जीवित्पुत्रिका व्रत या जिउतिया कथा पूजा विधि एवं महत्व 2022

जीवित्पुत्रिका व्रत अर्थात जिउतिया व्रत आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। यह व्रत संतान की मंगल कामना के लिए किया जाता है। विशेष रुप से यह व्रत माताएं रखती है। यह व्रत निर्जल व्रत होता है। अश्विन मास की कृष्ण पक्ष सप्तमी से नवमी तक जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है। संतान की सुरक्षा के लिए इस व्रत को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। जिसमे पूरा दिन एवं पूरी रात पानी नही पिया जाता है। मुख्य रुप से यह त्यौहार उत्तर प्रदेश, बिहार एवं नेपाल मे मनाया जाता हैै। इस वर्ष जिउतिया 18 सितम्बर 2022 दिन रविवार को मनाया जायेगा।

जिउतिया का महत्व

हमारे देश मे भक्ति एवं उपासना का एक रुप उपवास है। जो मनुष्यो में संयम त्याग, प्रेम और श्रद्धा की भावना को बढ़ाते है। सुहागन महिलाएं संतान की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती है। यह व्रत संतान की खुशहाली एवं परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए भी किया जाता है। तथा संतान की लम्बी आयु के लिए भी यह व्रत बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस व्रत को वंश वृद्धि के लिए विशेष माना जाता है। और ऐसा माना जाता है कि जो भी स्त्रियां अपनी संतान के लिए जीवित्पुत्रिका का व्रत करती है उनके संतान को चारों ओर यश की प्राप्ति होती है और समाज मे भी मान पद प्रतिष्ठा बढ़ता है।
कहा जाता है कि एक बार जंगल मे एक चील और एक लोमड़ी धूम रहे थें तभी उन्होंने मनुष्य जाति को इस व्रत को करते देखा तथा उस व्रत की पूरी कथा भी सुनी परन्तु यह व्रत और कथा चील बहुत ही ध्यानपूर्वक एवं श्रद्धा से सुन रहा था लेकिन लोमड़ी ने इस पूजा पर विशेष ध्यान नही दिया। जिससे लोमड़ी की संतान की मृत्यु हो गई और चील की संतान कोई भी हानि नही हुआ। इस प्रकार इस व्रत का बहुत बड़ा महत्व बताया जाता है।

जिउतिया की पौराणिक कथा

यह कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। जब महाभारत का युद्ध हुआ तो उस युद्ध मे अश्वथामा के पिता की मृत्यु हो गई जिससे वह बहुत नाराज हो गये उनके अन्दर बदले की भावना इतनी बढ़ गई कि उन्होने पांडवो के शिविर मे घुस कर सोते हुए पाँच लोगो को पांडव समझकर मार दिया। और यह सभी संतान द्रौपदी की थी। अश्वथामा के इस अपराध के कारण अर्जुन ने उसे बंदी बना लिया। साथ ही दिव्य मणि भी छीन लिया। जिसके फलस्वरुप अश्वथामा ने उत्तरा की अजन्मी संतान को गर्भ मे मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया। इस ब्रह्मास्त्र को निष्फल करना नामुमकिन था और उत्तरा की संतान का जन्म लेना भी उतना ही आवश्यक था। इस समस्या को सुलझाने के लिए श्री कृष्ण जी ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को दे दिया। फलस्वरुप उत्तरा की संतान गर्भ मे ही पुर्नजीवित हो गई। गर्भ मे मरकर ही जीवित होने के कारण उसका नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा और आगे चलकर राजा परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ तभी से इस व्रत का प्रारम्भ हुआ।

