एक माह में कुल 30 दिन होते है। उन तीस दिना को 15 दिनों के अंतराल में विभाजित कर के आधा महीना या दो सप्ताह के समय को एक पख (पक्ष) कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र तथा पंचांग या काल गणना सूरज और चन्द्रमा की गति के अनुसार की जाती है। चन्द्रमा द्वारा कलाचक्र मे एक दूसरी स्थिति (अमावस्या से पूर्णिमा अथवा पूर्णिमा से आमवस्या) तक जाने के लिए जाने वाला समय होता है इसी को पक्ष में बांधा गया है। जो कृष्ण पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष के नाम से जाना जाता है। इन पक्षों में प्रायः 15 दिन होते है परन्तु किसी पक्ष मेें कोई तिथि क्षय कम हो जाने के कारण उस स्थिति में 14 दिनो का अथवा वृद्धि होने के कारण 16 दिन का भी हो जाता है किन्तु पक्ष में तिथि कम या अधिक न हो तो एक पक्ष में 15 दिन ही होंगे।
तेरह दिन का पक्षः-
कभी-कभी चन्द्रमा और सूर्य की स्पष्ट गणित प्रक्रिया के कारण किसी पक्ष में दो बार तिथि का क्षय कम हो जाने के कारण 13 दिनों का पक्ष भी आ जाता है। महाभारत के युद्ध के समय भी तेरह दिन का पक्ष पड़ा था। सनातन धर्म के ग्रंथों मे 13 दिवसीय पक्ष को विश्वहास्त्र पक्ष का नाम देकर इसे विश्व शांति को भंग करने वाला माना गया है।
ऐसा माना जाता है इस पक्ष का असर तेरह पक्ष और तेरह मास के अन्दर अपना प्रभाव जरुर देता है इसे धर्म ग्रंथों मे कालयोग का नाम दिया गया है। कालचक्र के कारण जब तेरह दिन का पक्ष आता है तब विश्व में संहार की स्थिति उत्पन्न होती है तेरह दिवसीय विश्वहास्त पक्ष आसाध्य रोगों का उत्पादन, उपद्रव, पैदा करने वाला प्राकृतिक प्रकोप दुर्घटनावस जन-धन की भीषण हानि करने वाला होता है।
कृष्ण पक्ष तिथि क्या होती हैः-
कृष्ण पक्ष पूर्णिमा (पूनम) से शुरु होता है और अमावस्या तक रहता है। यह एक ऐसा समय होता है जब चन्द्रमा अपना रुप ढ़लने लगता है। इसके अलावा इसे भगवान कृष्ण के कारण कृष्ण पक्ष के रुप में जाना जाता है। कृष्ण जी के त्वचा का रोग श्याम था इसलिए चन्द्रमा के फीेके रुप को कृष्ण पक्ष कहा जाता है। घटते चन्द्रमा के अन्तर्गत आने वाली तिथियां और समय कृष्ण पक्ष तिथि के रुप में जाने जाते है। एक विभिन्न धार्मिक कार्यों के लिए हिन्दू पंचांग से ही तिथि अंकित होता है।
शुक्ल पक्ष तिथिः-
शुक्ल पक्ष अमावस्या से पूर्णिम के बीच की अवधि संक्षेप में शुक्ल पक्ष उज्जवल या शुक्ल पक्ष का समय होता है जैसे ही पूर्णिमा के दिन शुक्ल पक्ष समाप्त होता है। संस्कृत भाषा में शुक्ल का अर्थ उज्जवल होता है और ये दिन शुक्ल पक्ष को होता है। अमावस्या और पूर्णिमा के बीच का अन्तराल शुक्ल पक्ष कहलाता है। अमावस्या के बाद के 15 दिनों को शुक्ल पक्ष कहा जाता है। अमावस्या के अगले ही दिन से चन्द्रमा उदय होने लगता है और अंधेरी रात चन्द्रमा के प्रकाश से चमकने लगती है। पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा बहुत बड़ा और प्रकाश से भरा होता है इस समय के दौरान चन्द्रमा अपने पूर्ण आकार में रहते है इसलिए यह पहलू किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए शुक्ल पक्ष उपयुक्त माना जाता है। शुक्ल पक्ष तिथियों की गणना 15 दिन अमावस्या, प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी।
छोनों पक्षा के बीच का अन्तरः- शुक्ल पक्ष से आशय होता है उज्जवल अर्थात रोशनी व्यक्त करता है। जबकि कृष्ण का होता है अंधेरा शुक्ल पक्ष अमावस्या से पूर्णिमा तक होता है। कृष्ण पक्ष पूर्णिमा से अमावस्या तक होता है।
कौन सा पक्ष होता है शुभः-
धार्मिक मान्यता के अनुसार लोग शुक्ल पक्ष को आशा जनक और कृष्ण पक्ष को प्रतिकूल मानते है। यह विचार चन्द्रमा की जीवन शक्ति और रोशनी के सम्बन्ध में है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष की दशमी से लेकर कृष्ण पक्ष की पंचम तिथि तक की अवधि शुभ मानी जाती है। इस समय के दौरान चन्द्रमा की ऊर्जा अधिकतम या लगभग अधिकतम होती है।