मोक्षदा एकादशी

मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। मोक्षदा एकादशी का अर्थ है मोह का नाश करने वाली। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मोक्षदा एकादशी बहुत फलदाई होती है। जो उपासक पूरी निष्ठा और विधिपूर्वक व्रत करते है उन्हे मोक्ष की प्राप्ति होती है। एकादशी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को ज्ञान दिया था। इसलिए इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है। उपासको को व्रत करने से सभी मनचाहे फल की प्राप्ति होती है तथा पापो से भी मुक्ति मिलती है। इस एकादशी को धनुर्मास की एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

मोक्षदा एकादशी व्रत विधिः-

☸ आज के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करें। साथ ही श्री दामोदर भगवान की पूजा करें।
☸ पूजन में घी के दीपक का प्रयोग करें तथा दीपक में थोड़ा सा खड़ा धनिया डालें।
☸ उसके बाद तुलसी की मंजरी दामोदर भगवान को अर्पित करे तथा मिष्ठान का भोग लगाए।
☸ मोक्षदा एकादशी व्रत की कथा सुने एवं रात में जागरण करते हुए भगवान का संकीर्तन करें।
☸ गीता के ग्यारहवें पाठ अध्याय अवश्य करें।
☸ अब चंदन की माला से श्रीकृष्ण दामोदराय नमः मंत्र का जाप करें।
☸ अब अगले दिन पूजा-पाठ करने के बाद गरीबो मे दान दक्षिणा दें।
☸ उसके बाद व्रत का पारण करें।

मोक्षदा एकादशी शुभ मुहूर्तः-

मोक्षदा एकादशी का व्रत 3 दिसम्बर 2022 को शनिवार के दिन मनाया जायेगा। एकादशी तिथि का प्रारम्भ 3 दिसम्बर को प्रातः 05ः40 मिनट से शुरु हो रहा है तथा इसका समापन 4 दिसम्बर 2022 को प्रातः 05ः35 मिनट पर होगा।

मोक्षदा एकादशी की कथा

प्राचीन समय में गोकुल नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। एक दिन राजा ने स्वप्न आया कि उसके पिता नरक में दुख भोग रहे हैं और अपने पुत्र से उद्धार की याचना कर रहे हैं। अपने पिता की यह दशा देखकर राजा व्याकुल हो उठा।उसने ब्राह्मणों को बुलाकर अपने स्वप्न का मतलब पूछा।ब्राह्मणों ने उन्हें पर्वत नामक मुनि के आश्रम पर जाकर अपने पिता के उद्धार का उपाय पूछने की सलाह दी। राजा ने ऐसा ही किया।जब पर्वत मुनि ने राजा की बात सुनी तो वे चिंतित हो गए।उन्होंने कहा कि- हे राजन! पूर्वजन्मों के कर्मों की वजह से आपके पिता को नर्कवास प्राप्त हुआ है। मोक्षदा एकादशी का व्रत और उसका फल अपने पिता को अर्पण करने उनकी मुक्ति हो सकती है। राजा ने मुनि के कथनानुसार ही मोक्षदा एकादशी का व्रत किया और ब्राह्मणों को भोजन, दक्षिणा और वस्त्र आदि अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया।इसके बाद व्रत के प्रभाव से राजा के पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई

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