Site icon Kundali Expert

कुण्डली के सभी भावों में लग्नेश का फल

कुण्डली के सभी भावों में लग्नेश का फल

जिस तरह हमारी कुण्डली में स्थित भावों का हमारे जीवन में विशेष महत्व होता है ठीक उसी तरह हमारी कुण्डली में लग्नेश का भी उतना ही महत्व होता है। कहा जाता है कि कुण्डली में लग्नेश की विभिन्न भाव में स्थिति के अनुसार ही हमारे जीवन में इसके विभिन्न फल प्राप्त होते हैं।

हमारी कुण्डली के प्रथम भाव को लग्न भाव, लग्न भाव के स्वामी को लग्नेश कहा जाता है। मान्यता के अनुसार जन्म कुण्डली के जिस भाव में लग्नेश स्थित होता है। वास्तव में उस भाव से सम्बन्धित फलों में व्यक्ति की अत्यधिक रूचि होती है। अतः कुण्डली के अलग-अलग भावों में उपस्थित होकर लग्नेश अलग-अलग फल प्रदान करते हैं तो आइए जानते हैं लग्नेश का कुण्डली के बारह भावों में फल क्या होता है।

लग्नेश का प्रथम भाव में फल

हमारी कुण्डली के प्रथम भाव यानि लग्न भाव में लग्न का स्वामी उपस्थित हो तो ऐसा जातक एक सुखी, स्वस्थ तथा ऐश्वर्य सम्पन्न व्यक्ति होता है, इसके अलावा व्यक्ति अत्यधिक चंचल, सुन्दर तथा दीर्घायु की प्राप्ति करने वाला होता है। यह व्यक्ति अपने जीवन में सफलता प्राप्त करता है। विचारों का बहुत धनी तथा विद्वान व्यक्ति होता है। कुण्डली के लग्न भाव में लग्न का स्वामी यदि पीड़ित अवस्था में हो या फिर किसी अशुभ ग्रहों से युत अथवा दृष्ट हो तो ऐसे जातक का स्वास्थ्य थोड़ा खराब रहता है। इसके अलावा जातक की मानसिकता अस्थिर होती है तथा व्यक्ति कई तरह के अनैतिक कार्यों से युक्त भी होता है।

लग्नेश का द्वितीय भाव में फल

कुण्डली के द्वितीय भाव में लग्नेश द्वितीयेश के साथ उपस्थित हो या धन के कारक गुरू के साथ उपस्थित हो तो लग्नेश की महादशा या अंतर्दशा में जातक को अत्यधिक धन की प्राप्ति होती है। इसके अलावा व्यक्ति विद्या, वाणी, उच्च पद तथा आर्थिक सुख, समृद्धि जैसे फलों को प्राप्त करता है। कुण्डली के द्वितीय भाव में केवल लग्नेश सबल तथा अत्यधिक शुभ प्रभाव में हो तो व्यक्ति को अत्यधिक समृद्धि प्राप्त होती है। इसके अलावा यदि नवांश कुण्डली में लग्नेश और द्वितीयेश के बीच में षडाष्टक अथवा द्विद्र्वादश संबंध हो तो ऐसी स्थिति में जातक को अल्प मात्रा में धन के शुभ फलों की प्राप्ति होती है।  कुण्डली में द्वितीयेश अपने जन्म लग्न से षष्ठम, अष्टम तथा द्वादश भाव में चला जाये तो ऐसे में द्वितीय भाव में लग्नेश की उपस्थिति जातक को शुभ फलों की प्राप्ति नही कराता है।

