कुण्डली में कब और कैसे बनता है राजयोग

कुण्डली में राजयोग कब और कैसे बनता है राजयोग का क्या मतलब होता है। किसी जातक की कुण्डली में यदि राजयोग बन जाता है तो क्या उसके सदैव अच्छे परिणाम मिलते हैं। राजयोग किस परिस्थिति में प्रभावशाली नही हो पाता है इन सभी बातों का विश्लेषण आइए हम ज्योतिषाचार्य के.एम. सिन्हा जी के द्वारा समझते है।

सामान्यतः कुण्डली में देखा जाए तो कुण्डली के 4 भाव जिनको केन्द्र स्थान कहा जाता है और त्रिक भाव, त्रिकोण भाव तथा केन्द्र भाव इस तरह के भाव आप भली-भाँति जानते होंगे। कुण्डली का प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव को केन्द्र भाव कहा जाता है। इसके अलावा त्रिकोण भाव में पंचम और नवम् त्रिकोण की गणना की जाती है।

अतः जब भी कोई ग्रह इस भाव के मालिक हों अर्थात जिनको डिपार्टमेन्ट दिया गया है तो केन्द्र का या तो त्रिकोण का यह जब आपस में युति करते हैं तो इस युति में संभावना होती है कि एक अच्छा फल ये कम्बाइंड रुप से दें।

राजयोग के कुण्डली में निर्माण होने का पहला रुल है कि केन्द्र के जो अधिपति ग्रह होते हैं जिनका डिपार्टमेंट केन्द्र का होता है, उनकी युति जब भी त्रिकोण भाव के साथ हो जाती है तो वो एक राजयोग का निर्माण करती है।

राजयोग अगर देखा जाए तो मूलतः इसके कई प्रकार होते है लेकिन पंच महापुरुष योग जिसको राजयोग सबसे अच्छा माना जाता है इसके अलावा बहुत सारे ऐसे योग बनते है जैसे अनफा योग, सुनफा योग, दुर्धरा योग, पर्वत योग, महालक्ष्मी योग तो अलग-अलग तरह के योगों का निर्माण हो जाता है।

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जब हम योग कहते हैं तो इससे हमें जो परिणाम मिलेंगे वह अच्छे मिलेंगे और जब हम दोष कहते हैं तो परिणाम जो होंगे वो खराब मिलेंगे।

यदि आपको इस बात की भली-भाँति जानकारी है कि आपकी कुण्डली में कौन-कौन से योग बन रहे हैं कौन-कौन से दोष बन रहे हैं तो आसानी से आप यह पता कर सकते हैं कि आपका जो जीवन होगा वह किस तरीके का होगा।

कई बार जो राजयोग होता है वह आपको राजाओं के समान सुख देता है और कई बार आप अपनी कुण्डली में देखते है कि राजयोग तो हमारी कुण्डली में बना है परन्तु हमें इसका फल नही मिल पाता है। इसके कई सारे कारण माने गये हैं सबसे पहले केन्द्र स्थान को इसमें क्यों माना जाता है। केन्द्र स्थान में भी प्रथम भाव, चतुर्थ भाव और सप्तम भाव यह सभी भाव बहुत महत्वपूर्ण होते है। प्रथम भाव इसलिए महत्वपूर्ण होता है क्योंकि आप खुद होते है यह भाव आपका लग्न भाव होता है। यह आपकी पर्सनैलिटी आपका रंग, रुप, आकार आदि को बताता है साथ ही आपके सोचने की क्षमता को बढ़ाता है।

चतुर्थ भाव की बात करें तो यह सुख स्थान और माता का भाव होता है, इसे जनता का भाव भी कहते हैं और प्राॅपर्टी से सम्बन्धित भाव को भी हम चतुर्थ भाव कहते है।

कुण्डली का दशम भाव भी अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है यह भाव व्यक्ति के कार्य-व्यवसाय से सम्बन्धित कार्यों को बताता है।

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इसके अलावा पंचम और नवम त्रिकोण के बारे में बात करें तो कुण्डली का पंचम भाव जो होता है वह शिक्षा का होता है, प्रेम-प्रसंग और उदर का कुछ भाग भी पंचम त्रिकोण होता है।

नवम् त्रिकोण की बात करें तो यह धर्म का भाव होता है, पिता के बारे में जानकारी छोटी-मोटी यात्रा के बारे में भी जाना जाता है।

यदि आपके लग्नेश का पंचम भाव के साथ युति हो जाए, आपके लग्नेश का पंचम भाव के साथ युति हो जाए, आपके सुख भाव का पंचम भाव के साथ युति हो जाए, आपके दशम भाव का पंचम भाव के साथ युति हो जाए तो इसके क्या परिणाम मिलेंगे। ठीक इसी तरह से यदि आप परमोटेशन और काम्बीनेशन बनायेंगे तो आपको इसके पीछे का बहुत सारा साइंस समझ में आयेगा साथ ही इसके पीछे का ज्योतिषीय विश्लेषण भी समझ में आ जायेगा।

केवल केन्द्र के घर और त्रिकोण के घर यही दोनों मिलकर राजयोग का निर्माण नही करते हैं। कई बार विपरीत राजयोग का भी निर्माण हो जाता है। कुण्डली में जब कोई ग्रह छठवें, आठवें और बारहवें भाव का जो मालिक होता है वह कुण्डली के छठवें, आठवें और बारहवें भाव में जाकर बैठ जाए साथ ही कुण्डली में लग्न का स्वामी मजबूत हो तो इन दोनों ही स्थितियों में विपरीत राजयोग होता है। यदि आपकी कुण्डली में किसी तरह का राजयोग बन रहा है और आपको उसके अच्छे या बुरे परिणाम नही मिल पा रहे हैं तो इसकी जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे योग्य ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी के द्वारा बताये गये विश्लेषणों की जानकारी इसी से सम्बन्धित अगले ब्लाॅग में प्राप्त कर सकते हैं।

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