नवरात्रि

क्या है नवरात्रिः-

नवरात्रि हिन्दूओ द्वारा मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्यौहार है, नवरात्रि का अर्थ है नौ राते इसी नौ राते और दस दिनों के दौरान माता दुर्गा के नौ रुपो की पूजा-अर्चना की जाती है और नवरात्रि के बाद का दसवा दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है, नवरात्रि प्रत्येक वर्ष चार बार आता है माघ, चैत्र, आषाढ़ और अश्विन मे प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मनाया जाता है, नवरात्रि के दौरान माँ लक्ष्मी, सरस्वती और महाकाली के नौ स्वरुपो की पूजा की जाती है।

नौ देवियां

शैलपुत्री

ब्रह्मचारिणी

चंद्रघंटा

कूष्माण्डा

स्कन्दमाता

कात्यायनी

कालरात्रि

महागौरी

सिद्धिदात्री

क्यों मनाया जाता है शारदीय नवरात्रिः-

पौराणिक कथनों के अनुसार बताया जाता है कि जब पृथ्वी पर राक्षस महिषासुर का आतंक बढ़ गया और देवता भी उसे हराने मे असमर्थ होने लगे क्योंकि उसको यह आशीर्वाद मिला था कि कोई देवता/दानव उस पर विजय प्राप्त नही कर सकते तब देवताओ ने माता पार्वती का स्मरण करके उनसे प्रार्थना किया तत्पश्चात माँ पार्वती ने अपने अंश से अपने नौ रुप प्रकट किए और देवताओं ने उन नौ रुपों को अपने शस्त्र प्रदान करके उन्हें शक्ति सम्पन्न किया, ये क्रम 09 दिनों तक चला तभी से इन नौ दिनों को नवरात्रि के रुप में मनाया जाने लगा चूँकि शरद ऋतु का प्रारम्भ अश्विन-मास मे ही होता है इसलिए इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है, शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन को विजयदशमी के रुप में मनाया जाता है।

नवरात्रि से जुड़ी कथाः-

लंका युद्ध के दौरान ब्रह्मा जी ने श्रीराम जी को चण्डी देवी का पूजन करके उनको प्रसन्न करने को कहा, उनके कहने के अनुसार राम जी ने चण्डी पूजन हवन और 108 नीलकमल की व्यवस्था की रावण भी अमरता और युद्ध में विजयी होने के लिए चण्डी-पाठ का प्रारम्भ किया और ये बात देवताओं के राजा इन्द्र ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम तक पहुचाया और सलाह दिया कि चण्डी पाठ को पूर्ण किया जाए और इधर रावण की मायावी शक्ति से एक नीलकमल गायब हो गया और राम जी का संकल्प एवं विश्वास कमजोर होने लगा राम जी को इस बात का डर था कि कही देवी माँ इस बात से रुष्ठ ना हो जाए और तत्काल नीलकमल की व्यवस्था असम्भव था उसी समय भगवान राम को स्मरण हुआ है कि लोग उन्हें कमलनयन नवकंच लोचन कहते है तो संकल्प के लिए उनको नीलकमल के बदले अपना नेत्र अर्पित कर देना चाहिए, भगवान श्रीराम जब एक बाण लेकर अपने नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए तभी देवी प्रकट हुई और प्रसन्न होकर राम जी को विजय श्री का आशीर्वाद दिया दूसरी तरफ रावण के चण्डी पाठ में हनुमान जी ब्राह्मण बालक के रुप मे प्रवेश कर गए और वहाँ पर उपस्थित ब्राह्मणों की सेवा-सत्कार किये। निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमान जी से वरदान माँगने को कहा, इस पर हनुमान जी ने कहा प्रभु आप प्रसन्न है तो इस यज्ञ के मंत्र का एक अक्षर मेरे आग्रह पर बदल दीजिए, ब्राह्मण इस रहस्य को समझे बिना तथास्तु बोल दिये हनुमान जी ने मंत्र मे जयादेवी मूर्तिहरिणी मे (ह) के स्थान पर (क) का उच्चारण करवाया । मूर्तिहरिणी का अर्थ होता है प्राणियों की पीड़िा हरने वाली को पीड़ित करने वाली जिससे देवी रुष्ट हो गई और रावण का सर्वनाश करवा दिया।

