सूर्य की महादशा में अन्य ग्रहो की अन्तर्दशा फल

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सूर्य की महादशा में सूर्य का फल

यदि कुण्डली में जब सूर्य शुभ हो सूर्य अपनी दशा एवं अन्तर्दशा में शुभ देता है। जिसके फल स्वरुप जातक के धन-सम्पत्ति में वृद्धि होती है तथा नौकरी व्यवसाय में भी उन्नति के योग बनते है एवं प्रशासन द्वारा भी लाभ की प्राप्ति होती है तथा समाज में मान, पद एवं प्रतिष्ठा बढ़ता है परन्तु यदि सूर्य कुण्डली में अकार हो एवं पाप ग्रहों से दृष्टि हो तो इसके विपरीत परिणाम देखने को मिलते है।

सूर्य का विपरीत सूर्य की अन्तर्दशा में

स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है जैसे- फोड़े, फुन्सी, दाद, खाज एवं खुजली की समस्या से परेशान रहते है तथा प्रशासन द्वारा दण्ड़ित होेने का भय बना रहता है और खर्च की अधिकता होने के कारण आर्थिक स्थिति भी कमजोर हो जाती है।

सूर्य की महादशा में चन्द्रमा का फल

यदि कुण्डली में चन्द्रमा उच्च राशि का हो स्वगृही हो मित्रक्षेत्री हो और साथ ही शुभ प्रभाव में होकर सूर्य का मित्र हो तथा सूर्य से केन्द्र, धन अथवा आय स्थान में स्थित हो तो शुभ फल प्रदान करता है और धन-धान्य में वृद्धि करता है और साथ ही नौकरी में भी वृद्धि करता है और जातक को स्त्री एवं संतान का भी सुख मिलता है विरोधी गुटों से सन्धि होती है।

चन्द्रमा का विपरीत परिणाम सूर्य की अन्तर्दशा में

यदि चन्द्रमा क्षीणावस्था में पाप प्रभाव में सूर्य से छठे या आठवें में स्थित हो तो अशुभ फल ही मिलते है। जातक में काम वासना बढ़ जाती है, प्रेम-प्रसंगो में अपयश मिलता है, धन-हानि तथा लोगो से व्यर्थ की तकरार होती है तथ चन्द्रमा से सम्बन्धित रोग उसे घेर लेते है।

सूर्य की महादशा में मंगल का फल

यदि कुण्डली में मंगल उच्च राशि का होकर शुभ प्रभाव में तथा दशानाथ से व लग्न से शुभ स्थानगत हो तो जातक इसकी दशा में भूमि एवं कृषि कार्यों से लाभ प्राप्त कर लेता है और जातक को नये ग्रह की प्राप्ति करवाता है यदि मंगल लाभ अथवा भाग्य भाव के अधिपति से युक्त हो तो जातक को विशेष रुप से वाहन, मकान तथा धन का भी लाभ प्रदान करता है यदि व्यक्ति किसी सेना मे हो तो उसे उच्च पद की प्राप्ति भी होती है। साथ ही साथ उसे पदोन्नति भी मिलती है।

मंगल का विपरीत परिणाम सूर्य की अन्तर्दशा में

यदि मंगल अशुभ अवस्था में होकर त्रिक स्थान में स्थित हो तो जातक को सेना पुलिस व चोर-लुटेरों से भी भय रहता है। साथ ही परिवार एवं िमत्रों से व्यर्थ के झगड़े भी होते है धन व भूमि का नाश तथा रक्त पीड़ा, नेत्र पीड़ा, रक्तचाप एवं नन्दाग्नि जैसे रोग हो जाते है। जातक का शरीर दुबला-पतला हो जाता है। साथ ही उनके अन्दर विफलता एवं घबराहट बढ़ जाती है।

सूर्य की महादशा में राहु का फल

राहु सूर्य का प्रबल शत्रु है, अतः सूर्य की महादशा में राहु की अन्तर्दशा कोई विशेष फल प्रदान नही कर पाता है। यदि राहु शुभ ग्रह व राशि में होकर सूर्य से केन्द्र में हो और द्वितीय अथवा एकादश भाव में हो तो दशा के प्रारम्भ मे कुछ अशुभ फल तथा अन्त में कुछ अच्छे फल प्रदान करता है। ऐसे मे जातक निरोगी बन रहता है। जातक को भाग्य में अचानक वृद्धि हो जाती है अगर जातक वैवाहिक है तो उसे पुत्र की प्राप्ति भी होेती है। घर मे मंगल कार्य का होना एवं प्रवास पर जाने से लाभ तथा उन्नति की प्राप्ति का होना जैसे फल की प्राप्ति होती है।

राहु का विपरीत परिणाम सूर्य की अन्तर्दशा में

यदि राहु पाप प्रभाव में स्थित है और सूर्य से त्रिक स्थान में गया हो तो जातक को राजकीय दण्ड़ की हमेशा आशंका बनती रहती है तथा जातक को अनेक प्रकार के भय हमेशा परेशान करते रहते है जैसे- धन का अभाव, कारावास, अकाल मृत्यु, मान, भूमि और द्रव्य का नाश होता है। राहु की दशा में जातक हमेशा परेशान रहेगा और उसे किसी भी प्रकार की सुख की प्राप्ति नही होगी।

