चैत्र नवरात्रि हमारे हिन्दू धर्म का एक पावन पर्व है इसमें मां दुर्गा के नौ स्वरुपों की आराधना की जाती है तथा जो मनुष्य माता रानी की आराधना सच्ची श्रद्धा और निष्ठा से करते है। उसे माता रानी मनोवांछित फल प्रदान करती है माता भगवती सभी की माता है, नवरात्रि का चौथा दिन माता कूष्माण्डा को समर्पित है। माता कूष्माण्डा को कुम्हड़ा की बलि अति प्रिय है इसलिए माता का नाम कूष्माण्डा पड़ा। कूष्माण्डा एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है कुम्हड़ा यानि कद्दू, पेठा धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता को यह अति प्रिय है। कुछ अपवादों के अनुसार माता कूष्माण्डा के नाम का अर्थ कुछ, उष्मा का अर्थ है ताप और अण्डा का अर्थ है। ब्रह्माण्ड या सृष्टि। यही कारण है की माता को ब्रह्माण्ड की जननी कहा जाता है। भक्त देवी मां का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए रुद्राक्ष की माला, भगवा, वस्त्र और गेंदे के फूल चढ़ाते है। देवी की पूजा करने से उनके भक्तों के जीवन से संकट, दुख और बाधाएं दूर होती है।
चैत्र नवरात्रि 2023 में 25 मार्च 2023, शनिवार को मनाया जायेगा इस दिन माता कूष्माण्डा की आराधना की जायेगी।
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कैसे करें माता की आराधना
☸नवरात्रि के चौथे दिन प्रातः काल में उठकर स्नान करें उसके पश्चात अपने घर के पूजा स्थल की अच्छे से साफ-सफाई कर लें।
☸माता कुष्माण्डा की आराधना सच्चे मन से करें तथा मन को अनहत चक्र में स्थापित करें।
☸मां दुर्गा के स्वरुप की पूजा करने के लिए आपको लाल रंग का फूल, गुड़हल या फिर गुलाब के फूल अर्पित करने चाहिए।
☸माता की पूजा में सिन्दूर, धूप, दीप और नैवेद्य आदि करना चाहिए।
☸माता कूष्माण्डा देवी की आराधना करते समय हरे रंग के वस्त्र का धारण करना चाहिए।
☸माता को पेठे, दही या हलवे का भोग लगाया जाता है। माता कूष्माण्डा को मालपुआ चढ़ाने से मां प्रसन्न होती है और अपनी कृपा दृष्टि रखती है।
☸मां दुर्गा के इस स्वरुप की पूजा विधि-विधान से करने से जातक के सभी कष्ट एवं रोग से मुक्ति मिलती है।
मंत्रः- ओम देवी कूष्माण्डायै नमः
प्रार्थना मंत्रः- सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्त पद्याभ्यां कूष्माण्डायै शुभदास्तु मे ।।
स्तुतिः- या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्माण्डाय रुपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
मां कूष्माण्डा का स्वरुपः-
माता कूष्माण्डा की आठ भुजाएं है, इनके सात हाथो में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल, पूजा, अमृत पूर्ण, कलश, चक्र तथा गदा होती है। वही आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को प्रदान करने वाली जप माला होती है।
माता कूष्माण्डा का अति प्रिय फूलः-
माता को पीला रंग अतिप्रिय है इसलिए इस दिन मां को पीले रंग के वस्त्र, पीली चूड़ी, पीली मिठाई तथा पीला फूल, गेदें का पीला फूल अर्पित किया जाता है। यह पुष्प माता को अतिप्रिय होता है। पुराणों के अनुसार माता को पीले रंग का कमल का फूल भी बेहद प्रिय है तथा इस पुष्प को अर्पित करने से माता की असीम कृपा प्राप्त होती है तथा जातक को अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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माता के कूष्माण्डा स्वरुप की कथाः-
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार कुम्हड़े को कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है इसलिए माता के इस चैथे स्वरुप का नाम कूष्माण्डा पड़ा माता दुर्गा के सभी रुपों का अवतरण संसार से असुरों क संहार हेतु हुआ था। मान्यताओं के अनुसार जब संसार का अस्तित्व भी नही था एवं चारो और केवल अंधकार फैला हुआ था तब सृष्टि की उत्पत्ति के लिए देवी दुर्गा का चौथे स्वरुप माता कूष्माण्डा उत्पन्न हुई, इसी कारण माता कूष्माण्डा को आदि स्वरुप जगत जननी भी कहा जाता है। देवी कूष्माण्डा के शरीर की चमक सूर्य के समान होती है। जो भी मनुष्य सच्चे हृदय से माता की पूजा आराधना करते है। उनसे प्रसन्न होकर माता उनके सभी कष्टों एवं रोग-शोक से मुक्त कर देती है साथ ही मनुष्य भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें बल, आयु यश और स्वास्थ्य उत्तम करती है।
माता कूष्माण्डा के पूजा का महत्वः-
माता के इस स्वरुप की आराधना करने से जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते है। पुराणों के अनुसार मां कूष्माण्डा ने अपने उदर से ही ब्रह्माण्ड को उत्पन्न किया है। इसी कारण मां के स्वरुप को कूष्माण्डा देवी के नाम से जाना जाता है। लम्बे समय से संतान प्राप्ति की कामना कर रहे जातकों को कूष्माण्डा देवी की आराधना अवश्य करनी चाहिए। मां के पूजन में ओम देवी कूष्माण्डायै नमः मंत्र का विशेष महत्व है इस मंत्र के लाभ से जीवन में निरोग रहने का और संतान सुख का आशीर्वाद प्राप्त होता है। देवी अपने भक्तों को सुख-समृद्धि और उन्नति प्रदान करती है। जगत का कल्याण करती है।