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विज्ञान को भी दे रहा चुनौती भगवान विष्णु का वराह अवतार

विज्ञान को भी दे रहा चुनौती भगवान विष्णु का वराह अवतार

जब कभी भी हम सामान्य रूप से वेद पुराण में भगवान वराह अवतार के बारे में पढ़ते हैं तो उसमें यह बताया गया है कि सतयुग में दीति और महर्षि कश्यप ऋषि के मिलन से हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष नाम के दो राक्षसों का जन्म होता है यह दो राक्षस ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त कर सृष्टि में उत्पात मचाने लगते हैं। हिरण्याक्ष नाम का राक्षस पृथ्वी को पूरी तरह से समुद्र में छुपा लेता है और इस पृथ्वी को जल में से बाहर निकालने के लिए ही भगवान विष्णु वराह का अवतार लेते हैं और हिरण्याक्ष का वध करके पृथ्वी को समुद्र में से बाहर निकालते हैं। आपको बता दें भगवान विष्णु ने अब तक 24 अवतार लिये हैं जिनमें से एक है भगवान विष्णु का वराह अवतार। हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को वराह जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष वराह जयंती 17 सितम्बर दिन रविवार को मनायी जायेगी। यह भगवान विष्णु का मानवीय शरीर में धरती पर दूसरा अवतार था। इसी अवतार में भगवान विष्णु जी ने मानवीय अवतार लिया था जबकि उनका मुख वराह के समान था इसीलिए इस अवतार को वराह अवतार कहा गया। 

विष्णु जी के वराह अवतार से हिरण्याक्ष का वध

विज्ञान को भी दे रहा चुनौती भगवान विष्णु का वराह अवतार 1

भगवान विष्णु के वराह अवतार के रहस्य को समझने के लिए हमे हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष नाम के दो राक्षसों को भी समझना पड़ेगा। दीति और महार्षि कश्यप के द्वारा जन्मे दो पुत्र जिनका नाम हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष था। इन दोनो के ही जन्म होने के समय तीनो लोकों में अनेक प्रकार के भयंकर उत्पात होने लगे। उस समय स्वर्ग, पृथ्वी आकाश सभी काँपने लगे और भयंकर आँधियां चलने लगीं। सूर्य और चन्द्र देव पर राहु और केतु बार-बार बैठने लगे। यह दोनो ही जन्म लेते ही आकाश तक बढ़ गये और उनका शरीर फौलाद के समान पर्वताकार हो गया। हिरण्यकशिपु ने तप करके ब्रह्मा जी को पूरी तरह प्रसन्न कर लिया था और जब ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर बोला की माँगो क्या वरदान मांगना है तब उसने बोला की मेरी मृत्यु न दिन में हो नाहि रात में ना घर के भीतर हो नाहि घर के बाहर इस तरह से अमरता का वरदान पाकर बिना किसी भय के तीनो लोकों पर राज्य करने लगा। उसके बाद उसका छोटा भाई हिरण्याक्ष उसकी आज्ञा का पालन करते हुए शत्रुओं का नाश करने लगा और भ्रमण करते हुए एक दिन वह वरुण की पूरी में जा पहुंचा।

पाताल लोक में पहुंच कर हिरण्याक्ष ने वरुण देव से युद्ध की याचना करते हुए कहा कि हे वरुण देव आपने जगत के सम्पूर्ण दैत्यों तथा दानवों पर विजय प्राप्त किया है मैं आपसे युद्ध की विनती करता हूँ आप मुझसे युद्ध करके अपने युद्ध की कला का प्रमाण दीजिए। उस दैत्य की बात सुनकर वरुण देव को क्रोध आया परन्तु हंसते हुए वरुण देव ने कहा की तुम जैसे बलशाली वीर से लड़ने योग्य अब मैं नहीं रहा तुम्हें यज्ञपुरुष नारायण के पास जाना चाहिए वे तुमसे लड़ने योग्य हैं। यह सुनते ही हिरण्याक्ष नारद के पास पहुँच गया तब नारद से पूछने पर उन्होंने बताया की नारायण इस समय वाराह का रूप धारण कर पृथ्वी को समुंद्र से बाहर निकालने गये हैं। यह सुनते ही हिरण्याक्ष समुद्र में पहुँच गया और वहाँ उसने भगवान वाराह को अपने दाढ़ पर पृथ्वी को लाते हुए देखा। यह देख हिरण्याक्ष ने भगवान वाराह से कहा कि हे जंगली पशु ! तु यहाँ जल में कहाँ से आ गया है और मूर्ख पशु तू इस पृथ्वी को कहाँ ले जा रहा है इस पृथ्वी को तो भगवान ब्रह्मा जी ने हमे दे रखा हैं ! तू इस पृथ्वी को यहाँ से नहीं ले जा सकता। तू तो दैत्य और दानवों का शत्रु है इसलिए आज तेरा वध मैं करुंगा।

