पहली बार वट सावित्री का व्रत रखने वाली महिलाओं को अवश्य करने चाहिए ये काम:- शनि जंयती पर मनाई जायेगी वट सावित्री | Vat Savitri Vrat Benefit |

वट सावित्री का पवित्र व्रत ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। इस बार वट सावित्री का व्रत शनि जयंती के दिन मनाई जायेगी जिससे इसकी महत्ता अत्यधिक बढ़ जाती है। यह व्रत महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए रखती है, इस व्रत को करवा चौथ के समान माना जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती है। वट सावित्री का व्रत रखने वाली महिलाओं को सौभाग्यवती का वरदान प्राप्त होता है। यह व्रत केवल पति के लिए नही बल्कि घर की सुख-समृद्धि के लिए भी रखते है।

यह व्रत अत्यन्त ही शुभ सर्वार्थ योग में मनाया जायेगा। वट सावित्री के दिन ही सोमवती अमावस्या एवं शनि जयंती मनाई जायेगी।

वट सावित्री व्रत की पूजन सामग्री

पहली बार वट सावित्री का व्रत रखने वाली महिलाओं को अवश्य करने चाहिए ये काम:- शनि जंयती पर मनाई जायेगी वट सावित्री | Vat Savitri Vrat Benefit | 1

जो भी महिलाएं वट सावित्री की पूजा रखती है उन्हें अपने पूजा के समान को दो टोकरियों में अवश्य रखना चाहिए। इस पूजा में सावित्री और सत्यवान की मूर्ति, बरगद का फल, दीपक, फल, फूल, कलावा, मिठाई, रोली, सवा मीटर का लाल कपड़ा, बांस का पंखा, कच्चा सूत, इत्र, पान, सुपारी, नारियल, सिंदूर, अक्षत, सुहाग का सामान, भीगा चना, कलश, मूंगफली के दाने, मखाने का लावा जैसी वस्तुओं को अवश्य शामिल करें।

वट सावित्री कथा

प्राचीनकाल में एक राजा थें। जिनका नाम अश्वपति था वह भद्र देश में राज्य करते थे। उनकी कोई संतान नही थी। संतान प्राप्ति के लिए राजा अश्वपति जी ने वर्षों तक मंत्रो के उच्चारण के साथ एक लाख आहुतियाँ दी उनसे प्रसन्न होकर सावित्री देवी प्रकट हुई तथा उन्हें एक तेजस्वी कन्या प्राप्ति के लिए वरदान दिया। राजा के वहाँ एक कन्या का जन्म हुआ सावित्री देवी की कृपा से जन्म होेने के कारण उस कन्या का नाम सावित्री रखा गया। सावित्री रुपवती थी, योग्य वर ना मिलने के कारण सावित्री के पिता दुःखी होकर कन्या को स्वयं वर तलाशने के लिए भेज दिये, भटकते-भटकते सावित्री वन में पहुंच गई वहाँ उसने सत्यवान को देखा जो साल्व देश के राजा धूमत्सेन के पुत्र थे उनका राज्य किसी ने छीन लिया था।

इसलिए वो जंगल में निवास कर रहे थे। सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति रुप में उनका वरण कर लिया था। इस बात की पता जब नारद मुनि का चला तो वह शीघ्र अश्वपति के पास पहुंच गए और उन्हें बताया कि सत्यवान गुणवान, धर्मवान, बलवान तो है परन्तु उसकी आयु बहुत कम है, एक वर्ष पश्चात उसकी मृत्यु हो जाएगी। नारदमुनि की बात सुनने के बाद राजा अश्वपति ने अपनी पुत्री सावित्री से कहा कि तुमने जिसे अपने वर के रुप मे चुना है। वह अल्पायु है इसलिए तुम्हें अपने जीवनसाथी के रुप में किसी और को वरण करना चाहिए, राजा की बात सुनने के बाद सावित्री ने कहा कि आर्य कन्या अपना वरण एक बार करती है। राजा आज्ञा भी एक ही बार देता है तथा पण्डित जी प्रतिज्ञा भी एक ही बार करते है और उसका कन्यादान भी एक ही बार होता है।

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इसलिए मै केवल सत्यवान से ही विवाह करुंगी, सावित्री के हठ को देखकर राजा अश्वपति ने उनका विवाह सत्यवान के साथ कर दिया। विवाह के पश्चात सावित्री अपने ससुराल में गई वहाँ पर उन्होंने अपने सास-ससुर का खूब सेवा किया। नारद मुनि सत्यवान के मृत्यु के बारे में सावित्री को पहले से ही बता दिया। जैसे-जैसे दिन नजदीक आने लगा सावित्री को चिंता सताने लगी। उन्होंने तीन दिन पूर्व ही उपवान रखना आरम्भ कर दिया। नारद मुनि द्वारा बताए अनुसार पितरों का पूजन भी किया प्रतिदिन की भाँति सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जंगल गए उनके साथ सावित्री भी गई जैसे ही सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जंगल गए उनके साथ सावित्री भी गई, जैसे ही सत्यवान लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़े उनके साथ सावित्री भी गई जैसे ही सत्यवान लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़े उनके सिर मे दर्द उत्पन्न हो गया और वो नीचे उतर गए, नारद मुनि द्वारा बताया गया कथन सावित्री को स्मरण हो गया।

