हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार जातक के शरीर के सभी अंगों में हाथ सभी अवयवों में सबसे वरिष्ठ होता है। जातक के शरीर के बाहृा अंगों में हाथ एक सबसे सर्वाधिक सक्रिय और संवेदनशील अंग है। व्यक्ति के जीवन में हाथों के द्वारा ही अनेक कर्म सम्पादित होते हैं। किसी भी तरह की आकस्मिक दुर्घटना इत्यादि परिस्थिति उत्पन्न होने से सबसे पहले हाथ सक्रिय हो जाता है,इसलिए हाथ को छात्र धर्म का प्रतीक माना जाता है। आपको बता दें किसी को मारने, प्रणाम करने, आशीर्वाद देने तथा विदाई देने, खेल-कूद करने, खाना खाने, कला बनाने, किसी भी तरह का कार्य करने तथा वाहन चलाने इन सभी प्रक्रियाओं में आपके हाथ काम में आ ही जाते है। हाथों के द्वारा की जाने वाली कोई भी प्रक्रिया संवेगजनित और अनिच्छित होती है ऐसा इसलिए क्योंकि बिना किसी इच्छा के भी हाथ से कुछ कार्य स्वतः ही हो जाते हैं जिसे हम करना नही चाहते हैं, इससे यह प्रतीत होता है कि हाथ हमारे मस्तिष्क की संवेदनाओं के प्रतिनिधि नही हैं, बल्कि यह हमारे संवेगो की अभिव्यक्ति करते हैं आपको बता दें मानव के हाथों का घनिष्ठ और व्यवहारिक संबंध उसके चेतन और अवचेतन दोनों ही मस्तिष्क से होता है।
हस्तरेखा शास्त्र में देखा गया है कि मनुष्य का दायां हाथ, उसके बायें हाथ की अपेक्षा अत्यधिक सक्रिय होता है। बहुत ही कम लोगों को देखा गया है जिनका बायां हाथ दायें हाथ की अपेक्षा अत्यधिक सक्रिय होता है। आखिर ऐसा क्यों होता है इस बात को आइए हमारे योग्य ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी के द्वारा विस्तार से जानते हैं।
शारीरिक संरचना से सम्बन्धित कारण
शारीरिक संरचना के अनुसार हस्त रेखा की बात करें तो हमारी हथेली का दाहिना हाथ अत्यधिक सक्रिय होने का कारण यह है कि दायें हाथ का संचालन बायें हाथ की अपेक्षा अत्यधिक सरल होता है। हमारी हथेली का दायां हाथ मस्तिष्क द्वारा प्रेषित आदेशों व संदेशों को ग्रहण कर तत्काल में व्यवहार करने लगता है जबकि हमारा बायां हाथ दाहिने हाथ की अपेक्षा कम ऊर्जावान होता है तथा संरचनात्मक भेद होने के कारण बायां हाथ उतना सक्रिय नही हो पाता है।
हस्त रेखा के मनोवैज्ञानिक कारण
हस्तरेखा से सम्बन्धित मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के द्वारा जातक के दाहिने हाथ का संबंध चेतन मस्तिष्क से तथा बायें हाथ का संबंध अवचेतन मस्तिष्क से होता है। बायें हाथ के बारे में बात करें तो यह हाथ हृदय के सबसे ज्यादा करीब होता है परन्तु दायां हाथ बायें हाथ की अपेक्षा हृदय से काफी ज्यादा दूर होता है और जातक के मस्तिष्क के सबसे ज्यादा करीब होता है। इन्हीं कारणों से व्यक्ति का बायां हाथ उसके हृदय और अवचेतन मस्तिष्क के स्वभाव से प्रभावित रहता है जिसके कारण इस हाथ में अत्यधिक रेखाएं विद्यमान रहती हैं। जातक के शरीर का दायां हाथ उसके चेतन मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करते हुए हृदय से काफी दूर होता है। इस प्रकार जातक का बायां हाथ जातक के जन्म होने के बाद विकास के आरम्भ होने का परिचायक होता है परन्तु जातक का दायां हाथ उसके परिवर्तन का प्रतीक माना जाता है।
जातक के जन्म समय से ही रहने वाले आदतजन्य कारण
