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बृहस्पति महादशा में अन्य ग्रहों की अन्तर्दशा का फल

बृहस्पति का राशि परिवर्तन मेष राशि 22 अप्रैल

बृहस्पति की महादशा में बृहस्पति के अन्तर्दशा का फल

शुभ :-यदि बृहस्पति उच्च राशि, स्वराशि आदि में केन्द्र या त्रिकोणस्थ होकर शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो तो अपनी महादशा में अपनी अन्तर्दशा के समय जातक को अच्छा व शुभ फल देता है। जातक को धर्म के क्षेत्र में रुचि व वेद पुराण के विषय में रुचि बढ़ता है। मान-सम्मान में वृद्धि कार्य में सफलता बड़ो की कृपा प्राप्त होती है। गौ-ब्राह्मण तथा अतिथि की सेवा, विवाह तथा अन्य मांगलिक कार्य व गौशालय में वृद्धि होगी तथा सभी कार्यों में सफलता मिलेगी।

अशुभ:-  यदि बृहस्पति नीच राशि, अस्त, दुष्ट स्थानधिपति एवं पापी ग्रहों से युक्त या दुष्ट हो तो जातक की बुद्धि खराब हो जाती है। कोई भी कार्य में सफलता नही मिलता है। जातक चिड़चिड़ा स्वभाव का हो जाता है। धन व पद प्रतिष्ठा को खत्म कर देता है। परिवार व पत्नी से कलह होता है। संतान पक्ष व शारीरिक कष्ट मिलता है।

बृहस्पति की महादशा में शनि के अन्तर्दशा का फल

शुभ :- यदि शनि कुण्डली में अच्छा हो, उच्च राशि का बलवान तथा अच्छे ग्रहों के साथ में हो तो बृहस्पति की महादशा में शनि की अन्तर्दशा आने पर जातक को स्वास्थ्य, सुख-सुविधा से खुशी मिलती है। धन-धान्य में वृद्धि होती है। जातक को पश्चिम देशो में यात्रा कराता है। जातक को पश्चिम दिशा के लोगो से लाभ प्राप्त हो सकता है। पत्नी को बराबर समय न देने के कारण कलह हो सकता है। जातक को वाहन का सुख प्राप्त हो सकता है। भले ही वाहन खुद या किराय का हो।

अशुभ:- यदि शनि नीच अस्त वक्री और पापी प्रभाव में हो तो जातक की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। ऐसे में जातक गलत क्षेत्र में कार्य करने के उग्र हो जाता है तथा वैवाहिक जीवन में कलह रहता है। विवाह सम्बन्ध में होने के बावजूद दूसरों लोगो के सम्पर्क में रहते है। जातक का स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। अनेक प्रकार के रोग दूर हो जाते है।

बृहस्पति की महादशा में बुध के अन्तर्दशा का फल

शुभ :- यदि बुध कारक हेा व उच्च स्थान में हो तो जातक पर बृहस्पति की महादशा और अपनी अन्तर्दशा दोनो स्थिति में जातक पर शनि अन्तर्दशा में जो कष्ट मिला है उससे छुटकारा मिलता है तथा जातक को सफलता मिलता है। खुशियां प्राप्त होता है। जातक को पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन में मन लगता है परन्तु बुध चन्द्रमा के साथ और मंगल के साथ हो तो फलों में कमी आ जाती है। जिसके फलस्वरुप आपको दुश्मनी का सामना करना पड़ता है।

अशुभ:- यदि बुध नीच स्थान या अशुभ प्रभाव में हो तो जातक का मन जुआ, सट्टा तथा शेयर में हानि होती है। जातक द्वारा किए गए सब कार्यों में हानि मिलती है। जातक को मस्तिष्क रोग होती है परन्तु कभी-कभी जातक को खुशी भी होता है। जातक को अनेक रोग होता है।

बृहस्पति की महादशा में केतु के अन्तर्दशा का फल

शुभ :- बृहस्पति की महादशा में केतु की उपदशा चले तो जातक को दूसरे लोगो से सुख-सुविधा व धन प्राप्त होता है तथा विशेष रुप से मृत्यु के पश्चात का भोजन अथवा श्राद्ध का भोजन मिलता है जिसके परिणाम जातक का बुद्धि नीच स्थान में चला जाता है तथा जातक द्वारा किये गये कोई भी कार्य ठीक नही होता तथा उसमें जातक को जानवरों से खुशी मिलता है तथा दूसरे जाति के लोगो के द्वारा लाभ प्राप्त होता है।

अशुभ:- बृहस्पति की महादशा में अगर अशुभ प्रभाव में हो तो अपने अन्तर्दशा में जातक पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जातक पर पितृदोष उत्पन्न हो जाता है तथा जातक को अपने इष्ट-मित्र या किसी करीबी से धोखा मिलता है। जातक अपने मार्ग से विचलित हो जाता है तथा जातक को हृदय गैस, किडनी की बिमारी हो सकती है।

