महाशिवरात्रि का यह पर्व हिन्दूओं के सबसे बड़े और सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है। हिन्दू धर्म के पंचांग के अनुसार महाशिवरात्रि का यह त्योहार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। महाशिवरात्रि का यह त्योहार मुख्य रूप से शिव जी से जुड़ा हुआ होता है। महादेव की उपासना और शिव जी को प्रसन्न करने के लिए महाशिवरात्रि के दिन की पूजा करने का विशेष अवसर होता है। वैसे तो शिव जी की पूजा अर्चना करने और उनकी विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए सप्ताह में सोमवार का दिन शिव जी को ही समर्पित होता है परन्तु फाल्गुन माह में पड़ने वाले महाशिवरात्रि का अलग ही महत्व होता है। इस दिन दुनिया भर के सभी मंदिरों में विधिपूर्वक शिव जी की पूजा-अर्चना की जाती है। आस-पास तथा दूर के बड़े-बड़े मंदिरों में भगवान शिव जी के नाम के अनेक जागरण भी किये जाते हैं, इस दिन दुनियाभर के सभी शिव मंदिरों में लाखों भक्त शिव जी के दर्शन के लिए जाया करते हैं।
क्यो मनाई जाती है महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि मनाने के पीछे कई सारी मान्यताएं शास्त्रों में देखी और बताई गई है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव जी का सबसे पहले केवल एक निराकार रूप था। अतः महाशिवरात्रि के इस शुभ अवसर पर ही शिव जी निराकार रूप से साकार रूप में आये थे। तबसे महाशिवरात्रि त्योहार मनाया जाने लगा।
दूसरी मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव शंकर अपने बहुत ही विशालकाय स्वरूप से एक अग्निलिंग में प्रकट हुए थे। इसके अलावा इस दिन से इस पूरी सृष्टि का निर्माण होना भी माना जाता है। कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन से ही भगवान शिव जी करोड़ों सूर्यों के समान तेजवाले एक लिंग रूप में प्रकट हुए थे तभी से इस दिन महाशिवरात्रि मनायी जाने की परम्परा की शुरूआत हुई।
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को सूर्य और चन्द्रदेव अत्यधिक नजदीक रहते हैं। अतः महाशिवरात्रि के दिन शीतल चन्द्रमा और भगवान शिव रूपी सूर्य का मिलना माना जाता है। इसलिए भी चतुर्दशी तिथि के दिन महाशिवरात्रि मनायी जाती है।
महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व
महाशिवरात्रि का यह त्योहार आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले सभी भक्तों के लिए बहुत महत्व रखता है। इस दिन सभी भक्त सुबह से शाम तक भगवान शिव जी का ध्यान करते हैं जिससे उनके अंदर एक आध्यात्मिक शक्ति उजागर होती है और जातक धीरे-धीरे अध्यात्म में रूचि लेने लगता है। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न सभी जातक महाशिवरात्रि को भगवान शिव जी के विवाह के उत्सव के तरह मनाते हैं। भगवान शिव जी को जितना अधिक सांसारिक लोग मानते हैं उससे कहीं ज्यादा आध्यात्मिक क्षेत्र से जुड़े लोग इस शिवरात्रि के महत्व को जानते हैं। भगवान शिव जी को एक संहारक से कहीं ज्यादा पहले एक ज्ञानी के रूप में माना जाता है। यौगिक परम्परा के अनुसार भगवान शिव जी को एक ज्ञानी और वैरागी माना गया है। शिवरात्रि मनायी जाने वाली परम्परा केवल शांति में विश्वास रखती हैं इसलिए महाशिवरात्रि आध्यात्मिक रूप से भी काफी ज्यादा खास है।
महाशिवरात्रि व्रत कथा
महाशिवरात्रि के दिन की कथा शिवपुराणा के अनुसार देखे तो, गांव में एक शिकारी रहता था जो कि पशुओं का शिकार करके अपना घर चलाया करता था। वह अपने ही गाँव में साहूकार का बहुत बड़ा कर्जदार था। वह बहुत अत्यधिक प्रयास करने के बावजूद भी साहूकार के कर्ज से मुक्त नही हो पा रहा था। जिसके कारण क्रोधित होकर साहूकार ने शिकारी को अपने शिवमठ में बंदी बना लिया था और उस दिन संयोगवश शिवरात्रि थी।