सूर्य की महादशा में बृहस्पति का फल

सूर्य की महादशा में उच्च, स्वक्षेत्री, मित्रक्षेत्री था शुभ प्रभावी बृहस्पति की अन्तर्दशा चले तो जातक को अनेक प्रकार के शुभ फलो की प्राप्ति होती है। अगर जातक अविवाहित है तो उसे सर्वगुण सम्पन्न जीवनसाथी की प्राप्ति भी होती है। साथ ही उच्च शिक्षा की प्राप्ति भी होती है एवं धन व मान-सम्मान की प्राप्ति भी हेाती है और राज्यकृपा में पदोन्नति का होना साथ ही गौ, ब्राह्मण, अतिथि, साधू-सन्यासी की सेवा करने की प्रवृत्ति भी बन जाती है। परिवार में खुशियों का वातावरण भी बना रहता है।

बृहस्पति का विपरीत परिणाम सूर्य की अन्तर्दशा में

यदि बृहस्पति नीच का है तथा पाप मध्यत्व में पापी ग्रहों से दृष्ट अथवा युक्त होकर सूर्य के त्रिक स्थान में स्थित हो तो वह अपनी अन्तर्दशा में जातक को स्त्री व सन्तान के पीड़ा से भय उत्पन्न कर देता है तथा जातक के देह पीड़ा एवं मन में भी भय उत्पन्न कर देता है। जातक पाप कर्मो करने लगता है तथा वह अपना सब कुछ बर्बाद कर लेता है तथा जातक को अनेक प्रकार के रोग होने उत्पन्न हो जाते है। जैसे पीलिया, क्षयरोग, अस्थि-पीड़ा एवं पित्तज्वर।

सूर्य की महादशा में शनि का फल

राहु की भांति शनि भी सूर्य का शत्रु ग्रह है। इस दशाकाल में जातक को बहुत कुछ राहु जैसे ही फल मिलते है लेकिन जातक पाप कमी नही बनता। शनि अपने अन्तर्दशा काल में जातक को स्वल्य धन-धान्य की प्राप्ति कराता है जातक के शत्रु भी नष्ट होते है। यदि शनि उच्च अथवा स्वक्षेत्री होकर केन्द्र द्वितीय या तृतीय अथवा आय के स्थान में हो तो जातक का कल्याण होता है, निम्न वर्ग के लोगो से लाभ की प्राप्ति होती है न्यायालय में लम्बित केसों में उसे विजय मिलती है।

शनि की विपरीत परिणाम सूर्य की अन्तर्दशा में

यदि अशुभ शनि सूर्य से त्रिक स्थान में गया हो तो जातक की बुद्धि भ्रमित हो जाती है। पिता-पुत्र में वैमनस्थ बढ़ जाता है शत्रुओं की प्रबलता के कारण चित्र को परिताप पहुँचता है तथा साथ ही अधिकार की हानि होती है व पदोन्नति होकर कार्य-व्यवसाय भी चैपट हो जाता है। सम्पत्ति के साथ शारीरिक-शक्ति भी क्षीण हो जाती है। आत्मघात करने की भी इच्छा होती है और जन्म स्थान की भी त्याग करना पड़ता है।

सूर्य की महादशा में बुध का फल

बुध एक ऐसा ग्रह है जो सूर्य के साथ रहकर भी अस्त फल नही देता। यदि बुध परमोच्च, स्वक्षेत्री, मित्रक्षेत्री, शुभ ग्रहों से प्रभावित हो और सूर्य से त्रिक स्थान में न हो तो जातक राज्यकृपा पा जाता है और जातक को पुत्र-पुत्री का पूर्ण सुख मिलता है तथा वाहन एवं वस्त्र आभूषणों की प्राप्ति भी होती है। यदि बुध भाग्य स्थान में भाग्येश से युक्त हो तो जातक की भाग्य में वृद्धि भी करता है। यदि लाभ स्थान में हो तो व्यवसाय में वृद्धि भी करता है। जातक को सम्पूर्ण सुख मिल जाता है।

बुध का विपरीत परिणाम सूर्य की अन्तर्दशा में

यदि अशुभ बुध छठे या आठवें घर में स्थित हो तो जातक मन से अशान्त रहता है, प्रवास अधिक करने पड़ते है तथा जातक को धन-हानि होती है और स्वास्थ्य क्षीण हो जाता है। साथ ही कार्य-व्यवसाय ठप्प हो जाता है, जातक को चर्म से सम्बन्धित रोग उत्पन्न हो जाते है जैसे- दाद, खुजली, फोड़ा-फुन्सी आदि रोग हो जाते है तथा जातक अपने धन का एक बड़ा भाग दवा-दारु पर व्यय करने को बाध्य हो जाता है।

सूर्य की महादशा में केतु का फल

यदि सूर्य की महादशा में केतु की अन्तर्दशा चल रही हो तो थोड़े शुभ फलो को भी जातक भूल जाता है। क्योंकि प्रायः इस दशा में जातक को अशुभ फल ही प्राप्त होते है और कभी-कभी यह अधिक भी हो जाते है। केतु की महादशा में देह-पीड़ा से भी जातक परेशान हो जाता है और परिजनों से विद्रोह भी हो जाता है। शत्रु वर्ग प्रबल हो जाते है। स्थानान्तरण ऐसी जगह होता है। जहाँ पर जातक को कष्ट ही कष्ट झेलना पड़ता है। दशा के प्रारम्भ काल में थोड़े शुभ फल मिलते है। अल्प धन की प्राप्ति भी होती है। अल्प धन की प्राप्ति होती है तथा सभी शुभ कामों में भी रुचि रहती है लेकिन सूर्य से त्रिक स्थान में स्थित केतु की दशा में धन व स्वास्थ्य की हानि होती है। मन परेशान रहता है और परिजनों से झगड़े भी होते है। दुष्ट संगति में रहने से राज्य दण्ड़ मिलता है और दुर्घटना में हड्डी टूटने का भय बढ़ जाता है और काम के स्थान पर प्रयत्न करने से भी लाभ नही मिलता है।

