पद्मिनी एकादशी 2023

एकादशी पर भगवान श्री विष्णु का पूजन का विधान होता है लेकिन पूजा तभी पूर्ण मानी जाती है। जब पद्मिनी एकादशी की  कथा भी सुना जाएं अधिकमास को पुरुषोत्तम मास कहा जाता है क्योंकि ये भगवान विष्णु को समर्पित होता है। यह एकादशी पुण्यफल देने वाली होती है। भक्त भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाने के लिए निर्जला व्रत रखते है और कुछ भक्त फलाहार करते हुए उपवास करते है। पद्मिनी एकादशी सभी व्रतों में श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है। घर के चारो तरफ साफ-सफाई कर के विधि-विधान से सर्व प्रथम भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात माता लक्ष्मी और भगवान श्री नारायण की विधिवत रुप से पूजन करें। पद्मिनी एकादशी का उपवास रखनेे के साथ-साथ कथा पढ़नी चाहिए या सुननी चाहिए।

पद्मिनी एकादशी कथा

त्रेतायुग में हैहृय वंशक महिष्मती पूरी के राजा कृतवीर्य थे और उनकी एक हजार पत्नियां थी लेकिन इसके बाद भी उनकी कोई संतान नही थी राजा को इस बात की चिंता थी की उनके बाद महिष्मती पूरी का शासन कौन संभालेगा हर प्रकार की उपायों के बाद भी संतान सुख से वंचित थे तब राजा कृतवीर्य ने तपस्या करने की ठान ली और उनके साथ तप पर उनकी पत्नी पद्मिनी भी साथ चलने को तैयार हो गई तब राजा ने अपना पद् भार मंत्री को सौप दिया और योगी का वेश धारण कर पत्नी पद्मिनी के साथ गंधमान पर्वत पर तप करने निकल पड़े। तप करते हुए महारानी पद्मिनी और राजा कृतवीर्य को 10 साल बीत गये लेकिन फिर भी उन्हें संतान की प्राप्ति नही हुई इसी बीच अनुसूईया ने महारानी पद्मिनी को पुरुषोत्तम मास में पड़ने वाली एकादशी के बारे में बताया । उसने कहा की अधिकमास अथवा पुरुषोत्तम मास 32 मास के बाद आता है और सभी मासों में महत्वपूर्ण माना जाता है। उसमें शुक्ल पक्ष की एकादशी के व्रत को रखने से तुम्हारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएगी तथा भगवान विष्णु तुम्हें संतान सुख देंगे। इसके बाद पद्मिनी ने पुरुषोत्तम मास की एकादशी का व्रत विधि विधान से किया और जो फल उन्हें हजारो साल के तप से नही मिला वह एकादशी व्रत को करने से मिल गया। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर संतान की प्राप्ति का आशीर्वाद प्रदान किया। उस आशीर्वाद के कारण पद्मिनी के घर एक बालक का जन्म हुआ। जिसका नाम कातीवीर्य रखा गया और इस एकादशी का नाम पद्मिनी एकादशी पड़ गया। माना जाता है कि कातीवीर्य के जितना बलशाली और ताकतवर पूरे संसार में कोई न था।

पद्मिनी एकादशी महत्व

पद्मिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है तथा भगवान विष्णु के साथ भगवान सूर्य देव का भी विशेष पूजन अर्चन किया जाता है। अधिकमास में इस एकादशी व्रत का महत्व स्वयं भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। भगवान विष्णु और सूर्य देव की पूजा एक साथ करने से कई परेशानियों का अंत होता है। इस दिन सच्चे मन से तथा स्वच्छ हृदय से भगवान का ध्यान करें एवं व्रत का संकल्प लें। पद्मिनी एकादशी को कमला एकादशी भी कहा जाता है तथा इस एकादशी को सभी व्रतों में श्रेष्ठ मानी जाती है।

पद्मिनी एकादशी पूजा विधि

☸ प्रातः स्नान करकें भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजा करें।
☸ निर्जल व्रत रखकर पुराण श्रवण का पाठ कीजिए।
☸ रात में भजन कीर्तन तथा जागरण कीजिए।
☸ रात्रि में प्रति पहर भगवान शिव और भगवान विष्णु की आराधना करें।
☸ प्रत्येक पहर में भगवान को अलग-अलग भेंट प्रस्तुत करें जैसे प्रथम पहर में नारियल दूसरे पहर में बेल तीसरे पहर में सीताफल चौथे पहर में नारंगी और सुपारी आदि से पूजन कीजिए।
☸ द्वादशी के दिन सुबह भगवान की आराधना कीजिए फिर ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा सहित विदा करें। इसके पश्चात स्वयं भोजन करें।

पद्मिनी एकादशी शुभ मुहूर्त

29 जुलाई दिन शनिवार
पारण मुहूर्तः- 05ः58 से 08ः30 तक 30 जुलाई
अवधिः- 2 घंटे 42 मिनट

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