और फिर एक दिन अचानक से वें अंगीरा ऋषि के आश्रम जा पहुंचे। उन्हें अत्यन्त व्याकुल देखकर अंगीरा ऋषि ने उनके व्याकुलता का कारण पूछा राजा ने अंगीरा ऋषि को अपने तथा अपने राज्यवासियों की परेशानियों का विस्तार पूर्वक वर्णन सुनाया, राजा ने ऋषि को बताया कि किस प्रकार उनके खुशहाल राज्य में अचानक अकाल पड़ गया राजा ने ऋषि से निवेदन किया कि हे ! ऋषि मुनि मुझे कोई ऐसा उपाय बतायें जिससे की मेरे राज्य में सुख-समृद्धि पुनः वापस लौट आये ऋषि ने राजा की परेशानी को ध्यान पूर्वक सुना और कहा की जिस प्रकार हम सब बह्म देव की उपासना करते है। किन्तु सतयुग में वेद पढ़ने का तथा तपस्या करने का अधिकार केवल ब्राह्मणों को है लेकिन आपके राज्य में एक शुद्र तपस्या कर रहा है। आपके राज्य में अकाल की दशा उसी कारण से है। यदि आप अपने राज्य को खुशहाल देखना चाहते है तो शुद्र जीवन लीला समाप्त कर दीजिए। यह सुनकर राजा को बहुत अचम्भित हुआ और राजा ने कहा हे ! ऋषि मुनि आप यह क्या कह रहे है। मै एक निर्दोष की हत्या का अपने सर नही ले सकता मै ऐसा अपराध नही कर सकता और ना ही इस अपराध के बोझ से साथ जी पाऊंगा। आप मुझ पर कृपा करे और अपने ज्ञान से मुझे मेरी समस्या का अन्य कोई समाधान बताएं। ऋषि ने राजा को कहा कि यदि आप उस शुद्र की हत्या नही कर सकते है तो मैं आपको एक दूसरा उपाय बता रहा हूँ। आप आषाढ़ मास के देवशयनी एकादशी को पूर विधि-विधान से एक पूर्ण श्रद्धा भक्ति के साथ व्रत रखें एवं पूजन आदि करें राजा ने ऋषि की आज्ञा का पालन करते हुए अपने राज्य फिर से वापस आया तथा एकादशी व्रत पूर विधि-विधान से किया है। जिसके कारण राजा के राज्य में वर्षा हुई जिससे अकाल दूर हो जाता है तथा पूरा राज्य पहले की तरह हंसी-खुशी रहने लगता है।
देवशयनी पूजा विधि
☸ प्रातः काल उठकर स्नान करें तथा पूजा स्थान की साफ-सफाई तथा विष्णु भगवान की अगर प्रतिमा या चित्र हो तो उसको साफ करें।
☸उसके बाद श्री हरि भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के एक पाट पर रखें।
☸ पूजन में देवताओं के सामने धूप, दीप अवश्य जलाना चाहिए। देवताओं के लिए जलाएं गये दीप को कभी स्वयं नही बुझाना चाहिए।
☸ फिर श्री हरि विष्णु जी के मस्तक पर हल्दी, कुमकुम, गोपी चन्दन और चावल लगाएं और उन्हें हार और फूल चढ़ाएं।
☸ देवशयनी एकादशी व्रत के दिन नमक का सेवन नही किया जाता है।
☸ पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी उंगली के पास यानी रिंग फिंगर) से गंध चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाब, हल्दी लगाएं।
☸ भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चन्दन चढ़ाएं और उनके हाथ में शंख, गदा और पद्म रखें।
☸पूजा के समय भगवान को प्रसाद या भोग चढ़ाएं ध्यान रहे कि नमक, तेल, मिर्च का प्रयोग प्रसाद में नही किया जाता है तथा प्रत्येक पकवान पर तुलसी जी का एक पत्ता रखें।
☸ अंत में आरती करें और आरती करके भोग चढ़ाकर पूजा का समापन करें तथा वही भोग प्रसाद के रुप में वितरित करें।
विष्णु जी का मंत्र
सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्त भवेदिदम् ।
विबुद्धे त्वयि बुध्यते जगत सर्वं चराचरम ।।
देवशयनी एकादशी का महत्व
भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार है। उनकी ही कृपा से सृष्टि चलती है। इसलिए जब वह योग निद्रा में रहते है तो मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते है। इस एकादशी का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है। देव और शयन यहां देव से अर्थ है। भगवान विष्णु जी से तथा शयन का अर्थ है। सोना भगवान विष्णु चार महीने के लिए क्षीरसागर मे शयन में चले जाते है। जो लोग देवशयनी एकादशी का व्रत करते है। उनके सारे दुख दूर हो जाते है। इस एकादशी का नाम दो शब्दो से मिलकर बना है। जो लोग भी देवशयनी एकादशी का व्रत करते है। उनके सारे दुख दूर हो जाते है और उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। भगवान श्री विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते है। इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य नही होते है। इसी समय चतुर्मास की शुरुआत भी होती है। इसके बाद चार महीने तक सूर्य चन्द्रमा और प्रकृति का तेजस तत्व कम हो जाता है। शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर किए गए कार्यों के परिणाम भी शुभ नही होते है इस समय साधुओं का भ्रमण भी बंद हो जाता है। वह एक जगह ही रुक के भगवान की पूजा करते है। चतुर्मास के समय सभी धाम ब्रज में आ जाते है। इसलिए इस समय ब्रज की यात्रा बहुत ही शुभकारी होता है। देवशयनी एकादशी का व्रत करने तथा भगवान विष्णु जी की पूजा करने से सभी प्रकार के पापो का नाश होता है। सारी परेशानियां समाप्त होती है। मन शुद्ध होता है। सभी प्रकार कष्ट दूर होते है तथा इस व्रत के बाद शरीर और मन शुद्ध और नवीन हो जाते है। सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है तथा मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
उपाय
☸ दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर उससे भगवान विष्णु का अभिषेक करना चाहिए।
☸ भगवान विष्णु को शयन कराने के पहले खीर पीले फल और पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं।
☸ यदि धनलाभ की इच्छा है तो श्री हरि विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा किया जाता है।
☸ इस दिन शाम को तुलसी माता के सामने गाय के घी का दीपक जलाएं और उन्हें प्रणाम करें। ध्यान रखे की माता तुलसी को जल अर्पित नही करना है।
☸ पीपल के पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है। इसलिए पीपल के पेड़ में जल अर्पित करें।
व्रत के लाभ
☸ यह व्रत सिद्धियों को प्राप्त करने वाला व्रत है।
☸ इस व्रत को करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
☸ इस व्रत को करने से भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न होते है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
☸ इस व्रत को करने से पुण्य फल प्राप्त होता है और शारीरिक कष्ट दूर होता है।
☸ यह व्रत को करने से मन में और जीवन में मची उथल-पूथल को शांत होती है और सुख-शांति मिलती है।।
शुभ मुहूर्त
देवशयनी एकादशी दिन मंगलवार 29 जून 2023
एकादशी तिथि प्रारम्भः- 29 जून 2023 अपराह्न 03ः18
एकादशी तिथि समाप्तिः- 30 जून 2023 पूर्वाह्न 02ः42