सूर्य की महादशा में शुक्र का फल

यदि शुक्र उच्च राशि स्वराशि व मित्र राशि का हो तथा शुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हो तथा सूर्य से दुःस्थान मे स्थित न हो तो सूर्य की महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा अति शुभ फलो को देने वाली होती है। विवाहोत्सव पुत्रोत्सव आदि अनेक मंगल कार्य सम्पन्न होते है। राज्य सुख की प्राप्ति होती है। साथ ही पशुधन, रत्न, आभूषण, मिष्ठान, भोजन एवं विविध वस्त्रालंकार मिलते है। नौकर-चाकर, वाहन व मकान का पूर्ण सुख मिलता है तथा मान-सम्मान में वृद्धि होती है।

शुक्र का विपरीत परिणाम सूर्य की अन्तर्दशा में

यदि शुक्र नीच राशि का व पाप प्रभावी होकर सूर्य से त्रिक स्थान में हो तो मानसिक कलह, पत्नी-सुख में कमी, सन्तति कष्ट व विवाह में अवरोध उत्पन्न होते है, स्वजनों से वैमनस्थ बढ़ता है। जातक के मान-सम्मान में कमी आती है। साथ ही धन तथा स्वास्थ्य का भी नाश होता है।

चन्द्र की महादशा में अन्तर्दशा का फल

चन्द्र की महादशा में चन्द्र का फल

यदि चन्द्रमा कारक होकर उच्चांश में उच्च राशि का स्वराशि का शुभ ग्रहो से युक्त और दृष्ट हो तो अपनी दशा-अन्तर्दशा में जातक को पशुधन से विशेषतः दूध देने वाले पशुओं से लाभान्वित कराता है। इस दशा में जातक यशोभागी होकर अपनी कीर्ति को अक्षुण्ण बना लेता है। कन्या रत्न की प्राप्ति या कन्या के विवाह जैसा उत्सव और मंगल कार्य सम्पन्न होता है। गायन-वादन आदि ललित कलाओं में जातक की रुचि बढ़ती है, स्वास्थ्य सुख, धन-धान्य की वृद्धि होती है। आप्तजनों द्वारा कल्याण होता है तथा राज्यस्तरीय सम्मान मिलता है।

चन्द्र का विपरीत परिणाम चन्द्र की अन्तर्दशा में

यदि चन्द्रमा नीच राशि का पाप ग्रहों से युक्त अथवा ग्रहण योग में हो तथा त्रिक स्थानस्थ हो तो अपनी दशा-अन्तर्दशा में जातक को देह में आलस्य माता को कष्ट, चित्र में भ्रम और भय, परस्त्रीरमण से अपयश तथा प्रत्येक कार्य में विफलता जैसे कुफल देता है। जल में इतने की आशंका रहती है, शीत ज्वर, नजला-जुकाम अथवा धातु विकार जैसी पीड़ाएं भोगनी पड़ती है।

चन्द्र की महादशा में मंगल का फल

यदि मंगल कारक होकर उच्च राशि, स्वराशि, मित्र राशि अथवा शुभ प्रभाव से युक्त हो तो चन्द्रमा की महादशा में अपनी दशामुक्ति में जातक को परमोत्साही बना देता है। यदि जातक सेना या पुलिस में हो तो उसे उच्च पद मिलता है। इष्ट-मित्रों से लाभ मिलता है। कार्य-व्यवसाय की उन्नति होती है। जातक क्रूर कर्मों से विशेष ख्याति अर्जित करता है।

चन्द्र का विपरीत परिणाम मंगल की अन्तर्दशा में

यदि अशुभ क्षेत्री अथवा नीच राशि का मंगल हो तो अपने दशाकाल में अवस्था-भेद से अनेक अशुभ फल प्रदान करता है। धन-धान्य व पैतृक सम्पत्ति का नाश हो जाता है। गलत कामों की वजह से कारावास भी हो सकता है। क्रोधा वेग बढ़ जाता है। माता-पिता व इष्ट मित्रों से वैचारिक वैमनस्थ बढ़ता है, दुर्घटना के योग बनते है, रक्तविकार, रक्तचाप, रक्तार्श , रक्तपित्त, बिजली से झटका लगने से देह कृशता, नकसीर, फूटना जैसी व्याधियों की चिकित्सा पर धन का व्यय होता है।

चन्द्र की महादशा में राहु का फल

चन्द्रमा की महादशा में राहु की अन्तर्दशा शुभ फलदायक नही रहती। हां, दशा के प्रारम्भ में कुछ शुभ फल अवश्य प्राप्त होते है। यदि राहु किसी कारक ग्रह से युक्त हो तो कार्य में सिद्धि होती है, जातक तीर्थाटन करता है तथा किसी उच्चवर्गीय व्यक्ति से उसे लाभ भी मिलता है। इस दशाकाल में जातक पश्चिम दिशा में यात्रा करने पर विशेष लाभान्वित होता है।

