शीतलाष्टमी (Sheetal Ashtami) 2023

शीतला माता को शक्ति का स्वरुप माना जाता है। लोकप्रिय रुप से उत्तर भारत में शीतला माता को चेचक की देवी कहा जाता है। उन्हें कई प्रकार की बीमारियों से बचाने के लिए जाना जाता है। ग्रामीण भारत में उन्हें देवी पार्वती और माँ दुर्गा का अवतार माना जाता है। देवी शीतला तमिलनाडु में मरियम्मा के नाम से लोकप्रिय है। वह निःसंदेह ही सबसे लोक प्रिय ग्रामीण देवियों मे से एक है और लाखों लोगो की कुलदेवी है।

शीतला मां का स्वरुपः-

देवी शीतला लाल रंग की पोशाक पहनती हैं उनका वाहन गधा है। शीतला माता अपने एक हाथ में शीतल पेय, दाल के दाने और रोगाणुनाशक जल का कलश रखती है तो दूसरे हाथ में झाडू और नीम का पत्ता धारण करती है। प्रतीकात्मक रुप से देवी शीतला स्वच्छता की आवश्यकता पर जोर देती है।

शीतला माता के व्रत का महत्वः-

शीतला माता को आरोग्य प्रदान करने वाली देवी बताया गया है। इस दिन जो महिला शीतला माता का व्रत रखती है और उनका श्रद्धापूर्वक पूजन करती है उनके घर में धन-धान्य आदि की कोई कमी नही रहती है उनका घर-परिवार और बच्चें निरोगी रहते है। उन्हें बुखार, खसरा, चेचक, आंखों के रोग आदि समस्याएं नही होती है।

शीतला माता की पूजा विधिः-

इस व्रत की पूजा के लिए चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को रसोई की सफाई करने के बाद माता के लिए भोग यानि अष्टमी के दिन सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर शीतला माता का पूजन करें उन्हें रोली, गंगा जल, पुष्प, प्रसाद आदि अर्पित करें फिर हलवा पूरी और खीर आदि का भोग लगाए शीतला माता का पाठ करें व्रत कथा पढ़े और माता से अपने परिवार को निरोेगी रखने की प्रार्थना करें। शीतला माता को शीतला प्रदान करने वाली माता कहा जाता है। इसलिए माता को भोग के रुप में जो भी कुछ समर्पित किया जाता है। उसमें पूरी तरह शीतलता रखी जाती है इस कारण इसको शीतलाष्टमी के एक रात पहले ही बनाकर रख लिया जाता है। माता के भक्त भी प्रसाद स्वरुप ठंडा भोजन ही अष्टमी के दिन ग्रहण करते है इस दिन घरों में चूल्हा जलाना वर्जित होता है।

शीतला माता की कथाः-

पुराणों के अनुसार शीतला माता की रचना भगवान ब्रह्मा ने की थी। ब्रह्मा जी ने कहा था की उन्हें पृथ्वी पर देवी के रुप में पूजा जाएगा। एक साथी की मांग पर ब्रह्मा जी ने उन्हें भगवान शिव के पास जाने को कहा। भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया और ज्वार असुर की उत्पत्ति की। कहा जाता है कि ज्वारासुर की रचना भगवान शिव के पसीने से हुई थी। देव लोक से देवी शीतला अपने हाथ में दाल के दाने लेकर भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर के साथ धरती लोक पर राजा विराट के राज्य में रहने आई लेकिन राजा विराट ने देवी शीतला को राज्य में रहने से मना कर दिया। राजा के इस व्यवहार से देवी शीतला क्रोधित हो गयी। शीतला माता के क्रोध र्की अिग्न से राजा की प्रजा के लोगो की त्वचा पर लाल दान हो गये लोगो की त्वचा गर्मी से जलने लगी थी। तब राजा विराट ने अपनी गलती पर माफी मांगी। इसके बाद राजा ने देवी शीतला का कच्चा दूध और ठंडी लस्सी का भोग लगाया तब माता शीतला का क्रोध शांत हुआ और सभी प्रभाव चमत्कारी रुप से ठीक हो गये तब से माता शीतला देवी को ठंडे पकवानों का भोग लगाने की परम्परा चली आ रही है।

शीलाष्टमी शुभ मुहूर्तः-

इस वर्ष शीतलाष्टमी 15 मार्च 2023 दिन बुधवार को मनाई जायेगी।
अष्टमी तिथि प्रारम्भः- 14 मार्च 2023 की शाम 08 बजकर 22 मिनट पर शुरु होगी और अगले दिन 15 मार्च 2023 की शाम 06 बजकर 45 मिनट पर समाप्त होगी।

🌟 Special Offer: Buy 1 Get 10 Astrological Reports! 🌟

Unlock the secrets of the stars with our limited-time offer!

Purchase one comprehensive astrological report and receive TEN additional reports absolutely free! Discover insights into your future, love life, career, and more.

Hurry, this offer won’t last long!

🔮 Buy Now and Embrace the Stars! 🔮