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कैसे हुई छिन्नमाता की उत्पत्ति | Chinnamata Benefit |

कैसे हुई छिन्नमाता की उत्पत्ति | Chinnamata Benefi |

हिन्दू पंचाग के अनुसार बैशाख महीने में छिन्नमाता की जयंती मनायी जाती है। छिन्नमाता या छिन्नमस्तिका मां जगदम्बा का ही स्वरुप है। हम सभी ने मां जगदम्बा की तस्वीर को देखा है जिसमे मां ने अपने एक हाथ में खडग और दूसरें हाथ में स्वयं का मस्तक लिया है और उनके मस्तकहीन धड़ से रक्त की तीन धाराएं निकली हुई है जो तीन मुखों में प्रवेश करती है। यह मुख उनकी सखियां, जया, विजया तथा एक मुख स्वयं माता का है। इस वर्ष 3 मई 2023 को छिन्नमाता जयंती मनायी जायेगी।  

गुप्त नवरात्रि मे विद्या की दस महादेवियों की पूजा उपासना की जाती है। उन दस देवियों में छठा स्थान छिन्नमस्ता देवी का है। सनातन धर्म में मां को सर्वसिद्धि पूर्ण करने वाली अधिष्ठाती कहा जाता है। छिन्न माता की श्रद्धापूर्वक पूजा करने से उपासकों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। उन्हें ‘प्रचण्ड चाण्डिका नाम’ से पुकारा जाता है।

छिन्नमाता की उत्पत्ति

कई मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि एक बार माँ जगदम्बा अपने सखियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान-ध्यान कर रही थी। माता के सखियों का नाम जया और विजया था स्नान-ध्यान के दौरान उनकी सखियां भूख से व्याकुल हो उठी। भूख की पीड़ा से उनका शरीर काला सा पड़ गया तब उन्होंने भोजन की तलाश की परन्तु कुछ भी नही मिला तो उन्होंने माँ जगदम्बा से अपने भूख के बारे में बताया तब मां ने उत्तर दिया- हे सखियाँ आप थोड़ा धैर्य रखें, स्नान करने के पश्चात मै आपके भोजन की व्यवस्था कर दूंगी।

मां जगदम्बा की सखियाँ जया और विजया कोई सामान्य स्त्रियां नही थी क्योंकि शक्ति परम्पराओं मे उनका बहुत बड़ा महत्व है। मां जगदम्बा स्नान के बहाने पूरे जगत में अपनी कृपा बरसा रही थी। सखियों ने माता की बात तो सुनी परन्तु उन्हें भोजन के लिए बार-बार टोकने लगी जिससे बार-बार माता का स्नान-ध्यान भंग हो रहा था।

माता से हारकर जया-विजया ने कहा- हे माता ! आप अपने शिशु की भूख को मिटाने के लिए रुधिर पान अर्थात रक्त पान करा देती है और आप तो संसार की पालनहार भी है सबकी भूख को शांत करने वाली माता क्या हमारे भूख को शांत नही करेंगी ? तब माता ने कहा तुम लोग थोड़ा भी धैर्य नही रख सकती तो मुझे ही काटकर खा जाओ। इन सब के बावजूद भी, माँ की सखियां शांत नही हुई और पुनः उन्हें टोकने लगी।

 तब माँ को क्रोध आ गया वह नदी से बाहर आई और तुरन्त ही अपने खड्ग का आवाहन किया तथा उस खड्ग से अपना सिर काट लिया तुरन्त ही सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा और रक्त की तीन धाराएं निकली जिसमें एक धारा जया के मुख में, दूसरी धारा विजया के मुख में तथा तीसरी धारा स्वयं माँ जगदम्बा के मुख में आकर गिरी और तीनों ही देवियां रक्तपान करने लगी। माँ ने स्वयं भी इस रक्त को पिया जिसके कारण उनका क्रोध अत्यधिक बढ़ गया। उसी समय माँ जगदम्बा छिन्नमाता के रुप में प्रकट हुई। पूरे देवलोक में त्राहिमाम मच गई और माता का यह स्वरुप देखकर देवगण भय से कापने लगे कि कहीं मां जगदम्बा पुनः काली अवतार न लें लें और सृष्टि के विनाश का कारण बन जाएं।

