सूर्य ग्रहण योग
जब सूर्य एवं राहु के साथ हो तो सूर्यग्रहण योग बनता है जिसके कारण जातक अनेक परेशानियों का सामना करता है। जातक को नेत्र रोग, हृदय रोग, हड्डियों की कमजोरी की सम्भावना रहती है तथा पिता का भी सहयोग कम मिलता है। आत्मविश्वास की कमी होने के कारण जातक को असफलताओं का सामना करना पड़ता है। ग्रहण का शाब्दिक अर्थ है खा जाना अर्थात जब राहु या केतु में से कोई एक सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ स्थित हो जाने से ये ग्रह सूर्य अथवा चन्द्रमा का कुण्डली में फल खा जाते हैं जिसके कारण जातक को विभिन्न क्षेत्रों में परेशानियों का सामना करते हैं।
चन्द्रग्रहण योग
जब चन्द्रमा के साथ राहु अथवा केतु का संबंध हो तो जातक कई मानसिक परेशानियों का सामना करता है। माता को भी कष्ट मिल सकता है और जीवन में सुख-सुविधाओं की कमी होती है जब चन्द्रमा पर राहु अथावा केतु की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक भिन्न-भिन्न प्रकार के विकारों को झेलता है भूमि, वाहन, एवं मकान संबंधित कष्ट देखने को मिल सकते हैं।
नागदोष
जब किसी जातक की कुण्डली के पाचवें भाव में राहु उपस्थित हो तो जातक पितृदोष के साथ-साथ नागदोष से भी पीड़ित होता है। इस दोष के प्रभाव से जातक जीवन में संतुष्टि नही प्राप्त करता है और संतान को लेकर भी चिंता बनी रहती हैं। यह दोष हो तो जातक किसी पुराने यौन संचारित रोगों से ग्रस्त होगा । अत्यधिक परिश्रम के पश्चात भी सफलता नही मिलती है। यदि यह महिला की कुण्डली में हो तो संतान संबंधित परेशानी उत्पन्न होती हैं। बार-बार अस्पताल जाना पड़ता है तथा अचानक मृत्यु तुल्य कष्ट हो सकता है।
ज्वलन योग
सूर्य के साथ जब मंगल की युति हो तो ज्वलन योग का निर्माण होता है जिसके कारण जातक किसी न किसी कारणवश रोग ग्रसित रहता है। और जिस भाव में इस योग का निर्माण होता है उस भाव को अधिक प्रभावित करता है एवं उससे प्राप्त परिणामों में कमी लाता है। उच्च रक्तचाप की समस्या हो सकती हैं
चाण्डाल योग
जब किसी जातक की कुण्डली में गुरू एवं राहु की युति दृष्टि हो तो चाण्डाल योग का निर्माण होता है जिसके फलस्वरूप जातक बड़े बुजुर्गाे एवं गुरुजनों का सम्मान नही करता है। दूसरों से बातचीत करते समय गलत शब्दों का प्रयोग करता है। इस योग के प्रभाव से उदर एवं श्वास रोग की समस्या हो सकती है। साथ ही जीवन कष्टों से भरा रहता है। सकारात्मक सोच की अपेक्षा नकारात्मक सोच अधिक रहती है। स्वयं को हानि पहुंचाने का पर्यत्न करते हैं।
प्रेत दोष
जब किसी जातक की कुण्डली में शनि के साथ बुध विराजमान हो तो प्रेत दोष की समस्या उत्पन्न होती है इस दोष के कारण मनुष्य के शरीर पर किसी भूत प्रेत का साया पड़ जाता है। यह योग पूरे परिवार को प्रभावित करता है। इस दोष में अदृश्य शक्तियां मनुष्य के शरीर पर अपना वश कर लेती है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुण्डली में प्रेत दोष के कारण जातक अपने जीवन में अनेक कष्टों का सामना करता है।
दरिद्र योग
जब किसी जातक की कुंडली में एकादश भाव का स्वामी ग्रह कुण्डली के त्रिक भाव 6, 8, एवं 12 भाव में स्थित हो तो दरिद्र योग का निर्माण होता है। इस योग के प्रभाव से जातक का व्यवसाय आर्थिक स्थिति कमजोर होता है। पूरे जीवन परिश्रम करने के पश्चात भी जातक अच्छी आमदनी नहीं प्राप्त करता है। बार बार आर्थिक क्षेत्र में परेशानियां आती रहती हैं।
कुंज योग
जब किसी जातक कि कुंडली में मंगल लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो कुंज योग का निर्माण होता है इसे मांगलिक दोष कहते हैं। इस योग के प्रभाव से जातक का वैवाहिक जीवन कमजोर रहता है इसलिए ऐसी स्थिति में विवाह करने से पहले कुण्डली मिलान अवश्य कर लेना चाहिए और लड़की एवं लड़के दोनों की कुण्डली में मांगलिक दोष हो तो ही विवाह करना चाहिए।
षड्यन्त्र योग
जब किसी जातक की कुण्डली में लग्नेश अष्टम भाव में हों और किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि न पड़ रही है तो षड्यन्त्र योग का निर्माण होता है। इस योग के प्रभाव से जातक अपने परिजनों के षड़यंत्र का शिकार हो जाता है कोई मित्र या परिजन जातक की धन-सम्पति को विश्वासघात से ले लेता है। लव पार्टनर के कारण भी मुश्कितों का सामना कर सकते हैं।
भावनाश योग
जब किसी जातक की कुण्डली में किसी भाव का स्वामी छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो तो उस भाव के सभी प्रभाव समाप्त हो जाते है। जैसे धन स्थान की राशि मेष हैं और उसका स्वामी मंगल छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो तो जातक की आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाती है।
पिशाच योग
जब शनि के साथ केतु विराजमान हो तो जातक की इच्छा शक्ति बहुत कम होती हैं। साथ ही मानसिक स्थिति भी कमजोर होती है दूसरों की बातों मे जल्दी आ जाते हैं। जिसके कारण इनको कई बार विश्वासघात का सामना करना पड़ता है। मन में नकारात्मक विचारों का आगमन होता रहता है। कई बार स्वयं को हानि भी पहुंचाते हैं।
केमद्रुम योग
जब किसी जातक की कुण्डली मे चन्द्रमा के साथ कोई भी ग्रह न उपस्थित हो तथा आस-पास के भावों में कोई ग्रह न हो एवं किसी ग्रह से दृष्ट न हो तो केमद्रुम योग का निर्माण होता है। इस योग के प्रभाव से जातक मानसिक रूप से पीड़ित रहता है तथा एकान्त रहने में अधिक रुचि रहती है।