अन्य कथाः-

इस पर्व से जुड़ी एक और कथा भी प्रचलित है कि जब महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अमर होने का वरदान दे दिया बाद मे देवताओं को चिंता हुई कि वह अपने गलती का दुरुपयोग करेगा और ऐसा ही हुआ है, महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और ऐसा देखकर देवता आश्चर्यचकित हो गए, महिषासुर सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिया और स्वर्ग लोक का मालिक बन बैठा, देवताओं का महिषासुर के अत्याचार से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा था, तब महिषासुर के इस अत्याचार से क्रोधित होकर देवताओ ने माँ दुर्गा की रचना की और माँ दुर्गा की रचना मे सभी देवताओं को सामान बल लगा था महिषासुर के वध के लिए सभी देवताओं ने अपने अस्त्र को माँ दुर्गा को प्रदान किये नौ दिन तक देवी और महिषासुर का युद्ध हुआ और अन्त में महिषासुर का वध करके माँ दुर्गा महिषासुर मर्दिनी कहलायी।

नवरात्रि कलश स्थापनाः-

नवरात्रि मे कलश स्थापना देव देवताओ के आह्मन से पूर्व की जाती है, कलश स्थापना के पहले आपको कलश को तैयार करना होता है जिसकी सम्पूर्ण विधि निम्नलिखित है:-

विधिः-

सर्वप्रथम मिट्टी के बड़े पात्र मे थोड़ी सी मिट्टी और ज्वार डालें।

अब उस पात्र मे दोबारा थोड़ा सा मिट्टी और बीज डाले, तत्पश्चात सारी मिट्टी पात्र मे डाल दें और फिर बीज डालकर थोड़ा सा जल डाल दें।

बीजो को पात्र में इस तरह से लगाएं कि उगने पर यह ऊपर की तरफ उगे अर्थात् बीजों को खड़ी अवस्था मे लगाए और उपर वाली परत मे बीज अवश्य डालें।

अब कलश और उस पात्र की गर्दन पर मौली (रक्षासुत्र) बांध दे और साथ ही तिलक भी लगाएं।

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तत्पश्चात कलश मे गंगाजल भर दें और इस जल में सुपारी, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत और सिक्का भी डालें।

इसके बाद एक नारियल ले उसे लाल कपड़े या लाल चुनरी मे लपेट लें और साथ मे चुनरी के साथ कुछ पैसे भी रखें।

तत्पश्चात् नारियल एवं चुनरी को रक्षासूत्र से बांध दे।

इन वस्तुओ को तैयार करने के बाद सबसे पहले पूजा-स्थल को अच्छे से साफ कर ले वहाँ पर मिट्टी का जौ वाला पात्र रखे उसके ऊपर मिट्टी का कलश रखें और फिर कलश के ढक्कन के उपर नारियल रख दें।

इस प्रकार आपकी कलश स्थापना सम्पूर्ण हो जायेगी इसके बाद सभी देवी-देवताओ का आह्ान करकें विधिवत नवरात्रि पूजन करें, कलश को नौ दिन तक मन्दिर में ही रखे और आवश्यकतानुसार उसमे पानी डालते रहें।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्तः-

26 सितम्बर 2022 को प्रातः 06 बजकर 20 मिनट से 10 बजकर 19 मिनट तक या दोपहर 11ः00 बजे से रात्रि 09ः00 बजे तक

नव दुर्गा इतिहासः-

सनातन धर्म में माता दुर्गा अथवा माता पार्वती के नौ रुपों को ही नव दुर्गा कहा जाता है, सभी देवियों को अलग-अलग वाहन है, अलग-अलग अस्त्र शस्त्र है फिर भी यह सब एक हैै।

शैलपुत्रीः-

दुर्गा जी के प्रथम स्वरुप को श्शैलपुत्रीश् के नाम से जाना जाता है इनका जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ था इसलिए इनका नाम श्शैलपुत्रीश् पड़ा, नवरात्रि के दौरान प्रथम दिन इनकी ही पूजा-अर्चना की जाती है, इनका वाहन  वृषभ है जिसके कारण इन्हें वृषारुढ़ा के नाम से भी जाना जाता है, शैलपुत्री जी के दाहिने हाथ मे त्रिशुल और बाएँ हाथ में कमल सुशोभित रहता है, शैलपुत्री माता को ही सती के नाम से भी जाना जाता है।