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हिरण्याक्ष की यह बात सुनकर उन्हें बहुत क्रोध आया परन्तु पृथ्वी को वहाँ छोड़कर युद्ध करना उन्होंने उचित नही समझा, उस राक्षस के कड़वे वचन को सुनते हुए वह जल से बाहर आ गये। उसके बाद हिरण्याक्ष ने उस पृथ्वी को भगवान वराह से छीन कर समुंद्र में फिर से डूबो दिया यह देख सभी देवी देवताओं ने पृथ्वी को डुबने से बचाने की प्रार्थना की कि हे भगवन पृथ्वी के बिना मानव सभ्यता का अंत हो जायेगा कृपया करके उसे बचा लीजिए। यह सुनते ही भगवान वराह पृथ्वी को वापस लेने लगे तो हिरण्याक्ष ने भगवान को युद्ध के लिए ललकारा जिसके क्रोध में आकर भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया और समुंद्र से पृथ्वी को अपने दाँतों पर रखकर बाहर ले आये और पृथ्वी की पुनर्स्थापना की।

विज्ञान को भी दे रहा चुनौती भगवान विष्णु का वराह अवतार

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी भगवान विष्णु का वराह अवतार बहुत महत्व रखता है। शिव पुराणों में यह बताया गया है कि भगवान शिव जी के अनुरोध पर भगवान ब्रह्मदेव ने इस सृष्टि की रचना की और साथ-साथ हमारी पृथ्वी की भी रचना की। शुरुआत में हमारी पृथ्वी पूरी तरह से जल में डूबी हुई थी और एक भी जीव इस सृष्टि पर मौजूद नहीं था, तभी भगवान विष्णु जी ने भगवान ब्रह्मा जी के कहने पर हिरण्यगर्भ से इस पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत की यहाँ आप हिरण्यगर्भ, हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष में पूरी तरह से समानता देख सकते हैं। हमारे वैदिक शास्त्रों में हिरण्यगर्भ को ही सभी जीवों का आदि स्त्रोत माना गया है । हिरण्यगर्भ का मतलब होता है कीमती और सुनहरी धातुओं के रस का गर्भ, और इस पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत भी इसी रस से बनने वाले एक कोशिकीय सजीव से हुई है। समुद्र में सबसे पहले एक कोश रचना वाले सजीवों के साथ-साथ समुंद्री शैवाल और वनस्पति की उत्पत्ति हुई, लेकिन उस समय तक भगवान का अवतार धरती पर नहीं हुआ था। और भगवान के अवतार को तभी अवतार कहा जाता है जब वह परमतत्व जीवात्मा रूप में जन्म लेता है।

☸ भगवान विष्णु जी के मत्स्य अवतार के बारे में यह बताया जाता है कि भगवान विष्णु जी ने यह अवतार सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए लिया था और यह भी बताया गया है की हयग्रीव नाम के राक्षस नें ब्रह्माजी से वेदों को चुराकर समुद्र की गहराइयों में छुपा दिया था और इस वेदों के उद्धार के लिए भगवान विष्णु जी ने मत्स्य अवतार लिया, उस समय वेद किसी प्रकार से किताब के रूप में नहीं था।

☸ सृष्टि की शुरुआत में जीवन समुंद्र की गहराइयों में था और इस जीवन को हयग्रीव नाम के राक्षस ने समुंद्र में छुपा लिया था तो घोड़े की गर्दन वाला जीव उस समय समुद्र की अंधेरी गहराइयों में रहते थे। भगवान विष्णु ने अपने मत्स्य अवतार में हयग्रीव का वध कर दिया। इसका मतलब यह है कि हयग्रीव का क्रमिक विकास होकर वह मत्स्य मछली बना इस तरह से जीवन समुंद्र के अँधेरे में से मत्स्य के रूप में बाहर निकला आज भी यह हयग्रीव (समुद्री घोड़ा) केवल ग्रीष्मकाल में ही देखने को मिलता है और बाकी मौसम में यह समुंद्र की किन गहराइयों में चला जाता है इसे कोई वैज्ञानिक नही जान पाये हैं।

☸इस तरह से हयग्रीव का जब तक वध न होता यानि उनका क्रमिक विकास न होता तो जीवन समुंद्र की गहराइयों में ही खत्म हो जाता जिसे प्रलय के रूप में दर्शाया गया है परन्तु भगवान ने मत्स्य अवतार लेकर जीवन को प्रलय से बचाया है और इस मत्स्य अवतार के बाद समुंद्र में एक क्रमिक विकास का कार्य तेजी से होने लगा और कई नये-नये सजीव हमारे अस्तित्व में आने लगे और समुंद्र में क्रमिक विकास का एक मंथन सा शुरू हो गया। इसे हमारे पुराणों में समुंद्र मंथन की कथा से दर्शाया गया है।

☸ इस क्रमिक विकास में सजीवों में कुछ सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक बदलाव भी आ रहे थे। इनमें सकारात्मक बदलाव को देवों के रूप में तथा नकारात्मक बदलाव को दानवों के रूप में दर्शाया गया है। इन्हीं क्रमिक विकास के चलते भगवान विष्णु नें कच्छप रूप में अवतार लिया जिसे हम उभयचर कहते हैं और यह उभयचर ही जीवन को आगे बढ़ाने वाला मुख्य आधार था। इन्हीं उभयचर  से सरीसृप कर अस्तित्व आया लेकिन अभी तक जीवन पूरी तरह से पृथ्वी पर बाहर नही आया था और जब पूरी तरह से पृथ्वी पर जीवन आया तो वह स्तनप्राणियों के रूप में आया सरीसृपों में से लगभग लाखों वर्षो के संघर्ष के बाद स्तनप्राणियों का विकास हुआ और इस संघर्ष को हमारी पौराणिक कथाओं में भगवान वराह और हिरण्याक्ष के युद्ध के रूप में दर्शाया गया है।

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