लग्नेश का तृतीय भाव में फल

हमारी कुण्डली में लग्नेश यदि तृतीयेश के साथ कुण्डली के तृतीय भाव में उपस्थित हो तो लग्नेश की महादशा या अंतर्दशा में जातक को माता पक्ष से अत्यधिक लाभ की प्राप्ति होगी। इस स्थिति में जातक साहसिक कार्य करेगा तथा अपने जीवन में किसी भी रूप में हस्तकला का प्रदर्शन करेगा। इसके अलावा व्यक्ति अपने जीवन में लिखित परीक्षा, पत्रकारिता, सूचना, खेल-कूद, दूर-संचार सेवा, शल्य चिकित्सा तथा तकनीकी के क्षेत्र में उत्तम सफलता की प्राप्ति करेगा। यदि कुण्डली के तृतीय भाव में केवल लग्नेश सबल तथा शुभ प्रभाव में उपस्थित हो तो ऐसी स्थिति जातक को उत्तम फल देने वाली होती है इसके अलावा यदि नवांश कुण्डली में लग्नेश तथा तृतीयेश के बीच में षडाष्टक या द्विद्र्वादश संबंध हो तो व्यक्ति को मिलने वाले शुभ फलों के स्थान पर केवल साधारण फलों की प्राप्ति होती है साथ ही व्यक्ति के अन्य कार्यों में भी बाधाएँ आती रहती हैं। जातक की लग्न कुण्डली में तृतीयेश लग्न भाव से छठे, आठवें तथा दसवें भाव में चला जाये तो ऐसे में व्यक्ति को अपेक्षा से बहुत कम सफलता की प्राप्ति होगी परन्तु वहीं यदि तृतीयेश कुण्डली के अन्य भाव में उपस्थित हो तो जातक को उम्मीद से ज्यादा शुभ सफलता की प्राप्ति होगी।

लग्नेश का चतुर्थ भाव में फल

कुण्डली में लग्नेश चतुर्थेश के साथ कुण्डली के चतुर्थ भाव में उपस्थित हो तो ऐसे में जातक को लग्नेश की महादशा या अन्तर्दशा में माता के सुख, उच्च विद्या, वाहन, सम्पत्ति, वस्त्र तथा पशु धन की प्राप्ति होती है। इसके अलावा व्यक्ति को मान-सम्मान, समाज में लोकप्रियता तथा शासन जैसे अधिकारों की प्राप्ति होती है। जातक के नवांश कुण्डली में यदि लग्नेश और चतुर्थेश के बीच में षडाष्टक या द्विद्र्वादश संबंध हो तो ऐसे में जातक को बहुत कम शुभ फलों की प्राप्ति होगी। कुण्डली में स्थित लग्नेश की महादशा या अंतर्दशा में जातक को मिश्रित या अलग-अलग प्रकार के अनुभवों की प्राप्ति होगी। यदि कुण्डली के चतुर्थ भाव में लग्नेश स्वयं अकेले ही सबल हो और उस पर कोई भी पाप प्रभाव न पड़ रहा हो तथा चतुर्थेश भी शुभ भाव में उपस्थित होकर सबल हो तो ऐसे जातक को उसके शुभ फलों की प्राप्ति होगी परन्तु यदि चतुर्थेश कुण्डली में लग्न से छठे, आठवें तथा दसवें भाव में पापक्रान्त या निर्बल अवस्था में हो तो जातक को बहुत कम शुभ फलों की प्राप्ति होगी।

लग्नेश का पंचम भाव में फल

यदि कुण्डली में स्थित लग्नेश जातक की कुण्डली के पंचम भाव में पंचमेश के साथ उपस्थित हो तो लग्नेश की महादशा एवं अन्तर्दशा में जातक को विद्या,बुद्धि,उच्च पद,संतान सुख,दैवीय कृपा तथा राज्य कृपा की प्राप्ति होती है। कुण्डली में स्थित लग्नेश की दशा से जातक को सरकारी पदों की प्राप्ति होती है तथा जातक एक प्रबन्धक के रूप में भी नियुक्त हो सकता है। यदि जातक के नवांश कुण्डली में लग्नेश तथा पंचमेश के बीच में षडाष्टक अथवा द्विद्र्वादश संबंध हो तो जातक को मिलने वाले उपरोक्त शुभ फलों की प्राप्ति नही होती है बल्कि दैवीय कोप, राजकोप, अपने उच्च अधिकारियों की अप्रसन्नता, संतान को कष्ट तथा व्यक्ति की नौकरी में कुछ न कुछ परेशानियाँ अवश्य दिलाने वाली होती हैं इसके अलावा कुण्डली के पंचम भाव में लग्नेश बलवान होकर स्थित हो तो ऐसे में जातक को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। यदि कुण्डली में लग्नेश के साथ पंचमेश का संबंध हो तो ऐसे जातकों को एक उत्तम राजयोग तथा धन योग की प्राप्ति अवश्य होती है। वहीं यदि पंचमेश लग्न से छठे, आठवें तथा दसवें भाव में उपस्थित हो तो जातक को बाधित फलों की प्राप्ति संभव होती है।