आदतजन्य कारणों के मूल में ही विकासवाद सिद्धान्त भी निहित होता है। हस्तरेखा के इस सिद्धान्त के द्वारा बायें हाथ तथा दायें हाथ के सक्रिय होने की व्याख्या सरलतापूर्वक किया जा सकता है। देखा जाये तो इस आदतजन्य सिद्धान्त के अनुसार मानव का विकास बंदरों से हुआ माना जाता है अतः उनकी मूल वृत्तियाँ मानव की मूल वृत्तियों से आज भी मेल खाती हैं। यहाँ बंदर या चिम्पैंजी के दोनों हाथ सामान्य रूप से सक्रिय देखे जाते हैं उनमें मानवों की भाँति सक्रिय या निष्क्रिय स्थिति नही देखी जाती है।
कुछ तथ्यों के द्वारा यह भी देखा गया है कि लगभग 02 वर्ष तक के बच्चों के दोनों हाथ बराबर मात्रा में सक्रिय रहते हैं परन्तु किसी विशेष परिस्थिति में शिशु अपने दाहिने हाथ का प्रयोग समय के साथ अधिक करने लगता है और आगे चलकर यही उसकी आदत सी बन जाती है। जो शिशु अपने शारीरिक दुर्बलता या किसी अन्य कारण से बायें हाथ को आरम्भ से ही संचालित करना सीख जायेगा वह अपने आदत के मुताबिक ही अजीवन अपने बायें हाथ को ही अधिक व्यवहारिक और सक्रिय महसूस करेगा। इसी प्रकार से जातक का जन्म से ही लैफ्ट हैंण्डर और राइट हैण्डर होना आदतजन्य स्वभाव है।
विशेषः- ऊपर बताये गये हस्त रेखा के सभी प्रकारों के बाद यह पता चलता है कि मनुष्य के दायें एवं बायें हाथ दोनों का ही अलग-अलग शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और व्यवहारिक महत्व होता है। इसलिए हस्तरेखा विज्ञान के प्रणेताओं ने दोनों हाथों की रेखाओं व हस्त चिन्हों इत्यादि के विश्लेषण के लिए पृथक-पृथक सिद्धान्त एवं मानदण्ड निर्धारित किये हैं।
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लिंग और भेद के अनुसार हस्तरेखा का विश्लेषण
शास्त्रों के अनुसार किसका कौन सा हाथ देखा जाये इस विषय का आशय लिंग और भेद के अनुसार व्यक्ति के बायें हाथ या दायें हाथ में से किसी एक हाथ को प्रमुख परीक्षण के लिए चुनने से है हस्तरेखा वैज्ञानिकों के अनुसार जातक को किस हाथ को प्रधानता देनी है तथा उसके भूत, भविष्य और वर्तमान को जानने के लिए दायें हाथ की परीक्षा करनी चाहिए या फिर बायें हाथ का यह हस्तरेखा के वैज्ञानिकों के बीच लम्बे समय से वर्तमान तक एक विवाद का विषय रहा है तो आइए जानते हैं इससे सम्बन्धित विषय के बारे में-
कुछ योग्य विद्वान हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार पुरूष के दायें हाथ को अपने व्यक्तित्व, चरित्र स्वभाव तथा भूत, भविष्य व वर्तमान का द्योतक मानते हैं इसके अलावा जातक की हथेली के बायें हाथ को उसकी पत्नी के व्यक्तित्व स्वभाव तथा चरित्र की जानकारी से सम्बद्ध करते हैं।
एक अन्य मत के अनुसार स्त्रियोेचित गुणों वाले मनुष्यों का बायां हाथ, दायें हाथ की अपेक्षा अत्यधिक बलवान समझना चाहिए।
वैज्ञानिकों के मत के अनुसार स्त्रियों का बायां हाथ उनके व्यक्तित्व व स्वभाव का प्रतिनिधित्व करता है तथा स्त्रियों का दायां हाथ उनके पति के गुण स्वभाव या व्यक्तित्व की जानकारी देता है।
कुछ विद्वानों के मतों के अनुसार पुरूष और स्त्री दोनों का ही बायां हाथ जातक के पूर्वजन्म में किये गये कर्मों के फल का प्रतीक होता है इसके अलावा दोनों का दायां हाथ वर्तमान जन्म के वृत्तान्तों का प्रतीक होता है।
पुरूष का बायां हाथ जातक के पूर्वजन्म की जानकारी प्राप्त कराता है तथा उनका दायां हाथ वर्तमान जन्म की जानकारी देता है। इसी प्रकार स्त्री जातकों का बायां हाथ वर्तमान समय और स्त्री जातक का दायां हाथ पूर्वजन्म से सम्बन्धित होता है।