चन्द्र का विपरीत परिणाम राहु की अन्तर्दशा में

अशुभ राहु की अन्तर्दशा में जातक की बुद्धि मलिन हो जाती है। अगर आप विद्यार्थी हो तो परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाता है और अगर वह उत्तीर्ण भी हो तो तृतीय श्रेणी ही प्राप्त होती है तथा कार्य-व्यवसाय की हानि होती है। शत्रु पीड़ित करते है, परिजनों को कष्ट मिलता है। जातक अनेक आधि-व्याधियों और जीर्ण ज्वर, प्लेग, मन्दाग्नि व जिगर सम्बन्धी रोगो से घिर जाता है।

चन्द्र की महादशा में बृहस्पति का फल

यदि बृहस्पति उच्च राशि का स्वराशि का व शुभ प्रभाव से युक्त होकर चन्द्रमा से केन्द्र, त्रिकोण, द्वितीय व आय स्थानगत हो तो चन्द्रमा की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा के समय जातक के ज्ञान में वृद्धि तथा धर्मा धर्म के विवेचन में उसकी बुद्धि सक्षम हो जाती है। उसके मन में उपकार करने की भावना, दान शीलता व धर्म शीलता आदि का अभ्युदय होता है। स्वाध्याय और यशादि कर्म करने की प्रवृत्ति और मांगलिक कार्यों में व्यर्थ होता है। अविवाहित जातक का विवाहोत्सव या विवाहित को पुत्रोत्सव का हर्ष, उत्तम स्वास्थ्य, नौकरी ममें पद-वृद्धि, किए गए प्रयत्नों में सफलता भी मिलती है।

चन्द्र का विपरीत परिणाम राहु की अन्तर्दशा में

यदि बृहस्पति नीच राशि का शत्रु क्षेत्री, पाप प्रभावी और त्रिकस्थ हो तो इस दशाकाल में कार्य-व्यवसाय में हानि, मानसिक व्यथा, गृह-कलह, पुत्र-कलह, कष्ट, विदेश गमन, पदच्युति और धन हानि होती है। जातक की जठ राग्नि मन्द पड़ जाने से उसे वायु सम्बन्धी और यकृत रोग भी हो जाते है।

चन्द्र की महादशा में शनि का फल

जब चन्द्रमा की महादशा में शनि की अन्तर्दशा व्यतीत हो रही हो तथा चन्द्रमा से केन्द्र, त्रिकोण, धन या आय स्थान में स्थित शनि उच्च राशि का, स्वराशि का या पाप प्रभाव से रहित व बली हो तो जातक को गुप्त धन की प्राप्ति होती है तथा उसे कृषि कार्यों, भूमि के क्रय-विक्रय, लोहा, तेल, कोयला व पत्थर के व्यवसाय से अच्छा लाभ मिलता है।

चन्द्र का विपरीत परिणाम शनि की अन्तर्दशा में

यदि शनि की अन्तर्दशा चल रही है तो चन्द्र की महादशा में तो शनि हीन बली, नीच राशि का व पाप प्रभावी होकर छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में हो तो जातक अस्थिर गति का हो जाता है। प्रतियोगिता आदि में जातक असफल हो जाता है। इष्टजनों से अनबन, नीच स्त्री से प्रेमलाप के कारण उसके अपयश तथा गठिया आदि रोगो से पीड़ित होने की आशंका बनती है।

चन्द्र की महादशा में बुध का फल

यदि चन्द्रमा की महादशा में बुध की अन्तर्दशा चल रही हो और कुण्डली में बुध पूर्ण बली, शुभ ग्रहो से युक्त और दृष्ट होकर केन्द्र, त्रिकोण आदि शुभ स्थानगत हो तो जातक निर्मल और सात्विक बुद्धि का पठन-पाठन में रुचि रखने वाला, कार्य-व्यवसाय में धन-मान अर्जित करने वाला आप्तजनों से सत्कार पाने वाला, विद्त समाज में पूजित ग्रन्थ लेखक कन्या सन्तति होता है लेकिन इच्छानुकूल फल प्राप्ति उसे फिर भी नही होती, अर्थात् इतने पर भी उसके मन में तृष्णा बनी रहती है।

चन्द का विपरीत परिणाम बुध की अन्तर्दशा में

यदि बुध नीच राशि का नीच नवांश का व अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तथा अशुभ भाव में स्थित हो तो अपने दशाकाल के प्रारम्भ में शत्रु से पीड़ा, पुत्र से वैमनस्थ, स्त्री-सुख मे कमी पशुधन का नाश, कार्य-व्यवसाय में हानि होता है तथा अन्त में त्वचा के रोगों से देह कृशता, ज्वर तथा जेल आदि जैसे फल प्रदान करता है।

चन्द्र की महादशा में केतु का फल

चन्द्र की महादशा में केतु की अन्तर्दशा भी विशेष शुभ नही रहती लेकिन यदि केतु शुभ क्षेत्री तथा शुभ ग्रहों से युक्त व दृष्ट हो तो दशा के प्रारम्भ में अशुभ और मध्य में शुभ फल प्रदान करता है। अत्यन्त मामूली धनलाभ, देहसुख, देवाराधना में रुचि तथा अन्त में धन-हानि और कष्ट होता है।

चन्द्र का विपरीत परिणाम केतु की अन्तर्दशा में

अशुभ केतु के दशाकाल में जातक द्वारा किए गए प्रयत्नों में असफलता, नीच कर्मों में प्रवृत्ति, परिजनों से कलह, धर्म-विरुद्ध आचरण से अपकीर्ति, पैतृक सम्पत्ति का नाश माता की मृत्यु, पानी में डूबने की आशंका, अण्ड़कोष वृद्धि, जलोदर, यकृत व कुक्षिशूल आदि रोगो से पीड़ा पत्नी को रोग और चित्त को परिताप पहुँचता है। प्रायतः केतु का दशाकाल सुखद न होकर पीड़ा युक्त ही व्यतीत होता है।

