धनतेरस क्या हैः-
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी तिथि को भगवान धनवन्तरी का जन्म हुआ था जो कि समुद्र-मंथन के दौरान अपने साथ अमृत का कलश व आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे और इसी कारण भगवान धनवन्तरी को औषधि का जनक भी कहा जाता है और इस तिथि को धनतेरस या धन त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है।
क्यों मनाया जाता है धनतेरस का त्यौहारः-
हमारे संस्कृति या पर्यावरण में स्वास्थ्य का दर्जा धन/ सम्पत्ति से भी ऊपर माना जाता है इसलिए दीपावली मे सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है, उपरोक्त कथन में हमने आपको बताया कि समुद्र-मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धनवन्तरी अपने हाथो में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थें, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु ने ही धनवन्तरी का अवतार लिया था और भगवान धनवन्तरी के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है।
धनतेरस की कथाः-
धनतेरस से जुड़ी एक पौराणिक कथा है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य मे बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों गुरु शुक्राचार्य की एक आँख फोड़ दी थी, पुराने कथनों के अनुसार देवताओं के राजा बलि के भय से मुक्ति हेतु भगवान हरि ने अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गए, शुक्राचार्य ने वामन रुप मे भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे उन्हें इंकार कर देगा, उसने राजा बलि को यह भी बताया कि वामन साक्षात् विष्णु है जो देवताओं की सहायता करने के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए है। बलि ने शुक्राचार्य की बात नही मानी और वामन द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमण्डल से जल लेकर संकल्प लेने लगे, बलि को दान करने से रोकने के लिए दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य राजा बलि के कमण्डल मे लघु रुप धारण करके प्रवेश कर गए , जिससे कमण्डल से जल निकलने का रास्ता बंद हो गया। वामन अर्थात् भगवान विष्णु शुक्राचार्य की चाल को समझ गए, भगवान वामन ने अपने हाथ मे रखें कुए कुश को कमण्डल मे इस प्रकार रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई इससे शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से बाहर निकल आए तत्पश्चात बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प लिया और तब भगवान वामन ने अपने एक पैर से सम्पूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को तथा तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नही था इसलिए बलि ने अपना सिर वामन के चरणों मे रख दिया, बलि दान में अपना सब कुछ गवा बैठा, इस प्रकार बलि के भय से देवताओं को राहत मिली और बलि ने जो धन-सम्पत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना धन-सम्पत्ति देवताओं को मिल गई जिसके उपलक्ष्य में धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है।
एक अन्य कथाः-
धनतेरस का त्यौहार त्रयोदशी अर्थात् तेरहवी तिथि को मनाया जाता है इसका अर्थ निकाला जाता है, धन में तेरह गुना बढ़ोत्तरी करने वाली तिथि इसलिए धनतेरस को धन त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है, धनतेरस के दिन मुख्यतः धनवन्तरी का पूजा किया जाता है जिससे आरोग्यता की प्राप्ति होती है लेकिन इसी के साथ धनतेरस पर लोगों द्वारा माँ लक्ष्मी का भी पूजा किया जाता है, आइए माँ लक्ष्मी की धनतेरस से जुड़ी एक कथा के बारे में जानते हैः-
