नवरात्रि के चौथे दिन मनायी जायेगी तुला संक्रान्ति

प्रत्येक वर्ष में पूरी 12 संक्रान्तियाँ होती हैं यह संक्रांति की एक सौर घटना होती है। सूर्यदेव के अलग-अलग राशियों में प्रवेश करने के कारण ही उस राशि का संक्रांति पर्व मनाया जाता है। वर्ष में पड़ने वाले अलग-अलग संक्रांतियों का अपना अलग-अलग महत्व होता है। हमारे शास्त्रों में भी संक्रांति की तिथि और समय को बहुत ज्यादा महत्व दिया गया है।

आपको बता दें जब कभी सूर्य कन्या राशि से तुला राशि में प्रवेश करते हैं तो ऐसी स्थिति को ही तुला संक्रांति के नाम से जाना जाता है। यह संक्रांन्ति हिन्दू धर्म के पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के पहले दिन आती है। 

कुछ राज्यों में तुला संक्रांति का अत्यधिक महत्व माना जाता है जिसमें से मुख्य राज्य उड़ीसा और कर्नाटक है। यहाँ के किसान इस दिन को अपनी चावल की फसल के दाने आने की खुशी में बड़ी धूम-धाम और उत्साह के साथ मनाते हैं। तुला राशि में सूर्य देव के पूरे 1 माह तक रहने के दौरान पवित्र जलाशयों में स्नान करना बहुत की ज्यादा शुभ फलदायी माना जाता है।

तुला संक्रांति के दिन स्नान और दान का महत्व

नवरात्रि के चौथे दिन मनायी जायेगी तुला संक्रान्ति 1

तुला संक्रांति के दिन स्नान और दान करने का अत्यधिक महत्व होता है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करने का विशेष महत्व माना जाता है। स्नानादि करने के बाद ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा भी अवश्य देना चाहिए, ऐसा करने से जातक की कुण्डली में इस राशि पर पड़ने वाला प्रतिकूल प्रभाव बहुत कम हो जाता है। यदि किसी कारणवश नदी या तालाब में स्नान करना संभव न हो तो घर में ही नहाने के पानी में गंगाजल डालकर स्नान कर लेना चाहिए। स्नान करने के बाद ताँबे के पात्र में जल भरकर उसमें अक्षत, मीठा डालकर उगते हुए सूरज को अर्घ्य देना बहुत ही ज्यादा लाभदायक और पुण्य देने वाला माना जाता है।

तुला संक्रांति मनाने की परम्परा

तुला संक्रांति मनाने की परम्परा के दौरान मुख्य रूप से उड़ीसा और कर्नाटक के लोग धान के पौधे में दाने आने की खुशी में माँ लक्ष्मी से प्रार्थना कर उनका आभार जताते हैं तथा उन्हें ताजे धान चढ़ाते हैं। इसके अलावा कई इलाकों में गेहूँ और धान के पौधों की टहनियाँ चढ़ाई जाती हैं और माँ लक्ष्मी जी से फसलों के सूखे होने, बाढ़, कीट और बीमारियों से बचाव करने तथा लहलहाती फसल के लिए कामना जी जाती है। इस तरह से यह संक्रांति एक उत्सव की तरह मनाया जाता है।

तुला संक्रांति के दिन की पूजा विधि

☸ तुला संक्रांति के दिन माँ लक्ष्मी और माँ पार्वती की पूजा अर्चना की जाती है।

☸ इस दिन की पूजा पूरी तरह से स्वच्छ होकर देवी लक्ष्मी को ताजे चावल, अनाज, गेहूँ और कराई के पौधों की शाखा के साथ भोग लगाया जाता है।

☸ माँ पार्वती को इस दिन सुपारी के पत्ते और चंदन के लेप के साथ कुछ मीठा भोग लगाया जाता है।

☸ इस संक्रांति का पर्व अकाल और सूखे से बचाने के लिए मनाया जाता है ऐसा करने से फसल अच्छी होती है तथा अत्यधिक कमाई करने का लाभ प्राप्त होता है।

☸ कर्नाटक में तुला संक्रांति के दिन नारियल के पेड़ को एक रेशम के कपड़े से ढका जाता है और माता पार्वती का प्रतिनिधित्व करके उसे ही फूल और मालाओं से सजाया जाता है।

☸ उड़ीसा राज्य में तुला संक्रांति के दिन अनुष्ठान, चावल, गेहूँ और दालों की उपज को मापे जाने की परम्परा होती है ताकि अन्न की कोई कमी न हो।

तुला संक्रांति के दिन सफलता प्राप्त करने के कुछ अन्य उपाय

☸ तुला संक्रांति के दिन माँ लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना एक अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

☸ यदि जातक की कुण्डली में सूर्य नीच का हो तो उसे अच्छी स्थिति में लाने के लिए जातक को सूर्यदेव की शांति पूजा तथा दान-दक्षिणा अवश्य करना चाहिए।

☸ यदि आपकी कुण्डली में सूर्यदेव बुरे प्रभाव में उपस्थित हों और उसके कारण आप बहुत परेशान रहते हैं तो तुला संक्रांति के दिन गेहूं का दान अवश्य करना चाहिए।

☸ जो जातक नौकरी क्षेत्र में कार्यरत हैं उन्हें तुला संक्रांति के दौरान अपने से उच्च अधिकारियों को कोई उपहार देना चाहिए ऐसा करने से जातक को नौकरी क्षेत्र में अत्यधिक सफलता की प्राप्ति होगी।

☸ तुला संक्रांति के दौरान जातक को अपना भाग्योदय करने के लिए अपने पिताजी का आशीर्वाद अवश्य लेना चाहिए।

☸ तुला संक्रांति के इस शुभ अवसर पर गरीबों को उनके जरूरत के अनुसार चीजें भेंट करनी चाहिए ऐसा करने से जातक के जीवन में आयी सभी दुःख तकलीफें और कष्ट दूर हो जाते हैं।

☸ इस दिन अपने खाने में से कुछ हिस्सा जरूरतमंदों के लिए अवश्य निकालना चाहिए ऐसा करने से जातक को कभी भी किसी चीज की कमी नहीं होती हैं।

तुला संक्रांति शुभ मुहूर्त

तुला संक्रान्ति पुण्य कालः- सुबह 06ः23 मिनट से, दोपहर 12ः06 मिनट तक।
तुला संक्रांति महा पुण्य कालः- सुबह 06ः 23 मिनट से, सुबह 08ः18 मिनट तक।

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