पर्वत योग एक प्रकार का राजयोग है जो जातकों को सभी प्रकाार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति कराता है। जिन जातकों की कुण्डली में इस योग का निर्माण होता है वह शारीरिक एवं मानसिक सुख की प्राप्ति करते हैं। समाज में चारों और उनका यश फैलता है तथा मान, पद-प्रतिष्ठा में बढ़ोत्तरी होती है। यदि कोई जातक सरकारी नौकरी कर रहा हो और उसके कुण्डली में पर्वत योग का निर्माण हो तो वह उच्च पद पर कार्यरत रहता है। पर्वत योग को समझने के लिए हमें ग्रहों की जानकारी होना अति आवश्यक है तो आइये इसे दिल्ली के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य के. एम. सिन्हा जी द्वारा समझें-
ग्रहों का स्वभाव
पर्वत योग में ग्रहों का स्वभाव बहुत महत्वपूर्ण रखता है यदि हमें ग्रहों के स्वभाव की जानकारी नहीं होगी तो हम पर्वत योग कुण्डली में बना है कि नहीं इसका पता लगा पायेंगे। पर्वत योग में शुभ ग्रहों का प्रथम स्थान पर रखा जाता है क्योंकि शुभ ग्रहों द्वारा ही पर्वत योग का आमतौर पर निर्माण होता है।
शुभ ग्रहः- गुरु, शुक्र, बुध, कृष्ण पक्ष का चन्द्रमा
पाप ग्रह या क्रूर ग्रहः- सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु एवं शुक्लपक्ष का चन्द्रमा
अथवा
जब किसी जातक की जन्म कुण्डली में लग्न भाव का स्वामी एवं द्वादश भाव का स्वामी केन्द्र भाव अर्थात पहले, चतुर्थ, सातवें या दशम भाव में परस्पर एक साथ बैठे हो तथा किसी ग्रह की मित्र दृष्टि या शुभ ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो तो पवर्त योग का निर्माण होता है। ।
💥 इस योग के प्रभाव से जातक का समाज में मान, पद-प्रतिष्ठा बढ़ता है। कार्य-व्यवसाय में जातक की प्रसिद्धि होती है तथा उसका व्यापार चारों दिशाओं में फैलता है। ऐसे स्थिति में जातक सभी प्रकार के भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति करता है एवं उसका जीवन सुखमय होता है। जातक कम समय में ही धनवान हो जाता है एवं समाज में एक अलग पहचान बना लेता है अपने कर्मों द्वारा भाग्य उन्नति करने में सक्षम होता है। जातक जिस काम को करने की कोशिश करता है उसको उसमें सफलता प्राप्त होती है। भाग्य में अचानक तीव्र गति से वृद्धि होने लगती है और भाग्य का सुख मिलता है। इस योग में जन्में जातक समृद्ध, सम्पन्न, उच्चपदस्थ, कलात्मक गतिविधियों में होते है।
जातक परिजात में पर्वत योग का उल्लेख मिलता है। जिसमें पूर्ण रुप से इस बात का स्पष्टीकरण मिलता है कि केन्द्र में लग्न और बारहवें भाव के स्वामी को सामान्य रुप से ग्रहों की युति में होना चाहिए। सामान्य तौर पर कुंभ लग्न मे शनि का अकेले ही चतुर्थांश में स्थित हो व्यक्ति को शत्रुओं और दायित्व से बचने के लिए छठे, आठवें भाव का खाली रहना शुभ माना जाता है।