जातकों के लिंग और भेद के अनुसार मानव जाति के तीन भेद किये जा सकते हैं। इनमें से पहला पुरूष, दूसरा स्त्री और तीसरा मिश्रित गुण स्वभाव वाले व्यक्ति होते हैं। इसके अलावा आधुनिक सामाजिक संरचना में लिंग और भेद के विषय के अनेक माप दण्ड भी बदल चुके हैं ऐसा इसलिए क्योंकि आधुनिक समय की महिलाएँ पुरूषों की तरह ही स्वावलम्बी, स्वतंत्र और विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ती जा रही है।
देखा जाए तो महिलाएं भी पुलिस, सेना, व्यापार, खेल विभाग तथा प्रशासन और ज्ञान-विज्ञान इत्यादि क्षेत्रों में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। वर्तमान समय की महिलाएं मात्र अर्धांगिनी ही नही रह गयी हैं, महिलाओं की स्वतंत्रता के इस युग में महिला जातक की स्थिति अनेक मामलों में पुरूषों से भी श्रेष्ठ हो गयी हैं, ऐसे में प्राचीन मान्यताओं के आधार पर आधुनिक नारी का विश्लेषण या मूल्यांकन करना सर्वथा गलत है।
उपर्युक्त तथ्यों के अनुसार हस्तरेखा शास्त्रों और प्राचीन हस्त रेखा वैज्ञानिकों के अनुसार जातक के लिंग और भेद को लेकर गहरा मतभेद है। अतः इस प्रक्रिया से प्राप्त तथ्यों को इस संदर्भ में विहित आचरण व नियमों की मान्यता प्रदान की जानी चाहिए जिससे की हस्तरेखा का विश्लेषण करने के लिए आधुनिक और प्राचीन मान्यताओं के बीच का मतभेद समाप्त हो जाये।
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यहाँ लिंग और भेद के अनुसार किसका कौन सा हाथ देखा जाए इसके बारे में व्याख्या की गई हैं जो निम्न है-
यदि जातक अत्यधिक व्यस्क हैं तो ऐसी स्थिति में पुरूषों का दायां हाथ देखना चाहिए।
यदि महिलाएं स्वयं ही आत्मनिर्भर हों तो ऐसी स्थिति में इन स्त्रियों का दायां हाथ देखना चाहिए।
14 वर्ष की आयु से कम आयु के बालक या बालिकाओं के दोनों हाथ का विश्लेषण करना चाहिए तथा सबसे ज्यादा विकसित हाथ को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।
इसी प्रकार से स्त्री या पुरूष वृद्ध जातकों के भी दोनों हाथों का विश्लेषण अवश्य रूप से करना चाहिए।
अत्यधिक स्त्रियों से संबंध रखने वाले, डरपोक तथा पराधीन पुरूष जातकों के बायें हाथों का ही विश्लेषण करना चाहिए तथा उसे ही विशेष रूप से प्रधानता देनी चाहिए।
पुरूष के जैसे स्वभाव वाली, क्रूर, अत्यधिक बहादुर, अति आत्मसम्मान को प्राप्त करने वाली स्त्रियों के दायें हाथ का ही विश्लेषण अवश्य रूप से करना चाहिए।
जिन व्यक्तियों का हाथ चाहे वह स्त्री हो या पुरूष अत्यधिक सक्रिय होता है चाहे वह खाना खाते समय, पढ़ते लिखते समय या फिर किसी भी कार्यों को करते समय उन स्त्रियों के उसी सक्रिय हाथ का ही विश्लेषण करना चाहिए।
आधुनिक समय के सभी हस्त वैज्ञानिकों ने जातक के दोनों ही हाथों का लिंग-भेद के अनुसार विश्लेषण करने के बाद वर्तमान समय में लिंग-भेद के सीमा को ही समाप्त कर दिया है और चाहे वह स्त्री हो या पुरूष उसके दोनों हाथों को देखने के बाद जो सबसे ज्यादा सक्रिय या विकसित नजर आये उसे ही सबसे पहले देखना चाहिए। इसके अलावा स्त्री व पुरूष जातक का जो हाथ अविकसित और स्थिर प्रवृत्ति का हो उससे जातक की जन्मजात प्रवृत्तियों, गुणों तथा उससे जुड़ी विशेषताओं को जानना चाहिए। यहाँ लिंग और भेद का कोई विशेष आधार नही होता है।