माँ शैलपुत्री पूजा विधिः-

सर्वप्रथम स्नान आदि करें।

तत्पश्चात् माता के सामने धूपबत्ती दीपक आदि जलाए, माता के मंत्र का आचरण करें।

माँ शैलपुत्री की पूजा सफेद फूलों से करे एवं उनके समक्ष सफेद वस्त्र भी अर्पित करें।

माँ शैलपुत्री को भोग लगाने के लिए सफेद मिष्ठान का उपयोग करें।

मंत्रः-

वन्दे वस्तिहातलाभाय चन्द्राधकृतशेखरम्।

वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीमृ।।

ब्रह्मचारिणीः-

नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है, ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ  होता है आचरण करने वाली इस प्रकार ब्रह्माचारिणी का अर्थ होता है तप का आचरण करने वाली। माँ ब्रह्मचारिणी ने भगवान शंकर को पति रुप मे प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या किया था और इसी तपस्या के कारण इस देवी का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा, माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना करने से सभी मनोरथे प्राप्त होती है।

माँ ब्रह्मचारिणी पूजा-विधिः-

सर्वप्रथम स्नान आदि करने के बाद माता को पंचामृत से स्नान कराएं।

तत्पश्चात् माता को रोली, अक्षत, चंदन आदि अर्पित करें।

माँ की पूजा धूपबत्ती और गुड़हल या कमल के फूल से करें।

माँ ब्रह्मचारिणी को दूध से बनी वस्तुओं का ही भोग लगाएं।

मंत्रः-

या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रुपेण संस्थिता।

 नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।

चन्द्रघण्टाः-

माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघण्टा है, नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन माँ चंद्रघण्टा का ही पूजा-आराधना होता है, माँ चन्द्रघण्टा के कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते है, दिव्य सुगन्धियों का अनुभव होता है और कई प्रकार की ध्वनियाँ सुनाई देने लगती है इस देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चन्द्र है इसलिए इस देवी को चन्द्रघण्टा कहा गया है, इनके शरीर का रंग सोने के भाँति चमकीला होता है, इस देवी के दस हाथ है, जो खडग और अन्य अस्त-शस्त्र से विभूषित है और इस देवी की सवारी सिंह है।

माँ चन्द्रघण्टा पूजा विधिः-

सर्वप्रथम स्नान आदि करने के बाद माँ को पंचामृत यानी दूध, दही, घी और शहद से स्नान कराने के बाद उनका श्रृंगार करे।

तत्पश्चात् माता को वस्त्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, नारियल, गुड़हल का फूल, फल एवं मिठाई गुड़ अर्पित करेे।

अंत मे माँ चन्द्रघण्टा के मंत्रो का जाप करें।

मंत्रः-

पिण्डजप्रवरारुढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं नुते महमं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।

कुष्माण्डाः-

नवरात्र पूजन के चैथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरुप की उपासना की जाती है इनकी मन्द, हल्की हँसी के द्वारा और ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को ष्कुष्माण्डाष् नाम से अभिहित किया गया जब सृष्टि नही थी तब इस देवी नें अपने ईषत हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी इसलिए इन्हे सृष्टि की आदिस्वरुपा या आदिशक्ति कहा गया है इस देवी की आठ भुजाएं है इनके भुजाओ मे क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा और माला है इस देवी का वाहन सिंह है और इनको कुम्हड़े की बलि अतिप्रिय होती है, संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्माण्ड कहते है इसलिए भी इसे देवी को कुष्माण्डा नाम पड़ा।

माँ कुष्माण्डा पूजा विधिः-

सर्वप्रथम स्नान आदि करने के बाद कलश की पूजा करे फिर माता कुष्माण्डा को नमन करें।

इस दिन पूजा मे बैठने के लिए हरे रंग के आसन का प्रयोग करें।

माँ कुष्माण्डा को जल एवं पुष्प अर्पित करें।

देवी को पूरे मन से फूल, गंध, भोग चढ़ाएं।

कुष्माण्डा देवी को सफेद कुम्हड़े अर्थात साबुत पेठें के फल की बलि दें, इसके बाद माता को दही या हलवे का भोग लगाएं।

