जगन्नाथ रथ यात्रा 2023

जगन्नाथ पूरी में भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण भगवान का मन्दिर है। जो बहुत बड़ा और कई सालो पुराना है। इस जगह का एक आकर्षण जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा है। यह रथ यात्रा किसी त्यौहार से कम नही होती है यात्रा अन्य कई अलग-अलग देशो से भी निकाली जाती है। सागर के किनारे बसे जगन्नाथ  पूरी शहर में होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव के समय आस्था का जो आनन्द देखने को मिलता है। वह भव्य भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा भारत में मनाए जाने वाले धार्मिक महोत्सवों में से सबसे प्रमुख और धार्मिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। सागर तट पर बसे हुए शहर पूरी की जगन्नाथ रथ यात्रा सबसे भव्य विशाल और आकर्षित करने वाली होती है । यहां के भक्तों की आस्था देखने लायक होती है।

रथ यात्रा की कथा

भगवान कृष्ण और बलराम को मारने के लिए उनके मामा कंस ने उन्हें मथुरा को आमंत्रित किया उन्होंने अकरुर को गोकुल के रथ के साथ भेजा। बलराम के साथ भगवान कृष्ण रथ पर बैठे और मथुरा के लिए चले गए। उस घटना को भी रथ यात्रा में सम्मिलित किया जाता है।

द्वारिका में श्री कृष्ण रुक्मिणी और महर्षियों के साथ शयन करते हुए एक दिन रात की नींद में राधे-राधे बोल पड़े तब महारानियों को आश्चर्य हुआ। जागने पर श्री कृष्ण ने अपना मनोभाव नही व्यक्त होने दिया लेकिन रुक्मिणी ने अन्य रानियों से बताया की सुनते है! वृन्दावन मे राधा नाम की गोप कुमारी है। जिनको श्री कृष्ण ने हम सब की इतनी सेवा निष्ठा भक्ति के बाद भी नही भुलाया है। राधा की श्री कृष्ण के साथ रहस्यात्मक रास लीलाओं के बारे में माता रोहिणी भली प्रकार जानती थी उनसे जानकारी प्राप्त करने के लिए सभी महारानियों ने अनुनय-विनय की पहले तो माता रोहिणी ने टालना चाहा लेकिन महारानियों के हठ करने पर कहा ठीक है। सुनो लेकिन पहले सुभद्रा को पहरे पर बिठा दो ताकि कोई अन्दर न आने पाये भले ही बलराम या कृष्ण ही क्यो ना हो। माता रोहिणी की बात शुरु करते ही श्री कृष्ण और बलराम आते दिखे तो सुभद्रा ने उचित कारण बता दिया और द्वार पर ही रोक दिया। श्री कृष्ण और बलराम दोनो बाहर से ही माता रोहिणी द्वारा सुनायी गई रासलीला को सुन अद्भूत प्रेम रस मे खो जाते है। माता रोहिणी को यह पता चलता है तो वह सुभद्रा के साथ श्री कृष्ण और बलराम को रथ यात्रा के लिए भेज देती है। तभी वहां नारद जी प्रकट होते है। तीनों को एक साथ देखकर वह प्रसन्न हो जाते है और प्रार्थना करते है की तीनों के ऐसे दर्शन हर साल होते रहे। उनकी प्रार्थना सुन ली जाती है तथा रथ यात्रा के द्वारा उन तीनों के दर्शन सबको होते है।

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जब भगवान कृष्ण का जन्म होता है। उस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा श्री कृष्ण के भाई बलराम और उनकी बहन सुभद्रा को रत्न सिंहासन से उतार कर भगवान जगन्नाथ के मंदिर के पास बने स्नान मंडप मे ले जाया जाता है। वहां पर उन्हें 108 घड़ो से स्नान करवाया जाता है। इस स्नान के पश्चात भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते है और 15 दिन बाद जब वह पूरी तरह से स्वस्थ हो जाते है। तब भक्तो को दर्शन देने के लिए भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर बैठकर नगर में भ्रमण के लिए निकलते है ताकि भक्त उनके दर्शन कर सकें।

जगन्नाथ यात्रा का महत्व

श्री कृष्ण जी के अवतार जगन्नाथ जी की रथयात्रा में शामिल होने का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना जाता है। सागर तट पर बसे शहर मे होने वाली जगन्नाथ जी की रथ यात्रा उत्सव के समय आस्था का भव्य रुप देखने को मिलता है। रथ यात्रा को निकाल कर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता मन्दिर पहुंचाया जाता है। यहां भगवान जगन्नाथ आराम करते है। गुड़िचा माता मन्दिर में भारी तैयारी की जाती है एवं मन्दिर की सफाई की जाती है तथा सफाई के लिए इन्द्रधुमन सरोवर से जल लाया जाता है। चार धामों मे से एक धाम जगन्नाथ मन्दिर को माना गया है। इसलिए जीवन में एक बार यात्रा शामिल होने के लिए शास्त्रों में भी लिखा है। जगन्नाथ रथ यात्रा में एक बार सबसे आगे भगवान बालभद्र का रथ रहता है। बीच में भगवान की बहन सुभद्रा का एवं अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ रहता है। इस यात्रा में जो सच्चे भाव से शामिल होता है। उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है तथा मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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यात्रा की विशेषताएं

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा एक पर्व की तरह मनाया जाता है। एक दिन भगवान की बहन सुभद्रा ने नगर देखने का इच्छा प्रकट की और पूरे द्वारका देखने को बोली उनकी प्रार्थना की तब भगवान जगन्नाथ ने अपनी बहन को रथ में बैठाकर नगर का भ्रमण करवाया जिसके बाद से हर वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलराम एवं बहन सुभद्रा की प्रतिमाएं रखी जाती है और उन्हें नगर का भ्रमण करवाया जाता है। यात्रा के तीनों रथ लकड़ी के बने होते है। जिन्हें श्रद्धलु खींचकर चलते है। भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिएं लगे होते है तथा बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिएं लगे होते है। इस यात्रा का सम्पूर्ण वर्णन स्कन्द पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण ब्रह्म पुराण आदि में मिलता है। इसलिए यह यात्रा बहुत ही मंगलकारी तथा कल्याणकारी होती है।

जगन्नाथ रथ यात्रा शुभ मुहूर्त

19 जून 2023 सोमवार को 11ः26 पर शुरु होगी।
20 जून मंगलवार को 01ः08 पर समाप्त होगी।