चन्द्र की महादशा में शुक्र का फल

यदि चन्द्रमा की महादशा में शुभ एवं बली शुक्र का अन्तर व्यतीत हो रहा हो तो जातक की वृद्धि सात्विक होती है, पुत्रोत्सव होता है तथा इस उपलक्ष्य में ससुराल से प्रचुर मात्रा में दहेज मिलता है अथवा किसी अन्य व्यक्ति से उसे धन-प्राप्ति होती है तथा सुकोमल एवं सुन्दर स्त्रियों का संग ह्दय में प्रसन्नता भर देता है। जातक को वाहन, वस्त्रालंकार राज्य और समाज में प्रतिष्ठा, उच्च पद की प्राप्ति और भाग्य में वृद्धि होती है।

चन्द्र का विपरीत परिणाम शुक्र की अन्तर्दशा में

यदि चन्द्रमा क्षीण तथा शुक्र पाप प्रभावी और अशुभ स्थानगत हो तो इससे विपरीत फल मिलते है। विषय-वासना की अधिकता, लाछंन, बदनामी, देह दुख, रोग, पीड़ा, वाद-विवाद में पराजय, स्त्री सुख का नाश, मधुमेह, सूजाक आदि रोग और मन को सन्ताप मिलता है।

चन्द्र की महादशा में सूर्य का फल

बलवान और शुभ सूर्य की अन्तर्दशा जब चन्द्रमा की महादशा में चलती है तो राज्य कर्मचारियों को पद वृद्धि, वेतन वृद्धि अथवा अन्य प्रकार से लाभ मिलता है। इस समय जातक का शत्रु पक्ष निर्बल, वाद-विवाद में जय, उत्तम स्वास्थ्य राजा के समान वैभव, ऐश्वर्य तथा स्वर्गोपम सुखों की प्राप्ति स्त्री व पुत्र-सुख में वृद्धि तथा परिजनों से लाभ मिलता है।

चन्द्र का विपरीत परिणाम सूर्य की अन्तर्दशा में

यदि चन्द्रमा क्षीणावस्था का और सूर्य नीच पाप प्रभाव में अथवा अशुभ स्थानगत हो तो इस दशा में किसी विधवा स्त्री के द्वारा अपमान दूसरों की उन्नति से ईष्र्या-द्वेष, पिता की मृत्यु अथवा संक्रामक रोगी होने की सम्भावना पित्तज्वर, आमातिसार, सर्दी-जुकाम आदि रोगों से देहपीड़ा, मन में व्यर्थ की विफलता चोर व अग्नि से सम्पत्ति की हानि आदि फल मिलते है।

मंगल महादशा में अन्तर्दशा फल

मंगल की महादशा में मंगल का फल

यदि मंगल उच्च राशि, उच्चांश, स्वक्षेत्री, शुभ ग्रहों से दृष्ट होकर केन्द्र, त्रिकोण, आय और सहज भावस्थ हो तो अपनी दशा-अन्तर्दशा में शुभ फल प्रदान करता है। बलवान मंगल, बली आयेश या धनेश से सम्बन्ध करता हो तो जातक इसकी दशा में राज्यानुग्रह प्राप्त कर लेता है। सेना अथवा अर्द्धसैनिक बल में नौकरी मिल जाती है। सेना में कमाण्डर जैसे पद प्राप्त होते है, सैन्य या पुलिस पदक मिलता है, व्यवसायी हो तो व्यवसाय खूब चमकता है तथा लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। व्यक्ति परमोत्साही पर क्रूर कमी बन जाता है, खून में गरमी बढ़ जाती है।

मंगल का विपरीत परिणाम मंगल की अन्तर्दशा में

अशुभ मंगल एवं अशुभ स्थानस्थ मंगल की दशा में व्यक्ति को क्रोध अधिक आता है, बुद्धि भ्रमित हो जाती है। निम्न पदों पर नौकरी करनी पड़ती है। इष्टजनों से कलह, व्यवसायियों का ग्राहकों से झगड़ा, रक्तचाप, रक्तविकार, शिरोवेदना, नेत्ररोग, खुजली, देह में चकते जैसे रोग व अन्य व्याधियां हो जाती है तथा इनकी चिकित्सा कराने मे धन व्यय होता है व्यवसाय स्थिर हो जाता है।

मंगल की महादशा में राहु का फल

मंगल और राहु दोनो ही नैसर्गिक पापी ग्रह है। मंगल की महादशा में राहु की अन्तर्दशा में शुभ अर्थात मिश्रित फल मिलते है। शुभ मंगल की महादशा में शुभ राहु का अन्तर चल रहा हो तो जातक मकान, भूमि, धन, मान आकस्मिक रुप से पा लेता है। कृषि में लाभ, वाद-विवाद में विजय मिलती है। प्रवास अधिक करने पड़ते है, दुर्घटना का भय रहता है।

मंगल का विपरीत परिणाम सूर्य की अन्तर्दशा में

अशुभ राहु के दशाकाल में जातक मन में वहम अपने परायों से झगड़ा-व्यर्थ के लाछंन और अपवाद, शत्रुओं से कष्ट, स्थानान्तरण, उदर शूल, वायुविकार, मन्दाग्नि, रक्तक्षय, श्वास-कास से पीड़ित रहता है, बनते कार्यों से विघ्न आते है और प्रत्येक कार्य में असफलता मिलती है।