इस समस्या का हल निकालने के लिए शिव जी ने कबंध रुप का धारण किया और माता जगदम्बा के प्रचण्ड स्वरुप को शांत किया। माँ जगदम्बा शिव जी के अनुरोध को टाल नही पायी और पुनः माँ पार्वती के रुप में आ गई।

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क्यों दिखते है माता के चरणों में स्त्री और पुरुष

कैसे हुई छिन्नमाता की उत्पत्ति | Chinnamata Benefit | 1

माता की प्रतिमा में माँ के पैरो के नीचे एक स्त्री पुरुष का युगल भी देखने को मिलते है जो इस बात की पुष्टि करते है कि माँ अपने संतान की रक्षा के लिए स्वयं का सिर काट सकती है तथा संतान की भूख मिटाने के लिए रक्तपान भी करा सकती है। युगल इस बात का प्रतीक है कि कामेच्छा का बलपूर्वक दमन भी करना चाहिए। इस भयावह स्वरुप में, अत्यधिक कामनाओं, मनोरथें से आत्म नियंत्रण के सिद्धांतो का प्रतिनिधित्व करती है।

गुप्त नवरात्रि की भूमिका

गुप्त नवरात्रि माघ एवं आषाढ़ माह मे आने वाली नवरात्रि को कहते है। गुप्त नवरात्रि नौ दिनों तक मनाया जाने वाला उत्सव है यह नवरात्रि तंत्र-मंत्र सीखने वाले साधकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है। मां की पूजा हेतु साधक पहले से ही तैयारियों मे लग जाते है। पूजा घर की साफ-सफाई करते है तथा साधक माँ को चिंता पूर्णी भी कहते है क्योंकि माँ सभी चिंताओं को दूर कर देती है।

विशेष

माता के इस स्वरुप ने समाज को बहुत प्रेरित किया है तथा एक उत्तम संदेश भी दिया है कि जब भक्त पीड़ित हो तो माता उनके दुखों को दूर करने के लिए कुछ भी कर सकती है। इसलिए कहा जाता है कि माँ जगदम्बे की महिमा अपरम्पार है। छिन्नमाता देवी तीनों गुणों सात्विक, राजसिक एवं तामसिक का प्रतिनिधित्व करती है।

मां ने स्वयं कहा है कि मैं छिन्न शीश अवश्य हूं लेकिन अन्न के आगमन के रुप सिर में लगे रहने से यज्ञ के रुप में प्रतिष्ठित हूं तथा जब सिर संधान रुप अन्न का आगमन बंद हो जाएगा तब उस समय मैं छिन्नमस्ता ही रह जाती हूं इस महाविद्या का संबंध महाप्रलय से है। महाप्रलय का ज्ञान कराने वाली यह महाविद्या भगवती पार्वती का ही रौद्र रुप है। छिन्नमाता की आराधना दीपावली से आरम्भ करनी चाहिए।

छिन्नमस्त पूजा के लाभ

छिन्नमस्त पूजा से साधकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है तथा आरोग्य जीवन की प्राप्ति होती है। इस पूजा से सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों को दूर किया जाता है। घर-परिवार में खुशियों की प्राप्ति के लिए यह पूजा बहुत महत्व रखती है। जीवन में आने वाली सभी परेशानियों को दूर करने के लिए यह पूजा फायदेमंद होती है।

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छिन्नमस्ता पूजा के मंत्र

श्रीं हृीं क्ली ऐं वज्र वैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा 

छिन्नमस्त पूजा का उद्देश्य

इस पूजा का मुख्य उद्देश्य दुर्गुणों को समाप्त करना है। छिन्नमस्त माता शक्ति की प्रतीक है इसलिए यह पूजा विशेष रुप से महिलाओं के लिए होता है। इस पूजा से घर में नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। साथ ही कई मान्यताओं के अनुसार क्रोध, विवाद आलस्य बढ़ता है जो व्यक्ति के लिए अच्छा नही माना जाता है। तंत्र-मंत्र के लिए भी इस पूजा को महत्वपूर्ण माना जाता है।

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