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मंत्रः-

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुमेव च।

दधाना हस्तपघाभ्यां कुष्माण्डा शुभदाअस्तु मे।।

स्कन्दमाताः-

नवरात्रि के पाँचवे दिन स्कन्दमाता की उपासना की जाती है इस माता की चार भुजाएँ होती है, इनके दायी तरफ की ऊपर वाली भुजा मे स्कन्द है और नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है, माता के बाएं तरफ की ऊपर वाले भुजा में वरमुद्रा तथा नीचें वाले भुजा में कमल पुष्प है, स्कन्द कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कन्द माता नाम से अभिहित किया गया।

स्कन्दमाता पूजा विधिः- 

सर्वप्रथम स्नान आदि करने के बाद पूजा-स्थल पर स्कन्दमाता की प्रतिमा स्थापित करें।

इसके बाद गंगाजल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।

पूजा-स्थल पर श्री गणेश, वरुण, नवग्रह, 16 देवी, सप्त घृत मातृका की स्थापना करें।

तत्पश्चात् वैदिक एवं सप्तशती मंत्रो द्वारा स्कन्दमाता, सहित समस्त स्थापित देवताओ की पूजा करें।

माता को वस्त्र, चन्दन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दूर्वा, बेलपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, धूप-दीप, फल, मंत्र पुष्पांजली आदि अर्पित करें।

अन्त मे माँ को पाँच प्रकार के फूल और मिठाई का भोग लगायें और उसको वितरित कर दें।

मंत्रः-

या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रुपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

कात्यायानीः-

माँ दुर्गा के छठवे स्वरुप का नाम कात्यायनी है और नवरात्रि के छठें दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है, कात्य गोत्र मे विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने माँ पराम्बा की उपासना की और उनकी कठिन तपस्या की तथा उनकी यह भी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो इस प्रकार माँ भगवती ने उनके घर पुत्री के रुप में जन्म लिया और देवी कात्यायनी कहलाई माँ कात्यायनी का स्वरुप स्वर्ण के समान चमकीला है इनकी चार भुजाएं है दायें तरफ के ऊपर वाले हाथ मे अभयमुद्रा तथा नीचें वाले हाथ में वर मुद्रा है और दूसरी तरफ इनके (स्कन्दमाता) बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार तथा नीचें वाले हाथ मे कमल का फूल सुशोभित होता है माँ कात्यायनी का सवारी श्सिंहश् होता है।

माँ कात्यायनी पूजा विधिः-

प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

माता के प्रतिमा को शुद्ध जल या गंगाजल से स्नान कराएं।

माँ कात्यायनी को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें।

माँ को स्नान कराने के बाद पुष्प अर्पित करें।

तत्पश्चात् माँ को रोली एवं कुमकुम लगाएं।

अन्त में माँ कात्यायनी को शहद से बनी चीजों का भोग लगाए और प्रसाद को सभी में वितरित करें।

मंत्रः-

चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलवरवाहना

कात्यायनी शुभं ददृयादेवी दानव-घातिनी।।

कालरात्रिः-

माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति को कालरात्रि के नाम से जानी जाती है और नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है, मान्यता यह है कि माता की उपासना करने से ब्रहमाण्ड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते है और सभी असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागनें लगते है माँ कालरात्रि के शरीर का रंग अन्धकार की तरह एकदम काला हैे उनके सिर के बाल बिखरे हुए है और उनके गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है, माता के तीन नेत्र है और ये सभी ब्रहमाण्ड के समान गोल है, ये गर्दभ की सवारी करती है, ऊपर उठे हुए दाहीनें हाथ की वर मुद्रा  भक्तों को वर देती है, दाहिने हाथ के नीचे वालें हाथ अभय मुद्रा मे है अर्थात भक्त हमेशा  निडर निर्भय रहों, माता के बायें हाथ के तरफ ऊपर वाले हाथ में लोहे का काटा तथा नीचे वाले हाथ मे खड्ग है, इनका रुप भले ही भयानक है लेकिन यह सदैव शुभ फल देने वाली होती है और इनके स्मरण से दानव दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत भयभीत होकर दूर भाग जाते है।

