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क्यों की जाती है पंचकोशी यात्रा और क्या है इसकी महत्व

मान्यताओं के अनुसार एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि हे प्रभु ! जो मनुष्य अपने किये पापों का पश्चाताप करना चाहते हैं उनके लिये कोई उपाय बताइये जिससे कल्याण के मनुष्यों का उद्धार हो इस का उत्तर देते हुए भगवान भोलेनाथ ने बताया कि व्यक्ति किसी स्थान पर पाप किये हो, वो पाप पुण्य क्षेत्र में समाप्त हो जाता है। पुण्य क्षेत्र का पाप गंगा प्राप्त होने पर छुट जाता है। गंगा तीर का पाप काशीपुरी में नष्ट हो जाता है। काशी का पाप वाराणसी में नष्ट हो जाता है। वाराणसी का पाप अवियुक्त तथा अविमुक्त का पाप अन्तर्गृही यात्रा में नष्ट हो जाता है परन्तु अन्तर्गही का पाप बज्रलेप के समान होता है। अतः यह पाप व्यक्ति को नही छोड़ता है।

इस वज्रलेप पाप को नष्ट करने के लिए पंचकोशी प्रदक्षिणा करना अति आवश्यक होता है। भगवान भोलेनाथ ने माता से यह भी कहा कि हे देवी! मैं भी भैरव के भय से सदा दक्षिणायन तथा उत्तरायण दोनों अयनो में पंचकोशी यात्रा करता हूँ। भगवान शिव ने माता पार्वती से आगे कहा कि कलयुग में लिंग या तीर्थस्थल गुप्त हो जायेंगे परन्तु उनका विशेष प्रभाव अपने स्थान को नही छोड़ेंगे और शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि कलौ स्थानामि पूज्यन्ते अर्थात गुप्त हुई मूर्ति या तीर्थ के स्थान दर्शन करना और पूजन करना सदैव फलदायी होता है।

कहाँ से आरम्भ करें पंचमकोशी यात्रा

काशी रहस्य के एक लेख के अनुसार पंचकोशी यात्रा मुक्तिमण्डप व्यासासन से आरम्भ होकर वहीं पर खत्म होती हैं। जो व्यक्ति यात्रा का संकल्प मणिकर्णिका पर ही लेकर यात्रा शुरू कर देते हैं उनकी यात्रा अमान्य हो जाती है क्योंकि इस यात्रा का संकल्प ज्ञानवापी स्थिति व्यासासन से ही होना चाहिए। पहला स्थान ज्ञानवापी से कर्दमेश्वर जिसकी दूरी 3 कोस है। दूसरा स्थान कर्दमेश्वर से भीमचण्डी जिसकी दूरी 5 कोस है। तीसरा स्थान भीमचण्डी से रामेश्वर जिसकी दूरी 7 कोस है। चैथा स्थान रामेश्वर से शिवपुर है जिसके बीच की दूरी 5 कोस तथा पाँचवा स्थान शिवपुर से कपिलधारा है जिसके बीच की दूरी 3 कोस का है। कुल 22 कोस हुआ लेकिन अंत में 3 कोस मणिकर्णिका के यात्रा को जोड़ दिया जायें तो यह पंचकोशी यात्रा कुल 25 कोस का हो जाता है।

यात्रा में सवारी का महत्व

क्यों की जाती है पंचकोशी यात्रा और क्या है इसकी महत्व 1

☸ मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति सवारी से यात्रा करते हैं उनके हाथ से पित्तर जल नही ग्रहण करते हैं।

☸ सवारी से यात्रा करने से पंचकोशी यात्रा निष्फल हो जाती है।

☸ जो व्यक्ति यात्रा करने में असमर्थ हो , वो घोड़ा ,गाड़ी अथवा पालकी से यात्रा कर सकते हैं ऐसे में उन्हें दोष नही लगेगा।

☸ यदि स्वस्थ व्यक्ति बैल गाड़ी से यात्रा करते हैं तो उन्हें गोवध का पाप लगता है।

☸ पालकी से यात्रा करने पर आधा फल मिलता है तथा घोड़ा-गाड़ी से यात्रा करने पर यात्रा निष्फल होती है।

☸ पैदल यात्रा करने से व्यक्ति को चौगुना फल की प्राप्ति होती है।

पंचकोशी यात्रा कुछ विशेष नियम

☸ यात्रा के दौरान दूसरे व्यक्ति का अन्न ग्रहण ना करें।

☸ तेल तथा मांसाहार का सेवन ना करें।

☸ मसूर, उड़द, चना तथा पान आदि का सेवन भी ना करें।

☸ रात्रि में जागरण, कीर्तन, भजन आदि करें।

☸ भूमिशयन ही करें।

☸ दुर्जन तथा पापियों से संगत ना करें।

☸ झूठ आदि बोलने से बचें।

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