शिकार ध्यानमग्न होकर शिव जी से जुड़ी सारी धार्मिक बातें सुनता रहा और उसने उस दिन शिवरात्रि की कथा भी सुनी, शाम के समय में जब साहूकार के सामने शिकरी को पेश किया गया तो शिकारी ने साहूकार को वचन दिया कि अगले दिन वह उसके सभी कर्ज चुकाकर कर्ज मुक्त हो जायेगा। यह सुनते ही साहूकार ने शिकारी को जाने दिया।
वहाँ से निकलकर शिकरी जंगल चला गया और शिकारी की तलाश करने लगा, उसके बाद वह तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर ठिकाना लगाकर बैठ गया। उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था जो बेल के पत्तों से ढ़का हुआ था और शिकारी को यह बात पता नही थी।
भूख प्यास से व्याकुल शिकारी बेल के पत्ते को तोड़कर नीचे फेकता गया। शिवलिंग पर बेल के पत्ते फेके जाने के कारण अनजाने में ही उसने शिव पूजा भी कर लिया। रात होते ही वहाँ पर एक गर्भवती हिरण तालाब में पानी पीने आई उसे देखते ही शिकारी ने उसे मारने के लिए धनुष बाण ताना तभी उस हिरण ने कहा कि मै गर्भवती हूँ तुम एक साथ दो लोगों की हत्या न करो मैं इस बच्चे को जन्म देकर तुम्हारे पास उपस्थित हो जाऊँगी तब तुम मुझे मार लेना। यह सुनते ही शिकरी को उस पर दया आ गई और उसने उसे जाने दिया।
कुछ देर बाद वहाँ एक और हिरण आई उसे भी शिकारी ने मारना चाहा परन्तु हिरण ने कहा कि वह अभी ऋतु से मुक्त हुई है और अपने पति की तलाश कर रही है। अपने पति से जल्द ही मिल लेने के बाद वह शीघ्र ही शिकार के लिए तुम्हारे पास उपस्थित हो जायेगी। यह सुनते ही उस शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया।
बहुत देर रात तक शिकार का इंतजार करने के बाद वहाँ एक और हिरण अपने बच्चों के साथ उपस्थित हो गई शिकारी ने उसे भी मारना चाहा परन्तु उसने कहा कि वह अपने बच्चों के साथ इनके पिता की तलाश कर रही है पति के मिलते ही वह स्वयं शिकार के लिए उपस्थित हो जायेगी, शिकारी अपने शिकार को छोड़ना नही चाहता था परन्तु हिरण ने उस शिकारी को अपने बच्चों का हवाला दे दिया यह सुनते ही शिकारी ने उसे भी वहाँ से जाने दिया।
शिकार की तलाश में उदास बैठा शिकारी बेल के पत्ते को तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। सुबह होने ही वाली थी तभी वहाँ एक हिरण आया और शिकारी तुरन्त उसे मारने के लिए तैयार हो गया। तभी हिरण ने कहा कि यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलम्ब न करों, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुखी न होना पड़े। मै उन हिरणीयों का पति हूँ यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया हैं तो मुझे कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो मै अपनी पत्नी और बच्चों से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।
थोड़ी देर बाद मृग अपने सपरिवार के साथ शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया ताकि शिकारी उसका शिकार कर सके परन्तु उन जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता और सामूहिक प्रेम भावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई और उसने उन मृग परिवार को जीवनदान दे दिया।
रातभर के उपवास, रात्रि जागरण और अनजाने में बेलपत्र से हुई शिवलिंग पूजा के प्रभाव से वह शिकारी दयालु हो गया। उसके मन में एक अलग प्रकार की भक्ति भावना प्रकट हो गई उसी क्षण वह अपने पुराने कर्मों को सोचकर पश्चाताप करने लगा। उसका हृदय करूणामय हो गया और वह रोने लगा। उसके बाद शिकारी स्वयं हिंसा को छोड़कर दया के मार्ग पर चलने लगा। शिव जी की कृपा दृष्टि से उस शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई
