बृहस्पति की महादशा का फल

यदि कुण्डली में बृहस्पति कारक हो, उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि, स्वराशि या मित्र राशि में स्थित हो शुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हो तथा केन्द्र अथवा त्रिकोण में स्थित हो तो अपनी दशा मे जातक को बहुत ही शुभ फल की प्राप्ति हो जाती है और यदि बृहस्पति नीच राशि का होकर उच्च नवांश में हो तो जातक राज्यकृपा प्राप्त करता है। साथ ही पदोन्नति भी होती है। बृहस्पति की शुभ दशा में जातक के घर मे अनेक मंगल कार्य होते है। देह में निरोगता व मन में प्रसन्नता बनी रहती है। बृहस्पति की महादशा सोलह वर्ष की होती है और वैदिक ज्योतिष में गुरु बृहस्पति का काफी महत्व है इन ग्रहों को ज्योतिष में ज्ञान व सम्बन्ध का कारक माना जाता है। बृहस्पति की ही कृपा से जातक शिक्षा को प्राप्त करता है। साथ ही उसका वैवाहिक जीवन सुखमय होता है। ऐसे में कुण्डली में गुरु की महादशा का चलना काफी महत्व रखता है। ऐसे में अगर इसके साथ अन्य किसी ग्रह का अंतर्दशा चलें तो अलग-अलग परिणाम लेकर आता है। तो आइये जानते है बृहस्पति की महादशा के बारे में।

वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति की महादशाः

बृहस्पति ग्रह धन, धान्य, भाग्य, आध्यात्मिकता और दांपत्य जीवन में भी खुशियों से जुड़ा ग्रह है। यह लीवर का भी प्रतिनिधित्व करता है। चार्ट में बृहस्पति के लाभकारी स्थान का मतलब है, मूल निवासी एक समृद्ध जीवन जीता है। बृहस्पति उस क्षेत्र के पहलुओं को बढ़ाता है और विस्तारित करता है। जहां वह कुण्डली में बैठता है। बृहस्पति के महादशा के तहत लोगो को शिक्षण, बैंकिग, शिक्षा, वित्त, गहने, विवाह, परामर्श, मनोविज्ञान, आध्यात्मिकता, राजनीति, प्रशासन आदि मे सफलता मिलती है। जब बृहस्पति की महादशा चलती है तो बच्चे भी अच्छा प्रदर्शन करते है तथा विद्यार्थी वर्ग करियर में महान ऊँचाईयों को प्राप्त करते है। यहा महादशा अध्यात्म और धर्म के प्रति आपका झुकाव भी बढ़ाती है।

बृहस्पति की महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशाः-

गुरु की महादशा में गुरु की अंतर्दशा दो वर्ष एक महीने एवं अठारह दिन की होती है। यदि गुरु उच्च राशि, स्वराशि या मित्र राशि में होकर केन्द्र शुभ ग्रहों द्वारा दृष्ट या युक्त हो तो अपनी महादशा में अपनी ही अन्तर्दशा के समय जातक को शुभ फल देता है। जातक में धर्म के प्रति अधिक रुचि बढ़ जाती है तथा वह धार्मिक कार्यों में संलग्न रहता है।

बृहस्पति के कुप्रभाव से बचने के उपायः-

बृहस्पति के कुप्रभाव से बचने के लिए जातक को निम्न उपायो को अपनाना चाहिए।
☸ बृहस्पति की शुभता पाने के लिए गुरुवार का व्रत रखें।
☸ ओम ग्रां, ग्रीं, गौं, सः गुरवे नमः के मंत्र का जाप करें यह जाप 3, 5 या 6 माला कर सकते है।
☸गुरुवार के दिन पीली वस्तुओं का दान करना चाहिए।
☸ गुरुवार के दिन पानी मे हल्दी डालकर स्नान करें।

बृहस्पति के खराब होने के लक्षणः-

यदि कुण्डली में किसी जातक का बृहस्पति ग्रह खराब है तो जातक को निम्न परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
☸ परीक्षार्थियों को परीक्षा में कठिनता से सफलता मिलती है।
☸काल्पनिक दुनिया में खोए रहना।
☸ सांस या फेफड़े की बीमारी, गले में दर्द, आंखो में तकलीफ रहता है।
☸ गुरु खराब होने से परिवार के बड़े बुजुर्गो का सम्बन्ध अच्छे नही रहते है। हमेशा मनमुटाव की स्थिति बनी रहती है।

बृहस्पति के शुभ लक्षणः- बृहस्पति ग्रह मजबूत होने से व्यक्ति बुद्धिमान, ज्ञानी होता है तथा वह निरोगी भी रहता है। जातक के घर अनेक मंगल कार्य होते है। जातक के घर में सुख-शान्ति बनी रहती है और पत्नी का विशेष अनुग्रह प्राप्त रहता है। साथ ही साथ शत्रु परास्त होते है।

बृहस्पति ग्रह का महत्वः- बृहस्पति ग्रह ज्योतिष के नव ग्रहों में सबसे अधिक शुभ ग्रह माने जाते है गुरु (बृहस्पति) मुख्य रुप से आध्यात्मिकता को विकसित करने का कारक है तीर्थ स्थानों तथा मंदिरों, पवित्र नदियों तथा धार्मिक क्रिया कलाप से जुड़े है।

नोट- यहाँ पर हमने केवल बृहस्पति की महादशा में प्राप्त होने वाले शुभ-अशुभ फलो की संभावना मात्र व्यक्त की है किसी भी उपाय को अपनाने से पूर्व किसी योग्य विद्वान से अपनी कुण्डली का विश्लेषण अवश्य करें।

 

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