मंगल की महादशा में बृहस्पति का फल

शुभ मंगल की दशा में यदि शुभ और बलवान बृहस्पति की अन्तर्दशा चले तो जातक की सरकीर्ति फैलती है, कई अच्छे ग्रन्थों का निर्माण होता है, अकर्मण्य को कर्म मिलता है, पूर्वार्जित सम्पत्ति मिलती है नौकरी में वृद्धि, वेतन में वृद्धि और तीर्थाटन में रुचि बढ़ती है और कार्य-व्यवसाय में वृद्धि होती है। पुत्रोत्सव से मन में हर्ष बढ़ता है तथा सन्तान के कारण यश भी मिलता है। साथ ही साथ समाज में मान-सम्मान भी बढ़ता है।

मंगल का विपरीत परिणाम बृहस्पति की अन्तर्दशा में

अशुभ और निर्बल बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही हो तो पदोन्नति, राजभय, सन्तान से कष्ट, स्त्री सुख में कमी, इष्ट-मित्रों से अनबन, कार्य-व्यवसाय में हानि, ज्वर, कर्ण पीड़ा, कफ-पित्तादि रोगो से पीड़ा तथा अप मृत्यु की आशंका बढ़ जाती है।
मंगल की महादशा में शनि का फलः- मंगल की महादशा में राहु अन्तर्दशा के जैसे मिश्रित फल शनि अन्तर्दशा के भी मिलते है। बलवान शनि शुभ अवस्था आदि में हो तो अपनी अन्तर्दशा में जातक को म्लेच्छ वर्ग से लाभ, स्वग्राम में व अपने समाज में यश-प्रतिष्ठा, धन-धान्य की वृद्धि आदि जैसे फल प्रदान करता है।

मंगल का विपरीत परिणाम शनि की अन्तर्दशा में

यदि पापी और अशुभ स्थानस्थ शनि हो तो जातक इस दशाकाल में अस्थिर मति, एक कार्य को छोड़कर दूसरा कार्य प्रारम्भ करने वाला, स्वजनो का नाश देखने वाला चोर-लुटेरों शत्रुओं व शस्त्राघात से पीड़ित होने वाला पुत्र सुख से हीन, अपकीर्ति पाने वाला होता है। नौबत यहां तक आ सकती है कि जातक सभी ओर से निराश होकर ईश्वर भक्ति करता है अथवा आत्महनन की भी कोशिश करता है अथवा जेल यात्रा भी करनी पड़ सकती है।

मंगल का विपरीत परिणाम बुध की अन्तर्दशा में

बली बुध शुभ होकर केन्द्र, त्रिकोण या आय स्थान में हो तथा मंगल में बुध का अन्तर चल रहा हो तो जातक स्थिर गति, परिश्रम से कार्य करने वाला होता है। उसके यहां पर सत्कथा, कीर्तन, प्रवचन आदि होते रहते है। वैश्य वर्ग से लाभ मिलता है। सेना में पदवृद्धि, विद्या-विनोद, बहुमूल्य सम्पत्ति का स्वामित्व प्राप्त होता है। कन्या रत्न उत्पत्ति में उत्सव मनाया जाता है।

मंगल का विपरीत परिणाम बुध की अन्तर्दशा में

निर्बल और अशुभ बुध की अन्तर्दशा हो तो जातक की अपकीर्ति फैलती है, कठिन श्रम का फल शून्य मिलता है, लेखन कार्य से अपयश, कार्य-व्यवसाय में हानि, दुष्टजनों से मनस्ताप, ग्रह कलह से मानसिक वेदना मिलती है। अनुभव में ऐसा आता है कि जिन्हें दशा के प्रारम्भ में हानि होती है, उन्हें दशा के अन्त में लाभ मिल जाता है और जिन्हें दशा के अन्त में हानि रहती है, उन्हें दशा के प्रारम्भ में लाभ मिलता है।

मंगल की महादशा में केतु का फल

शुभ केतु की अन्तर्दशा में जातक को सुख और शान्ति मिलती है, पद व उत्साह में वृद्धि और सत्कार होता है।
मंगल का विपरीत परिणाम केतु की अन्तर्दशा मेंः- अशुभ केतु की दशा में जातक के मन में भय, पाप कर्म मे रुचि, निराशा, इष्टजनों को कष्ट, नीच लोगो की संगीत में अपयश, शत्रुओं से पराजय, व्यर्थ में इधर-उधर भटकना, बिजली, बादल से अपमृत्यु, अग्नि भय, आवास का नाश, राज्यदण्ड़ मिलने की आशंका बनती है। केतु अन्तर्दशा विशेष कष्टदायक होती है।

मंगल की महादशा में शुक्र का फल

जब मंगल की महादशा में शुभ और बलवान शुक्र की अन्तर्दशा व्यतीत हो रही हो तो जातक के मन में चचंलता, कामावेग में वृद्धि, चित्र में ईष्र्या व द्वेष भर जाते है। परीक्षार्थी येन-केन प्रकारेण उत्तीर्ण हो जाते है पुत्र उत्पत्ति का हर्ष व ससुराल पक्ष से दान-दहेज मिलता है। सुन्दर स्त्रियों से सम्बन्ध अच्छे होते है साथ ही मंहगें उपहारों की भी प्राप्ति होती है। राज्य कृपा से भूमि की प्राप्ति नाटक, संगीत, सिनेमा, नाच-गाने में रुचि बढ़ती है।