लग्नेश का षष्ठम भाव में फल

कुण्डली में लग्नेश यदि षष्ठेश के साथ कुण्डली के षष्ठम भाव में उपस्थित हो तो लग्नेश की महादशा या अन्तर्दशा में व्यक्ति को अपने जीवन में शारीरिक तथा मानसिक कष्ट की प्राप्ति होती है। इसके अलावा प्रशासन से कष्ट, हिस्सेदारी में झगड़ा, शारीरिक चोट अंगों में पीड़ा तथा दरिद्रता जैसे फलों की प्राप्ति होती है यदि जातक के नवांश कुण्डली में लग्नेश उच्च राशि में तथा षष्ठेश नीच राशि में उपस्थित हो तो लग्नेश की महादशा तथा अंतर्दशा में जातक को मिलने वाले अशुभ फलों के स्थान पर शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसके अलावा जल, थल तथा वायु सेना, पुलिस न्यायिक तथा स्वास्थ्य सेवा इत्यादि क्षेत्र से जुड़े हुए व्यक्तियों को लग्नेश की महादशा एवं अन्तर्दशा में पदोन्नति प्राप्त हो सकती है। इन क्षेत्रों में विजय की प्राप्ति के साथ-साथ व्यक्ति युद्ध, मुकदमे तथा प्रतिद्वन्द्विता में भी विजय की प्राप्ति करते हैं।

लग्नेश का सप्तम भाव में फल

जातक की कुण्डली में यदि लग्नेश कुण्डली के सप्तम भाव में सप्तमेश के साथ उपस्थित हो तो लग्नेश की महादशा अथवा अंतर्दशा में जातक को अपनी आजीविका चलाने के लिए यात्राएँ करनी पड़ती हैं। यदि जातक नौकरी क्षेत्र में कार्यरत है तो उनका स्थानान्तरण तथा कार्य में किसी तरह का परिवर्तन संभव हो सकता है। इसके अलावा आपके घर में विवाह इत्यादि जैसे कोई मांगलिक कार्य अवश्य हो सकते हैं तथा सुख तथा भोग में वृद्धि भी आ सकती है। कुण्डली के सप्तम भाव में यदि चर राशि उपस्थित हो तो ऐसे में जातक विदेश अथवा सुदूर प्रान्त में भी जा सकता है। इसके अलावा यदि सप्तम भाव में स्थिर राशि उपस्थित हो तो जातक को अपने कार्यक्षेत्र में स्थानान्तरण करने के अलावा कुछ समय के लिए यात्रा करनी पड़ सकती है। वहीं यदि कुण्डली के सप्तम भाव में चर और स्थिर राशि के अलावा द्विस्वभाव राशि उपस्थित हो तो जातक को अपेक्षाकृत भ्रमणशील तथा विदेश यात्रा करने के साथ-साथ सुदूर प्रान्त भी जाना पड़ सकता है। सप्तम भाव में स्थित लग्नेश यदि बहुत ज्यादा बलवान न हो तो जातक को निरर्थक रूप से इधर-उधर भटकना भी पड़ सकता है। यदि नवांश कुण्डली में लग्नेश तथा सप्तमेश के मध्य षडाष्टक अथवा द्विद्र्वादश दोनों ही संबंध उपस्थित हो तो शुभ फल की प्राप्ति में विलम्ब और बाधा दोनों ही आ सकती है। इसके अलावा यदि जन्म कुण्डली में सप्तमेश त्रिक भाव को छोड़कर अन्य किसी भाव में उपस्थित हो तो लग्नेश की महादशा एवं अंतर्दशा में जातक को अजीविका चलाने, व्यापार क्षेत्र, दाम्पत्य सुख तथा भोगादि सुखों में अत्यधिक शुभ फल प्राप्त होते हैं। परन्तु यदि सप्तमेश कुण्डली में आपके लग्न से छठे,आठवें या बारहवें भाव में उपस्थित हो जाएं तो जातक को अपना मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए अत्यधिक परिश्रम करना पड़ सकता है उसके बाद ही अपेक्षाकृत स्वल्प फल की प्राप्ति सम्भव हो पाती है।