वास्तव में प्रत्येक रात्रि ही शिवरात्रि है, यदि हम उन परम कल्याणकारी आशुतोष भगवान में स्वयं को लीन कर दें तथा एक कल्याणकारी मार्ग का अनुसरण करें तो वहीं महाशिवरात्रि का एक सच्चा व्रत कहलाता है।
शिव जी की प्रचलित महाशिवरात्रि की कथाओं में इस त्योहार को भगवान शिव और माँ पार्वती के विवाह के रूप में भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन शिव जी ने अपना वैराग्य छोड़कर माँ पार्वती से विवाह किया था और इस पृथ्वी पर अपना सांसारिक जीवन शुरू किया था।
इसके अलावा एक मान्यता यह भी है कि महाशिवरात्रि के ही इस शुभ अवसर पर फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को एक साथ पूरे 64 जगहों पर शिवलिंग प्रकट हुए थे जिनमें से केवल 12 ही चर्चा में है। इन्हें ही हम शिव जी के 12 ज्योतिर्लिगों के नाम से जानते हैं।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार महाशिवरात्रि का महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार महाशिवरात्रि के त्योहार का अत्यधिक महत्व होता है। गणित ज्योतिष शास्त्र के आंकलन के अनुसार महाशिवरात्रि की तिथि के समय तक सूर्यदेव उत्तरायण हो चुके होते हैं साथ ही उस समय ऋतु परिवर्तन भी चल रहा होता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन चन्द्रदेव बहुत ही ज्यादा कमजोर स्थिति में आ जाते है। शिव जी की जटाओं में चन्द्रदेव के उपस्थित होने के कारण महाशिवरात्रि के दिन शिव जी की पूजा करने का अत्यधिक महत्व होता है। शिव पूजन से मन का कारक चन्द्रमा अत्यधिक सबल हो जाता है। इसके अलावा शिव जी की आराधना करने से जातक की इच्छा शक्ति मजबूत हो जाती है जिससे जातक के अन्दर साहस और दृढ़ता का संचार होता है।
ऐसे करें महाशिवरात्रि के दिन की पूजा
महाशिवरात्रि के दिन की पूजा करने के लिए व्रत रखने वाले जातक को सुबह के समय शुभ मुहूर्त में जल्दी उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके व्रत रखने का संकल्प लें।
उसके बाद शिव जी की पूजा करने के लिए किसी शिव मंदिर में जायें और यदि मंदिर जाना संभव हो तो घर पर ही शिवलिंग बनाकर उनका पूजन करें।
पूजन करने के लिए सबसे पहले जल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अलग-अलग शिव जी को स्नान कराकर पंचामृत और जल से अभिषेक करें।
उसके बाद शिव जी को कुमकुम, फल, फूल, चंदन, बिल्व पत्र, धतूरा तथा धूप दीप से चारों प्रहर में शिव जी की पूजा करें साथ ही उन्हें लड्डू या किसी मीठे चीजों का भोग लगायें।
शिव जी की इस पूजा के दौरान शिवंपचाक्षर मंत्र या ओम नमः शिवाय का जाप करें, इसके अलावा शिव जी की पूजा के दौरान आप महामृत्युंजय मंत्र का जाप तथा रात्रि जागरण भी कर सकते हैं।
उसके बाद भव, शर्व, रूद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम और ईशान शिव जी के इन 8 नामों से पुष्प अर्पित कर भगवान शिव जी की विधिपूर्वक आरती करें।
आरती करने के बाद भगवान शिव जी के इन मंत्रों का जाप करके प्रार्थना करें।
नियमों यो महादेव कृतश्रैव त्वदाज्ञया।
विसृत्यते मया स्वामिन् व्रतं जातमनुत्मम्।।
व्रतेनानेन देवेश यथाशक्तिकृतेन च।
संतुष्टो भव शर्वाद्य कृपां कुरू ममोपरि।।
उसके बाद अगले दिन सुबह नहा धोकर पवित्र होकर शिव जी की पूजा-अर्चना करने के बाद ही महाशिवरात्रि के व्रत का समापन करें।
महाशिवरात्रि शुभ मुहूर्त/मासिक शिवरात्रिः-
महाशिवरात्रि का त्योहार 08 मार्च 2024 शुक्रवार के दिन मनाया जायेगा।
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भः- 08 मार्च 2024 रात्रि 09ः57 मिनट से।
चतुर्दशी तिथि समाप्तः- 09 मार्च 2024 शाम 06ः17 मिनट तक।