इन्दु लग्न बनायेगा अरबपति

अष्टवर्ग में इन्दु लग्न का मुख्य उपयोग माना जाता है तथा इन्दुलग्न को धन, सुख-समृद्धि का लग्न कहा जाता है। साथ ही वृहत पराशर होरा शास्त्र में इसे चन्द्र योग के नाम से सम्बोधित किया जाता है। किसी भी जातक की आर्थिक स्थिति का विश्लेषण करने के लिए इन्दु लग्न का उपयोग किया जाता है। जो यह निर्धारित करती है जातक कितना धन समृद्ध शाली होगा साथ ही जातक के जीवन में घटित होने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं को प्रदर्शित करता है। उत्तर कलामृत में सभी ग्रह के लिए इन्दु लग्न का विश्लेषण करने के लिए एक मूल संख्या वितरित की गई है लेकिन इन्दु लग्न की गणना में राहु-केतु को स्थान प्राप्त नही है।

इन्दु लग्न के गणना का नियम

इन्दु लग्न में केवल सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि को स्थान प्राप्त है अर्थात राहु-केतु को गणना में सम्मिलित नही किया गया है। इन सात ग्रहों के वितरित मूल संख्या ग्रहों की किरणें या कलाएं कहलाती है और इन्हीं अंको के आधार पर इन्दु लग्न की गणना की जाती है। यह कलाएं निम्नलिखित है।

ग्रह कलाओं की संख्या

सूर्य 30
चन्द्रमा 16
म्ंागल 6
बुध 8
बृहस्पति 10
शुक्र 12
शनि 01

इन्दु लग्न की गणना करने के लिए सर्वप्रथम जन्म कुण्डली में चन्द्रमा से नवमेश की कला का योग और लग्न से नवमेश की कलाओं का योग किया जाता है।

उसके बाद इन दोनों का योग करते हैं यदि यह योग 12 से कम हो तो उस संख्या को लिख लिया जाता है और यदि यह योग 12 से अधिक हो तो इसमे से 12 के गुणक को इस तरह कम किया जाता है कि शेष संख्या 12 हो या 12 से कम प्राप्त हो लेकिन इस बात का पूर्ण ध्यान रखें कि यह परिणाम शून्य नही होना चाहिए यदि शून्य प्राप्त होता हो तो उसके स्थान पर 12 लिख दिया जाता है।

इस प्रक्रिया के पश्चात जो संख्या प्राप्त हुई है उस संख्या के बराबर जन्म कुण्डली में चन्द्रमा द्वारा ग्रहित भाव से आगे के भावों को गिने अब गिनने के बाद जो भाव आता है वही जन्म कुण्डली का इन्दु लग्न कहलााता है।

यदि भाग देने पर शेषफल 1 आ जाये तो इन्दु लग्न वहाँ स्थित होता है जहा चन्द्रमा की उपस्थित हो
उदाहरण कुण्डली से हम यहाँ आपको इन नियमों का उपयोग करके बता रहे है जिससे आप आसानी से इन्दु लग्न की गणन कर सके।

यहाँ हमने तुला लग्न की कुण्डली ली है जिसमे लग्न भाव में राहु और बुध हैं दूसरे भाव सूर्य, मंगल, शुक्र, गुरु पंचम भाव में शनि, सप्तम भाव में केतु तथा द्वादश भाव में चन्द्रमा उपस्थित है।

कुण्डली में लग्न भाव से नवम भाव का स्वामी बुध है जिसकी 8 कलाएं होती है तथा चन्द्रमा से नवम भाव का स्वामी शुक्र है जिसकी 12 कलाएं है।
अब दोनों ग्रहों की कलाओं का योग करते है- 8$12=20 यह योग 12 से अधिक है इसलिए हम प्राप्त संख्या 20 में 12 से भाग देंगे। 12 से भाग करने के पश्चात शेषफल 8 प्राप्त होता है।
अब जन्म कुण्डली में चन्द्रमा जो कन्या राशि में स्थित है वहाँ से 8 भाव आगे अर्थात मंगल राशि (सप्तम भाव) इन्दु लग्न बना रहा है।

इन्दु लग्न के परिणाम

✨ जब कोई ग्रह इन्दु लग्न में उपस्थित होता है तो वह ग्रह अपनी दशा अवधि में आर्थिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
✨ यदि इन्दु लग्न में अशुभ ग्रह हो तो सामान्य परिणाम देखने को मिलते है।
✨ यदि एक ग्रह शुभ और एक ग्रह अशुभ हो तो जातकों को मिश्रित परिणाम प्राप्त होगा।
✨ एक उच्च राशि का पाप ग्रह दशा के अन्तिम अवधि में श्रेष्ठ धन की प्राप्ति कराता है।
✨ इन्दु लग्न में कोई ग्रह न हो तो इन्दु लग्नेश और लग्नेश पर दृष्टि डालने वाले शुभ ग्रह उनके परिणाम की प्राप्ति कराते है।
✨ यदि इन्दु लग्न से दूसरा और ग्यारहवों भाव बलवान हो तो भी जातक आर्थिक क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त करते हैं।

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