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नागवंश से जुड़ी कथा

इस कथा के अनुसार जीमूतवाहन गंधर्व के एक महान एवं बुद्धिमान राजा थे। जीमूतवाहन अपने शासक बनने से प्रसन्न नही थें। जिसके कारण उन्होने अपने राज्य की पूरी जिम्मेदारी अपने भाइयो को सौप दी। और अपने पिता की सेवा के लिए जंगल मे इधर-उधर भटकने लगें तभी उन्होने एक बुढ़िया को रोते हुए देखा और बुढ़िया से रोने का कारण पूछा तब बुढ़िया ने बताया कि वह नागवंशी परिवार से है और उसका एक ही बेटा है। एक शपथ के रुप मे प्रतिदिन एक सांप पक्षीराज गरुड़ को चढ़ाया जाता है। और उस दिन उसके बेटे की बारी आई है। तब जीमूतवाहन ने बुढ़िया को बहुत समझाया और कहा हे! बुढ़ि माँ तुम चिन्ता मत करो मै तुम्हारें बेटे को जिन्दा वापस लाउंगा। जीमूतवाहन स्वयं गरुड़ का चारा बनने के लिए जंगल की चट्टान पर लेट जाते है। तब गरुड़ आता है और अपनी उंगुलियों से लाल कपड़े से ढ़के जीमूतवाहन को पकड़कर चट्टान की चोटी पर चढ़ जाता है। गरुड़ को यह सोचकर बहुत हैरानी हो रही थी। इसकी मृत्यु इतने करीब है फिर भी यह कोई हरकत क्यो नही कर रहा है। तब गरुड़ ने जीमूतवाहन से उनके बारे मे पूछा। जीमूतवाहन की पूरी बात सुनकर गरुड़ उसके वीरता एवं परोपकार से बहुत प्रसन्न हुआ। जिसके फलस्वरुप गरुड़ ने सांपो से कोई और बलिदान न लेने का वादा किया। तभी से ऐसा माना जाता है कि संतान की लम्बी उम्र के लिए जिउतिया का व्रत मनाया जाता है।

जिउतिया व्रत विधि

यह व्रत तीन दिनों तक मनाया जाता है। तीनो व्रतों की विधि अलग-अलग होती है।
नहाई खाईः- यह जिउतिया व्रत का पहला दिन होता है और इसी दिन से व्रत की शुरुआत हो जाती है। इस दिन स्नान करने के बाद स्त्रियाँ केवल एक बार भोजन ग्रहण करती है उसके बाद कुछ नही खाती है।
खर जिउतियाः- यह जिउतिया व्रत का दूसरा दिन होता है और यह दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस दिन स्त्रियाँ पूरे दिन निर्जल व्रत करती है।
पारणः- यह जिउतिया व्रत का अंतिम दिन होता है। इस दिन स्त्रियाँ बहुत कुछ खाती है। तथा मरुवा की रोटी दिन के पहले भोजन मे ली जाती है। उसके बाद झोर, भात, साग एवं रोटी।

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जिउतिया व्रत की पूजन विधि

☸ सर्वप्रथम जल्दी उठकर स्नान करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
☸उसके बाद भोर मे ही गाय के गोबर से पूजा स्थल को साफ करें।
☸ उसके बाद एक छोटा सा तालाब बनाकर तालाब के पास एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ी करें।
☸ उसके बाद शालीवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की मूर्ति जल के पात्र मे स्थापित करें।
☸ उसके बाद उन्हें दीप, धूप, अक्षत, रोली, लाल और पीली रुई से सजाये और भोग भी अर्पित करें।
☸ भोग अर्पित करने के बाद मिट्टी अथवा गाय के गोबर से चील और लोमड़ी की मूर्ति बनायें। और इनके बाद माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगायें।
☸ पूजा के अंत में जिउतिया व्रत की कथा सुने एवं पढ़ें।
☸ माँ को 16 पेड़ा, 16 दूब की माला, 16 खड़ा चावल, 16 गाठ का धागा, 16 लौंग, 16 इलायची, 16 पान, 16 सुपारी और श्रृंगार की वस्तुए अर्पित करें।
☸ वंश की वृद्धि के लिए पूरे दिन उपवास रखकर बांस के पत्रो से पूजा करें।

जिउतिया व्रत की शुभ तिथि एवं शुभ मुहूर्त

जिउतिया व्रत की शुभ तिथि 18 सितम्बर 2022 दिन रविवार
व्रत की अष्टमी तिथि का प्रारम्भः- 17 सितम्बर 2022 को दोपहर 02ः14 से
व्रत की समापन तिथिः- 18 सितम्बर 2022 को सायं 04ः32 तक

जिउतिया व्रत की प्रसिद्ध कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार गरुड़ और एक मादा लोमड़ी नर्मदा नदी के पास एक हिमालय की जंगल मे रहते थें। एक दिन दोनो ने घूमते-घूमते देखा कि कुछ महिलाएं पूजा एवं उपवास कर रही है। तब उन्होने भी इस व्रत का पालन करने का संकल्प लिया परन्तु उपवास के दौरान लोमड़ी भूख-प्यास से बेहोश हो गई और चुपके से भोजन भी कर लिया। वही दूसरी ओर, चील ने इस व्रत का पालन पूरी श्रद्धा और विधिपूर्वक किया जिसके फलस्वरुप लोमड़ी की सभी संतान जन्म के कुछ दिन बाद ही खत्म हो गई और चील की संतान लम्बी आयु पाकर धन्य हो गई।

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