रुकमणि द्वादशी 2023 तिथि, महत्व, कथा और पूजन विधि | Rukmani Dwadashi Benefit |

बहुत से लोग रुकमणि द्वादशी के बारे में नही जानते होंगे तो आज हम इस लेख के द्वारा आपको रुकमणि द्वादशी से अवगत करायेंगे। द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का जन्म लीला करने और धर्म की स्थापना के लिए हुआ था। उस दौरान रुकमणि जी भगवान श्री कृष्ण से प्रेम करती थी और उनके साथ ही विवाह करना चाहती थी परन्तु माता रुकमणि के भाई ऐसा नही होने देना चाहते थे इसलिए उन्होंने रुकमणि जी का विवाह कहीं और तय कर दिया। मजबूरी में भगवान श्री कृष्ण को माता रुकमणि का हरण करके उनसे विवाह करना पड़ा। तभी से मान्यता है कि रुकमणि द्वादशीके दिन विधिवत पूजा करने से कुंवारी कन्याओं को भी मनचाहें वर की प्राप्ति होती है इसलिए रुकमणि द्वादशी विवाह करने वाली कन्याओं के लिए विशेष है।

रुकमणि द्वादशी व्रत कथा

महाभारत में बताया गया है कि रुकमणि विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थीं और उनके 5 भाई, रुक्म, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्म केस और रुक्म माली थें। रुकमणि सर्वगुण सम्पन्न तथा अत्यधिक सुन्दर थी उनके शरीर में देवी लक्ष्मी के समान लक्षण थें जिससे लोग उन्हें लक्ष्मी-स्वरुपा भी कहते थें। अपने आस-पास के लोगो से श्री कृष्ण के गुणों और उनकी सुंदरता के बारे में सुनकर रुकमणि ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह श्री कृष्ण के अलावा किसी को भी अपना पति स्वीकार नही करेंगी।

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रुकमणि के भाई रुक्म अपनी बहन का विवाह अपने मित्र शिशुपाल से करना चाहते थे और उसने अपने माता-पिता के विरुद्ध जाकर रुकमणि जी का विवाह शिशुपाल के साथ तय कर दिया। रुकमणि को जब इस बात का पता चला तो वह अत्यधिक दुखी हुई, उन्होंने एक ब्राह्मण को पत के साथ द्वारिका भेजा। नारद जी ने भी श्री कृष्ण से कहा कि हे प्रभु अब आप देर ना करें क्योंकि शिशुपाल जरासंघ के सेना के साथ विवाह के लिए विदर्भ पहुंच गया है। रुकमणि के संदेश में श्री कृष्ण ने पढ़ा कि हे भगवान ! मैने पति रुप में आपका ही वरण किया आपके अलावा मैं किसी और के साथ विवाह नही कर सकती और यह विवाह मेरे पिता के इच्छा के विरुद्ध भी हो रही हैं। रुकमणि ने संदेश में यह भी लिखा की विवाह के पूर्व कुल देवी के पूजा के लिए मैं नगर के बाहर गिरजा दर्शन के लिए जाऊंगी और मैं चाहती हूँ कि आप वहाँ पहुुंचकर मुझे पत्नी रुप में स्वीकार करें। यदि आप वहाँ नही पहुंचे तो मैं अपने प्राणों का त्याग कर दूंगी। भगवान श्री कृष्ण को ज्ञात हो गया था कि रुकमणि रुपवती होने के साथ-साथ दृढ़ निश्चयी भी हैं और वह मुझे ही पति रुप में चाहती हैं लेकिन उनका भाई रुक्म उनका विवाह उनकी बुआ श्री कृष्ण की बुआ के पुत्र शिशुपाल से करना चाहता है। अंततः रुक्म और शिशुपाल के विरोध के कारण श्री कृष्ण को रुकमणि जी से विवाह हरण करके करना पड़ा।

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रुकमणि द्वादशी महत्व

शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने जिस मंदिर से रुकमणि जी का हरण करके विवाह किया था वह मंदिर आज भी स्थित है। रुकमणि द्वादशी वैशाख माह के शुक्ल पक्ष के द्वादशी तिथि को मनाई जाती है।

इस मंदिर का नाम अवंतिका देवी मंदिर हैं जो उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में अनूप शहर तहसील के जहांगीरबाद से लगभग 15 किलो मीटर दूर गंगा नदी के तट पर है। अवंतिका देवी के इस मंदिर का दर्शन करने लोग भक्त दूर-दूर से आते है। अवंतिका देवी को अम्बिका देवी भी कहा जाता है, मान्यता ऐसी भी है कि वह साक्षात प्रकट हुई थीं। इस मंदिर के विषय में बताया जाता है कि जो भी अवंतिका देवी पर सिंदूर और देशी घी अर्पित करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं माँ पूर्ण कर देती हैं। अवंतिका देवी का पूजा यदि अविवाहित कन्या करें तो उनकी योग्य वर से विवाह करने का इच्छा जल्द ही पूर्ण हो जाता है। ऐसा इसलिए मान्यता है कि क्योंकि रुकमणि जी ने भी कृष्ण को पति रुप में प्राप्त करने के लिए इन्हीं देवी का पूजन की थीं।

रुकमणि द्वादशी पूजा विधि

☸ प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
☸ चौकी पर लाल कपड़ा बिछाए और उस पर भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुकमणि की प्रतिमा स्थापित करें।
☸ तत्पश्चात दक्षिणावर्ती शंख से स्वच्छ जल लेकर भगवान श्री कृष्ण और रुकमणि देवी के प्रतिमा का अभिषेक करें।
☸ भगवान श्री कृष्ण को पीला व देवी रुकमणि को लाल वस्त्र अर्पित करें।
☸ कुमकुम से तिलक लगायें।
☸ अबीर, हल्दी, इत्र और फल-फूल आदि सामग्री से पूजा करें।
☸ अंत में भगवान श्री कृष्ण और देवी रुकमणि को भोग भी अर्पित करें।

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रुकमणि द्वादशी 2023 शुभ तिथि एवं मुहूर्त

रुकमणि द्वादशी वैशाख माह के शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि को मनाया जाता है।
साल 2023 में रुकमणि द्वादशी 02 मई दिन मंगलवार को पड़ रहा है।

 

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