सप्तमी के दिन मां दुर्गा की आंखें क्यों खोली जाती हैं?

सप्तमी के दिन मां दुर्गा की आंखें क्यों खोली जाती हैं?

दुर्गा पूजा के दौरान सप्तमी के दिन देवी दुर्गा की आंखें खोली जाती हैं, जो उनके जागरण और जाग्रत होने का प्रतीक है। यह परंपरा कई धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं से जुड़ी है, जो हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। नवरात्रि का पर्व, जो मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का समय होता है, पूरे देश में भक्ति और आस्था के साथ मनाया जाता है। इस दौरान हर दिन देवी के एक अलग रूप की पूजा की जाती है, लेकिन सप्तमी का दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। आइए विस्तार से जानते हैं कि क्यों सप्तमी के दिन ही मां दुर्गा की आंखें खोली जाती हैं और इस परंपरा के पीछे क्या धार्मिक तात्पर्य हैं।

सप्तमी के दिन मां दुर्गा की आंखें खुलने का धार्मिक महत्व

सप्तमी के दिन मां दुर्गा की आंखें खोलने की परंपरा को उनके जागरण का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन से ही देवी दुर्गा पूरी तरह से जागृत हो जाती हैं और अपने भक्तों की रक्षा के लिए तैयार होती हैं। उनकी आंखें खुलने का अर्थ है कि अब वे अपने भक्तों के सभी दुखों का नाश करेंगी और उन्हें अपने आशीर्वाद से सशक्त बनाएंगी। यह भी कहा जाता है कि सप्तमी के दिन से मां दुर्गा बुराई का नाश करने और संसार में सत्य और धर्म की स्थापना करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करना शुरू करती हैं।

बंगाल में सप्तमी की परंपरा का महत्व

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बंगाल में दुर्गा पूजा की परंपरा विशेष रूप से मनाई जाती है, जहां सप्तमी का दिन अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। इस दिन मां दुर्गा की आंखें खोलने की परंपरा को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। बंगाल में सप्तमी के दिन से ही मां दुर्गा की पूजा का विधिवत अनुष्ठान शुरू होता है। इस दिन से देवी की प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है और उन्हें जाग्रत किया जाता है। मां दुर्गा की आंखें खोलने का कार्य एक विशेष समारोह के साथ किया जाता है, जिसे ‘चक्षु दान’ कहा जाता है। यह अनुष्ठान देवी की प्रतिमा के सामने मंत्रोच्चार और धार्मिक विधियों के साथ किया जाता है, जिसके बाद मां दुर्गा की पूजा का शुभारंभ होता है।

पौराणिक मान्यताएं और कथाएं

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सप्तमी के दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए युद्ध का प्रारंभ किया था। महिषासुर, जो अत्यंत शक्तिशाली राक्षस था, देवताओं और मनुष्यों को पराजित कर उनके राज्य पर कब्जा कर चुका था। तब सभी देवताओं ने मिलकर देवी दुर्गा का आह्वान किया, जिन्होंने अपनी अद्भुत शक्तियों के बल पर महिषासुर का नाश किया। सप्तमी के दिन मां दुर्गा की आंखें खोलने की परंपरा इसी पौराणिक घटना से जुड़ी है, क्योंकि इस दिन से देवी ने युद्ध में प्रवेश किया था और बुराई के नाश का संकल्प लिया था।

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शक्ति और असीम ऊर्जा का प्रतीक

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मां दुर्गा की आंखें खोलने की परंपरा को देवी की असीम शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। यह दिन इस बात को दर्शाता है कि मां दुर्गा अब जाग्रत होकर अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए तैयार हैं। सप्तमी से शुरू होकर, मां दुर्गा के जागरण के साथ ही भक्तों को यह विश्वास होता है कि अब उनकी सभी समस्याएं समाप्त होंगी और वे मां के आशीर्वाद से हर संकट का सामना करने में सक्षम होंगे।

सप्तमी के दिन कुमारी पूजा का महत्व

सप्तमी के दिन कुमारी पूजा का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन छोटी बालिकाओं को देवी दुर्गा का रूप मानकर उनकी पूजा की जाती है। कुमारी को मां दुर्गा का अवतार माना जाता है और उसकी पूजा करने से मां दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस पूजा के द्वारा भक्त यह मानते हैं कि वे देवी की कृपा से सभी प्रकार की बाधाओं और कष्टों से मुक्त हो जाएंगे। कुमारी पूजा के माध्यम से मां दुर्गा की शक्ति और उनकी पवित्रता का आह्वान किया जाता है।

सप्तमी का संबंध देवी के जागरण से

सप्तमी का दिन नवरात्रि के नौ दिनों में एक विशेष दिन माना जाता है, क्योंकि यह दिन मां दुर्गा के जागरण और उनकी प्राण-प्रतिष्ठा का होता है। इसे मां की शक्ति का उदय माना जाता है और इस दिन से ही मां दुर्गा के जाग्रत होने की शुरुआत होती है। मां दुर्गा की आंखें खुलने के बाद उनके भक्तों पर विशेष आशीर्वाद की वर्षा होती है और जो भी इस दिन उनकी पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

सप्तमी का दिन दुर्गा पूजा और नवरात्रि के नौ दिनों में सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक होता है। इस दिन मां दुर्गा की आंखें खोलने की परंपरा उनके जागरण, शक्ति और बुराई के नाश की शुरुआत को दर्शाती है। यह धार्मिक और पौराणिक परंपरा मां दुर्गा के असीम शक्ति के प्रतीक के रूप में मानी जाती है, जो उनके भक्तों की सभी समस्याओं का निवारण करने और उन्हें आशीर्वाद देने के लिए तैयार होती हैं।

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