क्या होता है गंडमूल दोष | Gandamool dosh |

ज्योतिष में 27 नक्षत्र होते है इसमें केतू व बुध के स्वामित्व में आने वाले नक्षत्रों को गंडमूल कहा जाता है। राशि और नक्षत्र के एक ही स्थान पर मिलने या उदय होने पर गंडमूल का निर्माण होता है, अगर कर्क राशि तथा अश्लेषा नक्षत्र की समाप्ति साथ होती है और सिंह राशि का प्रारम्भ एवं मघा नक्षत्र का उदय एक साथ हो तो इसे अश्लेषा गंडक संज्ञक और मघा मूल संज्ञक नक्षत्र कहा जाता है। यदि वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र की समाप्ति एक साथ हो तथा धनु राशि और मूल नक्षत्र का आरम्भ हो तो इस स्थिति को ज्येष्ठा गण्ड और मूल नक्षत्र कहा जाता है। यदि मीन राशि और रेवती नक्षत्र एक साथ समाप्त हो तथा मेष राशि व अश्विनी नक्षत्र की शुरुआत एक साथ हो तो इस स्थिति को रेवती गण्ड और अश्विनी मूल नक्षत्र कहा जाता है।

क्या होता है गंडमूल नक्षत्र दोषकारी

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नक्षत्र, लग्न और राशि के संधि काल को अशुभ माना जाता है और गंडमूल नक्षत्र संधि नक्षत्र होते है। इसलिए जातक पर इसका अशुभ प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। इसके साथ ही गंडमूल नक्षत्रों के देवता भी बुरे प्रभाव देने वाले होते है। यह नक्षत्र मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु व मीन राशि के आरम्भ व अंत में आते है काल पुरुष चक्र के अनुसार इन राशियों का प्रभाव जातक के शरीर, मन, बुद्धि, आयु, भाग्य आदि पर पड़ता है और गंडमूल का प्रभाव भी इन्हीं के ऊपर देखने को मिलता है। जब जातक के जन्म के समय चन्द्रमा इन छः नक्षत्रों में से किसी एक में होता है तो यह स्थिति गंडमूल दोष का निर्माण करती है। यह दोष तब भी कष्टदायक होता है जब कुण्डली में अन्य ग्रह अशुभ हो।

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गंडमूल नक्षत्र कुल छः प्रकार के होते है।

अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल, रेवती

गंडमूल दोष के प्रभाव तथा लक्षण

प्रभावः- इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक गंभीर समस्याओं के शिकार हो सकते है। इस दोष के कारण व्यक्ति के परिजन अर्थात उनके माता-पिता, भाई-बहन और और रिश्तेदार भी प्रभावित हो सकते है। ऐसे जातक परिवार में समस्याएं पैदा कर सकते है और जीवन में गंभीर बाधाओं का सामना कर सकते है।

लक्षणः-

☸स्वास्थ्य में दिक्कत होना।
☸माता-पिता को अधिक कष्ट होगा तथा अल्प आयु का भय।
☸जीवन में नकारात्मक प्रभाव तथा अधिक संघर्ष का होना।
☸दरिद्रता का होना एवं भाग्य हीनता का भय
☸दुर्घटना का भय होना एवं जीवन में कष्टदायक स्थिति का उत्पन्न होना।
☸परिजनों अथवा भाग्य को प्रभावित करना।
☸धन सम्पत्ति की हानि अथवा नाश हो जाना।
☸घरेलू पशुओं और मवेशियों के लिए खतरा।

गंडमूल दोष शांति के उपायः-

☸यदि किसी शिशु का जन्म गंडमूल में हुआ है तो जन्म के 27 वें दिन ठीक उसी नक्षत्र के आने पर शांति के उपाय करने चाहिए।
☸सर्प को दूध पिलाएं।
☸पितृों को निमित्त दान करें व पूजन करें।
☸घर में गंडमूल शांति के लिए यज्ञ का आयोजन करें।
☸किसी मंदिर में शिवलिंग को स्थापित करें।
☸माता-पिता 6 माह तक विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
☸प्रत्येक अमावस्या को गौ, स्वर्ण अन्न का दान अवश्य करें।
☸यदि चन्द्रमा बुध नक्षत्र में हो तो बुध और चन्द्रमा के मंत्र का जाप करना चाहिए।

चन्द्रमा का मंत्रः- ओम श्री सोमाय नमः 108 बार जाप करें।

बुध का मंत्रः- ओम श्री बम बुधाय नमः 108 बार जाप करें।

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☸सोमवार या बुधवार के दिन यदि चन्द्रमा बुध के नक्षत्र में हो तो हरे रंग का वस्त्र धारण करें।☸पालक का अधिक सेवन करना चाहिए और संभव हो तो गौशाला में गायों को पालक और घास खिलाना चाहिए।

☸यदि चन्द्रमा केतु नक्षत्र में हो तो सुख की खोज न करें और बुधवार एवं सोमवार को आध्यात्मिक गतिविधियों पर ध्यान दें।

गंडमूल के चार चरणों का विशेष प्रभावः-

सामान्यतः सभी नक्षत्रों के चार चरण होते है कुल चार चरणों के अनुसार जन्म लेने वाले शिशु पर पड़ने वाले प्रभाव की गणना की जाती है।

अश्विनी नक्षत्र:- अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले शिशु के पिता को कष्ट होता है किन्तु दूसरे चरण में जन्म लेने पर सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। तीसरे चरण में मंत्री पद जैसा उच्च स्थान मिलता है और चौथे चरण में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।

आश्लेषा नक्षत्र:- आश्लेषा नक्षत्र के पहले चरण में शांति का शुभ आशीर्वाद प्राप्त होता है, दूसरे चरण में धन नाश होता है, तीसरे में माता को कष्ट या मृत्यु का भय रहता है, चौथे चरण में पितृ नाश होता है।

मघाः- इस नक्षत्र के पहले चरण में जन्म लिये शिशु के माता को कष्ट पहुंचता है, दूसरे चरण में पिता को कष्ट मिलता है। तीसरे में सुख की प्राप्ति होती है। चौथे चरण में अनेक कष्ट का भय होता है।

ज्येष्ठाः- पहले चरण में जन्म लिए शिशु के भाई-बहनों को कष्ट मिलता है, दूसरे में छोटे भाई-बहनों को कष्ट होता है। तीसरे चरण में माता को कष्ट पहुंचता है तथा उनके मृत्यु का भय होता है। चौथे चरण में पिता के नाश की संभावना होती है।

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मूलः- इस नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म लिये शिशु के पिता को अधिक कष्ट झेलना पड़त है दूसरे चरण में धन का नाश होता है, तीसरे चरण में माता को कष्ट तथा चौथे चरण में शांति एवं सुख की प्राप्ति होती है।

रेवतीः- रेवती नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म लेने वाले शिशु के परिजनों को मान-सम्मान की प्राप्ति होती है तथा दूसरे चरण में मंत्री पद की प्राप्ति कराता है। तीसरे चरण में धन-सम्पत्ति का लाभ प्राप्त होता है। चौथे चरण में अनेक प्रकार के कष्ट मिलते है।