जानिये साल की पहला भौमवती अमावस्या और पंचक
साल के पहले भौमवती अमावस्या पर बन रहा है सर्वार्थ सिद्धि योग एवं पंचकः-
हमारे हिन्दू धर्म में सभी अमावस्याओं को बहुत महत्व दिया गया है उन्हीं मे से एक है भौमवती अमावस्या, जो चैत्र माह में मनाया जाता है जिसके कारण इसे चैत्र अमावस्या भी कहते है। यह अमावस्या मंगलवार के दिन पड़ रही है जिसके कारण इसे भौमवती अमावस्या कहा जाता है। आज के दिन हनुमान जी एवं मंगल देव की पूजा करनी चाहिए। भौमवती अमावस्या पर इस वर्ष पंचक भी है जो पूरे दिन रहेगा, इसका आरम्भ 19 मार्च से हो रहा है। अमावस्या के दिन पितरों को प्रसन्न करने से सुख-समृद्धि आती है एवं हनुमान जी के पूजन से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
भौमवती अमावस्या स्नान दान शुभ मुहूर्त 2023
अमावस्या के दिन स्नान दान जैसे शुभ कार्यों का आरम्भ ब्र्रह्म मुहूर्त के साथ हो जाता है। भौमवती अमावस्या पर ब्रह्म मुहूर्त 04 बजकर 49 मिनट से सुबह 05 बजकर 37 मिनट तक रहेगा। अतः इस अवधि में स्नान दान करना सबसे शुभ होता है लेकिन इसके बाद भी स्नान-दान का कार्यक्रम चलता रहता है।
भौमवती अमावस्या पर सर्वार्थ सिद्धि योग एवं पंचक
21 मार्च 2023 को सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है जो शाम 05 बजकर 25 मिनट से आरम्भ होकर 22 मार्च को सुबह 06 बजकर 23 मिनट तक रहेगा उसके पश्चात शुभ योग प्रातः काल से आरम्भ होकर दोपहर 12 बजकर 42 मिनट है तत्पश्चात शुक्ल योग प्रारम्भ हो जायेगा।
भौमवती अमावस्या के दिन शुभ मुहूर्त अर्थात अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 04 मिनट से अगले दिन दोपहर 12 बजकर 53 मिनट तक है साथ ही पंचक भौमवती अमावस्या के पूर्ण दिन रहेगा। पंचक का प्रारम्भ 19 मार्च तथा समापन नवरात्रि के दूसरें दिन अर्थात 23 मार्च दिन गुरुवार को होगा।
भौमवती अमावस्या की पूजा 2023
अन्य अमावस्याओं की भांति भौमवती अमावस्या की पूजा भी बहुत महत्वपूर्ण है। आज के दिन सर्वप्रथम पितरों की पूजा करें तथा उनको तर्पण पिंडदान आदि करते हैं। हमारे हिन्दु धर्म में चैत्र अमावस्या को बहुत ही शुभ माजा है। यह अमावस्या मार्च-अप्रैल के महिने में आती है। तथा इस दिन का बहुत महत्व भी है। इस दिन धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियां की जाती है। जैसे स्नान दान चैत्र अमास्या को पितृ तर्पण जैसे अनुष्ठानों के लिए भी जाना जाता है लोग कौवे, गाय, कुत्ते और यहाँ तक की गरीब लोगों को भी भोजन कराते है। गरूण पुराण के अनुसार अमावस्या को पूर्वज अपने वंशजों के यहां आते है और उनसे भोजन ग्रहण करते है। यह व्रत प्रातः काल से ही प्रारम्भ हो जाता है तथा प्रतिपदा को चंद्रमा दर्शन होने तक चलता है।
चैत्र अमावस्या पर श्राद्ध का अनुष्ठान
हमारे सनातन धर्म में श्राद्ध का एक महत्वपूर्ण महत्व है क्योंकि यह मृत पूर्वजों की पूजा का साधन है हिन्दू संस्कृति के अनुसार यह माना जाता है कि मृत्यु के बाद पूर्वज या दिवंगत आत्माएं पितृ लोक में निवास करती है और पितृ लोक में रहने के दौरान पूर्वजों या इन आत्माओं को बहुत तपस्या, व्यास और भूख का अनुभव करना पड़ता है इस कष्टों को केवल वंशजों द्वारा दिए गये पवित्र प्रसाद के साथ ही कम किया जा सकता है। ये पवित्र और धार्मिक प्रसाद है जो मंत्रों के साथ प्रस्तुत किये जाते है। और पितृ लोक में रहने के दौरान पूर्वज के कष्ट समाप्त कर देते है।
चैत्र अमावस्या व्रत और धार्मिक अनुष्ठान
सूर्योदय से पहले उठकर किसी पवित्र नदी अथवा सरोवर में स्नान करें
उसके पश्चात मंत्रों का उच्चारण करते हुए सूर्यदेव को अघ्य दै।
यदि संभव हो तो इस शुभ अवसर पर व्रत अवश्य रखें तथा जरूरतमंद लोगों को भोजन खिलाएं।
गरीबों में भोजन एवं वस्त्र का दान करें।
श्राद्ध करने के पश्चात ब्राह्मण, गरीब, गाय, केतु, कौवे एवं छोटे बच्चों को भोजन कराये।
शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल से मिट्टी का दीया रखें।
आप शनि मंदिर में नीले फूल, काले तिल, काले वस्त्र, उड़द की दाल और सरसों का तेल भी चढ़ा सकते है।
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चैत्र अमावस्या व्रत पर उपवास के लाभः-
हिन्दू पंचाग के अनुसार चैत्र महिने में अमावस्या का दिन आता है। हिन्दू संस्कृति के इस दिन उपवास का बहुत महत्व है इस दिन हम शांति और समृद्ध स्वास्थ्य के लिए भगवान विष्णु की पूजा करते है।
इस दिन उपवास रखने से जीवन की सभी समस्याये दूर होती है और शांति तथा सहाव आता है।
कहा जाता है। कि इस दिन हमारे पूर्वज धरती पर आते है। इसलिए अमावस्या की रात को प्रार्थना की जाती है और उन्हे जल और भोजन दिया जाता है।
सभी नकारात्मक और बुरी आत्माओं से छूटकारा पाने के लिए आध्यात्मिक अनुष्ठान किए जाते है।
इस दिन आध्यात्मिक उपचार भी किया जाता है। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने में मदद करता है।
भौमवती अमावस्या शुभ तिथिः-
अमावस्या तिथि प्रारम्भः- प्रातः 11ः41 21 मार्च 2023
अमावस्या तिथि समापनः- रात्रि 10ः52 21 मार्च तक