वैदिक ग्रन्थों में छिपा है गुरुत्वाकर्षण बल का रहस्य

यदि किसी व्यक्ति या संस्कृति का विनाश करना है तो उसमें हीन भावना बुरी तरह से डाल दो, उसके मन में यह विचार डाल देना चाहिए कि तुम कभी महान थे ही नही तुम जो पहन रहे हो तथा तुम्हारे जो रीति-रिवाज हैं तुम्हारी जो भाषा है और तुम्हारी जो सामाजिक व्यवस्था है वह दुनियां में सबसे बदतर है और उसे यह ज्ञान कभी नही देना चाहिए की वह इस पूरी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सभ्यता है या थी और ऐसा हमारी इस भारतीय संस्कृति के साथ कई वर्षों से हो रहा है और इसी कारणवश कई सारी गलत थीयरियां तथा कई सारे विचार चलाये जा रहे है और कुछ न हो पाये तो फूट डालो और शासन करो का नियम अपनाओं और हिन्दू और बौद्धों को आपस मेें लड़ाओ साथ ही ब्राह्मणों और दलितों को आमने-सामने खड़ा करों कुछ भी करके इस भारतीय संस्कृति को नुकसान पहुंचाओं इसी षड्यंत्र के अनुसार हमें कई सारी बातें नही बताई जाती है। उन्ही में से एक है गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त यदि कोई व्यक्ति किसी से यह पूछे कि गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त किसने खोजा तो वह बतायेगा की आइजक न्यूटन ने लेकिन कोई भी यह बात नही बतायेगा कि हजारो वर्षों पहले ही हमारे योग्य ऋषि मुनियों ने खोज लिया था। लेकिन हमारे ऋषि मुनियों का नाम इन सब में कही पर भी नही बताया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन सिद्धान्तों को अगर भारतीय ऋषि मुनियों ने खोज लिया था तो पश्चिमी वैज्ञानिक महान नही कहलायेंगे बल्कि यह वैज्ञानिक नकल करने वाले और चोर कहलायेंगे तो आइए वैदिक साहित्य में दिये गये गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त तथा उन महान ऋषि मुनियों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

न्यूटन से पहले बाहरी दुनिया को यह नही पता था कि सेब नीचे ही क्यों गिरता है लेकिन हमारे भारतीय लोगों को पता था कि ऊपर फेंका गया मिट्टी का गोला नीचे ही क्यों गिरता है। इसी बात को महर्षि पतंजलि ने श्लोक में बताया है कि पृथ्वी की आकर्षण शक्ति इस प्रकार की है कि यदि मिट्टी का गोला ऊपर फेका जाता है तो वह एक बहुवेग को पूरा करने पर न टेढ़ा जाता है और नाहि ऊपर चढ़ता है। वह पृथ्वी का विकार है इसलिए पृथ्वी पर ही आ जाता है।

प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं ज्योतिषी भास्कराचार्य द्वितीय ने अपने सिद्धान्त शिरोमणि ग्रंथ में यह कहा है कि पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है जिसके कारण वह ऊपर की भारी वस्तुओं को अपनी ओर खींच लेती है ऐसे में वह वस्तु पृथ्वी पर गिरती हुई सी लगती है। वास्तव में पृथ्वी स्वयं सूर्य आदि के आकर्षण से रुकी हुई है अतः वह निराधार आकाश में स्थित है तथा अपने स्थान से हटती नही है और नाहि गिरती है वह अपनी एक अक्ष पर घूमती रहती है।

यह पढ़ेंः- कुण्डली की यह स्थिति आपको बनायेगी श्रेष्ठ भविष्यवक्ता 

बात करते हैं महर्षि कणाद की जिन्होंने अपने ग्रंथ वैशेषिक सूत्र में पदार्थों का सूक्ष्मादि सूक्ष्म विश्लेषण किया है। उन्होंने अपने ग्रंथ में पृथ्वी, जल, वायु, तेज, आकाश, काल, आत्मा, दिशा, मन इन सभी प्राकृतिक पदार्थों का गहन विश्लेषण किया है और उनके गुण और धर्म बताये हैं साथ ही गुरुत्वाकर्षण बल के बारे में भी बताया है। प्रकृति में वस्तुएं कैसे गति करती हैं यह बताते हुए उन्होंने कहा है कि उत्क्षेपण (ऊपर फेंकना), अवक्षेपण (नीचे फेंकना), आकुंचन (सिकुड़ना), प्रसारण (फैलाना) और गमन यह सभी गति के पाँच प्रकार हैं यह कर्माणी का एक प्रासंगिक अर्थ है कर्माणी को यहां पर एक्शन या फोर्स के रुप में लिया गया है।

बात करते हैं उत्क्षेपण गति कैसे पैदा होती है इसके बारे में महर्षि कणाद नें विस्तारपूर्वक बताया है महर्षि कणाद ने उत्क्षेपण गति के लिए एक सूत्र दिया है। गुरुत्वप्रयत्न संयोगाना मुत्क्षेपणम्।। यानि यदि हम कल्पना कर रहे है कि हम खड़े है और फुटबाल को हवा में उछाल रहे हैं तो अब इसमें तीन बल एक साथ कार्य कर रहें हैं पहला वह बल हैं जिससे आप गेंद को ऊपर की ओर फेंक रहे हैं। वह एक बाहरी बल है जो फुटबाल के अन्दर आपकी ओर से आता है और गेंद में जोर पैदा करता है तो ऐसे में वह ऊर्ध्वगामी बल है दूसरा बल नीचे की ओर हैं। जो पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल है जो फुटबाल को नीचे की ओर खींचेगा और एक तीसरा बल भी है जो वायु प्रतिरोध बल है तो यह तीन बल हैं जो इस फुटबाल पर काम करते हैं यह सरल भौतिकी है जिसे हम सब जानते हैं।