पौराणिक कथनों के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक अर्थात पृथ्वी पर भ्रमण करने का निश्चय किया, उनके साथ माँ लक्ष्मी भी पृथ्वी पर आने को तैयार हो गई, उस समय भगवान हरि ने माँ लक्ष्मी से कहा कि यदि मेरे साथ पृथ्वी पर चलना चाहती हैं तो आपको मेरीे एक बात माननी होगी तभी आप मेरे साथ पृथ्वी पर चल सकती है, माँ लक्ष्मी ने इस बात के लिए हां कर दी जिसके उपरान्त भगवान विष्णु नें उन्हें अपने साथ पृथ्वी लोक आने की अनुमति दे दी, जब भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी पृथ्वी पर पहुंचे तो भगवान विष्णु ने दक्षिण ओर जाने की इच्छा जताई और माँ लक्ष्मी को वही पर ठहरने का आदेश देकर दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान कर गए, स्वभाव से चंचल माँ लक्ष्मी भी धीरे-धीरे भगवान विष्णु के पीछे चल दीें। जब माँ लक्ष्मी जा रही थी तो उनको एक सरसो का लहलहाता खेत दिखा, माँ लक्ष्मी ने वहा रुककर सरसों के फूलों से श्रृंगार किया तथा किसान के खेत का गन्ने का रस भी पिया, ये सब भगवान विष्णु ने देख लिया और माँ लक्ष्मी द्वारा आज्ञा ना मानने के कारण भगवान विष्णु ने क्रोधवश उन्हें श्राप दिया कि वें 12 वर्ष तक किसान के यहां ठहरकर सेवा करें, माँ लक्ष्मी के वास के कारण किसान का घर धन-धान्य से भर गया। 12 वर्ष पूर्ण होने के बाद माँ लक्ष्मी का वापस अपने लोक लौटने का समय हो गया जब भगवान विष्णु माँ लक्ष्मी को लेने आये तो किसान ने उन्हे विदा करने से मना कर दिया तब माँ लक्ष्मी ने किसान से बोला कि तेरस के दिन घर की अच्छी से साफ-सफाई करके रात में घी का दीपक जलाए, एक तांबे के कलश में रुपये-पैसे भरकर संध्या के समय मेरा (माँ लक्ष्मी का) पूजन करो, ऐसा करने से सम्पूर्ण वर्ष मेरी (माँ लक्ष्मी का) कृपा तुम्हारे ऊपर बनी रहेगी, किसान ने माँ लक्ष्मी के कहे अनुसार किया और माँ लक्ष्मी के आशीर्वाद से सम्पूर्ण वर्ष किसान का घर धन-धान्य से परिपूर्ण रहा, ऐसी पुरानी मान्यता है कि तभी से तेरस के दिन धन की देवी की पूजा की परम्परा की शुरुआत हुई और इसलिए माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए धनतेरस के दिन उनकी पूजा अर्चना करने का रिति-रिवाज है।
धनतेरस के दिन क्या करें और क्या नहीः-
☸ धनतेरस के दिन अपने सामर्थ्य अनुसार किसी भी रुप में चांदी एवं अन्य धातु खरीदें, ये शुभ माना जाता है।
☸ धन सम्पत्ति की प्राप्ति हेतु कुबेर देवता के लिए घर के पूजा स्थल पर दीप-दान करें एवं मृत्य देवता यमराज के लिए मुख्य द्वार पर भी दीप-दान करें।
☸ धनतेरस के दिन लोग माता लक्ष्मी, कुबेर और भगवान धनवन्तरी की पूजा करते है, इस दिन कांच से बनी मूर्तिर्यो का पूजन ना करें।
☸ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार धनतेरस और दीपावली के दिन मे सोने से आलस्य एवं नकारात्मकता आती है इसलिए धनतेरस के दिन मे ना सोयें।
☸ धनतेरस के दिन किसी को भी रुपये उधार नही देना चाहिए, ऐसा मान्यता है की ऐसा करने से अपनी लक्ष्मी दूसरे के पास चली जाती है।
☸ धनतेरस पर घर की अच्छी से सफाई करें, ध्यान रखे कि घर में कूड़ा, रद्दी और गन्दगी न रहें।
धनतेरस पूजा विधिः-
☸ प्रातः उठकर स्नान आदि करने के बाद पूजा की तैयारी करें।
☸घर के ईशान कोण में ही पूजा करें।
☸धनतेरस के दिन, पूजन के समय पंचदेव की स्थापना करें सूर्य देव , श्रीगणेश, माँ दुर्गा, भगवान शिव और विष्णु को पंचेदव कहा गया है।
☸ धनतेरस के दिन धनवन्तरी देव की षोडशोपचार पूजा करें, षोडशोपचार का अर्थ है 16 क्रियाओं से, पाघ, अर्ग, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार तथा पूजन के अन्त में दक्षिणा भी चढ़ाए।
☸ तत्पश्चात धनवन्तरी देव के सामने धूप, दीप जलाएं , कुमकुम, चंदन, चावल का तिलक लगाएं, उनको फूलो की हार आदि चढ़ाएं।
☸ पूजा करने के बाद प्रसाद या भोग चढ़ाएं।
☸ अंत मे धनवन्तरी देव की आरती करके और उनको भोग चढ़ाकर पूजा की समाप्ति करें।
☸ धनतेरस के दिन प्रदोष काल में मुख्य द्वार या आंगन में दीपक जलाएं, एक दीपक यम के लिए भी जलाएं तथा रात्रि में घर के सभी कोनो में भी दीपक जलाएं।
धनतेरस का महत्वः-
धनतेरस के दिन माँ लक्ष्मी कुबेर और धनवन्तरी जी के पूजा का विधान है और इन्हें (माँ लक्ष्मी, कुबेर, वैद्य धनवन्तरी) धन के देवी/देवता के रुप में जाना जाता है इनके आशीर्वाद से भक्तों के जीवन में कष्ट बाधाएं और परेशानियों का नाश होता है, धनतेरस के दिन शुभ मुहूर्त में माँ लक्ष्मी, कुबेर और धनवन्तरी देव की पूजा करने से विशेष कृपा की प्राप्ति होती है और जीवन सुखमय बना रहता है।
धनतेरस 2022 तिथि और शुभ मुहूर्तः-
धनतेरस तिथिः- 22 अक्टूबर 2022
धनतेरस शुभ मुहूर्तः- 22 अक्टूबर प्रातः 07ः01 से शाम 08ः17 तक
कुल अवधिः- 01 घण्टा 16 मिनट