माँ कालरात्रि पूजा विधिः-

प्रातः काल जल्दी स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।

माँ कालरात्रि के प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं।

माँ को लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें।

तत्पश्चात् माँ को पुष्प अर्पित करें।

माँ को रोली कुमकुम लगाएं।

माँ कालरात्रि को मिष्ठान, पंच मेवा एवं पाँच प्रकार के फल अर्पित करें।

मंत्रः-

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरणी।

वामपदोल्लसल्लोहलताकष्टकभूषणा।

वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी।।

महागौरीः-

माँ दुर्गा जी की आठवीं शक्ति को महागौरी के नाम से जाना जाता है नवरात्रि के आठवे दिन माँ महागौरी के व्रत का विधान है, माँ गौरी के रुप की उपमा शंख, चन्द्र और कुन्द के फूल से दी गई है महागौरी के वस्त्र और आभूषण सफेद है इसलिए इन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा गया इनकी भुजाएं चार है और वाहन वृषभ है इसलिए इनको वृषारुढ़ा का नाम भी दिया गया माँ गौरी के ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचें वाले हाथ में त्रिशुल सुशोभित है ऊपर वाले बाएँ हाथ में डमरु तथा नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है, महागौरी की पूरी मुद्रा बहुत शांत है।

महागौरी पूजा विधिः-

स्नान आदि करने के पश्चात माँ के प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराएं।

महागौरी की पूजा विशेष रुप से पुष्पों और मंत्रो द्वारा करें।

अष्टमी तिथि के दिन भक्त को पूड़ी, सूजी का हलवा और सूखे काले चने को प्रसाद के रुप में कंजक (कुवारी लड़की) को खिलायें।

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मंत्रः-

श्वेते वृषे समारुढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।

महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोद दा ।।

सिद्धिदात्रीः-

माँ दुर्गा की नौवी शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है, ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली है, नवरात्र के नौवे दिन इनकी उपासना की जाती है इस देवी के दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र तथा ऊपर वाले हाथ मे गदा होता है और बायी तरफ के नीचे वाले हाथ मे शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित रहता है मान्यता यह है कि भगवान शिव ने भी इसी देवी की कृपा से तमाम सिद्धियाँ प्राप्त की थी, इस देवी की कृपा से ही शिव जी का आधा शरीर देवी का हुआ था जिसके कारण भगवान भोलेनाथ अर्द्धनारी श्वर नाम से प्रसिद्ध हुए।

सिद्धिदात्री पूजा विधिः-

सर्वप्रथम स्नान आदि करने के बाद हाथ मे एक फूल लेकर माँ का ध्यान और प्रार्थना करें।

माँ को अलग-अलग प्रकार के फूल, अक्षत, कुमकुम और सिंदूर अर्पित करें।

माँ सिद्धिदात्री को कमल के पुष्प अवश्य चढ़ायें।

माँ सिद्धिदात्री को तिल या इससे बनी दियों का भोग लगाएं।

मंत्रः-

सिद्धगन्धर्व यक्षादृयैरसुरैरमरैरपि

सेब्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायनी।।

नवरात्रि दुर्गा पूजन हवन विधि, मंत्र, सामग्रीः-

नवरात्र की नवमी तिथि को माँ दुर्गा की पूजा के बाद हवन करने का विधान है, शास्त्रो मे बताया गया है कि हवन मे दिए गए हविष्य को जिस देवता के नाम से किया जाता है, अग्नि देव उन तक उनका अंश पहुंचा देते है, हवन मे संतुष्ट होकर माँ दुर्गा भक्तो के मनोकामना को पूर्ण करती है, हवन का धुआं जहाँ तक पहुँचता है वहाँ तक का क्षेत्र शुद्ध और पवित्र हो जाता है इसलिए प्राचीन काल मे ऋषि मुनि नियमित हवन किया करते थे।