लग्नेश का अष्टम भाव में फल

यदि जातक की कुण्डली में लग्नेश अष्टमेश के साथ अष्टम भाव में उपस्थित हो तो अष्टमेश की महादशा या अन्तर्दशा में जातक को शुभ फलों की प्राप्ति होती है परन्तु लग्नेश की महादशा या अन्तर्दशा में जातक को केवल दुःख, दारिद्रय, दुर्भाग्य बंधन जैसे अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसके अलावा कई प्रकार के रोग, शोक, ऋण, दुष्कर्म तथा बेमतलब के लगे हुए आरोप का सामना करना पड़ सकता है।

नवांश कुण्डली में यदि लग्नेश तथा अष्टमेश दोनों के बीच षडाष्टक योग अथवा द्विद्र्वादश सम्बन्ध हो तो ऐसी स्थिति में जातक को मिलने वाले अशुभ फल बहुत साधारण स्तर के हो सकते हैं।

इसके अलावा कुण्डली में यदि अष्टमेश किसी प्रकार से निर्बल हो जाए या फिर जन्मलग्न से ही वह छठे या बारहवें भाव में स्थित हो तो रोग, ऋण, दुःख दरिद्राय तथा आरोपों से भी जातक को मुक्ति मिल जाती है। सामान्यतः अष्टम भाव में स्थित लग्नेश की महादशा तथा अंतर्दशा जातक के लिए बहुत कष्टप्रद होगी। इसके अलावा अष्टम भाव में यदि लग्नेश और अष्टमेश दोनों ही स्थित हो तो जातक को इसकी उपस्थिति के कारण हर तरह के मिश्रित फलों की प्राप्ति होती है।

लग्नेश का नवम भाव में फल

जातक की कुण्डली में लग्नेश नवमेश के साथ यदि नवम भाव में उपस्थित हो तो लग्नेश की महादशा तथा अन्तर्दशा में जातक का भाग्योदय होगा। इसके अलावा भाग्य में वृद्धि, आर्थिक उन्नति तथा पुण्य कर्मों के द्वारा शुभ फल की प्राप्ति होगी।

इसके अलावा यदि नवांश कुण्डली में लग्नेश तथा नवमेश के बीच षडाष्टक अथवा द्विद्र्वादश सम्बन्ध हो तथा जन्मकुण्डली में नवमेश कुण्डली के लग्न भाव से छठे, आठवें तथा द्वादश भाव में उपस्थित हो तो जातक को मिलने वाले विपरीत फलों की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है वहीं मिलने वाले शुभ फलों की संभावना बहुत कम हो जाती है।

लग्नेश यदि अपनी उच्च राशि में नवमेश के साथ कुण्डली के नवम भाव में उपस्थित हो तो ऐसा व्यक्ति परम भाग्यशाली होता है। इसके अलावा केवल लग्नेश ही कुण्डली के नवम भाव में उपस्थित हो तथा कुण्डली के त्रिक भाव को छोड़कर अन्य किसी भाव में बलवान हो तो ऐसे में भी जातक को अत्यधिक शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

लग्नेश का दशम भाव में फल

किसी जातक की कुण्डली में यदि लग्नेश के साथ दशमेश कुण्डली के दशम भाव में उपस्थित हो तो लग्नेश की महादशा तथा अन्तर्दशा में जातक को विद्या, बुद्धि तथा आजीविका चलाने के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति प्राप्त होगी। इसके अलावा मान-सम्मान, उच्चपद तथा शासन प्रबन्ध और अधिकार की प्राप्ति भी होगी।