मंगल का विपरीत परिणाम शुक्र की अन्तर्दशा में

पापी और अशुभ क्षेत्री शुक्र की अन्तर्दशा में जातक विदेश गमन करता है, विधर्म और नीच स्त्री के संसर्ग से धन और मान की हानि होती है। शुक्रजन्य संग-व्याधियां होती है तथा स्वास्य क्षीण हो जाता है और हर जगह से क्लेश, शोक, पीड़ा और भय के समाचार मिलते है। यदि अष्टमेशा हो तो मृत्यु सम कष्ट देता है।

मंगल की महादशा में सूर्य का फल

मंगल की महादशा में जब उच्च, स्वक्षेत्री, शुभ ग्रह युक्त या दृष्ट सूर्य की अन्तर्दशा चलती है तो व्यक्ति राज्य से विशेष लाभ प्राप्त करता है। नौकर हो तो पद में वृद्धि अग्रिम वेत वृद्धि होती है। उच्चाधिकारियों का कृपापात्र बनता है। सेना व पुलिस सेवा के कर्मचारी इस दशा में विशेष लाभान्वित होते है। युद्ध व वाद-विवाद में विजय मिलती है। घर से दूर-जंगलों में या पहाड़ो में निवास होता है।

मंगल का विपरीत परिणाम सूर्य की अन्तर्दशा में

पाप क्षेत्री, पाप प्रभावी, निर्बल सूर्य की दशा हो तो जातक गुरु-ब्राह्मण से द्वेष करता है, माता-पिता को कष्ट मिलता है, मन को परिताप पहुंचता है। धन की हानि व पशुओं का नाश होता है विषय-वासना बढ़ती है और जातक गलत संगति में पड़ जाता है और अनेक रोगों से ग्रसित हो जाता है।

मंगल की महादशा में चन्द्रमा का फल

शुभ मंगल की महादशा में जब शुभ और बली चन्द्रमा की अन्तर्दशा चलती है तो जातक का मन शान्त लेकिन देह में आलस्य बढ़ जाता है। जातक अधिक सोता है, दूध खोये के पदार्थ खाने को मिलते है। प्रवास अधिक होते है प्राकृतिक दृश्यों में विशेष रुचि बनती है। श्वेत वस्तुओं व धातुओं के व्यवसाय से विशेष लाभ मिला है। विवाहोत्सव एवं मांगलिक कार्य सम्पन्न होते है। परिवार जनों एवं मित्रों से बहुमूल्य उपहार मिलते है।

मंगल का विपरीत परिणाम चन्द्रमा की अन्तर्दशा में

अशुभ और पाप प्रभावी चन्द्रमा की अन्तर्दशा में जातक को नजला, जुकाम, स्वप्न दोष, जिगर, तिल्ली में शोध, अण्डकोष वृद्धि, अतिसार, मन्दाग्नि जैसे रोग होते है। जातक अविवाहित एवं पराई स्त्रियों के सम्पर्क में रहता है। मन में उद्विग्नता बनी रहती है, कल्पनाओं में विचरण वार अमूल्य समय को नष्ट करता है। यदि चन्द्रमा मारकेश से सम्बन्ध करता हो तो अपमृत्यु का भय बनता है।
राहु महादशा में अन्तर्दशा फल

राहु महादशा में राहु का फल

जन्म कुण्डली में राहु उच्च राशि, मित्रक्षेत्री और शुभ ग्रहों से युक्त हो तो राहु शुभ ग्रहों की अपेक्षा अतीत शुभ फल प्रदान होता है। शुभ राहु की दशा-अन्तर्दशा में जातक आकस्मिक रुप से उन्नति के शिखर पर पहुंच जाता है। बुद्धिमत्ता और विद्वता आती है। उच्चाधिकार मिलते है राजनीति में प्रवेश करता है। क्रोध एवं उत्साह में वृद्धि, कार्य-व्यवसाय का फैलाव एवं अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। वृषभ, मिथुन, कर्क व वृश्चिक राशि में राहु होने पर भी फल मिलता है।

राहु का विपरीत परिणाम राहु की अन्तर्दशा में

अशुभ राहु की दशा में जातक को अग्नि, विष, सांप आदि से भय रहता है। जातक अभक्ष्य-भक्षी बनता है। मित्र वर्ग से धोखा मिलता है, परिवार के सदस्यों को कष्ट और वात रोग तथा मन्दाग्नि से पीड़ित होता है।

राहु की महादशा में बृहस्पति का फल

राहु शुभ हो और इसकी महादशा में शुभ और बलवान बृहस्पति की अन्तर्दशा चल रही हो तो जातक की चित्तवृत्ति सात्विक और बुद्धि प्रखर हो जाती है, उच्चाधिकारियों से प्रोन्नति, स्वास्थ्य सुख, पद में उन्नति मिलती है। कार्य-व्यवसाय में प्रचुर लाभ मिलता है। दर्शन शास्त्र पढ़ने में रुचि बनती है, जातक दार्शनिक विचार धारा पूर्ण लेखन कर मान-सम्मान पाता है तथा अपने कार्य से समाज का दिशा-निर्देश करता है। जिस प्रकार शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा की कलाएं बढ़ती है। वैसे ही इस दशा में जातक के यश, धन-धान्य और कीर्ति की बढ़ोत्तरी होती है।