दुर्गा पूजा हवन सामग्रीः-

नवरात्रि में माँ दुर्गा जी को प्रसन्न करने के लिए हवन किया जाता है हवन और हविष्य के लिए धूप, जौ, नारियल, गुग्गुल, मखाना, काजू, किसमिस, छुहाड़ा, मूंगफली, बेलपत्र, शहद, घी, सुगंध, अक्षत का प्रयोग किया जाता है सभी सामग्री को मिलाकर हविष्य बना लें, हविष्य उसे कहा जाता है जिन्हें हवन के दौरान अग्नि में डालते है हवन के अग्नि के प्रज्ज्वलित करने के लिए रुई, आम/चंदन की लकड़ी, कपूर और माचीस का आवश्यकता होता है।

माँ दुर्गा हवन विधि मंत्रः-

माँ दुर्गा के हवन के लिए ओम ऐं हीं क्लीं चामुण्डयै विच्चै नमःश् का 108 बार जाप करते हुए हविष्य को हवन कुण्ड मे आहुति दें और अंत मे शिव जी और ब्रह्मा जी के नाम से आहुति दें, हवन के बाद आरती करे, हवन पूर्ण होने के बाद कन्याओं को भोज खिलाएं।

विस्तार से दुर्गा पूजन हवन विधिः-

देवी भागवत पुराण मे बताया गया है कि दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र है, विस्तार से हवन करने के लिए कवच, कीलक, अर्गला का पाठ करते हुए दुर्गा सप्तशती के 13 अध्याय के सभी मंत्रो का उच्चारण करते हुए स्वाहा बोलकर हवन कुण्ड मे आहुति दें।

कन्या पूजनः-

कन्या पूजन हिन्दूओ का एक पवित्र अनुष्ठान है जिसे नवरात्रि पर्व के दौरान अष्टमी या नवमी तिथि के दिन किया जाता है कन्या पूजन में मुख्य रुप से नौ बाल कन्याओ की पूजा की जाती है जो देवी दुर्गा के नौ रुपों का प्रतिनिधित्व करती है माँ दुर्गा के सम्मान के रुप में भक्त द्वारा कन्या पूजन के दिन नौ बाल कन्याओं के पैर धोने की एक प्रथा है, कन्या पूजन मे कन्याओं के साथ एक बालक को भी पूजा में बैठना अनिवार्य माना गया है जिनको भैरव नाम से जाना जाता है पैर धुलाने के पश्चात सभी कन्याओं एवं बालक को खीर-पूड़ी, हलवा, चना, फल इत्यादि खिलाए और उनके माथे पर अक्षत, फूल, कुमकुम का तिलक लगाएं अन्त मे सभी कन्याओं एवं बालक को अपने सामथ्र्य अनुसार उपहार दें और उनके चरण छुकर आशीर्वाद ले इसके बाद उन्हें खुशी-खुशी विदा करें ऐसा मान्यता है कि विधि-विधान से कन्या पूजन करने से नवरात्र के व्रत का पूर्ण फल मिलता है और मातारानी प्रसन्न होकर सभी की मनोकामना पूर्ण करती है।

नवरात्रि का महत्वः-

कहा जाता है कि शारदीय नवरात्रि धर्म की अधर्म पर सत्य की असत्य पर जीत का प्रतीक है, धार्मिक एवं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि के दौरान माँ दुर्गा धरती पर आती है और धरती को माँ दुर्गा का मायका कहा जाता है और माँ दुर्गा के आने के खुशी मे इन दिनों को दुर्गा उत्सव के तौर पर देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है।

शारदीय नवरात्रि शुभ तिथि एवं मुहूर्तः-

शारदीय नवरात्रि प्रारम्भः- 26 सितम्बर 2022 से 05 अक्टूबर 2022 तक

घटस्थापन मुहूर्तः- 26 सितम्बर, प्रातः 06 बजकर 20 मिनट से 10 बजकर 19 मिनट तक

शुक्ल पक्ष प्रतिपदा प्रारम्भः- 26 सितम्बर प्रातः 03 बजकर 24 मिनट से 27 सितम्बर सुबह 03 बजकर 08 मिनट तक

अभिजीत मुहूर्तः- 26 सितम्बर सुबह 11 बजकर 54 मिनट से दोपहर 12 बजकर 42 मिनट तक

 

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