यदि नवांश कुण्डली में लग्नेश और दशमेश के बीच में षडाष्टक अथवा द्विद्र्वादश सम्बन्ध हो तथा कुण्डली में दशमेश लग्न से छठे, आठवें या बारहवें भाव में उपस्थित हो जाए तो लग्नेश की महादशा तथा अन्तर्दशा में जातक को उच्च शिक्षा की प्राप्ति तथा अपनी आजीविका चलाने के लिए कई रुकावटों तथा अपयश का सामना करना पड़ सकता है। कुछ परिस्थितियों में जातक को अप्रिय कार्य करने पड़ सकते हैं तथा जातक को प्रभावहीन भी होना पड़ सकता है।

कुण्डली में यदि केवल लग्नेश बलवान होकर दशम भाव में स्थित हो तथा दशमेश बलवान होकर त्रिक भाव के अलावा किसी अन्य भाव में स्थित हो तो जातक को आजीविका चलाने के क्षेत्र में भी विशेष उन्नति प्राप्त होगी।

लग्नेश का एकादश भाव में फल

जातक की कुण्डली में यदि लग्नेश एकादशेश के साथ कुण्डली के एकादश भाव में स्थित हो तो ऐसे में लग्नेश की महादशा और अन्तर्दशा में अत्यधिक शुभ फलों की प्राप्ति होती है। ऐसी स्थिति में जातक को व्यवसाय में आर्थिक उन्नति तथा मनोवांछित इच्छाओं की पूर्ति भी होगी। स्वतंत्र व्यवसाय करने वाले जातक को उनके कारोबार में वृद्धि होगी। इसके अलावा नौकरी कर रहे जातकों को पदोन्नति की प्राप्ति होगी।

यदि कुण्डली में केवल लग्नेश एकादश भाव में बली हो तथा एकादशेश त्रिक भाव को छोड़कर अन्य भाव में स्थित हो इसके अलावा जातक की नवांश कुण्डली में लग्नेश और एकादशेश के बीच षडाष्टक अथवा द्विद्र्वादश सम्बन्ध हो तो जातक को कम लाभ प्राप्त होंगे। इसके अलावा यदि लग्नेश और एकादशेश दोनों ही परस्पर एक दूसरे के शत्रु हो जाएं तो भी जातक को लाभ प्राप्त करने में बहुत सारी बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।

यदि मेष लग्न की कुण्डली में मंगल कुंभ राशि में उपस्थित हो, कन्या लग्न  में, बुधदेव कर्क राशि में उपस्थित हों, तुला लग्न  में, शुक्र सिंह राशि में, वृश्चिक लग्न  में, मंगल कन्या राशि में, धनु लग्न में, गुरु तुला राशि में, मकर लग्न में , शनि वृश्चिक राशि में उपस्थित हो तो कुण्डली में बनी ऐसी स्थिति उन्नति के मार्ग में अत्यधिक बाधक हो सकते हैं।

लग्नेश का द्वादश भाव में फल

जातक की कुण्डली में लग्नेश, द्वादशेश के साथ कुण्डली के द्वादश भाव में स्थित हो तो द्वादशेश की महादशा तथा अन्तर्दशा में जातक को शुभ फलों की प्राप्ति होगी। वहीं यदि लग्नेश की महादशा और अन्तर्दशा हो तो जातक को दुःख दारिद्रय तथा अत्यधिक कष्ट की प्राप्ति होती है। ऐसी स्थिति में जातक को विदेश अथवा किसी दूर के स्थानों में रोजी-रोटी की प्राप्ति के लिए कठिन परिश्रम भी करना पड़ सकता है।

यदि लग्नेश स्वनवांश में स्थित हो तो कुछ परिस्थिति में जातक को शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं। कुंभ लग्न में यदि लग्नेश और द्वादशेश शुभ भाव में उपस्थित हो तो ऐसे में जातक को अवश्य रूप से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

इसके अलावा कुंभ लग्न को छोड़कर अन्य लग्न में केवल लग्नेश ही कुण्डली के द्वादश भाव में पाप प्रभावों से मुक्त हो तो ऐसा जातक लग्नेश की महादशा और अन्तर्दशा में विदेश अथवा किसी दूर स्थान पर जाकर विदेश के सम्पर्क से ही अपने जीवन में उन्नति प्राप्त करते हैं अन्यथा आप अपने जीवन में बिल्कुल अस्थिर और दिशाहीन भी हो सकते हैं।

3,903 Views
Exit mobile version