इस बारे में महर्षि कणाद कहते हैं कि पहला है प्रयत्न जिससे हमने अपनी गेंद को हवा में उछाला और दूसरा है गुरुत्व जो पृथ्वी का नीचे की ओर खिंचाव है जो गुरुत्वाकर्षण बल है। अब इन दो विरोधी बलों के परिणाम स्वरुप जो बल पैदा होता है उसे उत्क्षेपण कहा गया है यूँ कहें तो गुरुत्व और प्रयत्न का संयोजन ही उत्क्षेपण कहलाता है।

यदि हम इसी बात को न्यूटन के द्वारा समझे तो हवा में फेके जाने वाली किसी भी वस्तु का ऊर्ध्वगामी बल सीधे ऊपर की ओर एक्स थ्रस्ट और नीचे की ओर गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के परिणाम के समानुपाती होता है।

आपने यह अच्छी तरह से देखा की महर्षि कणाद ने इतने स्पष्ट रुप से गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त को समझाया है। इसके अलावा उन्होंने पदार्थ की गति को समझाते हुए यह कहा है कि यदि कोई वस्तु टकरायेगी या अलग होगी तो उसमें गति उत्पन्न करने वाला बल सामान होगा और वह बल बाहरी होगा। यही न्यूटन की गति का पहला नियम है जो यह कहता है कि जो वस्तु विराम अवस्था में हैं वह विराम अवस्था में ही रहेगी तथा जो वस्तु गतिमान है वह गतिमान ही रहेगी जब तक की उस पर कोई बाहरी बल न लगाया जायें।

महर्षि कणाद ने दूसरे सूत्र में यह समझाया कि विशेष प्रयास का परिणाम विशेष आवेग में होता है यही न्यूटन की गति का दूसरा नियम होता है। किसी वस्तु के संवेग में आया बदलाव उस वस्तु पर आरोपित बल के समानुपाती होता है। इसके अलावा महर्षि कणाद अपने एक और सूत्र में बताते हैं कि क्रिया की हमेशा विरोधी क्रिया होती है और यही न्यूटन की गति का तीसरा नियम होता है प्रत्येक क्रिया की सदैव बराबर एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।

तो आपने यह भली-भाँति देखा कि न्यूटन से हजारो वर्षों पहले हमारे प्राचीन ग्रंथों में गुरुत्वाकर्षण और गति के नियम लिखित रुप में मौजूद है। इसके अतिरिक्त भी कई ग्रंथों में गुरुत्वाकर्षण का उल्लेख किया गया है जिसको हम संक्षिप्त में देखते हैं महाभारत में भी भीष्म पितामह कहते हैं कि हे युधिष्ठिर स्थिरता, गुरुत्वाकर्षण, कठोरता, उत्पादकता, गंध, भार, संघात, स्थापना, शक्ति आदि यह सब भूमि के गुण है। भीष्म पितामह ने पृथ्वी के गुण को बताते हुए गुरुत्वाकर्षण को पृथ्वी का एक गुण बताया है।
वराहमिहिर ने अपने ग्रंथ पंचसिद्धान्तिका में कहा है कि तारा समूह रुपी इस पंजर में गोल पृथ्वी इस प्रकार से रुकी हुई है जैसे की दो बड़ें चुम्बकों के बीच में लोहा होता है उसी प्रकार पृथ्वी भी अपनी धुरी पर रुकी हुई है यहां वराहमिहिर ने गुरुत्वाकर्षण के साथ-साथ पृथ्वी को गोल भी बताया है।

अपने प्रश्न उपनिषद् में ऋषि पिप्पलाद ने कहा है कि अपान वायु के द्वारा ही मल मूत्र नीचे की तरफ आता है। अतः पृथ्वी अपने आकर्षण शक्ति के द्वारा ही मनुष्य को रोके हुए है, अन्यथा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बिना वह आकाश में उड़ जाता। गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त के लिए ऋग्वेद में यह मंत्र प्रसिद्ध है यदा ते हर्यता हरी वावृधाते दिवेदिवे |आदित्ते विश्वा भुवनानि यमिरे|| इस मंत्र के अर्थ के अनुसार सब लोकों का सूर्य के साथ आकर्षण है और सूर्य आदि लोकों का परमेश्वर के साथ आकर्षण है।

नोटः- उम्मीद है गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त की जानकारी काफी हद तक आप लोगों को मिल गई होगी यदि इससे सम्बन्धित विषय में कोई भी जानकारी रह गई होगी तो हम उसे हमारे अगले ब्लाॅग में बताने का पूरा-पूरा प्रयास करेंगे तब तक दी गई इस विषय में जानकारी से आप अपनी जानने की इच्छा पूरी कर सकते है।

One thought on “वैदिक ग्रन्थों में छिपा है गुरुत्वाकर्षण बल का रहस्य

Comments are closed.

🌟 Special Offer: Buy 1 Get 10 Astrological Reports! 🌟

Unlock the secrets of the stars with our limited-time offer!

Purchase one comprehensive astrological report and receive TEN additional reports absolutely free! Discover insights into your future, love life, career, and more.

Hurry, this offer won’t last long!

🔮 Buy Now and Embrace the Stars! 🔮