राहु का विपरीत परिणाम बृहस्पति की अन्तर्दशा में

अशुभ बृहस्पति की दशा में ज्येष्ठ भ्राता का नाश, राजकीय दण्ड़ मिलने की सम्भावना रहती है, गैस्ट्रिक ट्रबल, ह्दय रोग, मन्दाग्नि आदि से पीड़ा और धन-हानि होती है।

राहु की महादशा में शनि का फल

शुभ राहु की दशा में शुभ व बलवान शनि की अन्तर्दशा व्यतीत हो तो जातक को काले पशुधन व काली वस्तुओं के व्यापार से लाभ, पशुवाहन की प्राप्ति होती है। समाज में और अपने वर्ग में सम्मान मिलता है। पश्चिम दिशा और म्लेच्छ वर्ग विशेष लाभदायक रहता है। जातक राजनीतिक कार्यों में पटु होता है तथा ग्रामसभा व पालिका का अध्यक्ष बनता है।

राहु का विपरीत परिणाम शनि की अन्तर्दशा में

अशुभ शनि की अन्तर्दशा में जातक अस्थिर गति, किसी अज्ञात पीड़ा से विकल, मलिन वस्त्र धारण कर इधर-उधर भटकता है। किसी परिजन की मृत्यु से मन दुःखी रहेगा। जातक आत्महत्या करने की कोशिश करता है। सर्प के काटने का भय बना रहता है तथा जातक को गठिया, वात रोग, भगन्दर आदि रोग हो जाते है।

राहु की महादशा में बुध का फल

शुभ राहु की महादशा में उच्च या शुभ प्रभावी बुध की महादशा चले तो जातक उत्तम विद्या प्राप्त कर लेता है। प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता मिलती है। जातक की चित्रवृत्ति स्थिर और बुद्धि सात्विक हो जाती है। अपने मित्रों, परिजनों से सहानुभूति बढ़ती है, आय के कई स्त्रोत बनते है, जिसके कारण आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है। उच्च राशि का बुध हो तो राजकीय सेवा में उच्च पद मिलता है। लेखन तथा उच्चवर्गीय लोगों से धन लाभ होता है। विद्यार्थियों को प्रतियोगी परीक्षाओं मे सफलता मिलती है। जातक की चित्रवृत्ति स्थिर और बुद्धि सात्विक हो जाती है। अपने मित्रों, परिजनों से सहानुभूति बढ़ती है, आय के कई स्त्रोत बनते है। उच्च राशि का बुध हो तो राजकीय सेवा में उच्च पद मिलता है। लेखन तथा उच्च वर्गीय लोगो से धन लाभ होता है।

राहु का विपरीत परिणाम बुध की अन्तर्दशा में

अशुभ बुध की अन्तर्दशा में जातक घोर कष्ट पाता है, प्रत्येक कार्य में विफलता मिलती है, नौकरी में न उन्नति होती है न अवनति। राजकोष का भागी होना पड़ता है। अश्लील साहित्य की रचना से अपयश मिलता है। जातक असत्य भाषण करता है, देव-गुरु की निन्दा, दुष्ट बुद्धि, अपने कुकृत्यों से भाग्य हानि कर लेता है। चर्म रोग, वातरोग, फोड़ा-फुन्सी इत्यादि से पीड़ा होती है।

राहु की महादशा में केतु का फल

राहु की महादशा में केतु की अन्तर्दशा का समय अशुभ होता है। कुछ एक शुभ फल जो मिलते भी है, वे गौज हो जाते है। जातक की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। नीच जनों की संगति कर दुष्कर्म करने की प्रवृत्ति होती है। आजीविका का साधन नैतिक-अनैतिक कैसा भी हो सकता है। जातक पूर्वाजित धन को मदिरापान और जुआ आदि में पड़ कर खो देता है। घर में कलह का वातावरण बना रहता है। उदर पूर्ति के लिए भटकना पड़ता है, निर्धनता और रोगों के कारण मार्ग और विदेश में कष्ट भोगने पड़ते है। स्वजनों से विद्रोह हो जाता है। यदि केतु लग्न के स्वामी से युक्त या दृष्ट हो तो धन लाभ होता है। वृश्चिक राशि का केतु केन्द्र अथवा त्रिकोण में हो तो शुभ फल देता है।

राहु की महादशा में शुक्र का फल

शुक्र कारक ग्रह हो, बलवान और शुभ प्रभाव में हो तो राहु महादशा में जब शुक्र का अन्तर होता है तो जातक को अनेक भोगो प्राप्त होते है। जातक का मन चंचल और सात्विक दोनो ही प्रकार का बन जाता है। जहां वह विलासिता का जीवन जीने की चार रखता है, वहीं धार्मिक ग्रंथों का श्रवण, अध्ययन तथा पूजा-अर्चना भी करता है।

राहु का विपरीत परिणाम शुक्र की अन्तर्दशा में

अशुभ जातक की अन्तर्दशा में जातक विलासिता की वस्तुओं का संग्रह करता है, खेल-तमाशें आदि को भी चाव से देखता है। अशुभ शुक्र के दशाकाल में जातक के सुख का नाश हो जाता है। स्वजनों से विरोध होता है सन्तान से दुख मिलता है। पास-पड़ोस से लड़ाई-झगड़ा, जिगर-तिल्ली में शोध, धातु क्षय, मन्दाग्नि आदि रोग हो जाते है। शुक्र अष्टमेश हो तो मृत्युसम कष्ट मिलता है।
राहु का विपरीत परिणाम सूर्य की अन्तर्दशा मेंः

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