वह सत्यवान का सिर अपने गोद में रखकर सहलाने लगी तभी वहाँ मृत्यु के देवता यमराज पधारे और वह सत्यवान को अपने साथ यमलोकर ले जाने लगे। देवी सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी, यमराज ने सावित्री को बहुत समझाया परन्तु वों अपने हठ पर अड़ी रही, सावित्री की निष्ठा और पति के प्रति प्रेम को देखकर यमराज ने कहा कि हे देवी आप धन्य हो पति के प्राण को छोड़कर आप मुझसे कोई दूसरा वरदान मांग लीजिए, यमराज की बात सुनने के पश्चात सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे है। आप उन्हें दिव्य-ज्योति प्रदान करें यमराज ने उनसे कहा ऐसा ही होगा अब आप लौट जाइए लेकिन सावित्री फिर भी अपने पति सत्यवान के पीेछे-पीछे चलती रही। सावित्री को पीछे आता देखकर यमराज ने उनसे कहा कि यही सबकी रीति है। इसलिए आप वापस लौट जाइए, सावित्री ने यमराज से कहा कि पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है और इसमें मुझे कोई समस्या नही हैं, ये बाते सुनने के बाद यमराज ने उनसे फिर एक वरदान मांगने के लिए कहा दूसरे वरदान में सावित्री ने यमराज से कहा कि मेरे ससुर का राज्य उनसे छीन गया।

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उसे उन्हें फिर से वापिस दिला दें। यमराज ने सावित्री को यह भी वरदान दिया और उनसे लौट जाने को कहा परन्तु सावित्री फिर भी पीछे-पीछे चलती रही, ये देखकर यमराज ने सावित्री से तीसरा वरदान मांगने को कहा तब सावित्री ने संतान और सौभाग्य का वरदान मांग लिया। यमराज ने सावित्री को यह भी वरदान दे दिया।

वरदान देने के बाद यमराज आगे बढ़ने लगे लेकिन उन्हें आभास हुआ कि सावित्री अभी भी वापस नही लौटी है तो उन्होंने पीछे मुड़कर सावित्री से कहा कि मैने तुम्हें सभी वरदान दें दिये लेकिन फिर भी तुम मेरे पीछे-पीछे आ रही हो। यमराज की बात सुनकर सावित्री ने कहा कि आप मुझे संतान और सौभाग्य प्राप्ति की वरदान तो दे चुके है परन्तु मेरे पति को अपने साथ लिए जा रहे है। ये कैसे सम्भव है, यह सुनकर यमराज देव को सत्यवान के प्राण छोड़ने पर उसके बाद सावित्री उस पेड़ के पास पहुँची जहाँ उनके पति सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था। सत्यवान जीवित हो गए, उनके माता-पिता को दृष्टि की प्राप्ति हो गई तथा उन्हें अपना छीना हुआ राज्य भी वापिस मिल गया। इसी प्रकार ज्येष्ठा अमावस्या का व्रत करने से भक्तों के सभी मनोरथें पूर्ण होती है।

वट सावित्री व्रत की पूजा विधि

☸ वट सावित्री पूजा का प्रारम्भ करने से एक दिन पहले ही घर की अच्छे से साफ-सफाई कर लेनी चाहिए।
☸ वट सावित्री के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठे तथा नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें।
☸ उसके पश्चात पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करें।
☸ बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा जी की मूर्ति की स्थापना करें।
☸ अब ब्रह्मा जी के बायें भाग में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
☸ एक अन्य टोकरी में सत्यवान एवं सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें और दोनों टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रख दें।
☸ उसके पश्चात ब्रह्मा जी एवं सावित्री का पूजन करें।
☸ सावित्री के साथ सत्यवान की पूजा करते हुए वट की वृक्ष में जल दें।
☸ पूजा में पूजन सामग्री को अर्पित करें।
☸ जल अर्पित करने के बाद तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें।
☸ बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा पढ़ें अथवा सुनें।
☸ भीगे हुए चनों का बायना बनाकर, नकद रुपये रखकर अपनी सास का पैर छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
☸ यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुचाएं।
☸ पूजा समाप्ति के बाद ब्राह्मणों को वस्त्र एवं फल दान करें ये वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करना चाहिए।

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वट सावित्री व्रत का महत्व

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यह व्रत मुख्य रुप से पतियों की लम्बी आयु के लिए रखा जाता है कई धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को रखने से पति के सभी दुख दूर हो जाते है। जिस प्रकार सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राणों की रक्षा की उसी प्रकार महिलाएं इस व्रत को रखकर अपने पति को हर दुःख एवं मुसीबत से बचाती है।

वट सावित्री पूजा की शुभ तिथि एवं मुहूर्त

इस वर्ष 2023 में वट सावित्री की पूजा 19 मई दिन शुक्रवार को मनाई जायेगी तथा ज्येष्ठ पूर्णिमा 03 जून दिन शनिवार को है परन्तु पंचाग के अनुसार वट सावित्री का व्रत 19 मई को रखा जायेगा। ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि का प्रारम्भ 18 मई को रात 09 बजकर 42 मिनट से होगा एवं अगले दिन अर्थात 19 मई की रात 09 बजकर 22 मिनट तक अमावस्या तिथि समाप्त होगी।