सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण: जीवन के तीन मूल गुण

सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण वे तीन गुण हैं जो इस संसार के निर्माण और संचालन के लिए जिम्मेदार हैं। ये गुण हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं और हमारी प्रकृति, कार्यशैली और अनुभवों को आकार देते हैं। आइए जानते हैं इन गुणों के बारे में विस्तृत जानकारी और धार्मिक ग्रंथों में वर्णित श्लोकों के साथ।

सत्त्वगुण: शुद्धता, ज्ञान और प्रकाश

सत्त्वगुण शुद्धता, ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक है। यह गुण विवेक, सदाचार, प्रेम और करुणा को प्रोत्साहित करता है। जब सत्त्वगुण प्रबल होता है, तो व्यक्ति सत्य, शांति और सुख की खोज करता है।

उदाहरण:

सत्त्वगुण का प्रभाव: एक व्यक्ति जो शांति, प्रेम और स्नेह से भरा होता है, जो करुणा और ज्ञान की ओर अग्रसर होता है, वह सत्त्वगुण से प्रभावित होता है।

सत्त्वगुण से संबंधित श्लोक:

  1. भागवत महापुराण (स्कंद 1, अ० 2, श्लोक 23):

सत्त्वं रजस्तम इति प्रकृतेरगुणास्तैर्युक्तः परः पुरुष एक इहास्य धत्ते। स्थि

त्यादये हरिविरिञ्चिहरेति संज्ञाः श्रेयांसि तत्र खलु सत्त्वतनोर्नृणां स्युः।

अर्थात प्रकृति के तीन गुण हैं – सत्त्व, रज और तम। इन गुणों के आधार पर ही संसार की स्थिति, उत्पत्ति और प्रलय होती है। सत्त्वगुण से ही परम कल्याण होता है।

रजोगुण: गति, परिवर्तन और कर्म

रजोगुण गति, परिवर्तन और कर्म का गुण है। यह गुण व्यक्ति को कामना, लालसा और अहंकार की ओर प्रेरित करता है। जब रजोगुण प्रबल होता है, तो व्यक्ति फल की प्राप्ति के लिए कर्म करता है।

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उदाहरण:

रजोगुण का प्रभाव: एक व्यक्ति जो धन, पद, या शक्ति की प्राप्ति के लिए सतत प्रयास करता है, जो अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए कर्म करता है, वह रजोगुण से प्रभावित होता है।

रजोगुण से संबंधित श्लोक:

  1. शिव महापुराण (रुद्र संहिता, खंड 1, अ० 16, श्लोक 38):

विष्णुः सत्त्वं रजोऽहं तमो रुद्र उदाहृतः।

लोकाचारत इत्येवं नामतो वस्तुतोऽन्यथा।

अर्थात विष्णु सत्त्वगुण, रजोगुण और रुद्र तमोगुण के प्रतीक हैं। लोकाचार के अनुसार ऐसा कहा जाता है, लेकिन वस्तुतः गुणों का स्वरूप इससे भिन्न है।

तमोगुण: अंधकार, अज्ञान और आलस्य

तमोगुण अंधकार, अज्ञान और आलस्य का प्रतीक है। यह गुण व्यक्ति को मोह, भय और अज्ञान की ओर प्रेरित करता है। जब तमोगुण प्रबल होता है, तो व्यक्ति सुख-दुख, जन्म-मरण के चक्र में फंस जाता है।

उदाहरण:

तमोगुण का प्रभाव: एक व्यक्ति जो आलसी है, जो अज्ञान और मोह में फंसा हुआ है और जो अपने जीवन को बदलने के लिए कोई प्रयास नहीं करता, वह तमोगुण से प्रभावित होता है।

तमोगुण से संबंधित श्लोक:

  1. मार्कण्डेय महापुराण (अ० 46, श्लोक 18):

जो ब्रह्मा तो रुद्रो विष्णुः सत्त्वं जगत्पतिः।

एत एव त्रयो देवा एत एव त्रयो गुणाः।

ब्रह्मा रजोगुण, रुद्र तमोगुण और विष्णु सत्त्वगुण के प्रतीक हैं। ये तीन देवता ही तीन गुणों को प्रकट करते हैं।

गुणों का आपसी संबंध

सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। सत्त्वगुण से रजोगुण उत्पन्न होता है और रजोगुण से तमोगुण उत्पन्न होता है। जब व्यक्ति सत्त्वगुण को बढ़ाता है, तो रजोगुण और तमोगुण स्वतः ही कम हो जाते हैं।

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स्वभाव और व्यवहार:

तमोगुण व्यक्ति: बल के द्वारा अपनी चीजें प्राप्त करता है।

रजोगुण व्यक्ति: धन, पैसों या छल से अपनी इच्छाओं को पूरा करता है।

सत्त्वगुण व्यक्ति: देना जानता है, चाहे वह ज्ञान, संपत्ति या मदद हो, बिना किसी भेदभाव के।

निष्कर्ष

सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण का संतुलन ही जीवन को सुखमय बनाता है। आजकल तमोगुण और रजोगुण वाले लोगों की अधिकता देखने को मिलती है, जबकि सत्त्वगुण का अनुसरण करने वाले लोग दुर्लभ होते हैं। लेकिन सत्य यह है कि सत्त्वगुण का पालन करने से व्यक्ति एक सच्चे और सुखमय जीवन की ओर अग्रसर होता है। इन गुणों को समझकर और उनका सही उपयोग करके हम अपने जीवन को अधिक संतुलित और सफल बना सकते हैं।

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स्रोत:

शिव महापुराण (रुद्र संहिता, खंड 1, अ० 16, श्लोक 38) भागवत महापुराण (स्कंद 1, अ० 2, श्लोक 23)

मार्कण्डेय महापुराण (अ० 46, श्लोक 18)

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