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संत कबीर दास जयंती

संत कबीर दास जयंती

संत कबीर दास जयंती

संत कबीर दास जयंती से जुड़ी घटनाएं

संत कबीर दास अपने जीवन में बहुत ही खुले विचार धारा के व्यक्ति थें उन्होंने सदैव समाज का कल्याण किया है। जब 1518 में अपने अंतिम समय में गोरखपुर के मगहर पहुचें तो उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। जिसके बाद उनके अंतिम संस्कार को लेकर हिन्दू और मुसलमानों में विवाद होने लगा। जिन विवादों एवं विचार धाराओं को समाप्त करने के लिए उन्होंने अपने शरीर का त्याग कर दिया उनके शरीर को लेकर ही लड़ाई-झगड़े होने लगे। जब उनके मृत शरीर को लेकर विवाद होने लगा तो, ऐसा कहा जाता है उनका पार्थिव शरीर फूलो में परिवर्तित हो गया। जिसके बाद हिन्दू और मुसलमानों ने उनके फूलों का आधा-आधा बांट लिया। हिन्दूओं ने फूलों को गंगा में बहा दिया तथा मुस्लिमों ने जमीन में दफना दिया।

कबीर दास जयंती 2023 की तिथि

हिन्दू पंचाग के अनुसार कबीर दास जयंती प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन आती है तथा ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह जयंती सामान्य तौर पर मई या जून के महीने में मनाई जाती है। इस वर्ष 2023 में कबीर दास जयंती 4 जून 2023 दिन रविवार को मनाई जायेगी।

इस जयंती को पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा एवं छत्तीसगढ़ राज्यों में एक क्षेत्रीय अवकाश के रुप में मनाया जाता है। सार्वजनिक कार्यालयों, बैकों, स्कूलों आदि निजी कार्यालयों में संत कबीरदास जयंती के अवसर पर एक दिन का अवकाश होता है।

संत कबीर दास जयंती का इतिहास

कबीरदास जी के जन्म के बारे में अधिक जानकारी नही मिलती है कुछ मान्यताओं एवं इतिहासकारों का मानना है कि कबीर दास जी का जन्म 1398 CE में हुआ था तथा उनकी मृत्यु 1448 CE  में हुई थी जबकि अन्य मतो अनुसार 1440 CE में तथा उनकी 1518 CE में हुआ था साथ ही उनके प्रारम्भिक जीवन को लेकर भी विवाद देखने को मिलता है। कई मान्यताओं के अनुसार उनका जन्म हिन्दू मां से हुआ था परन्तु उनका पालन-पोषण मुस्लिम माता-पिता के द्वारा किया गया। कुछ लोगों का कहना है कि उनका जन्म मुस्लिम परिवार मे ही हुआ था।

पौराणिक कथा अनुसार

एक पौराणिक कथा के अुनसार कबीरदास जी का जन्म वाराणसी में एक अविवाहित ब्राह्मण मां से हुआ था। एक बीजरहित गर्भधान से और उसके हाथ की हथेली से पैदा हुए थे। उन्होंने दास जी को एक तालाब में तैरती हुई टोकरी में छोड़ दिया था। तब वे एक मुस्लिम परिवर को मिले तथा उन्होंने उनका पालन-पोषण किया परन्तु इस कथा को कई आधुनिक इतिहासकारों ने खारिज कर दिया हैं। कई लोगों को मानना है कि उनका जन्म मुस्लिम जुलाहों के परिवार में हुआ था। कुछ लोगों का  यह भी कहना है कि संत कबीर दास लहरतारा झील में एक कमल के फूल पर प्रकट हुए थें।

कबीरदास

कबीरदास जयंती संत कबीर दास के जन्मोत्सव के रुप में मनाई जाती है। जो भारतीय रहस्मयवादी कवि और संत थे। ऐसा माना जाता है कि उनका पालन-पोषण मुस्लिम माता-पिता ने किया था परन्तु वे हिन्दू भक्ति नेता रामानंद से प्रभावित हुए और उनके प्रिय शिष्य बन गये। कबीर दास जयंती प्रत्येक वर्ष उनके अनुयायियों द्वारा बहुत धूम-धाम से मनाई जाती है। जिन्हें कबीर पंथी भी कहा जाता है। कबीर दास जी ने समाज की कुरीतियों को समाप्त करने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पण कर दिया। उन्होंने कई कविताएं और दोहे लिखें उनके सभी कार्य लोगों के लिए एक प्रेरणा थी। दास जी के कुछ प्रमुख दोहे छद सिखों के ग्रंथ गुरु, ग्रथ साहिब में भी उल्लेखित है। कबीर दास जयंती को कबीर प्रकट दिवस के रुप में भी जाना जाता है।

कबीर दास जयंती कैसे मनाएं

कबीर दास जयंती के शुभ अवसर पर कई मंदिरों मे भव्य उत्सव का आयोजन किया जाता है। वाराणसी में दो मंदिर है एक हिन्दू तथा दूसरा मुस्लिम, इन दोनों मन्दिरों में कबीर दास जी की आराधना की जाती है। देश के कई हिस्सो से कबीर दास जी अनुयायी इन मन्दिरों मे जाते है और आरती करते है। इस दिन मंदिर में होने वाली आरती, कविता, पाठ और अन्य गतिविधियों में भाग लेते है।

कबीर दास जी किसकी भक्ति करते थें

कबीरदास जी निर्गुण ब्रह्मा के उपासक थे तथा वे एक ही ईश्वर को मानते थें और धर्म एवं पूजा के नाम पर होने वाली विभिन्न प्रकार की परम्पराओं का विरोध करते थें। उन्होंने कहा है सभी ईश्वर एक है अर्थात ब्रह्मा जी ही हरि विष्णु राम है।

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