श्रावण पुत्रदा एकादशी श्री विष्णु को समर्पित है और यह एकादशी व्रत ऐसा है जो एकादशी व्रत पति-पत्नी द्वारा मिलकर किया जाता है ताकि पुत्र की प्राप्ति हो सके जिन विवाहित दम्पतियों की संतान नही होती या कोई विघ्न रहता है। उनके लिए ये एकादशी व्रत एक वरदान है। इस दिन व्रत और पूजा करने से अवश्य ही संतान की प्राप्ति होती है। पौष माह की पुत्रदा एकादशी उत्तर भारतीय प्रदेशो में अधिक महत्व के साथ मनायी जाती है। वैष्णव समुदाय के बीच श्रावण शुक्ल पक्ष एकादशी को पवित्रोपना एकादशी या पवित्र एकादशी के नाम से जाना जाता है।
श्रावण पुत्रदा एकादशी कथाः-
एक बार श्री युधिष्ठिर भगवान कृष्ण से कहने लगे, हे कृष्ण श्रावण शुक्ल एकादशी का क्या नाम है। व्रत करने की विधि तथा इसका महात्मय कृपा करके कहिए, तब मधूसुदन कहने लगे की एकादशी का नाम पुत्रदा है। अब आप शांति पूर्वक इसका कथा सुनिये। द्वापर युग में आरम्भ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था लेकिन पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदाय नही लगता था। उनका मानना था की जिसके संतान न हो उसके लिए यह लोक और परलोक दोनो ही दुखदायक होते है। पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किये परन्तु राजा को पुत्र की प्राप्ति नही हुई। वृद्धावस्था आती हुई देखकर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा हे प्रजा जनो! मेरे खजाने में अन्याय के उपार्जन किया हुआ धन नही है ना ही मैने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छिपा है। किसी दूसरे की धरोहर भी मैने नही ली। प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा मै अपराधियों को पुत्र तथा ब्राह्मणों का धन छीना है। किसी से कभी घृणा नही की सबको समान माना है। सज्जनों की सदा पूजा करता हूं। इस प्रकार धर्म युक्त राज्य करते हुए भी मेरे पुत्र नही है तो मै अत्यन्त दुख पा रहा हूं इसका क्या कारण है। राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मंत्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गये ब्रह्म बड़े-बड़े ऋषि मुनियों के दर्शन किए राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते फिरते है। एक आश्रम में उन्होंने बहुत ही वयोवृद्ध धर्म के ज्ञाता बड़े तपस्वी परमात्मा के मन लगाये हुए निराहार जितेंद्रीय जितात्मा जित क्रोध सनातम धर्म के गुड तत्वों को देखा जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोग गिरता था। सबने जातक ऋषि को प्रणाम किया उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा की आप लोग किस कारण से आये है। निःसंदेह मै आप लोगो का हित करुंगा मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है। इसमें संदेह मत करो । लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब बोले है महर्षि आप हमारी बात जानने में ब्रह्म से भी अधिक समर्थ है। अतः आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए महिष्मति पूरी की धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा को पुत्र के समान पालन करता है। फिर भी वह पुत्र हीन होने के कारण दुखी है। उन लोगो ने कहा की हम लोग उनकी प्रजा है। अतः उनके दुख से हमे भी दुखी है। आपके दर्शन से हमे पूर्ण विश्वास है की हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते है। यह बात सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तात जानकर कहने लगे की यह राजा पिछले जन्म में एक निर्धन वैश्य था। निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए यह एक गांव से दूसरे गांव व्यापार के लिए जाया करते थे। एक समय एकादशी के दिन मध्यान के समय जबकि वह दो दिन से भूखा प्यासा था एक जलाशय पर पानी पीने गया उसी स्थान पर एक प्यासी हुई गाय पानी पी रही थी। राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा इसलिए राजा को यह दुख सहना पड़ रहा है। ऐसा सुनकर लोग कहने लगे की हे! ऋषि शास्त्रों मे पापों का प्रायश्चित भी लिखा है। अतः जिस प्रकार राजा का पाप नष्ट हो जाए आप ऐसा उपाय बताइए। लोमस मुनि कहने लगे की श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते है। तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व पाप नष्ट हो जाएगा और राजा को पुत्र की प्राप्ति होगी लोमष ऋषि के ये वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब श्रावण शुक्ल एकादशी आयी तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और एक बड़ा ही तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। इसलिए हे राजन इस श्रावण एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी पड़ा।
श्रावण पुत्रदा एकादशी लाभः-
☸ धार्मिक दृष्टि से हर माह में आने वाली एकादशी को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करके व्रत रखना तथा कथा सुनना पुण्य फल देता है।
☸ एकादशी का उपवास करने वालें को सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
☸ एकादशी का व्रत रखने और पितृ तर्पण करने से पितृ प्रसन्न होकर जीवन में आने वाली परेशानियां दूर करते है।
श्रावण पुत्रदा एकादशी महत्वः-
पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने और व्रत रखने से पुत्र प्राप्ति की इच्छा पूर्ण होती है। इस व्रत को करने वाले जातकों पर भगवान विष्णु की असीम कृपा रहती है। जो जातक साल में दो बार यह व्रत रखते है। उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है और उनकी संतान को सेहत का वरदान प्राप्त होता है।
श्रावण पुत्रदा एकादशी पूजा की विधिः-
☸एकादशी व्रत के नियम दशमी तिथि से ही लागू हो जाते है इस दिन भी प्याज, लहसून का सेवन नही किया जाता है।
☸ अगर एकादशी व्रत करना है तो दशमी के दिन सूर्यास्त से पहले ही भोजन कर लें। पुत्रदा एकादशी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठें और स्नान के बाद साफ कपड़े धारण करें।
☸ इस दिन गंगा स्नान का भी नियम है लेकिन अगर ऐसा ना हो पाये तो घर पर पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें भगवान विष्णु की पूजा करें।
☸ भगवान विष्णु को पंचामृत और धूप, गुलाल, रोली, चंदन, पीले, पुष्प आदि से पूजा किया जाता है।
श्रावण पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्तः-
श्रावण पुत्रदा एकादशी प्रारम्भ तिथिः- 27 अगस्त 2023 पूर्वाहन 12ः01 से
श्रावण पुत्रदा एकादशी समापन तिथिः- 27 अगस्त अपराह्न 09ः32 तक