हिन्दू धर्म में वर लक्ष्मी व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। यह व्रत माता लक्ष्मी को समर्पित है। उन्हें प्रसन्न करने के लिए भक्त सम्पूर्ण विधि-विधान के साथ उनकी पूजा-आराधना करते हैं। वर लक्ष्मी जी का व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के अन्तिम शुक्रवार को रखा जाता है जो रक्षाबंधन से पूर्व पड़ता है।
मुख्य रुप से इस व्रत को दक्षिण भारत और महाराष्ट्र में मनाया जाता है।
माँ वरलक्ष्मी का स्वरुप
मान्यताओं के अनुसार वर लक्ष्मी देवी का अवतार दूधिया नामक महासागर से हुआ था। जिसको लोग क्षीर सागर के नाम से भी जानते हैं। इसलिए माता वर लक्ष्मी का वर्ण महासागर के रंग जैसा बताया जाता है। माँ वरलक्ष्मी रंगीन कपड़ो के साथ 16 श्रृंगारो से सजी हुई होती हैं। माता का यह रुप वरदान देने वाला तथा अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला होता है। इस कारण से ही माँ के इस स्वरुप को वरलक्ष्मी की संज्ञा दी गई है। माँ लक्ष्मी के इस व्रत रखने से भक्त के परिवार की दरिद्रता समाप्त हो जाती है और उन्हें धन लाभ के अवसर प्राप्त होते हैं।
माँ वरलक्ष्मी व्रत कथा
कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ ने माँ पार्वती को वरलक्ष्मी व्रत की कथा सुनाई थी। कथा के अनुसार मगध देश में एक कुंडी नामक नगर था जिसका निर्माण स्वर्ग से हुआ था, उस नगर में चारुमती नामक एक स्त्री निवास करती थीं जो अपने परिवार का विशेष देखभाल करती थी। चारुमती माँ लक्ष्मी की परम भक्त थी और प्रत्येक शुक्रवार वो माँ लक्ष्मी का व्रत करती थीं। माता लक्ष्मी भी उससे अत्यधिक प्रसन्न रहती थीं। एक बार माता लक्ष्मी चारुमती के सपने मे आकर वर लक्ष्मी कथा के बारे मे बतायी। तत्पश्चात चारुमती ने उस नगर के सभी महिलाओं के साथ मिलकर इस व्रत को पूरे विधि-विधान से रखा और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा की। पूजा सम्पन्न होते ही चारुमती के शरीर पर सोने के आभूषण सज गए और उसका घर भी धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। तत्पश्चात नगर के सभी महिलाओं ने इस व्रत को रखना आरम्भ कर दिया और तभी से इस व्रत को वर लक्ष्मी व्रत के रुप में मान्यता मिल गई।
मान्यताओं के अनुसार यह व्रत अपार धन-सम्पत्ति देने वाला है और इस व्रत को रखने से धन सम्बन्धित सभी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं और घर में खुशियों तथा धन-समृद्धि का आगमन होता है।
संतान प्राप्ति हेतु
जिस प्रकार इस व्रत को करने से निर्धन जातक को धन की प्राप्ति होती है उसी प्रकार इस व्रत को लेकर मान्यता है कि इस व्रत को करने से शादीशुदा जोड़ों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। वर लक्ष्मी का व्रत करने से भक्तों को अष्टलक्ष्मी पूजन के तुल्य ही फल की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि यदि इस व्रत को पत्नी के साथ करते हैं तो उसका महत्व कई गुना अधिक बढ़ जाता है।
वर लक्ष्मी पूजा सामग्री
वर लक्ष्मी की पूजा करने के लिए आपको दैनिक पूजा करने वाले सामग्रियों का प्रयोग नही करना चाहिए। इस पूजा के लिए कुछ विशेष सामग्रियों की आवश्यकता होती है जैसे- माँ वरलक्ष्मी जी की प्रतिमा, हल्दी, चंदन, कुमकुम, फूल माला, विभूति, कंघी, शीशा, आम पत्र, फूल, पान के पत्ते, दही, केला, पंचामृत, अगरबत्ती, मौली, धूप, कपूर, तेल, दीपक, अक्षत, दूध तथा पानी।
वर लक्ष्मी व्रत पूजा विधि
☸ प्रातः काल उठकर घर की साफ-सफाई से निवृत्त होकर स्नान करें।
☸ तत्पश्चात पूजा स्थल को गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें और संकल्प लें।
☸ माता के मूर्ति को नए वस्त्रों, जेवर और कुमकुम आदि से सजाएं।
☸ तत्पश्चात पूर्व दिशा मेें एक पटरा रखें और उस पर गणेश जी के मूर्ति के साथ माँ लक्ष्मी की मूर्ति को स्थापित करें, पटरे के एक स्थान पर अक्षत का ढेर रखें और उस ढेर पर जल से भरा कलश रखें।
☸ कलश के पास में पान, सुपारी, सिक्का, आम के पत्ते आदि रखें।
☸ उसके बाद एक नारियल पर चंदन, हल्दी, कुमकुम लगाकर उसे कलश पर रखें।
☸ अब एक थाली में लाल वस्त्र, अक्षत, फल, फूल, दूर्वा, दीप, धूप आदि रखें और मां लक्ष्मी की पूजा करें।
☸ धपू और दिया जलाकर वर लक्ष्मी जी की व्रत कथा पढ़ें और माँ को भोग अर्पित करें।
☸ कथा समापन के बाद महिलाओं में प्रसाद वितरण करें।
माँ वर लक्ष्मी व्रत का महत्व
इस व्रत का अत्यधिक महत्व दक्षिण भारत में होता है। माँ लक्ष्मी के इस व्रत को सुहागिन महिलाएं और शादीशुदा पुरुष दोनों ही रख सकते हैं। मान्यताओं के अनुसार ये व्रत अष्टलक्ष्मी पूजा के समान फलदायी होता है। इस व्रत को करने से निर्धनता दूर होती है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि तथा संतान की प्राप्ति होती है। लम्बे समय तक इस व्रत का पुण्य बना रहता है और इसके प्रभाव से आने वाली पीढ़ियाँ भी सुख-शांति महसूस करती हैं।
माँ वर लक्ष्मी शुभ तिथि एवं पूजा मुहूर्त
वर्ष 2023 में वर लक्ष्मी पूजा 25 अगस्त 2023 दिन शुक्रवार को मनाया जायेगा।
सिंह लग्न पूजा मुहूर्त (प्रातः) – 06ः01 प्रातः से 07ः48 शाम
अवधि – 01 घण्टा 47 मिनट
वृश्चिक लग्न पूजा मुहूर्त (अपराह्न) – 12ः25 अपराह्न से 02ः44 अपराह्न
अवधि – 02 घण्टे 19 मिनट
कुम्भ लग्न पूजा मुहूर्त (सन्ध्या) – रात्रि 06ः29 से 07ः56 रात्रि
अवधि – 01 घण्टा 27 मिनट
वृषभ लग्न पूजा मुहूर्त (मध्यरात्रि) – मध्य रात्रि 10ः55 से 12ः50
26 अगस्त अवधि- 01 घण्टा 55 मिनट