क्यों पूजा जाता है शालिग्राम पत्थर ?

शालिग्राम पत्थर का धार्मिक आधार पर प्रयोग परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में उनका आह्वान करने के लिए किया जाता है। इस पत्थर को पवित्र नदी की तल अथवा किनारों से एकत्र किया जाता है। पवित्र नदी गंडकी से प्राप्त होने वाले गोलाकार रंग के इस पत्थर के जीवाश्म को भगवान विष्णु के प्रतिनिधि रुप में पूजा जाता है तथा शालिग्राम इनका प्रसिद्ध नाम है। शालिग्राम का सम्बन्ध सालग्राम नामक गांव से है यह गांव नेपाल में गंडकी नामक नदी के किनारे पर स्थित है शिवलिंग और शालिग्राम को भगवान का विग्रह रुप माना जाता है और पुराणों के अनुसार भगवान के इस विग्रह रुप की ही पूजा करनी चाहिए। हिन्दू धर्म में आमतौर पर मानव रुपी धार्मिक मूर्तियों के पूजन की प्रथा है लेकिन उन मूर्तियों के पहले से भगवान ब्रह्मा को शंख, विष्णु जी को शालिग्राम और शिवजी को शिवलिंग के रुप में पूजा जाता था।

भगवान कृष्ण ने श्रीमद् भगवत गीता में 12 वें अध्याय के 5 वें श्लोक में कहा हैः-

जिन मनुष्यों का मन ईश्वर के अप्रत्यक्ष, अवैयक्तिक गुणों से जुड़े होते है, उन मनुष्यो की उन्नति बहुत कठिन है प्रगति करना सदैव मुश्किल होता है, शरीर युक्त जीव को इस अनुशासन में प्रगतिकरना सदैव मुश्किल होता है।

माना जाता है कि, शालिग्राम पत्थर जितना काला होगा जितनी आकृतियां होंगी वो उतना ही श्रेष्ठ होगा।

भगवान शालिग्राम के स्वरूप की कथाः-

भगवान विष्णु को सती वृंदा के श्राप के कारण शालिग्राम का स्वरूप प्राप्त हुआ था। स्कन्द पुराण के कार्तिक महात्मय में भगवान शालिग्राम की स्तुति की गई है। दैत्य की पत्नी वृन्दा अत्यन्त सती थी। उसके सतीत्व को भंग किए बिना शंखचूड़ को परास्त करना असंभव था ने छल से रुप बदलकर वृन्दा का सतीत्व भंग कर दिया उसके पश्चात भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध किया। इस बात का पता जब वृन्दा को चला तब उन्होंने भगवान श्री हरि को एक शिला के रुप में परिवर्तित हो जाने का श्राप दिया जिसके बाद श्री हरि शिला के रुप में परिवर्तित हो गये तब से श्री हरि शिला के रुप में परिवर्तित हो गये तब से श्री हरि शिला के रुप में भी रहते है। उन्हें शालिग्राम भी कहा जाता है। वृन्दा ने अगले जन्म में तुलसी के रुप में पुनः जन्म लिया तब भगवान विष्णु ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि बिना तुलसी दल के उनकी पूजा कभी सम्पूर्ण नही मानी जाएगी।

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शालिग्राम की विशेषताएंः-

जिस प्रकार शिव के विगृह के रूप में शिवलिंग की पूजा होती है। उसी प्रकार भगवान श्री हरि के विगृह के रुप में शालिग्राम का पूजन किया जाता है। शालिग्राम के पत्थरों पर एक छिद्र होता है। पत्थर के अंदर, शंख, चक्र, गदा, पद्य जैसी आकृतियां बनी हुई है। कुछ पत्थरों पर सफेद रंग की धारियां होती है। इस पत्थरों को भगवान विष्णु का रुप माना जाता है। इसकी पूजा भगवान शालिग्राम के रुप में भी की जाती है।

भगवान विष्णु के शाालिग्राम स्वरुप का मन्दिरः-

भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरुप का एक मात्र मन्दिर नेपाल के मुक्तिनाथ क्षेत्र में स्थित है। यह वैष्णव सम्प्रदाय के प्रमुख मन्दिरों में से एक है। मुक्तिनाथ की यात्रा काफी कठिन है माना जाता है कि यहां आने से लोगो को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। काठमांडू से मुक्तिनाथ की यात्रा के लिए पोखरा जाना होता है। पोखरा के लिए सड़क या हवाई मार्ग से जा सकते है, यहां से जोम सोम जाना होता है। जोमसोम से मुक्तिनाथ जाने के लिए हेलीकाप्टर ले सकते है।

शालिग्राम में दिखते हैं भगवान विष्णु के अनेक रूपः-

शालिग्राम लगभग 33 प्रकार के होते है जिनमें से 24 प्रकार के शालिग्राम को भगवान विष्णु के 24 अवतारों से सम्बन्धित माना जाता है। मान्यता है कि ये सभी 24 शालिग्राम वर्ष की 24 एकादशी व्रत से सम्बन्धित है। भगवान विष्णु के अवतारों के अनुसार शालिग्राम यदि गोल है तो वह भगवान विष्णु का गोपाल रुप है मछली के आकार का शालिग्राम श्री हरि के मतस्य अवतार का प्रतीक माना जाता है। यदि शालिग्राम कछुएं के आकार का है तो इसे विष्णु जी के कच्छप और कूर्म अवतार का प्रतीक माना जाता है। शालिग्राम पर उभरने वाले चक्र और रेखाएं विष्णु जी के अन्य अवतारों और श्री कृष्ण रुप में उनके कुल को इंगित करती है।

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