बृहस्पति की महादशा में शुक्र के अन्तर्दशा का फल

शुभ :- यदि बृहस्पति की महादशा में शुक्र अपने उच्च स्थान में हो तथा शुभ ग्रह जैसे भाग्य भाव का स्वामी कर्म भाव का स्वामी व लाभ भाव का स्वामी तीनो के साथ अपनी अन्तर्दशा में हो तो जातक अच्छा परिणाम प्राप्त करता है। जैसे जातक को बड़े वाहन की प्राप्ति हो सकती है तथा जातक को यश, पद, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान व अधिकार प्राप्त हो सकते है। जातक को अपने कार्यों में रुचि बढ़ जाती है। जातक को विवाह के दौरान व लड़की पक्ष से अत्यधिक धन प्राप्त हो सकता है और जातक का एक से अधिक स्त्रियों के साथ सम्बन्ध बनाने की इच्छा उत्पन्न होती है।

अशुभ:- बृहस्पति की अन्तर्दशा मे शुक्र अशुभ व नीच स्थान होने के फलस्वरुप जातक के वैवाहिक जीवन में मनमुटाव आ सकता है। जातक पर आकाल मृत्यु का भय बना रहता है। जातक वैश्यागमन के मार्ग के तरफ अग्रसर हो जाता है। जातक किसी का आदर-सम्मान नही करता है।

बृहस्पति की महादशा में सूर्य के अन्तर्दशा का फल 

शुभ :- बृहस्पति की महादशा में सूर्य अगर उच्च स्थान तथा शुभ ग्रह के साथ हो तो अपनी अन्तर्दशा में जातक को शुभ परिणाम देता है। जातक का पदोन्नति होता है जातक के वेतन में वृद्धि होती है तथा आय के नए स्त्रोत मिलते है। जातक द्वारा किये गये कार्यों मे तुरन्त सफलता मिलता है। जातक का मंत्री, अधिकारी व उच्च वर्ग के लोगो के साथ सम्बन्ध बनता है। यश, सुख-सुविधा उत्साह में वृद्धि होती है।

अशुभ:- सूर्य की अशुभ व नीच स्थान मे होने से बृहस्पति अपनी अन्तर्दशा मे जातक को अनेक नकारात्मक परिणाम मिलता है। जातक का मन विचलित होता है। किसी कार्य मे मन नही मिलता तथा असफलता है, व्यापार मे हानि होता है। जातक को नेत्र रोग होता है।

बृहस्पति की महादशा में चन्द्रमा के अन्तर्दशा का फल 

शुभ :- चन्द्रमा जब उच्च स्थान में शुभ ग्रह के साथ हो तो जातक का व्यवहार धार्मिक प्रकृति का हो जाता है तथा उनका मन धर्म-कर्म में अधिक लगने लगता है।जातक विभिन्न कौशल व कलाओ के माध्यम से धन प्राप्त करता है तथा मेहनत से किए गये कार्यों मे जातक को सफलता नही मिलता है।

अशुभ:-  चन्द्रमा अशुभ होने की अन्तर्दशा में जातक गलत दिशा में अग्रसर हो जाता है। पुरुष जातक का एक से अन्य स्त्रियों के साथ सम्पर्क रहते है। जातक मे आलसीपन उत्पन्न हो जाता है। जातक को हर समय छोटी-मोटी रोग हमेशा रहेगा।

बृहस्पति की महादशा में मंगल के अन्तर्दशा का फल 

शुभ :-मंगल जब बलवान और शुभ स्थान पर होता है तो ऐसी भी अपनी अन्तर्दशा में जातक को राजाओ जैसा ठाथ, सुख-सम्पत्ति, धन का लाभ होता है। विद्यार्थियों को शिक्षा के क्षेत्र में उच्च सफलता मिलता है। जमीन-जायदाद व वाहन का सुख प्राप्त होता है।

अशुभ:-  मंगल के अशुभ व नीच स्थान होने पर अपनी अन्तर्दशा मे जातक का भाई के साथ सम्बन्ध ठीक नही रहता है तथा जातक को रक्तचाप, शुगर, हृदय का रोग हो सकता है।

बृहस्पति की महादशा में राहु के अन्तर्दशा का फल 

शुभ :-बृहस्पति के उच्च स्थान मे रहने की महादशा में राहु के भी शुभ व उच्च स्थान मे रहने पर जातक को राजनीति क्षेत्र में सफलता प्राप्त होता है तथा राजनीति के क्षेत्र में मान, पद, प्रतिष्ठा, सम्मान प्राप्त होता है तथा धन कमाने का क्षेत्र भी राजनीति से होता है। जातक पर अच्छा कर्म जैसे पवित्र नदी मे स्नान दान, पूजा-पाठ करने में मन लगता है।

अशुभ:-  राहु खराब ग्रह मे से एक है राहु के अशुभ होने पर या नीच स्थान मे होने के फलस्वरुप जातक का धर्म-कर्म से मन हट जाता है, जातक जुआ खेलने लगता है। सट्टा आदि पीने लगता जातक को दुर्घटना होता है या दुर्घटना से चोट लग सकता है। जातक को गठिया पेट, गैस, आलस्य आदि का रोग होता है।

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