चैत्र नवरात्रि के छठवें दिन माता दुर्गा के छठवें स्वरुप देवी कात्यायनी की आराधना मिलेगी सभी कष्टों से मुक्ति।
माता दुर्गा के छठवें स्वरुप को मां कात्यायनी के नाम से जाना जाता है। उनकी उपासना से भक्तों को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भक्तों के जीवन से रोग, शौक, संताप और भय नष्ट हो जाता है। मां कात्यायनी की सच्चे हृदय से पूजा करने से जिस साधकों के विवाह में बाधा आ रही हो तो वह समाप्त हो जाता है। माता कात्यायनी को ब्रज मण्डल की अधिष्ठाती देवी के नाम से जाना जाता है। यहां वर्षों से इनकी पूजा आराधना की जाती है। ब्रजमण्डल में यह मान्यता है की भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त करने के लिए गोपियों ने मां कात्यायनी की ही पूजा की थीं तथा आज भी अच्छे वर की इच्छा में कन्याएं उनकी पूजा करती है।
कैसे करें मां कात्यायनी की आराधना
मां कात्यायनी की पूजा गोधुली बेला यानि शाम के समय होनी चाहिए। माता को प्रसन्न करने के लिए पीले वस्त्र अथवा लाल वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद शुद्ध मन से तथा अच्छी भावना के साथ माता को फूल आदि अर्पित करना चाहिए। माता को शहद अति प्रिय है इसलिए पूजा के दौरान शहद अवश्य चढ़ाना चाहिए। पूजा के दौरान मन में मां कात्यायनी के स्वरुप का मनन करना चाहिए। इसके उपरान्त मंत्रो का जाप करें। कात्यायनी मंत्र के जाप की प्रक्रिया शुरु करने के लिए लाल रंग की चन्दन जप माला तैयार करें। प्रक्रिया शुरु करते समय माता कात्यायनी की एक प्रतिमा सामने रखें। मंत्र का जाप करते समय लाल रंग का वस्त्र भी धारण करें। इससे माता प्रसन्न होती है।
मंत्रः- कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी।
नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।
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कात्यायनी माता को मां दुर्गा के नौ रुपो मे से एक माना जाता है। इनकी भक्ति से व्यक्ति के जीवन में से सभी प्रकार की बाधाएं समाप्त हो जाती है। माता कात्यायनी के पिता का नाम कात्यायन था इसीलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा वह व्यक्ति जिनका विवाह अभी तक नही हुआ है तथा उनके विवाह में बाधाएं आ रही है तो उन्हें मां कात्यायनी की आराधना अवश्य करनी चाहिए। इसके पीछे शीघ्र विवाह योग एवं योग्य वर की प्राप्ति की इच्छा एवं समाहित होती है। मां कात्यायनी की आराधना करने से प्रेम में आ रही बाधाएं समाप्त हो सकती है और भक्तो को सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। माता कात्यायनी देवी दुर्गा के नौ रुपो मे से एक है मां कात्यायनी की पूजा नवरात्रि के नौ दिनो मे की जाती है। यह दिव्य देवी मे से एक है। मां कात्यायनी स्त्री ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है और स्त्री ऊर्जा का स्वरुप भी है।
माता कात्यायनी का दिव्य स्वरुप
माता कात्यायनी की 18 भुजाएं है और प्रत्येक भुजा हैं में उन्हे विभिन्न युद्ध हथियार और वस्तुएं सौपी गई जो युद्ध और जीत का प्रतिनिधित्व करती है उनकी प्रत्येक पूजा में क्रमशः त्रिशूल, चक्र, शंख, गदा, तलवार और ढाल, धनुष और बाण ब्रज, गदा और युद्ध कुल्हाडी और गुलाब जल जैसे कई शक्तिशाली शस्त्र है। माता ने अपने वाहन सिंह पर सवार होकर महिषासुर का वध किया था। इसीलिए माता कात्यायनी को महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है। भगवत पुराण में लिखा है की माता कात्यायनी की आराधना करने से अच्छे भाग्य की प्राप्ति होती है।
माता कात्यायनी की कथा
पौराणिक कथाओ के अनुसार कत नामक एक महान ऋषि थे उनके पुत्र का नाम कात्या था। इसी गांव में महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे जो भगवती पराम्बा की बड़ी कठिन तपस्या किये तथा उनकी इच्छा थी की मां दुर्गा उनके घर पुत्री के रुप में पैदा हो। मां दुर्गा ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की कुछ वर्षों के बाद जब महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ने लगा तब ब्रह्मा विष्णु और महेश त्रिदेवो ने अपना तेज देकर एक देवी को उत्पन्न किया ऐसा प्रमाण है कि कात्यायन ने सर्वप्रथम उनकी पूजा की थी इसलिए वो कात्यायनी कहलायी। कुछ ग्रथों मेे यह प्रमाण है की माता ने महर्षि कात्यायन को जो वचन दिया था उसको पूर्ण करने के लिए उनके यहां पुत्री के रुप में जन्म लिया। इसलिए उन्हें कात्यायनी कहा जाने लगा। मां कात्यायनी अमोघ सिद्धियां देने वाली है। ब्रज की गोपियों ने भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त करने के लिए यमुना नदी के किनारे मां कात्यायनी की आराधना की थी। मां कात्यायनी का स्वरुप अत्यन्त तेजस्वी और प्रभावशाली है। कात्यायनी माता चतुर्भुज वाली है उनका वाहन सिंह है।
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किस ग्रह से है माता कात्यायनी का सम्बन्ध
ज्योतिष और धर्म के जानकार मानते है कि इसका सम्बन्ध बृहस्पति ग्रह से है, बृहस्पति ग्रह को विवाह का ग्रह माना जाता है और माता कात्यायनी की पूजा करके भी विवाह में आ रही बाधाएं समाप्त हो जाती है। दाम्पत्य जीवन से भी इसका सम्बन्ध होता है। इनकी आराधना से पति-पत्नी के बीच आ रही परेशानियां समाप्त हो जाती है तथा उनके सम्बन्ध अच्छा होता है।